Swayamvadhu - 23 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 23

The Author
Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

स्वयंवधू - 23

"वह रेड्डी परिवार के प्रति भी कुछ गुस्सा थी कि वह चाहती थी कि मैं तुम्हें और तुम्हारे छोटे भाई राज को भी खत्म कर दूँ!", सुन दी हैरान-परेशान रह गयी,
दी ने शिवम जी का हाथ पकड़कर पूछा, "आखिर इनसे क्या दुश्मनी थी?",
उन्होंने सीधे कहा, "सनकियों की यही प्रवृत्ति होती है। वो चाहती थी कि पहले तुम, शिवम बाबा उसी क्षण राज बाबा को बचाते हुए मारे जाओ और राज तुम्हारे मृत शरीर में फँस, सीने में चाकू लगने घाव के कारण, धीमे-धीमे खून की कमी से खत्म हो जाए।-",
(वोह! क्या प्लानिंग थी।) मुझे लगा जबकि सब झटके पर झटके खा रहे थे। फिर मैं वापस अपना दिमाग ठीक कर सब सुनने लगी।
"-वृषा बाबा को सिर्फ इतनी दवा दी गयी थी कि वह स्थिर रहे और आपने जान से प्यारे दोस्तो को अपनी आँखो के सामने मरते हुए देखें, यह उनकी सजा थी, क्योंकि उन्होंने आपसे दोस्तो नहीं तोड़ी जब उन्होंने उन्हें आदेश दिया था।
मुख्य योजनाकार और हत्यारा मैं था, लेकिन वह अधीर हो गई और उसने अन्य हत्यारे कृष को काम पर रखा लेकिन मैं उसे अपना सहयोगी बनाने में सक्षम रहा और नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। जब मुझे अल्टीमेटम दिया गया तो मैंने अपनी योजना को अमल में ला दिया। कृष ने तुम्हें नशीला पदार्थ दिया और तुम सबको अलमारी में छिपाने पर मज़बूर किया जहाँ मैं तुम्हें मारता और उसे अपने साथ ले जाता। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सका! पहले से ही कमज़ोर वृषा नशे के प्रभाव से बेहोश हो गया। बेहोश वृषा की रक्षा दोनों भाई कर रहे थे और राज अपने भाई की रक्षा कर रहा था। मैं ऐसा नहीं कर सका, लेकिन उन्हें सुरक्षित रखने के लिए मैंने उनके सोने का इंतजार किया। उनकी आँखों में खौफ था और कुछ ही मिनटों में वे भी बेहोश हो गए। मैंने अपने आस-पास देखा, अकेले होने का फायदा उठा मैंने उन पर खून को छींट दिया, जैसे कि वे बुरी तरह घायल हो गए हों और संदर्भ के लिए यह असली खून था।", असली खून सुन हम में से कोई नहीं चौंका जैसे हमे इनकी आदत पड़ गयी हो।
फिर वे अपराध बोध से भरी आवाज में बोले, "मैं वृषा बाबा को अपने साथ ले गया। अपने इन हाथों से...", अपने पिछले कर्मों के बोझ तले और अपराध बोध में उनके हाथ अनियंत्रित कांप रहे थे। शायद अतीत के बारे में सोच रहे हो? अपनी काँपती आवाज़ में उन्होंने कुछ कहना चाहा लेकिन कह नहीं सके। उन्होंने बस विनती की, "कृपया मुझे माफ़ कीजिए। मैंने उनके साथ जो किया, क्या वह मुझे कभी माफ़ करेगा?", वो टूटने से सूई भरे नोक जीतने दूर थे।

"वो करेगा!", भैय्या ने, शिवम जी ने और मिस्टर आर्य, तीनों ने एक साथ कहा। उसे पूरा कर भैय्या ने कहा, "अगर आप उसका सब कुछ छीनकर भी माफ़ी माँगने तो वो आपको माफ कर देगा। -पर! वृषा का बटलर और दोस्त होने के नाते मैं सच्चाई जानने की माँग करता हूँ।",
