Green Man in Hindi Motivational Stories by Green Man books and stories PDF | ग्रीन मेन

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ग्रीन मेन

“शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल्लाने की आवाज़ आई। आवाज़ के साथ कोई आँगन का दरवाज़ा धड़धड़ाने लगा, जो पूरी तरह से जंग खाए बैठा था और पक्की दीवार पर टिका हुआ था। आवाज़ में उतावलापन साफ़ झलक रहा था।
     “अरे, आ रहा हूँ, ज़रा धीरज रखिए।” पचास साल का पुरुष खाट से खड़ा हुआ। चलने से पहले वह बड़बड़ाया, “एक तो घिसापिट दरवाज़ा है और लोग वो भी तोड़ देंगे।” उसने सफ़ेद रंग का कमीज़ और पायजामा पहना हुआ था। नए कपड़े पहने होते तो वह ज़रूर बगुले के पंख की तरह दिखता। काली लंबी मूँछ में कुछ सफ़ेद तिनके उग आए थे। मिट्टी से लदा हुआ और पेड़ पर चढ़े लतर की तरह मरोड़ा हुआ लंबा सफ़ेद कपड़ा उसके हाथ में था। कपड़े के साथ सिर के ऊपर हाथ लहराते हुए उसने पगड़ी बाँध ली। आवाज़ आने से पहले वह आँगन के पेड़ के नीचे खाट बिछाकर आराम कर रहा था।
     उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला; एक नौजवान तुरंत आँगन में घुस गया। पगड़ी वाले पुरुष कुछ पूछे उसके पहले ही वह घर की तरफ़ तेज़ चलने लगा। लड़के के चेहरे के दृश्य से लगता था कि उसके मन के शांत समंदर में उथलपथल मच गई हो। दुःख की बात होती तो शायद उसके पैर कमज़ोर होते, चेहरा फ़िका होता और आँखों में हताश छाई होती। परन्तु चाल में तेज़ी थी।
     पगड़ी वाला पुरुष एक पल के लिए दरवाज़ा पकड़े खड़ा रहा। वह बोला, “मलिक बेटा, कोई परेशानी है? तुम इतनी जल्दी में कहा भागे जा रहे हो?” थोड़ी बेचैनी उसके दिल में छा गई।
     मलिक शंकर के पड़ोसी और प्रिय मित्र का बेटा था। छोटे-बड़े कामों में हव हर वक़्त शंकर के साथ खड़ा रह जाता था। बेटा तो बहुत दूर था, किन्तु मलिक ने उन लोगों को कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया। वैसे तो दिन भर अपनी दुकान में रहता था, लेकिन दिन में उसे एक चक्कर तो अपने शंकर चाचा के घर लगाना ही पड़ता था।
     मलिक आँगन में ठहरा। पीछे मुड़ा और कहने लगा, “शंकर चाचा अनर्थ हो गया, “ उसका चेहरा काफ़ी उदासी से मुरझाया था। मानो उसने फेंके हुए पाँसे पलट गए हों, “आप जल्दी से अंदर आ जाइए और पुष्पा चाची को भी बुला लीजिए।”
     “किन्तु बात क्या है, वो तो बता…!” शंकर ने उसे कहा लेकिन तब तक वह घर के अंदर चला गया था। इस तरह के बर्ताव से शंकर के दिल में ओर बेचैनी बढ़ गई। आँगन का दरवाज़ा बंद किए बिना ही वह घर की तरफ़ दौड़ा। ग़ुस्से में वह बड़बड़ाया, “आज-कल के बच्चों को घुमा फिरा कर बात करना ही अच्छा लगता है। ख़ुद तो परेशान होते हैं; दूसरों को ज़्यादा परेशानी में डाल देते हैं।”
     शंकर घर के अंदर पहुँचा। टीवी चालू थी, सोफ़े पर मलिक और एक औरत बैठी थी। यह देखकर शंकर को बहुत ग़ुस्सा आया, “मलिक! कोई इस तरह से मज़ाक करता है! तुम्हें पता है, मैं कितना डर गया था?” उसने अपनी पगड़ी सिर से खींची और कपाल पर उभर आईं पसीने की बूँदें पोंछने लगा।
     मलिक ने शंकर के सामने देखा। यह मज़ाक होता तो मलिक के चेहरे पर हास्य होता, लेकिन उसके चेहरे पर पहले वाली बेचैनी ही छाई हुई थी। उसने थोड़े गंभीर स्वर में कहा, “चाचा बात बहुत गंभीर है। आप कुर्सी पर बैठिये, अभी आपको सब पता चल जाएगा।” मलिक जल्दी-जल्दी में चैनल बदल रहा था। वह इतना गंभीर क्यों था, वह अभी तक उसने नहीं बताया था।
