Pratishodh - 7 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | प्रतिशोध - 7

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

प्रतिशोध - 7

उमेश,रानी के साथ स्टेशन से बाहर आया था।
टेक्सी करते हुए बोला
कोई मिडिल क्लास होटल ले चलो
और रानी,उमेश के साथ टैक्सी में बैठ गयी थी।मुम्बई की सड़कों पर टेक्सी दौड़ने लगी।सड़को पर गाड़ियों का हुजूम।भागते लोग।वह तो घर से ही पहली बार निकली थी।वो भी पहली बार आयी तो एक महानगर में।जो केवल महानगर नही था।देश की आर्थिक राजधानी के साथ।फ़िल्म निर्माण का भी केंद्र था।बॉलीवुड जिसकी अपनी अहमियत थी।रानी जब स्कूल जा ती थी।तब तो सहलियेओ से बात हॉटई रहीती थी।पर जब से ममी ने स्कूल बंद करआया।वह को कोआप मण्डूक बनकर रह गयी थी।
रूम चाहिए"उमेश ने काउंटर पर जाकर कहा था
"सिंगल बेड खाली है
"चलेगा
उमेश चाबी लेकर रूम में आ गया था।उमेश नहाकर तैयार होकर बोला
मैं काम की तलाश में जा रहा हूँ।तुम तब तक नहा लो।मैं खाना साथ लेकर आऊंगा
उमेश चला गया था।रानी बाथरूम में आ गयी।होटल का बाथरूम भी आलीशान था।रानी ने एक एक करके सारे कपडे उतारे औऱ शावर के नीचे आकर खड़ी हो गयी।मामी तो उसे चेन से नहाने भी नही देती थी।लेकिन आज उसे रोकने वाला कोई नही था।वह इत्मीनान से नहाती रही।दोपहर में उमेश लौटा था।वह अपने साथ पूड़ी सब्जी,भेल,रसगुल्ले लाया था।
"क्या तुम्हारे पास अच्छे कपड़े नही है
"मेरे पास यही अच्छे है जो मैने पहन रखे हैं
"कोई बात नही।अभी चलेंगे तब ले लेना
उमेश और रानी दोनों बैठकर खाना खाने लगे।खाना खाने के बाद उमेश बोला
चलो
कहा
तुम्हे चौपाटी घुमाकर लाता हूँ
यह कौनसी जगह है
खुद देख लेना
और उमेश ने होटल वाले से चौपाटी के बारे में पूछा था।
उमेश लोकल ट्रेन से रानी के साथ जुहू पहुंचा।फिर वहां से डबल डेकर से चौपाटी गए थे।
समुद्र का बीच।शाम ढल रही थी।जुहू पर खूब भीड़ थी।हर उम्र और हर वर्ग के लोग थे।कुछ लोग समुंदर में छलांग लगा रहे थे।तो कुछ मस्ती कर रहे थे।समंदर की ठंडी ठंडी लहरे मस्ती भर रही थी।जगह जगह जोड़े प्रेमालाप में मस्त थे।रानी को यह देखकर आश्चर्य हुआ था।उमेश बोला
यहा इन बातों पर कोई ध्यान नही देता।सब अपने मे मस्त रहते हैं।और धीरे धीरे शाम ढल गयी थी।आसमान में चांद निकल आया था।उमेश बोला
चले
और उमेश,रानी को एक दुकान में लेकर आया था।रेडीमेड शॉप।उमेश बोला
अपनी पसंद के कपड़े ले लो
रानी ने दो जोड़ी सलवार सूट पसन्द किये थे।रानी,उमेश से बोली
तुम भी ले लो
अभी नही
क्यो
अभी मेरे पास है,"उमेश बोला,"चलो खाना खाते हैं
उमेश और रानी एक होटल में आ गए थे।खाना खाकर वह वापस होटल लौट आये थे।
"तुम पलँग पर सो जाओ।मैं सोफे पर सो जाती हूँ।"रानी उमेश से बोली थी
"क्यो
"पलँग एक ही है
"तो क्या हुआ।हम दोनों एक पक
पलँग पर सो सकते है
"छि
"क्यो
"अभी हमारे बीच मे कोई रिश्ता नही है।फिर हम एक साथ कैसे सो सकते हैं
साथ सोने के लिए क्या रिश्ता जरूरी है
हां
"यह मुम्बई है।ऐसी दकियानूसी बाते यहाँ कोई नही करता"
"कोई न करता हो।उससे मुझे क्या
"रानी लगता है।तुम्हे मुझ पर विश्वास नही है
"अगर तुम पर विश्वास न होता तो मैं तुम्हारे साथ भागकर नही आती
"विश्वास है तो साथ सो क्यो नही रही
"बिना रिश्ता नहीं
उमेश उठकर गया और अपनी उंगली को काटकर खून से रानी की मांग भर दी थी
"यह क्या किया तुंमने
"अब तो हमारे बीच रिश्ता हो गया,"मुझे काम मिल जाये फिर कोर्ट में भी शादी कर लेंगे