पहले तो वो झिझके और आत्मसमर्पण कर कहा, "क्या आप मेरे इस बयान को रिकॉर्ड कर सकते है ताकि मेरे मौत के बाद आप इसका इस्तेमाल कर सके?",
उनकी गंभीरतापूर्व आँखे देख हम समझ गये, ये मामला, जितना दिखता है उससे कही गुना खतरनाक है।
हमने नया फोन इस्तेमाल किया, जिसका दुनिया से कोई संपर्क नहीं था और हमने रिकॉर्डिंग शुरू कर दी।
"नमस्ते। मैं जीवन जीत हूँ, कई हाई-प्रोफाइल हत्याओं में सर्वाधिक वांछित हत्यारा। मैंने कई भयानक अपराध किया है जिसमे से एक जघन्य अपराध को मैं अब स्वीकार कर रहा हूँ। यह वृषा बिजलानी के अपहरण की घटना है। मुझे उनकी मृत माँ, मान्या बिजलानी, जो उस समय जीवित थीं, ने काम पर रखा था। सबसे पहले वह समीर बिजलानी को मारना चाहती थी, फिर उसने अपनी भयावह योजना अपने ही जन्मे बच्चे के लिए बना ली। यह बहुत पहले की बात है जब वे सात साल के थे लेकिन मुझे याद, ऐसे याद है जैसे ये कल ही हुआ हो।", उन्होंने कहना शुरू किया।
उनकी कहानी सच से ज़्यादा काल्पनिक लग रही थी।
"मैंने और मेरे दोस्त कृष ने रेड्डी के अंगरक्षकों को मार, वृषा बिजलानी का अपहरण किया था, जो कि उसकी माँ द्वारा दी गई मज़बूत दवाओं के कारण बेहोश था, एक वयस्क खुराक थी। मुझे कहा गया कि जब तक वह मुझे अगला आदेश ना दे, मैं उसे बिना भोजन और पानी के भूखा तड़पाऊँ। जब मैंने उसका अपहरण किया था, वह पहले से ही कुपोषित था और उसके माता-पिता दोनों ने उसे बुरी तरह पीटा था और हाँ, मैं वहाँ मौजूद था और उस मासूम बच्चे के साथ हो रहे हर एक अमानवीय कृत्य का साक्षी हूँ।
पहले दो दिनों तक मैंने उसे भूखा रखा, भोजन और पानी नहीं दिया। उसने कभी कोई शिकायत नहीं की, बस वहीं बैठा रहा और पूछता रहा कि उसके दोस्त सुरक्षित हैं या नहीं और उसके माता-पिता कैसे हैं। जब भी मुझे उसे जवाब देना होता था या उसकी ओर देखना होता था तो मेरा दिल टूट जाता था। तीसरे दिन उसने हमसे एक वीडियो बनाने को कहा जिसमें उसे पीटा जा रहा था और वह अपनी माँ के लिए रो रहा था। मैं पहले से ही इससे तंग आ चुका था। एक हत्यारे होते हुए भी मेरे पास कुछ नैतिकता बची थी कि मैं एक बच्चे को नहीं मार सकता, खासकर एक ऐसे बच्चे को जो हर किसी का ख्याल रखता ही और कभी किसी के साथ अशिष्ट व्यवहार नहीं किया।
मैं उसके पास गया और उसे सबकुछ समझाया। मैं बेवकूफ लग सकता हूँ, लेकिन उसके बाद जो हुआ, वह आज भी मुझे डराता है। उसने मुझे वास्तव में मारने के लिए कहा, नाटक नहीं। जब मैंने समझाने की कोशिश कि तो उसने बस इतना कहा, मॉम गलत हो सकती है लेकिन अमम्मा ने कहा कि हमे गलती करने से उसका पश्चाताप करना चाहिए, और 'मैं भी तो एक गलती तो हूँ। अपनी गलती को ठीक करना ही तो सही होता है ना?' सुन मेरा कलेजा फट गया। एक सात के बच्चे में उसके मात-पिता से अधिक बुद्धि कैसे आ सकती थी?