     शंकर ने सोफ़े पर बैठी औरत की तरफ़ देखा। वह बोला, “पुष्पा, यह सब क्या हो रहा है?” पुष्पा शंकर की पत्नी थी, दिखने में शंकर से थोड़ी वजनदार थी। लाल रंग की चोली पर सफ़ेद चमकती भात, जैसे हीरे का खदान हो। काले रंग की लुंगी कसकर कमर को लिपटी थी। सिर पर ओढ़ी लाल रंग की ओढ़नी पर सफ़ेद रंग के बिन्दुओं की छाँट थीं। टेटू की तरह हाथ, पैर और गले में पक्के काले रंग की भात बनी हुई थी। पैर में चांदी के कड़े, गले में चांदी का बड़ा हार और हाथ में हाथी दाँत के बने बड़े कंगन थे। कान में बड़े-बड़े सोने के झुमके और नाक में बड़ी सोने की नथ थी।
     पुष्पा ने धैर्य दिखाते हुए कहा, “कुछ ख़ास बात होगी इसलिए तो बेचारा भाग कर आया है। मुझे पता है कि आपकी बेचैनी बढ़ी जा रही है लेकिन थोड़ा धैर्य रखें।” पुष्पा बेचैनी में अपनी ओढ़नी के छोर को बेरहमी से मचल रही थी।
     टीवी पर न्यूज़ की चैनल लगते ही मलिक ने टीवी की आवाज़ बढ़ाई। वह चाहता था कि न्यूज़ पर चलने वाली सारी बातें सब सही से सुन पाएँ। न्यूज़ के वक्ता की आवाज़ आई, जो एक लड़की थी, “समर को आज दोपहर गुजरात पुलिस ने गिरफ़्तार किया है।” टीवी पर पुलिस एक लड़के को पकड़ कर गाड़ी में डाल रहे हो ऐसा वीडियो चलने लगा।
     यह देख कर शंकर और पुष्पा को बड़ा सदमा लगा। पुष्पा के लिए भगवान ने जैसे हवा ही बंद कर दी हो उसी तरह वह सिसकते हुए साँस लेने की कोशिश करने लगी। मन के तार जैसे उखड़ गए और मन वेदना से चीत्कार करने लगा। सदमे से उनका मुँह फटा रह गया था और वह कुछ बोल भी नहीं पाई। सिर्फ मलिक को हिलाते हुए उसने टीवी की तरफ़ इशारा किया।
     पुष्पा की हालात देखकर मलिक ने तुरंत उसका हाथ थाम लिया। वह आश्वासन देते हुए बोला, “चाची, अपने आपको सम्हालिए। आप जानती ही है कि ज़्यादा व्यतीत होना आपके लिए हानिकारक हो सकता है।” उसने जग में से पानी गिलास में डाला और पुष्पा को पिलाया।
     पानी का घूँट उतारते हुए पुष्पा बोल उठी, “उन लोगों ने मेरे बेटे को क्यों पकड़ा है? हर बार मेरा बेटा ही क्यों गुनहगार होता है?” उसने छत की तरफ़ अपना सिर उठाया, “तुम्हें सजा देने के लिए हर बार मेरा बेटा ही मिलता है! …ऐसा क्यों भगवान! ऐसा क्यों…” पुष्पा की आँखों से बारिश की तरह आँसू फिसलने लगे। शांत घर में पुष्पा की सिसकियों की आवाज़ गूंज उठी।
     न्यूज़ में वक्ता की वापस आवाज़ सुनाई दी, “समर के ऊपर आरोप है कि उसने लड़कियों के बारे में बहुत गंदा कहा है। उनकी यह गंदी सोच की वीडियो सोशल मीडिया पर एकदम तेज़ी से फैल चुकी है। पूरे भारत में लड़कियाँ आगबबूला हो चुकी हैं। पूरे भारत में समर के खिलाफ़ केस दर्ज किए गए हैं। कोई ऐसा पुलिस स्टेशन नहीं है, जहाँ समर के खिलाफ़ केस दर्ज न हुआ हो। इसलिए आज दोपहर को गुजरात पुलिस ने उसे अहमदाबाद से अपनी हिरासत में ले लिया है। मैं इस वक्त अहमदाबाद में हूँ । यहाँ पर समर को लेकर महिलाओं का दो समूह इकट्ठा हुआ है तो हम उनसे जानते कि समर के प्रति उनकी क्या राय है।”
     वक्ता महिला के समूह की तरफ़ बढ़ रही थी, तभी पुष्पा ने रोते हुए कहा, “मेरा बेटा ऐसा काम कभी नहीं कर सकता। वह सीधा सादा था। इसमें जरूर किसी दूसरों की कोई साजिश है। मेरा बेटा ऊँचे पद पर पहुँच गया और कोई उसका अच्छा नहीं देख सका, इसलिए किसी ने उसके साथ साजिश रची है।” उसने अपनी ओढ़नी से आँखें दबा लीं और सुबकते हुए रोने लगी।
     मलिक ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, “आप शांत हो जाइए, मैं-“ वक्ता की आवाज़ आते ही वह चुप हो गया।
     “मैं महिलाओं के एक समूह के पास पहुँच चुकी हूँ। तो हम उनसे जानते है,” वक्ता ने महिला को पूछा, “समर के बारे में आप लोगों की क्या राय है?”
