Swayamvadhu - 20 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 20

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स्वयंवधू - 20

मैं सोफ़े पर हमारे बीच तीन हाथ की दूरी बनाकर बैठ गयी, आमतौर पर यह डेढ़ हाथ की दूरी होती थी। वहाँ पहेली भी चिंतित होकर आ गई और मुझे खुश करने के लिए म्याऊँ-म्याऊँ करने लगी और मेरी गोद में बैठ गई।
मैं बात करने गयी पर मुझसे नहीं हो पाया और मैं, पहेली को ले अपने कमरे में भाग गयी। वहाँ दी मेरा इंतज़ार कर रही थी।
"कहाँ थी इतनी देर?", दी ने गुस्से से पूछा,
"-दी।", मैंने कांपती हुई आवाज़ में कहा।
मुझे डरा देख पहेली दी पर गुर्राने लगी।
मैं पहेली को उठा, "पहेली! बच्चा ये मेरी बड़ी बहन है। गलत वो नहीं है...गलत तो मैं-", उसे पकड़ रोने लगी, "माफ करना दी। माफ करना! मेरी वजह से आप सबको इतना सब सहना पड़ा। मुझे उसी दिन खत्म हो जाना चाहिए था।", मैं बस गिर-गिरकर दी से माफी माँग रही थी। दी ने मुझे गले से लगा लिया। "मुझे माफ करना। मैं-", मेरे साथ दी भी रोने लगी और कहा, "हमने कब तुम्हें दोष दिया? तुम्हारी क्या गलती है? गधी! तुम्हें अंदाज़ा नहीं तुम्हें ज़िदा और ठीक देखकर मुझे कितनी शांति मिली है। इतने महीने की चिंता, बेचैनी और डर आज जिक्र खत्म हुई।",
दी ने मुझे कसकर पकड़े रखा। थोड़ा शांत होने के बाद दी ने घर के बारे में बताया। सब पहले जैसा है और भाई कुछ सुरक्षा बलों में गया है। सब ठीक है पर समाज किसे शांति से जीने देता है? जब तब आपके साथ कोई अप्रिय घटना हुई हो। अफवाहों को कोई नहीं रोक सकता जब आपके रिश्तेदार आपके चरित्र पर खुद कालिख पोतते फिर रहे हो। इन्हें तो बस तमाशा चाहिए। दूसरे के घर को चूले में फुदकते देख इनके गले से निवाला नीचे जाता है।
दी ने मुझे आश्वस्त किया और हम पहले की तरह एक साथ सो गए। पहेली भी हमारे साथ सोई।

सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गयी।
सुबह के साढे चार बज रहे थे। मैं ब्रश सब करके पाँच बजे भूख में निकली। बाहर अब भी अंधेरा और गजब की ठंड थी। मुझे बाहर से लड़को की आवाज़ आ रही थी। सब जिम में कसरत कर रहे थे। मैं किचन में अपने मुँह की कसरत करने गयी पर वहाँ कुछ नहीं था, एक जूस का कैन भी नहीं था। सारी दूध वाली चीज़े थी। मैं थकी हारी सोफे पर बैठ गयी, तभी भैय्या आए।
"वृषाली?",
"भैय्या?",
"-अम...कल- मतलब सुहासिनी मैम के साथ...सब कैसा था?", भैय्या ने गहरी साँस ली फिर अपनी आत्मविश्वासी अंदाज़ में कहा, "सुहासिनी मैम से आराम से बात कर देखो। अगर कुछ दिक्कत हो तो तुम्हारा भाई यही खड़ा है।",
मेरा दिल भर गया, "मेरे पास ऐसे बड़े हो तो क्या बुरा हो सकता है? दी ने अपने गुस्से पर काबू रखने का वादा किया है।",
(मैं इसे और नहीं कुरेद सकता।), "इतनी सुबह उठने का कारण? तुम अकारण इतनी जल्दी तो उठ नहीं सकती। क्या हुआ, खाना नहीं मिला?", मेरे लिए ये मेरी ऐकलौती बहन है, जिसे मुझे सुरक्षित रखना है।
"हम्म! सब में दूध था।",
"बैटर नहीं देखा?", भैय्या ने पूछा,
"देखा पर, आपका और वृषा के गुस्से वाला चेहरा याद आ गया और सुस्ती भी थी।",
भैय्या मेरा सिर सहलाकर, "मैं अभी आया।",
"पर आपकी कसरत?",
"अभी भी चल रहा है।", कह वो मेरे लिए खुद नाश्ता बनाने गए। मैं भी उनके पीछे-पीछे गयी। भैय्या ने मेरे लिए फटाफट इडली चढ़ा दिया और मैंने सारी सब्ज़िया धोकर चढ़ा दी। देखते ही देखते सबका नाश्ता तैयार हो गया। मैं सबसे पहले खाने बैठ गयी। मेरा खाना खत्म होने के टाइम सब आने लगे। खाना खा मैं उठकर हाथ धोने गयी। वृषा वहाँ बैठे थे।
"तुमने खा लिया?", उन्होंने पूछा,
"हम्म।",
"ये दवा भी ले लेना। तुम्हारा हीमोग्लोबिन लेवल कम है और ये रहा प्रिस्क्रिप्शन।", उन्होनें मुझे दिया।
दी वहाँ आकर, "ये क्या है?",
मैंने दी को प्रिस्क्रिप्शन पकड़ाई। दी उसे अपने साथ ले गयी। मैंने सोफे पर बैठ, दवाई के बारे में ढ़ूँढ़ा और वो सही और सील थी। मेरी पुरानी आदत है, दवा के बारे में पहले जानो फिर खाओ। वो भी तब तक जब तक मेरे हाथ में स्थिति है।
दी ने मुझे दवा थी। उनकी स्क्रीन पर भी वही दवा की जानकारी थी।

