Swayamvadhu - 30 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 30

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स्वयंवधू - 30

विनाशकारी जन्मदिन भाग 3

"तो तुम क्या चाहते हो?!
क्या तुम चाहते हो कि वह हर शक्ति की 'सेवा' करे? उसके जीजा की, उसके भाई की, उसके बलात्कारी की!? तुम उसे उन सबके सामने परोसना चाहते हो?!
हाह! और कोई रास्ता नहीं है कि राज उसे उस यातना कक्ष में वाष्पित होने देगा। उसे ऊर्जा की आपूर्ति की आवश्यकता है लेकिन वह अनंत ऊर्जा की श्रोत भी है, कौन उसे मरने देगा? समीर बिजलानी तो नहीं! अरे, उसने पहले से ही पिछली महाशक्ति और कवच को अपने अंदर समाहित कर लिया है। यदि तुम उसे चिह्नित नहीं करते या उसे तुम्हें चिह्नित करने नहीं देते... तो उसे अपनी आँखो के सामने उसके जीवन के हर एक पल को हिंसक होते देखने के लिए खुद को तैयार कर लो। इसके बाद वह कभी भी अभी के तरह अंदर सुरक्षित नहीं रहेगी, बाहर उसकी नुमाइश होगी!", आर्य उसके 'सब मेरी ज़िम्मेदारी है' वाले चरित्र से चिढ़ गया पर फिर भी वह उसका खास मित्र है,
"यदि तुम चाहो तो एक उपचारक के रूप में मैं तुम दोनों की मदद कर सकता हूँ। वह इस प्रक्रिया के लिए ठीक लग रही है। तुम्हें कुछ भी बहुत मज़बूती करने की ज़रूरत नहीं है, बस उसे अपनी ऊर्जा सोखने दो और जब वह ऐसा कर लेगी तो वह अपनी ऊर्जा छोड़ेगी जिसे तुम्हें अपनी खोई हुई ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने के लिए सोखना होगा। हाश! इस प्रकार के प्रणाली का आविष्कार पता नहीं किसने किया जो हमे पिशाच और भोगी की तरह जीवन जीने में मज़बूर कर रखा है।",
"यह एक अभिशाप है।", कवच ने कहा,
तंस भरी टोन में उपचारक ने कहा, "विशेषकर महाशक्ति और कवच के लिए। वे जानवरों की तरह जीने पर मजबूर हैं। हमारे पूर्वजो का वरदान हमारा अभिशाप है। हमारा अधिकांश इतिहास पीढ़ियों में घुल गया, रह गया बस ये शापित नियम जो हमे जीवित रहने के लिए हमें दिए गए हैं। कोई आंतरिक विवाह नहीं, कोई नज़दीकी संबंध नहीं। ज़िम्मेदारियों की जगह काम वासना और सत्ता ने ले ली, और हम रक्षक से भक्षक बन गए।
खैर जो भी हो। वृषा, अभी जाओ और उसे अस्थाई रूप से चिन्हित करो। खून भी काम करेगा। बस इतना ध्यान देना की वो तुम्हें कच्चा ना चबा जाए। चाँदनी रात में हमारी शक्तियाँ, हमारी भावना सब अधिक से भी अति रहती है। हाहाहा!", उसने उसकी खाली पीठ पर हँसते हुए ज़ोर-ज़ोर से मारते हुए कहा।

