Guru ka Milna in Hindi Biography by Mahesh osho books and stories PDF | गुरु का मिलना

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गुरु का मिलना

कहावत सुनी ही होगी जब शिष्य तैयार होता है गुरु प्रकट होता है। मुझे मेरे गुरु ओशो केसे मिले लेकिन एक बात वो मुझे वैसे नही मिले जैसे आप अपने गुरुओं के पास जाते हो उनके पास बैठ सकते हो लेकिन मैं उतना किस्मत वाला नही जब तक गुरु जी की जरूरत पता चलती वो तो इस धरती से विदा हो लिए बस पींछे अपने ऑडियो वीडियो और बुक और साथ ही इतने गुरु भाई और मां जिनके बीच मुझे कभी उनकी कमी महसूस नही होती और मजेदार उन सबसे या कुछ एक दो से भी में आमने सामने नही मिला बस सोशल मीडिया के माध्यम से हम जानते हैं। बस इतना अभी तक अब चलते हैं पास्ट मैं जब इंटरमीडिएट करने के बाद कॉलेज के लिए चले जिंदगी मस्त थी लेकिन एक नींद में चल रहा था सब बिल्कुल रोबोटिक  बिलकुल बेजान बस अपने भाई बहनों और दोस्तो के साथ मस्ती क्रिकेट और बाकी खेल तब फोन नही था तो जुड़ाव गहरा था सबसे उस समय हर चीज पर ध्यान पूरा होता खेल रहे हैं तो खेल ही रहे हैं खाने के टाइम बस खाना हर काम पूरा । घर पर पापा बहुत सी किताबें रखते और बड़ा भाई और बहनें और मुझे उनमें से जब बोरियत महसूस होती तो बस उसको ही पढ़ना शुरू करता । ये बहुत सुकून देता वो पढ़ना बस पढ़ना होता था उसमें कॉमिक्स होती चंपक राजहंश और बहुत से बाकी छोटी पत्रिकाएं और धार्मिक पुस्तकें थीकाफी दिन बाद फिर से शुरू करते हैं व्यस्तता इतनी होती है लिखने का समय निकल नही मिलता और मिलता भी है तो ये में कुछ पढ़ने में बिताना अच्छा माध्यम समझता हूं ।यहीं तो मैंने आपको छोड़ा था पढ़ना यही तो वो मध्यम बना गुरु के मिलने का चलो शुरू करते हैं ।ये शायद गर्मियों के दिन और दोपहर का समय तो कटता ही नही उस टाइम तो ज्यादा कुछ था नही जैसा आजकल है लेकिन वो समय गोल्डन टाइम था  आज का टाइम तो पता ही नही  ये हमारे लिए है या ये उन कंपनी के लिए है जो हमारे फोन माध्यम से हमारे माइंड को ट्रैक करते हैं ।आज का समय बेकार है  यहां हमारे सबके दिमाग को सब अपहरण करने में लगे हैं।छोड़िए ये ऐसे ही रहेगा कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र नहीं है जो स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सकता।” – पाइथागोरस सही बात है ना हमको तो खुद को नियंत्रित करना बाकी फिर कोई क्या कर पाएगा हमारा समय हम इसका जो चाहें करें कुछ अच्छा सा जो हमको पसंद हो कुछ जो तुमसे निकले  जो तुम्हारा श्रजन हो तुम्हारी छाप कोई नृत्य कोई पेंटिंग कोई कल्पना या कुछ लिखना जो तुम करो खुद से बिना किसी दवाब के  तो कीजिए ।तो उन्हीं दिनों की गर्मियों की बोरियत वाले दिनों में से एक जब बोरियत महसूस होने पर में वही गया जहा जाता पुस्तकों की अलमारी की तरफ लेकिन वो तो बहुत बार देख चुका पढ़ा जा चुका तो मैंने रुख किया बक्से में बंद पुस्तकें जो मेरे पिताजी की थी उनको देखा पहले भी लेकिन देखा नही जब उनको एक एक करके देखा तो बहुत अच्छा लगा तभी अचानक मेरी नज़र आई एक पुरानी सी एक heardcover बुक पर  जिसका शीर्षक था ताओ उपनिषद भाग एक लेकिन ये हाथ में आई और आगे जो लिखा वो चौकाने वाला था वो ऐसे था ताओ उपनिषद भाग एकभगवान श्री रजनीश ये पढ़ने के बाद मेरे माथे पर सिकुड़न आई जो मेरे चिंतन के समय आती है ये चिंता वाली नही बल्कि ये मेरे लिए किसी को जानने की जिज्ञासा मैं  बनी  और जो सवाल आया ये कोन हैं जो खुद को भगवान लिख रहे हैं और ये मेरे लिए जानना जरूरी हो ही गया अब कहा बचोगे आज इनको ही देखते हैं और आ गया करीब 400 से ज्यादा पेज की पुस्तक साथ लेकर ।और जब पहले कुछ पेज पढ़े तो अच्छे लगे गुरु जी का कहने का तरीका पसंद आया और बहुत मजेदार भी लेकिन पता नही था उस समय यही मेरे गुरु होंगे हमेशा इसके बाद फुल स्टॉप ।उस पुस्तक को जब तक पूरा नहीं पढ़ा तक तक रुका नहीं काफी समय लगा करीब एक महीना और वो महीना सबसे शानदार रहा अपने दोस्तों को बताया बुक के बारे में हमेशा की तरह कोई खास जवाब नही ।लेकिन कोई बात मुझे तो बस बताना था जब भी मुझे कुछ अच्छा लगता है तो मैं हमेशा चाहता हूं ये सबको भी मिल जाए एक खुशी लेकिन ये चाहिए सबको लेकिन खोजना और पाना कोई नही चाहता ये अंतिम पार्ट  करना था लेकिन ये तो और आगे जाएगा तो आज इतना ही बाकी जब फिर से लिखूंगा Love you forever osho  my guru