पुस्तक या मोबाइल
"मित्र! तुम दिन भर पढ़ते रहते हो! आज रविवार है। यहाँ सब लोग खेलने आये हैं। एक ही दिन मिलता है खेलने को। हर दिन तो स्कूल जाना ही पड़ता है। किताबें पढ़नी ही पढ़ती हैं। चाहे टीचर के डर से, चाहे अभिभावक के डर से या दोस्त हँसी उड़ा रहा है, इसके डर से। कभी न कभी पढ़ना ही पड़ता है, पर आज तुम्हें देखकर मुझे गुस्सा आ रहा है। मैं इतनी मेहनत से खेल की टीम बटोर कर लाया हूँ और तुम अपने साथ किताब लाकर यहाँ बैठकर पढ़ रहे हो? चलो क्रिकेट खेलते हैं।"
"मोनू! मेरा पढ़ने का मन है। तुम क्रिकेट खेल लो। मुझे कल टेस्ट देना है। तुम्हें पता नहीं, कल हिन्दी का टेस्ट है और दस में नौ नंबर लाना जरूरी है। बताओ, क्या मुझे टेस्ट नहीं देना है?"
"थोड़ी देर खेल लेते हैं, फिर घर जाकर तो पढ़ाई करना ही है। हमें भी तो पढ़ना है। वैसे भी डाँटकर बैठा देंगे घर पर पढ़ने को। वहाँ थोड़ी क्रिकेट खेलेंगे, सिर्फ दो-ढाई घन्टे हैं हम लोगों के पास। चलो खेलते हैं, कभी तो बात मान लिया करो।"
"ठीक है मित्र! मैं बस थोड़ी देर ही खेलूँगा, फिर मैं घर चला जाऊँगा।" "वह देखो, टीनू तो मोबाइल में लगा है! क्या तुम नहीं खेलोगे?"
"अरे मैं नहीं खेलूँगा। मैं मोबाइल में गेम खेल रहा हूँ।"
"और तुम आओ! तुम लोग भी खेलो। धीरे-धीरे सभी लोग टीनू की तरफ चले जाते हैं और उसके साथ मोबाइल में गेम खेलने लगते हैं। सोनू और मोनू भी थोड़ी देर में टीनू के साथ मोबाइल देखने लगता है, फिर कुछ देर बाद सोनू को चिन्ता होती है कि कल टेस्ट है। मुझे चुपचाप यहाँ से निकल जाना चाहिए और घर पर पढ़ाई करना चाहिए। सोनू सभी से कहकर कि 'मैं घर जा रहा हूँ' इतना कहकर वह अपने घर चला जाता है और पढ़ाई करता है। अगले दिन सभी लोग स्कूल पहुँचते हैं। सोनू दस में से आठ नंबर लाता है और सोनू के सभी दोस्त टेस्ट में बुरी तरह से फेल हो जाते हैं। टीचर सभी से टेस्ट में फेल होने का कारण पता करती है तो पता चलता है कि यह सब मोबाइल में गेम खेल रहे थे। टीचर बहुत प्यार से समझाती हैं कि, "यह उम्र तुम्हारी पढ़ाई करने की है न कि खेलने की है, न कि मोबाइल की लत लगाने की है।" इस पर टीनू जवाब देता है, "क्या करूँ मैंम! मुझे एक पल भी मोबाइल छोड़ना अच्छा नहीं लगता है। यही वजह है कि मैं विद्यालय जल्दी नहीं आता हूँ। सुबह बाबा भी बहुत डाँटते हैं, पर मैं क्या करूँ? मेरी आदत छूट नहीं रही है। मैं चाहता हूँ पढ़ना, मगर पढ़ नहीं पाता हूँ। किताबें मुझे अच्छी नहीं लगती हैं। मुझे मोबाइल अच्छा लगता है। आप लोग क्यों नहीं समझते हैं इस बात को मेरी? एक मेरे न पढ़ने से क्या होगा? आप ऐसा करें कि मेरा नाम काट दीजिए।" टीचर ने कहा, "बेटा! चलो, ठीक है! मैं तुम्हारा नाम काट दूँगी, फिर तुम क्या दिन भर मोबाइल में गेम ही खेलोगे? रही बात एक के न पढ़ने की तो टीनू बेटा याद रखना, एक व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से देश जुड़ा होता है। हमें अपने देश के लिए पढ़ना चाहिए।" टीनू को बात समझ आ गई। टीनू ने वादा किया कि, "मैं अब मन लगाकर पढ़ाई करूँगा। मोबाइल पिताजी को दे दूँगा और विद्यालय भी रोज आऊँगा।" यह देख-सुनकर सभी बहुत खुश हुए।
संस्कार सन्देश -
हमें मोबाइल जैसी चीजों में लत लगातार अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहिए। आगे बढ़ने के लिए यही सही समय होता है।