अपनी पीठ मलता हुआ वो दरवाज़े के सामने जा रूका। अचरज अभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। वह उसे सुरक्षित करने के लिए यहाँ ले आया था पर अब...
"रुको मत! हमे उसकी जन्म का समय नहीं पता। इसलिए आधे रात तक अपनी ज़िम्मेदारी निभाओ! और महत्वपूर्ण बात! अगर उसने तुम्हें काटकर भेजा तो मेरा कंधा तुम्हारे लिए हमेशा तैयार है!", उसने बालकनी से चिल्लाकर कहा।
कवच भ्रम और शर्म के कारण कुछ ना कह पाया। पीड़ा उसे उसके थप्पड से नहीं, उसकी खामोशी से लगता है।
वह उसे मुँह बँद रखने का इशारा कर दरवाज़ा खट-खटाकर अंदर गया। राधिका ने उसकी ड्रेसिंग कर दी थी।
"वह मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से पूरी तरह ठीक है।", राधिका ने कहा, "वह सामान्य है, इतनी सामान्य कि इसे सामान्य कहना कठिन है। क्या आप उससे बात कर सकते हैं सर? उसकी भावना निकलनी ज़रूरी है।",
उसने सिर हिलाया और वह दरवाज़ा थोड़ा सा खुला छोड़ गई जो चंद सेकेंड में धपकर बँद हो गए।
"वृषाली?", कह वो उसके पास जाकर खड़ा हो गया।
उसने अपना बेजान चेहरा उससे दूर रखा।
"वृषाली बच्चे। इधर देखो मेरी तरफ?", उसने उसे भरोसेमंद स्वर में बार-बार पुकारा।
उसने अपना चेहरा अब भी दूसरी ओर कर रखा था। वो अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हट सकता, अगर उसने जल्दी नहीं की तो उसे आगे कोई नहीं बचा सकता था।
"तो ठीक है! हमारा स्वभाव लगभग एक सा है तो मैं जानता हूँ कि तुम्हें इस वक्त एक साथी की ज़रूरत है और वो मैं हूँ। अब मैं तुम्हारे चेहरे को छूने जा रहा हूँ!", कह कवच को प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी तो उसने उसकी ठोड़ी से हल्का पकड़ अपनी तरफ घुमाया। उसने सामान्य रूप से प्रतिक्रिया नहीं की। आम तौर पर वह अचानक डर जाती या अपनी आंखें बंद कर लेती, लेकिन आज... आज, वह ना केवल ज़रा भी नहीं हिली, बल्कि उसकी आँखें मृत थीं, अब जीवित महसूस नहीं हो रही थीं।
वृषा: (उसे इस तरह देखना हज़ार पिन निगलने से भी अधिक दर्दनाक है।)
अपनी गहरी आवाज़ में उसने कहा, "वृषाली, बच्ची... मुझे कुछ कबूल करना है।", उसकी आँखें मानो उत्तर खोज रही थीं, "...मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि मैं शक्ति हूँ लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं था। हमारे पूर्वजों ने हमें आनुवंशिक रूप से संशोधित किया था। पर-", उसने उसकी आँखो में देखा। वो और बेजान थी।
"हाह! मैं यह नहीं कर सकता!", उसने उसके कनपटी के नीचे हल्के से दबाया और उसे वही चित कर दिया। "मेरे लिए फिलहाल तुम ज़रूरी हो!", उसने उसे अपनी गोद में बिठाया और वृषाली के गर्दन में महाशक्ति के लॉकेट को पकड़ उसने अपनी हाथ को चीरा। सर्ररर उसके हाथ से टपकती पहली कुछ बूँद बेहोश महाशक्ति के स्तन पर गिरा तो पर्याप्त मात्रा उसके लॉकेट पर।

इसे देखकर मैं हैरान रह गयी। आजतक किसीने इस तरीके से महाशक्ति को अपना बनाने का नहीं सोचा। सबने उसके शरीर को अपना माध्यम समझा था जबकि असली चिन्हित तो ऐसे करना था। अगर उसने उसके रक्त को अपने रत्न में छुआया भी होता तो वो उससे बच जाता जो होने वाला था।