मैंने वीडियो में देरी की। मैं एक कमज़ोर बच्चे को नहीं मार सकता था। एक दिन के बाद, मान्या गुस्से में थी, मैंने एक अलग रास्ता खोजने कि कोशिश की लेकिन उसने, -उसने कृष को कार्य करने के लिए बुलाया। वह एक सनकी था! उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह पुरुष है या महिला या बच्चा, वह उन्हें क्रूरता से खत्म कर देगा। जब उसने उसे इस्तेमाल करने की धमकी दी तो मैं अनिच्छा से सहमत हो गया।
मैंने क्लासिक अपहरण वाली धमकी का उपयोग करने का सोचा, उसे कुर्सी से बाँधना, उसके पुराने चोटों को हाईलाइट करना, मुझे कुछ भी नकली दिखाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। मैंने उसे दो बार थप्पड़ मारा और फिरौती के लिए पचास लाख माँगे। और उस लड़के ने मेरे आग्रह पर अपने माता-पिता से रोते हुए भीख भी माँगी। अपहरण के लिए चीजें काफी अच्छी निकली, लेकिन...वह भड़क गई, वह चाहती थी कि मैं उसे तब तक पीटूँ जब तक कि खून ना बहने लगे या उसकी हड्डियों से चरमराने की आवाज़ ना आने लगी और फिर वह अपने पिता से नहीं, बल्कि अपनी माँ से भीख माँगे।
'भीख माँगे' यही शब्द उसके शब्द थे। उसके बाद मैंने वही किया जिसका मुझे सबसे ज़्यादा डर था, उसने हमारी बातचीत सुन ली और स्पष्ट रूप से तैयार था। मैंने वृषा बाबा से मोल-भाव कर चार दिनों में पहली बार उसे खाना खिलाने की कोशिश की, जैसी कि उम्मीद थी, उसने पानी सहित सब कुछ उल्टी कर दिया। उसे तेज़ बुखार था और आप जानते ही हैं कि उस वक्त संचार कितना खराब था। मेरे पास एक ऐसा टेलीफोन था जो आपातकाल में भी काम नहीं करता था। मैंने डॉक्टर को बुलाने की कोशिश की लेकिन कृष बीच में आ गया और उसे उसकी खराब सेहत की खबर में मान्या मैम को सब बता दिया। वह क्रोधित हो गई, उसने उसे बुरा-भला कहकर खूब कोसा और मुझे आदेश दिया कि मैं उसकी एक उँगली काट, उसे वीडियो के साथ भेजूँ। मैं इसके खिलाफ था। मैंने उसे समझाने कि कोशिश की कि अगर वह चाहे तो मैं दो घंटे में समीर को मार सकता था और वह जो चाहे वो पा सकती थी क्योंकि वह उसकी कानूनी पत्नी थी। वह चिल्लाई! मुझे बुरा भला कहने लगी, मैं चाहता तो उसे भी उसी वक्त खत्म कर सकता था, लेकिन मैंने उस बच्चे के लिए सब सहा।
उसे सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने की कुछ तैयारियों के बाद, मैं उसके पास गया। उसने मेरा अनुरोध अस्वीकार कर दिया। उनके अनुसार, उनके हर आदेश का पालन करना उनका कर्तव्य था। उन्होंने उसकी दादी की शिक्षा का उपयोग करके उसका ब्रेनवॉशकर उसे एक वफादार कुत्ता बना लिया।
एक हफ़्ते तक मोल-भाव से थककर मैं अंडर-कंसट्रकशन साइट के पास से गुज़रते हुए मैंने हरि को देखा।
