अध्याय 47
पिछला सारांश:
कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्ण राज का दिया तीसरा असाइनमेंट को पूरा करने के लिए अनाथ आश्रम में जमा किया हुआ बच्चा को ढूंढने के लिए धना और कुमार रवाना हुए।
कचरे के डिब्बे में डाला हुए बच्चे के बारे में मालूम करते हुए शंकर लिंगम के घर पहुंचे।
शंकर लिंगम की मौत हो गई थी उस घर में संतोष नाम का युवा था। उसने कहा ‘मैं ही वह बच्चा हूं। अभी मेरी शादी हो गई और मेरे दो बच्चे हैं। जिसने मुझे कचरे के डिब्बे में डाल दिया उसके पास अब मैं वापस नहीं आऊंगा…’ इस तरह वह नाटक करने लगा।
धना और कुमार के वहां से रवाना होते ही, संतोष ने विवेक को फोन करके ‘आपने जैसे कहा था वैसे ही मैंने कर दिया’ ।
संतोष की पत्नी सुमति का असमंजस साफ उसके चेहरे पर दिखाई दे रहा था। उसको देखकर संतोष “क्या बात है सुमिति तुम्हारा चेहरा अजीब सा लग रहा है क्यों?”
“कैसे बोलूं समझ में नहीं आ रहा है। जाने कौन विवेक नाम का आदमी आपको नाटक करने के लिए कह रहा है। वह भी एक करोड़पति के विरुद्ध। आप भी रुपयों के लालच में ही मान गए। यह जाने किस बात पर जाकर खत्म होगा?” वह परेशान होकर बोली।
“तुम डरो मत। मैं उसे ढूंढ कर नहीं गया। वह अपने आप ही आया। उसको साधन बनाने में क्या गलती है। इसी में तो होशियारी है?”
“सच्चाई के विरुद्ध में सब कुछ गलती तो है ना…आपका उस करोडपति के लड़के जैसे नाटक करना गलत नहीं है क्या? सचमुच में आपको जिन्होंने पैदा किया वह मां बाप नहीं होने के कारण आप इस तरह का नाटक कर रहे हो यह ठीक है?”
“यह देखो टू व्हीलर के मेकानिक जैसे कितने सालों हम ऐसे ही रहेंगे…हमें भी जिंदगी में आगे नहीं बढ़ना है क्या?”
“वह ठीक है, आप नकली हो यह बात उस करोड़पति को मालूम हो जाए तब?”
“उसका कोई अवसर ही नहीं है क्योंकि वह करोड़पति मरने के कगार पर है। वह सिर्फ मेरे लिए अपने जान को हाथ में पकड़कर रखा है। ज्यादा से ज्यादा तीन महीने नहीं तो ज्यादा ज्यादा 6 महीने ही रहेगा। बस उसके बाद उसकी सारी संपत्ति का मैं और कार्तिका जो उसी इकलौती लड़की है उसके वारिस बनेंगे।
“संपत्ति बोले तो कुछ करोड़ ही है ऐसा साधारण समझ मत लेना। कॉफी का बगीचा, फैक्ट्री, स्पिनिंग मिल्स ऐसे कई हजार करोड़ों की उसकी संपत्ति है। यह सब मुझे ढूंढ कर आ रहा है। अपनी जिंदगी ही पलटने वाली है सुमति…”
“क्यों जी अभी से आप करोड़पति बन गए जैसे सोच रहे हो। इसके बीच में आपको नाटक करने के लिए बोलने वाला वह विवेक है इसे आप भूल गए?”
“मैं किसी चीज को नहीं भूला। विवेक जो है बहुत बड़ा धोखेबाज़ है! बहुत ज्यादा फ्रॉड है। मुझे मोहरा बनाकर सारी प्रॉपर्टी को स्वयं लेने के फिराक में है। मैं, ऐसे जैसे वह कह रहा है उसकी बातों को सुनकर वैसा करने वाला नहीं हूं।
मैं अपने बंगले में पहुंचकर संपत्ति का वारिस बनने के दूसरे ही मिनट में उस विवेक को खत्म कर दूंगा। फिर ही हम शांति से रह सकते हैं।”
“अरे बाप रे हत्या?”