उसे दिलभर गले लगाकर, लिटाकर, ढाककर, माथे को चूमर वो कमरे से लाल होकर निकला। (आखिर स्वाभाविक प्रवृत्ति अपना असर दिखा रही है?) बाहर, उसकी मुलाकात वही भारीपन से हुई जिसे वो इन तीन-चार महीनो में भूल गया था।
"आर्य?", उसने उपचारक को बालकनी में ढ़ूँढा।
वो वहाँ नहीं था।
वो ऊपर गया।
ऊपर भी कोई नहीं था।
अशुभ की भावना घनी, और घनी होती जा रही थी। चिंतित, फिर से उसने उसे जाँचा, वह गायब थी। सभी लोग वहाँ से गायब थे। सरयू, शिवम, आर्य, सुहासिनी, दिव्या, साक्षी, प्रांजलि, कायल, सभी सहायक-सहायिका गायब थे और उसे पता था कि उसे कहाँ जाना था।
उसने अपनी चाबियाँ पकड़ीं और नए बिजलानी घर की ओर भागा जहाँ उसके पिता, समीर बिजलानी रहता हैं जो कवच के घर से बीस गुना बड़ा और अधिक शानदार था। इसमें पूल, जिम, बैंक्वेट हॉल, उसके कार संग्रह, विमान संग्रह, हैलीपैड, हेलीकॉप्टर का स्थान। बार, सौना रूम, स्पा रूम, आर्केड रूम, सभी प्रकार की चीजें जो भी आप सोच सकते हो। उसके पास अतिरिक्त असामान्य एमिनिटीज के साथ थीं हथियार कक्ष, यातना कक्ष और एक जगह थी जहाँ उसके सभी काला करतूतों के गवाह थे जो बाहरी दुनिया से छिपी हुई थी।
दस मिनट की दूरी दो मिनट में तय करने के बाद, वह उन्माद मचाकर घुसा। पूरा हॉल माफिया और काले सूट वाले अंगरक्षकों से भरा हुआ था। वह सीधे यातना कक्ष की ओर भागा। अंगरक्षकों ने उसे रोकने कि कोशिश की लेकिन वह अजेय था। उसके दिमाग में केवल अपनी नियति और दूसरों की सुरक्षा ही थी। यातना कक्ष खाली था। अपने पीछे उसने एक आकृति देखी, बिना एक क्षण बर्बाद किए उसने उसे कॉलर से पकड़ा और यातना मेज़ पर धकेला, जहाँ सभी प्रकार के कसाई चाकू सजाए गए थे। उसका हाथ, उसके गले पर था।
"वह कहाँ है?! अन्य लोग कहाँ हैं?!", वह भयानक आतंक था,
मेज़ पर धकेला गया आदमी उसके पिता का दाहिना हाथ था। वह हमेशा रहस्यमयी रहता था, लेकिन समीर की तरह ही दुष्ट था। उसने सोने के बक्से में रखे कोड़े पर नज़र डाली।
दाहिनी हाथ, ज़ंजीर धीरे से बड़बड़ाया, "ब- बैंक्वेट हॉल! अगर इतनी गर्मी है तो जाओ, बचा लो अपनी नियती को!", उसकी साँस फूल रही थी,
उसने अपनी पकड़ ढीली की और बैंक्वेट हॉल की ओर दौड़ा। वह दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुसा। वहाँ उसने अपने सबसे बुरे सपने को सच होते देखा। पूरा कमरा बख्तरबंद लोगों से भरा हुआ था। सभी अपनी-अपनी कुर्सियों पर डरे बैठे थे, जिसका मतलब था कि उसने यह सब बहुत पहले से प्लान किया था। टेबल के ऊपर वाइन और कटलरी रखी हुई थी, उसने देखा कि राज उसकी नियति को टेबल पर परोस रहा था। वह गुस्साए उसे रोकने गया। उसकी नजरें समीर से मिलीं, अपनी आँखों से वह कह रहा हो, 'एक गलत कदम, वह उनकी आखिरी दावत होगी।' वह वहीं रुक गया। सबकी निगाहें बिजलानियों पर टिकी थीं। अगले ही पल वह घुटनों के बल उसके सामने झुक गया, लेकिन एक बार भी उसने अपनी नज़र नीची नहीं की, उसकी आँखें हमेशा की तरह आत्मसम्मान से भरी थीं।
वह क्रोधित था, फिर भी आतंक को देखकर खुश था और मुस्कुराया।
उसने अपने सहायक को अपनी बायीं तर्जनी अंगुली से इशारा किया, उसने उसके और दूसरों के वाइन गिलास में लाल वाइन डाली।
वृषाली निद्रामग्नता से बँधी हुई थी और अन्य आज्ञाकारी मन्त्र से बँधे हुए थे।
वो उठकर अपने बेटे के सामने गया। दोंनो ने एक दूसरे के आँखो में आँख डालकर देखा। समीर ने अपने ग्लास के वाइन को उसके सिर पर गिराया। रेड वाइन उसके बालो से होते हुए, चेहरे कपड़ो से सफेद टाइल्स को रंगा। तंस भरी हँसी हँस उसने उसके मुँह पर अपने सख्त जूते से ज़ोरदार लात मार उसे नीचे गिरा दिया, जैसे ही वो नीचे गिरा उसके आदमियों ने उसपर कोड़े बरसाने शुरू हो गए। सब ऐकदम से अपनी कुर्सियों से उठ गए। सब भयभीत निगाहो से बाप-बेटे को देख रहे थे। अब राज अपनी जगह से हिल समीर के कुर्सी के सामने समर्पण हो गया, उसकी भी वही आँखे आत्मसम्मान से भरी। सब उसे देख हैरान रह गए। वहाँ कवच भी कोड़ो के बौछारो के बीच सीधा पालती मार बैठ गया। उसकी दृष्टी सबपर थी, खासकर वृषाली पर। राज की उसके भाई और उसकी भावी भार्या पर।
समीर अपनी जगह जा बैठ तमाशा देख रहा था। उसका सहायक एक सिगरेट उसकी मुँह में डालकर जलाया। उसने अपनी मुँह का धुआँ राज के चेहरे पर बहाया और राख उसके माथे पर।
तभी एक काली शीशी और सुनहरा बक्सा ले उसका दाहिना हाथ आया।

-इसके बाद जो हुआ वह खूनी है, इसलिए तैयार रहे।