खाने के बाद,
"वृषाली, विषय के साथ मिलकर तुम अपना काम आज-",
वृषा बोल ही रहे थे कि उनका एक आदमी बड़े से गिफ्ट रैप बक्से के साथ आया। वृषा ने मुझे पीछे कर सामने खड़े होकर देखा।
"सर, इसे समीर सर ने आपके जन्मदिन के लिए भिजवाया है और कहा है कि 'इसे संजोकर रखना।' और इसे आपको नियमो के तहत सबके सामने खोलना है।",
मुझे इससे कुछ अच्छी फीलिंग नहीं आ रही थी। उन्होनें दस्ताने पहने और उसे खोलने लगे।
उसमे से तीन गिफ्ट रैप बक्सा निकले। उनसे वृषा, शिवम और राज का नाम लिखा था।
"सर, समीर सर ने कहा है कि पहले राज सर इसे खोले, फिर शिवम सर, फिर आप।", वो आदमी बहुत डरा हुआ और पसीने से भीगा हुआ था।
राज ने अपना लंबा सा बॉक्स खोला। उसमे से प्लास्टिक में लिपटे, कीचड़ से सने क्रिकेट बल्ले, गेंद थी। वो भावहीन था। जबकि शिवम सन रह गया।
शिवम ने हिलते हाथ खोला। उसके चौकोर बॉक्स से, पुरानी बंदूक और कुछ धब्बेदार बच्चो के कपड़े निकले। इसे देखकर वो और भी डर गया। और अब वृषा की पारी थी। वृषा ने अपना बक्सा खोला। उससे कुछ तस्वीरे थी जो स्प्रिंग के कारण बाहर उछल पड़ी। उसे देख सबके सब पीले पड़ गए। उसमे एक मासूम बच्चे कैद कचरों और हथियारों के बीच पड़ा हुआ था। खासकर शिवम।
सब परेशान थे कि हो क्या रहा था।
"तुम जा सकते हो।", वृषा ने लंबी खामोशी के बाद कहा और ऊपर तेज़ी सै चले गए। कुछ तो गड़बड़ था। शिवम और राज ने भी शांति को धारण कर लिया था।
जल्द-से-जल्द मुझे वृषा के पास जाना होगा।
"भैय्या इसे समेटवाइए और इनकी जाँच करवाइए और इनका ध्यान रखिएगा। सब अपने कमरे में जा सकते है और आप।", भैय्या से, "मैं अभी आई।",
मैं ऊपर वृषा के पास भागकर गयी। उनका दरवाज़ा खटखटाया, "वृषा हमे अभी बात करनी है।",
उन्होंने जवाब नहीं दिया।
"वृषा हमे अभी के अभी बात करनी होगी।",
फिर कोई जवाब नहीं।
"मैं आखिरी बार कह रही हूँ वृषा। हमे बात करनी है। नहीं तो मैं अंदर आ रही हूँ!",
मैंने आखरी चेतावनी दे उनके जवाब का इंतज़ार किया पर उन्होंने अब भी कोई जवाब नहीं दिया तो मैॅने अपने पास रखी चाबी के गुच्छे से उनका दरवाज़ा खोल अंदर गयी। वृषा बाथरूम से बाहर आ रहे थे।
"क्या आप ठीक है?", मैं उनके पास गयी।
मुझे देखकर वे हैरान रह गए, "तुम यहाँ कैसे?",
मैंने उन्हें चाबी दिखाई।
"बाहर जाओ, मुझे किसीसे कोई बात नहीं करनी।", उन्होंने सख्त स्वरों में कहा।
"ये गंध?", मुझे उनमें से कुछ गंध आ रही थी।
(यह गंध कवच के अंदर के घबराहट की है।) मेरे सिर में आवाज़ गूँजी।
"गंध?", मैं बड़बड़ाई,
"क्या गंध?", वृषा ने मुँह पोंछते हुए पूछा,
"वृषा, आपके ऐसे यहाँ आने का मतलब क्या था?", मैंने पूछा,
"मतलब क्या? मेरे ऑफिस जाने का वक्त हो गया है।",
"वृषा यहाँ सबको बात समझ आ रही है। यह आम घटना नहीं थी! अगर इतनी आम होती तो आप यहाँ उल्टी करने भागे नहीं आते। मैं हद से आगे बढ़ रही हूँ पर आप तीनों के तोते उड़े हुए चेहरे और बच्चों के खिलौने और कपड़े देखकर इतना हर कोई समझ सकता है कि यह आप तीनों के बीच एक बड़ी खाई है। जिस कारण तीनों एक दूसरे से नज़र भी नहीं मिला पाए। आपकी दोस्ती बच्चपन की दोस्ती है पर इसमें गहरी खाई है। आपको जितना मैं जानती हूँ, मेरा यही अनुमान है कि आपने अपना दिल बँदकर रखा है।",
मेरी बात सुन वो अपने भावना के आवेश में आ गए, "तुम्हें क्या पता मेरे मन में क्या चल रहा है?!",
मैं अंदर से घबरा गयी पर अपनी घबराहट को दबाकर शांति से कहा, "जैसे आप मुझे पढ़ सकते हो, वैसे मैं भी आपको पढ़ सकती हूँ जबकि हमे मिले चार महीने भी नहीं हुए है। और मैं एक स्त्री हूँ। सोचो आपके बच्चपन की दोस्ती को! आप, अपना वक्त लेकर अपने दोस्ती पर लगे ज़ंग को मिटाने की बस कोशिश करे। शिवम, दी को बर्दाश्त कर सकते है तो, उनमे संयम अवश्य होगा।",
वृषा हँसकर, "कमाल है, एक बच्चे द्वारा लेक्चर दिए जाने के बाद मैं इतना आश्वस्त महसूस कर रहा हूँ?",
"ओए!",
"तुम्हारे साथ के लिए धन्यवाद। शायद हम अपने बच्चपन सदमे से बाहर आ पाए?",
"ज़रूर आओगे। तो बात अभी होगी या रात को? अकेले या सबके साथ?",
"शाम को। आज मेरी एक मीटिंग है।",
"आपको अभी निकलना है? मतलब अभी?", मैंने अचरज में पूछा,
"अभी इसी वक्त।",
"पर आपने अभी-अभी सब बाहर निकाला है। थोड़ा आराम कर लीजिए। अच्छा लगेगा।", मैंने उन्हें रोकने कि कोशिश की।
"पर मुझे पहले से ही बेहतर महसूस हो रहा है। तुम्हारा धन्यवाद।",
"पर-हाह!", उन्हें रोकने का कोई फायदा नहीं।
मैंने उनके कपड़े निकाले। ज़रूरत की फाइले तैयार करने के बाद नीचे नींबू पानी तैयार करने गयी। काम खत्म होने के वक्त विषय भी आया। वो मेरी पास आया, फाइल के साथ उसने मुझे नई फ्लेवर्स वाली लॉलीपॉप दी।
मैंने उसे हैरानी से देखा।
"ये हमारे नयी रेस्टोरेंट में बच्चो के लिए मिठाइयाँ है। सर ने कहा था कि तुम्हारे ज़बान- मतलब कि तुम्हें मीठा बहुत पसंद है। हे-हे।", उसने अपनो ज़बान संभाली।
"मेरा ज़बान दिनभर घास चलाती भैंसी की तरह चलते रहता है। क्योंकि है ना?",
वो हैरान होकर, "हाँ!- मेरा मतलब नहीं!", वो दुविधा में था।
"अकेले क्या कर रही हो?", वृषा आए,
"घास चर रही थी।",
"ओह!", उन्हें पता चल गया,
"-'ओह!' हम्म!", कि मुझे पता चल गया है।
वृषा अपना नींबू पानी पी रहे थे। मैंने विषय को भी नींबू पानी दिया। वृषा को पन्नी फाड़ने दिया। दी आई।
"दी चरोगी?", मैंने वृषा को आँख दिखाकर पूछा,
"मुझे माफ करो!", मैंने मेरी माफी ले ली और दी को कुछ समझ नहीं आया तो सब ठीक थी पर मुझे अपने गुस्से पर काम करना होगा।
मैंने आड़ू (peach) लॉलीपॉप मुँह में डाला, उसका स्वाद एकदम कृत्रिम था और बिल्कुल भी खाने लायक नहीं था।
"नहीं! बिल्कुल नहीं!", इसका स्वाद ऐसा था जैसे मैंने कैमिकल को सीधे टेस्ट-ट्यूब से पी लिये हो। "बकवास है जैसे मैंने सीधा केमिकल पी लिया हो। नहीं!",
"और ये दूध वाला?", विषय ने मुझे वो पकड़ाया।
"पर इसमे तो दूध है।", मैंने उसे अचरज में देखा।