हरि, दस साल का था जब हमारे आदमियों ने पूरे गाँव के साथ उसके पूरे परिवार को खत्म कर दिया था। वो एक लाचार बच गया था जिसे सामाजिक कार्यकर्ता अपने साथ ले गयी थी। वो वहाँ सड़क के किनारे पर अपनी आखरी साँसे गिन रहा था। मैं उसे बचा तो नहीं सका पर मैंने एक और अपराध किया। उसे देख मेरा दिमाग सुन रह गया, मैंने उसके मृत शरीर को प्रणाम कर बीच वाली उँगली को काट लाया और वृषा पर अचानक बिना चेतावनी के उस हमला कर ऐसा जताया जैसे मैंने उसकी बीच वाली उँगली काटी और वो अपनी माँ की बात याद रख उसका लिए रो रहा था।
मैंने उसे यह भेजा और जल्द ही यह टीवी पर था। वह अपने इकलौते बेटे के लिए रो रही थी और सभी से उसे बचाने की गुहार लगा रही थी। जल्द ही यह पूरी दुनिया में फैल गया, जैसा वह चाहती थी। उसके बाद एक महीने तक वह कुपोषण और बुखार से पीड़ित रहा। दिन-ब-दिन उसकी हालत बदतर होती गई। मैंने उसके लिए चिकित्सा सहायता मांगी, जिसके लिए उसने बिना किसी हिचकिचाहट के इनकार कर दिया। इसी तरह दो सप्ताह और बीत गए, अब जबकि मीडिया का ध्यान उससे हटने लगा था, उसने आखिरी बार आदेश दिया।
'उसे मार डालो, उसके अंग काट हवेली, कंपनी के सामने फेंक दो और उसका सिर रेड्डी के निवास पर भेज दो।'
बस और नहीं! मेरी सीमा यही तक थी! "नरक में रहो ****! भाड़ में जाओ!", मैंने उसे गाली दे फोन काट दिया।
मैंने समय देखा तो 6 सितम्बर रात के 10:30 बज रहे थे। मैंने उसकी रस्सियाँ खोल दीं, वह मुश्किल से होश में था। मेरे पास उसे एक दवा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था जो उसके दिल की धड़कन बढ़ा दे और उसका शरीर कार्यशील रहे। जब मैं उसे अपने साथ ले जा रहा था तो कृष ने मेरे चेहरे पर मुक्का मारा और मुझे और उसे मारने के लिए ट्रिगर दबा दिया। मेरा एड्रेनालाईन चरम पर पहुँच गया, मैंने उसे एक तरफ रख दिया और तब तक मुक्का मारा जब तक वह लहूलुहान नहीं हो गया और अंततः मर गया। अब वह जाग गया था, फिर धमाका! मुझे अपनी छाती में तेज दर्द महसूस हुआ, खून बह रहा था और मुझे खून की उल्टी हुई। मेरी दृष्टि धुंधली हो गई थी, गिरने से पहले मैंने उससे कुछ मदद लाने को कहा, यह उसकी माँ का आदेश था। मैंने झूठ बोला लेकिन वह मुझे धन्यवाद देकर बाहर लड़खड़ाते हुए भागा। यह मेरे जीवन में पहली बार था कि मैंने किसी को बचाया। जैसे ही मैंने देखा कि वह हमसे काफी दूरी पर है, खतरे से दूर, मैं मरने के लिए तैयार होकर फर्श पर गिर पड़ा।", वे रुके और बोले, "यह मेरी आखिरी याद है। अगली बात जो मुझे याद है कि मेरी उँगली कटकर मेरे सामने लटक रही थी और मैं फिर से उस गिरोह का हिस्सा था, जिसके परिणाम भुगतने होंगे।",
हम स्तब्ध और सदमे में थे। हम अपनी आँखें हिलाने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहे थे। यह एक ही समय में दर्दनाक और परेशान करने वाला था।
(अब मुझे समझ में आया कि जब भी मुझे थोड़ी सी भी तकलीफ होती थी तो वे हमेशा मेरे आसपास क्यों रहते थे। यह एक ऐसा आघात था जिसे वे एक दशक से अधिक समय से झेल रहे थे।)
अब कहानी का वृषा पक्ष क्या है?
शिवम लगता नहीं कि वो उनकी कहानी को झेल पाएँगे।
                    वृषा बिजलानी की पारी।