सुबह की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी। सूरज की हल्की सुनहरी किरणें कमरे में फैली हुई थीं। दीवार पर टंगी घड़ी की टिक-टिक के बीच, सूरज गहरी नींद में था। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मानो कोई प्यारा सपना देख रहा हो। सपने में वह शायद अनामिका को देख रहा था, उसकी मुस्कान, उसकी कविताओं की गूंज... सब कुछ।
इतने में उसकी बहन तारा कमरे में आई। उसने धीरे से खिड़की के परदे हटाए और सूरज के सिरहाने आकर कहा, "भाई, उठ जाओ। आज तो तुम्हें अनामिका के लिए ख़त लिखना है!"
तारा की आवाज़ सुनकर सूरज चौंककर उठ गया। उसने एक नजर खिड़की के बाहर डाली। सूरज पूरी तरह उग चुका था, और दिन की शुरुआत का अहसास अब उसके चेहरे पर झलकने लगा था।
"तूने सही याद दिलाया, तारा," सूरज बोला और जल्दी से उठकर तैयार होने लगा। उसने हल्के नीले रंग की शर्ट पहनी, जो उसका पसंदीदा रंग था, और अपने बाल संवारते हुए एक हल्की सी मुस्कान दी।
जल्दी तैयार होकर वह अपने कमरे में अपनी डेस्क पर बैठ गया। उसके सामने कागज और पेन रखा था। उसने पेन उठाया और कागज पर कुछ लिखने की कोशिश की। पर दिमाग उलझने लगा।
“क्या लिखूं?” उसने खुद से पूछा।
"क्या सीधे दिल की बात कह दूं? लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं लगेगा कि मैं ज्यादा जल्दी कर रहा हूं? या फिर हल्का-फुल्का परिचय दूं, जैसे 'नमस्ते अनामिका जी'? क्या खुद के बारे में कुछ लिखूं? या फिर उसकी कोई कविता जो मेरे दिल को छू गई थी, उसे लिखकर उसे खुश कर दूं? पर क्या उसे ऐसा लगेगा कि मैं उसकी कविताओं का फायदा उठा रहा हूं?"
सूरज के मन में सवालों का सैलाब उमड़ रहा था। उसने गहरी सांस ली, अपनी उलझनों को शांत किया और लिखना शुरू किया:
नमस्ते अनामिका जी,
कैसी हैं आप? आशा है कि आप स्वस्थ और खुश होंगी।
मैंने आपकी किताबें हाल ही में पढ़ना शुरू की हैं। सच कहूं तो आपकी कविताओं को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे आप मेरे दिल को अच्छे से समझती हैं। आपके शब्दों में वह जादू है जो सीधे मेरे दिल तक पहुंचता है। शायद यह सुनकर आपको अजीब लगे, लेकिन मैं एक ऐसा इंसान हूं जिसे अपनी भावनाओं को जाहिर करना कभी नहीं आया। आपकी कविताओं को पढ़कर, मुझे महसूस होता है कि जो मैं कभी कह नहीं पाया, उसे आप अपने शब्दों में कह चुकी हैं।
आपकी एक कविता मेरे दिल को बहुत गहराई तक छू गई थी:
"चुप रहती हैं हवाएँ, पर कह जाती हैं,
उन लहरों की कहानी, जो साहिल तक न आईं।
मन के हर कोने में जो दर्द छुपा था,
वो शब्दों की तरह कागज पर बह आया।"
आपके शब्द मुझे ताकत देते हैं। शायद यह अजीब लगे, लेकिन आपकी कविताएं पढ़ने के बाद, मैंने अपने दिल के दरवाजे खोलने शुरू कर दिए। अब मैं अपनी मां से भी खुलकर बातें करता हूं। उन्हें आपकी कविताएं सुनाता हूं, और उन्होंने भी आपकी लिखावट की तारीफ की।
मैं अक्सर सोचता हूं कि आपसे मिलूं और आपको धन्यवाद दूं। पर क्या यह ठीक होगा? आप जैसे कलाकार को कोई साधारण सा इंसान धन्यवाद कैसे दे सकता है?
फिर भी, मैं कहना चाहता हूं कि आपकी कविताएं मुझे एक नया जीवन जीने का हौसला देती हैं।
आपका फैन,
सूरज सिंघानिया
सूरज ने खत खत्म किया और उसे पढ़कर खुद ही मुस्कुरा दिया। उसने खत को बड़े जतन से मोड़ा और एक खूबसूरत लिफाफे में डाल दिया। लिफाफे पर उसने अनामिका का नाम बड़े करीने से लिखा।
खत लिखने के बाद सूरज अपनी कुर्सी से उठा और खिड़की के बाहर देखा। सूरज आसमान में चमक रहा था। बाहर पेड़ों की शाखाएं हल्की-हल्की हवा में हिल रही थीं। यह नजारा देखकर उसके दिल में अनामिका से मिलने की उम्मीद और भी प्रबल हो गई।
वह सोचने लगा कि जब अनामिका यह खत पढ़ेगी, तो क्या वह भी उसकी भावनाओं को समझेगी? उसने मन ही मन यह तय कर लिया कि यह खत अनामिका तक जरूर पहुंचना चाहिए, चाहे इसके लिए उसे कितना भी इंतजार करना पड़े।
क्या सूरज और अनामिका की मुलाकात होगी? क्या वह अपने जज़्बात अनामिका तक पहुंचा पाएगा?