Apradh hi Apradh - 8 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 8

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अपराध ही अपराध - भाग 8

(अध्याय 8)

 

“मैं बाहर ही खड़ी हूं। व्हाइट कलर की बी. एम.डब्ल्यू कार…” कार्तिका बोली।

पर्दे पर क्लाइमैक्स के आखिरी सीन देख रहे समय बाहर निकाल कर धनंजयन आ गया।

 इंतजार करते कार के पीछे सीट पर चढ़ने के लिए जा रहें, उसे आगे की सीट में बैठने के लिए कार्तिका ने बुलाया।

“मैं ड्राइव करूं?” पूछ कर उसे पास के सीट में सरकने को बोला।

कार रवाना हुई। 60 लाख रुपए की कीमत वाली गाड़ी मक्खन जैसे सड़क पर फिसल रही थी।

“बहुत स्मूथ है” धनंजयन बोला।

“इससे पहले इसे चलाई नहीं क्या?” कार्तिका ने पूछा।

“देखा ही नहीं…. आई मीन अंदर चढ़कर कार शको देखा नहीं। उसे बताया।” उसने बोला।

वह सौम्यता से हंसी।

कार के सामने कांच के द्वारा पीछे कोई पीछा कर रहा है क्या उसने देखा।

“क्या कोई पीछे आ रहा है क्या चेतावनी के तौर पर देख रहे हो क्या?”

“हां हां। अच्छी बात है कोई आ रहा है ऐसा नहीं लगा।”

“बहुत थैंक्स।”

“किसलिए मैडम?”

“इस काम को करने के लिए हामी भरने के लिए…. अब ऐसे रिस्क लेने के लिए।

“रहने दो मैडम…मुझे ही आपको धन्यवाद देना चाहिए।”

“ऐसा क्या!”

“हां…सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, मुझ पर विश्वास करके इस रात को एक करोड रुपए को लेकर आप अकेली आई हैं!”

“बोलूं तो नाराज मत होना, मुझे गलत भी मत समझना। आपको सेलेक्ट करने के दूसरे मिनट ही हमारे खास डिटेक्टिव की तरफ से आपके बारे में मालूम करने के लिए बोल दिया।

“आपने कहा था वैसे ही आपके तीन सिस्टर और एक मां है। दीदी सिलाई मशीन में ही काम करती रहती हैं। दो ट्विंस बहनें अच्छा गाती हैं नाचती भी है, मैराथन में दौड़ती भी हैं। 

“आपकी अम्मा भी भाग्यशाली है। आप हमेशा साइकोलॉजी में मेरिट स्टूडेंट रहें हैं। आपके गली में आपके परिवार का बहुत अच्छा नाम है। क्यों! सब कुछ मैंने सही बता दिया?” उसने पूछा।

जवाब के लिए कुछ क्षणों से घूरा, ड्राइव करते हुए, “परवाह नहीं आपके पास भी अवेयरनेस है मैडम। टेक्नोलॉजी को अच्छा उपयोग कर रहे हो,” वह बोला।

“मेरे बोले हुए को सुनकर गुस्सा नहीं आया?”

“इसमें गुस्सा करने के लिए क्या है…. परंतु हो मुझे आपसे पूछने के लिए बहुत से प्रश्न हैं।”

“पूछिएगा। कार के अंदर तो हम दोनों ही हैं। वह विवेक निश्चित रूप से मेरे अप्पा के बारे में आपको बताया होगा। इसीलिए आपके पास बहुत से प्रश्न हो सकते हैं ।”

“आपके पिताजी के बारे में बिल्कुल भी संबंध नहीं होने जैसे बहुत कुछ बोला।”

“क्या मेरे अप्पा को चोर बोला?”

“हां मैडम…वही नहीं, तिरुपति के डांस पेटी से चोरी करना उनकी पहली चोरी थी बताया।”

धनंजयन के उसे दान पेटी के बारे में पूछते ही अभी तक साधारण ढंग से रह रहे कार्तिका के आंखों में से आंसू बहने शुरू हो गए।

“ओह आई एम सॉरी…मैंने उस पर विश्वास नहीं किया मैडम। उसने ऐसा कहा ऐसा मैंने आपसे कहा।”

सड़क पर कार शाही वेग से जा रही थी, आंसू को पूछते हुए, और क्या-क्या उसने बोला?” कार्तिका ने पूछा।

“बस इतना ही मैडम…आप मत रोइए, मुझे कष्ट हो रहा है।”

“रोना मेरे लिए कोई नया नहीं है, मिस्टर धनंजयन। मैं बिना किसी को पता चले रोती रहने वाली एक महिला हूं, मुझे मेरा रोना एक नंबर है…” बोली।

“आप क्या कह रही हो मैडम…आपके पापा एक मूर्ति चोर है, अंडरग्राउंड बिजनेस करते हैं, जो सब उसने कहा सब सच है?” उसने पूछा।

“हां हां। 100% सच,”कार्तिका बोली।

बोलने के दूसरे ही क्षण कार की गति कम हुई, रेड हिल्स रास्ते में एक किनारे पर खड़ी हुई।

“क्यों धनंजयन…. मेरी बात को सुनकर तुम्हें डर और संकोच उत्पन्न हो गया क्या?”

“इस सच को कैसे मैडम आप इतने साधारण ढंग से ले रही हो?”

“ठीक …कार को वापिस लें आपको आपके घर में उतार कर जाती हूं। आप अपने रास्ते जाइए। मैं अपने रास्ते जाती हूं” वह बोली।

“मैडम प्लीज…”

“नहीं धना। आपके गरीब होने पर भी नैतिकता में आप बड़े धनवान हो। हमारे अप्पा एक क्रिमिनल हैं। मैं एक क्रिमिनल की लड़की हूं। हमारा साथ, और हमारा काम असुरक्षित भी है…. इसलिए आपका अपने रास्ते में जाना ही ठीक है” वह बोली।

“क्रिमिनल की बेटी कह रही हो…. परंतु सबको अपने मन से स्वीकार कर रहे हो। आंसू बहा रही हों। मुझे यही आश्चर्य हो रहा है” वह बोला।

“प्लीज, कार को चलाइए। कोई देखें, या रेड के लिए आने वाली पुलिस देखें तो परेशानी होगी। पीछे के सीट में एक करोड़ रूपया, सूटकेस में रखा है” वह बोली।

कार को स्टार्ट करके वापस गए बगैर आगे बढ़ने लगा बड़ी सड़क पर जाता हुआ चलाने लगा।

“कार को घुमाए बिना सीधे क्यों जा रहे हो?” वह बोली।

“हम तिरुपति जा रहे हैं मैडम…. दान पेटी में रुपए डालेंगे। उस दिन दान पेटी में से चुराने का यह प्रायश्चित ही है ना, यह एक करोड़ रूपया?” बिल्कुल ठीक पूछा धनंजयन ने।

उसे आश्चर्य से कार्तिका ने देखा।

उसे चौराहे पर जहां पर सुनसान था एक पुलिस जीप और कुछ पुलिस वाले दिखाई दिए।

“अय्यों पुलिस…” वह बोली।

“फिक्र मत करो…रुपए के बारे में पूछे तो दान पेटी में डालने के लिए है कह दीजिएगा। मेरे मोबाइल में तिरुपति देवस्थान के एग्जीक्यूटिव ऑफिसर को भेजें मेल और उनका जवाब दोनों है। वह हमें रोक कर खड़े नहीं कर सकते” कहते हुए कार को जीप को कई कदम पीछे ही धनंजयन ने रोका।

आगे पढ़िएगा ….