     एक महिला गुस्से में बोल उठी, “उसका हमारे सामने नाम मत लो! उसकी इतनी घिनौनी सोच है कि उसको तो भगवान भी माफ नहीं करेगा। उसने लड़कियों के बारे में ऐसा कहा है कि मुझे तो उसे चप्पल मारने का मन करता है। मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगी कि उसे उम्र कैद की सजा दी जाए।”
     सभी महिला एक साथ चिल्ला उठी, “हाँ, हाँ…उम्र कैद…”
     वक्ता ने दूसरे समूह की तरफ़ बढ़ते हुए कहा, “लगता है कि महिलाएँ आज बहुत ग़ुस्से में हैं। अब हम जानेंगे दूसरी महिलाओं से…,” वक्ता दूसरे समूह के पास पहुँची और उसने उन महिलाओं को पूछा, “आपको समर के बारे में क्या कहना है?”
     महिलाएँ बहुत शोर मचा रही थीं इसलिए एक औरत ने अपनी ऊँची आवाज़ में कहा, “समर की बातें सौ प्रति शत सही है। उनकी बातें भविष्य को एक नई दिशा दिखाती है। हम सब समर के साथ है। हम सब मरते दम तक उनके साथ खड़े रहेंगे।”
     शोर-शराबे से दूर हटते हुए वक्ता ने कहा, “यहाँ मामला कुछ अलग ही नज़र आ रहा है। कुछ महिला समर के साथ है और कुछ उसके खिलाफ! हम नहीं जानते कि इनमें से सही कौन है। दो दिनों के बाद समर को गुजरात की अदालत में हाज़िर किया जाएगा। तब तक जुड़े रहिए हमारी न्यूज़ चैनल ‘जबरदस्त’ के साथ…” मलिक ने टीवी तुरंत बंद कर दी।
     शंकर ने हैरानी से मलिक के सामने देखते हुए कहा, “यह मेरे बेटे के साथ क्या हो रहा है? मैं उसे अच्छे पद पर देखना चाहता था, लेकिन लोगों ने अभी से उसके चरित्र पर कीचड़ उछाल दिया। लोगों के सामने मैं अब क्या मुँह दिखाऊंगा?” उसका शरीर एकदम शिथिल हो गया। वह दुःख के समंदर में बिना प्रयास किए डूबते नज़र आ रहा था। उसके मन में असंख्य विडंबनाएँ चक्रवात का रूप धारण कर चुकी थीं। मन नुकीले कील जड़ने जैसी वेदना कर रहा था। पोलियो के मरीज की तरह वह बेबस हो गया। पुष्पा अपने पति की वेदना देख फुट-फुटकर रोने लगी।
     उन दोनों की हालात देखकर मलिक की आँख में से भी आँसू आने के लिए तैयार हो गए, मगर वह जानता था कि रोने से ये दोनों पूरी तरह से टूट कर बिखर जाएँगे। उसने अपने मन को दबाया और कहने लगा, “चाचा, आप इस तरह बेबस हो जाओगे तो चाची को कौन संभालेगा? आप उनकी तबीयत के बारे में तो सोचिए। यह वक्त रोने का नहीं बल्कि समझदारी दिखाने का।”
     हिचकियाएँ भरते हुए पुष्पा ने कहा, “मेरे बेटे पर झूठे मुक़दमे चलाए जा रहे हैं।…उन लोगों का मेरे बेटे ने क्या बिगाड़ा है?” उसका दिल अब टूट कर बिखर रहा था। साँसे कमज़ोर पड़ रही थीं। दिल तेज़ी से फड़कने लगा था। आँखें लाल और ओढ़नी गीली होती जा रही थी। मन का चक्रवात रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। मानो उमड़-उमड़ कर उसकी शक्ति बढ़ती जा रही हो।
     शंकर उठ कर पुष्पा के पास सोफ़े पर बैठा। पुष्पा का सिर अपनी छाती से दबा लिया और उसे सांत्वना देने लगा। पुष्पा के सिर से उसकी ओढ़नी सरक गई।
     शंकर ने कहा, “शांत हो जा, भगवान हर वक्त हमारे बच्चे को मुश्किलों में से निकालते आए हैं, तो क्या इस बार वे नहीं निकालेंगे!” वह पुष्पा का सिर धीरे-धीरे सहलाने लगा।
     “चाचा, दो दिन बाद कोर्ट में सुनवाई है, तो हमें कल ही अहमदाबाद जाने के लिए निकलना होगा। आप चाची को सम्हालिए, मैं जाने की व्यवस्था करता हूँ।” मलिक को खड़े होने के लिए सोफ़े का सहारा लेना पड़ा। उसने आँसू तो नहीं गिराए थे, परन्तु वह अंदर से पूरा टूट चुका था क्योंकि वह समर का पड़ोसी तो था ही साथ ही वह एक दोस्त भी था।
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