Apradh hi Apradh - 28 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 28

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अपराध ही अपराध - भाग 28

अध्याय 28

वह निगाहें तुम्हारे सामने बात करते हुए संकोच हो रहा है ऐसा लगा। इसलिए इस बात को समझ कर वह वहां से चली गई।

"वह शारदा को क्या हुआ सर?"

"मैंने उसे कोल्डड्रिंक में बेहोशी की दवा देकर उसके बेहोश होते ही मैंने उसके साथ बलात्कार किया धना...."पूरा खाने के पहले ही उनका गला भर आया और वह परेशान हो गए।

"मैं समझ रहा हूं सर। इसलिए वह शारदा प्रेग्नेंट हो गई। परंतु आपने गर्भ को मिटाने के लिए कहा। पर उन्होंने शादी करने के लिए बोला। अपने मना कर दिया।

"उन्हें एक लड़का पैदा हुआ। उसको आपके ऑफिस के सामने रखकर कुएं में कूद कर उसने आत्महत्या कर लिया।

"आपने उस बच्चे को किसी के देखने के पहले ही उठाकर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया। उस बच्चे को देख कचरा उठाने वाले कॉरपोरेशन का स्वीपर ने पुलिस में खबर दे दी ।

"उसे अनाथ आश्रम में भेज दिया। ठीक है ना सर? यह सब पेपर में न्यूज़ में आ गया। ठीक है न सर?" बहुत अच्छी तरह लगातार लाइन से बात कर धनंजयन ने खत्म किया।

"तुम जो कह रहे हो को वह ठीक है। इसका मतलब तुम्हें कार्तिका पहले ही सब कुछ बता दिया क्या?"

"यस सर... इतनी डिटेल में नहीं बोला। मेरा एक बड़ा भाई भी है। परंतु अभी वह जिंदा है या नहीं मालूम नहीं ऐसा बोला। आपके के बारे में भी बोला था। उसी को रखकर उसके आगे की बातों को मैंने ही सोच लिया।"

"तुम बहुत शार्प हो तुम्हारी सोचने की शक्ति अच्छी है धना। मैं तुम्हारी दिल से प्रशंसा करता हूं। यह तीसरा असाइनमेंट है। इसे भी तुम सक्सेसफुली पूरा कर दो तो, यह मेरी बहुत बड़ी सफलता है।

"मैंने शारदा को बिना मारे ही मार दिया। उस पाप का प्रायश्चित उसके बेटे को ढूंढ कर मैं अपने संपत्ति सब कुछ उसको देकर ऋण मुक्त होना चाहता हूं।

"मेरे बाद कार्तिका का कोई नहीं है। उसका कोई भाई हो तो सपोर्ट रहेगा। है ना?" आंसू पोंछते हुए कृष्णा राज बोले।

"सही है। आपके बेटे को मैं अभी ढूंढता हूं सर। बाय थे वे वह किस वर्ष हुआ बता सकते हैं?"

"जरूर 25 दिसंबर 1997 क्रिसमस के दिन ही मैंने मेरे बेटे को कचरा के डिब्बे में डाला। वह दिन मुझे अच्छी तरह से याद है। उस दिन हुए क्रिसमस के उत्सव में शामिल होने से उस दिन को मैं भूल नहीं सकता।"

"कौन से कचरा के डिब्बे में बता सकते हैं?"

"नुंगंबाकम् वल्लूरूवर कोटम के पास ऐसा सोचता हूं। परंतु अब वहां पर कचरे का डब्बा नहीं है।

सड़क को ठीक करते समय वह वहां से चला गया। मैं अभी उस तरफ से कार में जाऊं तो वहां देखता हुआ जाता हूं।"

"कचरे के डिब्बे में बच्चा बोलने से निश्चित रूप से न्यूज़ में सब जगह आया होगा?"

"हां... दूसरे दिन सभी पेपरों में समाचार आया। कॉर्पोरेशन का सफाई कर्मचारी उसे लेकर पुलिस के सुपुर्द कर दिया और उसे अनाथ आश्रम में भेज दिया ऐसा मालूम हुआ।"

"उसके बाद आपने वहां जाकर नहीं देखा सर ?"

"मैं नहीं गया। उसके बाद मैं और मेरा पार्टनर थाईलैंड चले गए। वहां मैं करीब-करीब 3 साल रहा। वहीं पर मैंने कार्तिका के मां को सुकुना, जो एक नर्स थी से मिला।

" तभी मेरी तबीयत ठीक नहीं थी। सुगुना ने ही है फिजियोथैरेपिस्ट बनकर आई और मुझे शारीरिक व्यायाम सीखाकर मुझे ठीक किया। इसी समय मुझे लगा मेरे लिए एक साथी की जरूरत है।

''मैंने सुगना से पूछा 'तुम मुझसे शादी करने को तैयार हो क्या' वह भी एक गरीब घर से यहां आकर जीवन यापन कर रही थी। उसने इसीलिए हामी भर दी। उसके बाद ही हमें कार्तिका पैदा हुई" उनके बात खत्म करते ही धनंजयन को क्लेरिटी हुई।

"नो प्रॉब्लम सर। 1997 के दिसंबर के 26 तारीख के न्यूजपेपर कि मुझे जरूरत है। वह तुवकंकपूल्ली पक्का है ना। तो आपके बेटे को मैं ढूंढ लूंगा सर...."बड़े विश्वास के साथ धनंचयन बोला।कृष्ण कृष्ण राजन के पलंग के नीचे एक माइक्रोफोन किसी के द्वारा चिपकाए हुआ था। वह उनकी बातों को कृष्ण राजन के हिस्सेदार दामोदरन को बता रहा था।

दामोदरन के चेहरे पर हंसी आई।

आगे पढ़िए....