Kohram in Hindi Poems by Dev Srivastava Divyam books and stories PDF | कोहराम

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कोहराम


सुबह हुई, सूरज उग आया ।
रोते हुए उसने रात को बिताया ।
आंखों के सामने उसके,
अंधेरा अब था छाया ।

क्या करे वो उसको कुछ,
समझ नहीं आ रहा था ।
परिवार ही उसका उसको,
समझ नहीं पा रहा था ।

आंसू बहते आखों से वो,
शून्य में थी ताक रही ।
जो भी हुआ था साथ में उसके,
सब कुछ थी सोच रही ।

अभी तो बात थी कल की ही,
जब वो स्कूल थी जाती ।
हंसती खेलती थी साथ सबके,
खुल कर थी मुस्कराती ।

सपने उसके थे आसमां से ऊंचे,
कि पढ़ लिख कुछ बड़ा करेगी ।
दुनिया में एक पहचान बना कर,
मां बाप का नाम रौशन करेगी ।

सपनों को अपने पाने की खातिर वो,
कोशिश भी थी पूरी कर रही ।
फिर ऐसा क्या हुआ जो,
वो खुद में ऐसे सिमट गई ।

जो अपने इस घर आंगन में,
कभी थी चहकती फिरती ।
आज उसकी बातें भी,
किसी को है नहीं सुननी ।

सुंदरता उसकी ऐसी थी कि,
जलता था उससे चांद भी ।
मन को प्रफुल्लित कर दे,
ऐसी उसकी मुस्कान थी ।

पर कोहराम ऐसा मचा कि,
जिंदगी उसकी तबाह हुई ।
सदा चहकने वाले की ये,
दुनिया अब वीरान हुई ।

बोला एक लड़का उससे,
मोहित हो सुंदरता से उसकी ।
प्रेम है मुझे तुमसे बहुत,
तुम कर लो मुझसे शादी ।

घबरा कर वो पीछे हो गई,
दिल धड़क उठा जोरों से वहीं ।
शुरूआत थी ये एक कोहराम की,
जिसकी उसे भनक भी नहीं थी ।

बचपन से सिखा था उसने,
कि लड़कियां हैं मौन रहतीं ।
और अगर वो ऐसा ना करें,
तो सिर्फ कोहराम है मचती ।

बात मान सबकी उसने,
मन में थी ये बात बिठा ली ।
और उस मौन का परिणाम,
थी आज वो भुगत रही ।

हिम्मत न थी उसमें उस,
लड़के से कुछ भी कहने की ।
इसलिए बिना कुछ सोचे समझे,
वो थी वहां से भाग उठी ।

फिर ये बना सिलसिला ऐसा,
हर दिन उनकी मुलाकात हुई ।
भागती फिरती थी उससे वो,
पर एक दिन उनकी तकरार हुई ।

सब्र का बांध टूटा उसका,
वो उसको जवाब दे बैठी ।
मन में नहीं था उसके कुछ,
वो उससे ये बात कह गई ।

बर्दाश्त न कर पाया वो लड़का,
सुन कर उसकी बातें ऐसी ।
और मन में उसके धधक उठी,
ज्वाला एक प्रतिशोध की ।

पीछा करना शुरू किया उसने,
पहुंच गया फिर घर तक भी ।
रख दिया प्रस्ताव कि करनी है उसको,
शादी उस लड़की से ही ।

सुन कर ऐसी बातें,
बेटी के बारे में अपनी ।
बोला उन्होंने उससे कि,
बोले वो बात अपने दिल की ।

मना किया जो उसने तो,
परिवार था उसका साथ भी ।
महसूस कर फिर से बेइज्जती,
उस लड़के की गर्दन झुक गई ।

गर्दन भले ही झुकी हुई थी,
पर आंखों में उसके आग थी ।
किसे पता था कि शुरुआत होगी,
यहां से एक कोहराम की ।

कुछ दिन बीतें दुख में उसके,
फिर वो अपने घर से निकली ।
भूल कर यादें उन दिनों की,
वो फिर से थी अपनी जिंदगी जी रही ।

फिर तूफान एक आया,
बन ग्रहण जीवन में उसके ।
घर आ रही थी वो,
एक कली अंधेरी रात में ।

इतने में ना जाने कहां से,
आ गया रास्ते में उसके वो भी ।
इज्जत उसकी लूटी उसने,
उसकी हिम्मत भी तार तार की । 

पता चला जब इस सबके,
बारे में उसके परिवार को भी ।
सबने तब दोषी था बनाया,
अपनी उस बच्ची को ही ।

घर में उसको बंद कर दिया,
छीन ली सारी आजादी उसकी ।
और इसी के साथ उसकी,
तय कर दी शादी कहीं ।

ना उसकी रजामंदी ली किसी ने,
और ना पूछी मर्जी ही ।
फरमान जारी कर दिया कि,
2 दिन में शादी होगी ।

सपने उसके सारे अब,
एक झटके में चकनाचूर हुए ।
उसके सारे अपने ही अब,
उसको थे खुद से दूर कर रहे ।

सोच कर ये बातें सारी,
हिम्मत उसकी धराशायी हुई ।
सब कुछ सोचते सोचते,
वो जीवन से अपने हार गई ।

कुछ देर बाद खुले दरवाजे,
और लाश उसकी दिखाई दी ।
जो थी पंखे से लटक रही,
होकर के बिल्कुल बेजान सी ।

जो था कोहराम मचा हुआ,
उसके जीवन में कुछ समय से ।
ले गई वो साथ में अपने,
उस सबको समा कर खुद में ।

देव श्रीवास्तव " दिव्यम "