"ये तुम्हारे जैसो के लिए है जो दूध नहीं खा सकते।", वृषा ने कहा,
"सच्ची?", मैंने रैपर को पलटकर देखा,
"खाकर देखो।", वृषा ने कहा,
मैंने डरकर, भगवान का नाम ले उसे मुँह में डाला, "मम्म! टेस्टी है!",
"कितने सालो बाद?", वृषा ने पूछा,
"पंद्रह साल।",
"अच्छा मैं निकल रहा हूँ। और राज से दूर रहना।", वृषा जा रहे थे। मैंने विषय को दो टिफिन पकड़ाई।
"इसे वृषा को खिला देना और ये तुम्हारे लिए। पुलिहोरा कम तीखा।",
दोंनो निकल गए।

मैं भी हमारे आगंतुक से मिलने गयी, ऊपर छत में।
"तो क्या हम बात कर सकते है?",
वहाँ भैय्या, आर्य खुराना, शिवम, दी और दिव्या भी वहाँ थे।
वो आदमी ने कहा, "वृषा बाबा को उनकी माँ ने उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर मारने की कोशिश की थी।"
ये सुन सब हैरान थे, भैय्या और शिवम भी।

-अपहरणकर्ता की अपहरण की कहानी जानने के लिए जुड़े रहें