“अरे ! क्यों घबरा रही हो। करोड़ों रुपए की संपत्ति आसानी से आ जाएगी क्या? ऐसे हिम्मत करने से ही आएगी।”
“पहले आदमी का बदलना, फिर हत्या। आप ऐसी बात कर रहे हो मुझे आश्चर्य हो रहा है, मैं स्तंभित भी हूं।”
“इससे ज्यादा मुझसे कुछ भी मत पूछो, जाकर अपना काम करो।”
“मत करो जी…गलत काम करके हम शांति से जी नहीं सकते। अपने पुलिस को भी आप साधारण मत समझिएगा।”
“यह बात पुलिस में जाएगा ही नहीं सुमति। वह जो करोड़पति है वह ‘अंडरग्राउंड’ दादा है। वह विवेक और उसका बाप भी दोनों दादा ही हैं। उसमें भी वह विवेक का जो बाप है अभी अंडरग्राउंड हो गया है।
“इनके गैंग का एक आदमी को ‘इंटरनेशनल’ पुलिस ने पकड़ लिया है। इंजेक्शन लगाकर उसके द्वारा इन दादाओ के बारे में जानकारी ले लिया है। यही हाल विवेक का बाप दामोदरन का भी है।
“उसे पुलिस ढूंढ रही है मालूम होने के बाद कुल्लिमलाई नाम के एक रहस्यात्मक जगह वह दामोदरन चला गया। वह कहीं भी जाकर छुपे तो भी हमारी पुलिस उसको पकड़ लेगी। इसलिए मुझे किसी तरह से घबराने की जरूरत नहीं है।”
“पहले आदमी का बदलना, फिर हत्या, आखिर में अंडरग्राउंड दादाओं छुपना। आप यह सब बोलते हैं बोलते ही मेरा मन बहुत घबरा रहा है। हम सिर्फ गरीब ही हैं। परंतु हम शांति से रह रहे हैं।
“आप जो कह रहे हो उसे सुनकर हमारी जो जिंदगी है उसकी शांति चली जाएगी मुझे डर लग रहा है।”
“सुमति अब तुम एक शब्द भी नहीं बोलोगी। गरीब और डरपोक बन कर रहने के बदले थोड़ा रिस्क लेकर धनवान बनने में कोई गलती नहीं है, ऐसा मैं सोचता हूं। तुम जाकर अपने काम को देखो” वह बोला।
वह बड़े भ्रम के साथ रसोई की तरफ चली गई।
कृष्णा राज के चेहरे में कभी न दिखाई देने वाली खुशी दिखाई दे रही थी। कार्तिका भी बहुत खुश थी। कृष्णराज के बेटे के बारे में मालूम करने की और उसने बाद में सोच कर बोलने के बारे में सभी बातें जब धनंजयन ने बताया।
“पहले वह बहुत ही नाराज हुए सर…फिर बाद में सोच के बोलूंगा बताया। सच में अच्छा जवाब ही होगा सर” धना बोला।
“मैं भी आऊं क्या धना। मेरे बड़े भाई के पैरों गिरकर माफी मांगने के लिए भी मैं तैयार हूं,” बहुत ही भावुक होकर कार्तिका का बोली।
“कोई आवश्यकता नहीं है मैडम। एक अच्छे जवाब पर विश्वास करें।”
“आप लोगों के गतिविधियों को देखकर विवेक कोई गड़बड़ करें तो?”
“पंजाबी सिख जैसे हमने अपना देश बदल लिया है। इस तरह हमारे आइडिया को इतनी जल्दी मालूम नहीं कर सकता मैडम।”
“उसे जाने दो उसे जाने दो उसे जाने दो कब मेरा अन्ना मुझसे बात करने आएंगे। अभी वह कैसे हैं?”
अगले अध्याय में आगे....