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यहाँ से वहाँ दूर तक अकेलेपन का सैलाब था, चुटकी भर धूप नहीं थी, साँझ खुशनुमा नहीं थी, था तो केवल एकाकीपन और नि:सहाय बेचारगी! ऐसा भी प्रेम होता है जो खुद को मारने के साथ जाने कितनों को अपनी लपेट में ले ले?
आशी की कलम जाने कितने दिनों से चल रही थी लेकिन उसके मन की पीड़ा अभी तक उसके भीतर एक ऐसे शिशु के बिलखने जैसी भरी हुई थी जिसकी रोते-रोते अभी साँस छूट जाने वाली हो| शिशु को कोई तो संभाल लेता है बेशक कभी परिस्थितिवश कोई अनजान व्यक्ति भी क्यों न हो लेकिन उसे कोई संभालने वाला कहाँ था? जो थे वे अब उससे सदा के लिए दूर जा चुके थे अथवा वह स्वयं उन्हें छोड़कर दूर आ गई थी| कहाँ पिघल पाई थी उसकी पीड़ा अब तक? रात के वीरानों में एक सुबकी लेकर वह उठ जाती और कमरा खोलकर बाहर बालकनी में आ खड़ी होती जहाँ से उसे केवल सन्नाटा स-न-न-न करता सुनाई पड़ता|
इस आश्रम में कई लोगों का आना-जाना लगा रहता लेकिन आशी को किसी से कोई खास मतलब नहीं होता था| जैसे-जैसे उसका लेखन बढ़ता गया था वैसे-वैसे वह अपने भीतर उतरती चली गई थी| हाँ, मौन के समय में वह दिन में दो बार ज़रूर संत श्री के कमरे में सबके साथ मौन साधना करती| वह आँखें मूंदकर चुपचाप बैठ जाती लेकिन उसके मस्तिष्क में विचारों का बवंडर कोलाहल मचाता रहता| वह उसे दबाने की चेष्टा करती लेकिन जितना दबाने की चेष्टा करती उतना ही न जाने उसका मस्तिष्क कहाँ-कहाँ उड़ाकर उसे ले जाता | मौन का समय पूरा होने पर वह दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ती और अपनी आँखों पर हौले से रखकर धीमे-धीमे अपनी आँखें खोल लेती| क्या सब लोग इस मौन के मैडिटेशन में संयत व सहज रहते होंगे? उसका मन भटकता ही तो रहता फिर सबके साथ ऊपर से ओढ़ी हुई एक आत्मीय मुस्कान साझा करके वह लौट आती|
सुहास के अलावा वह किसी के साथ कुछ नहीं बाँटती, सुहास से भी उसकी कम ही बात हो पाती थी, शुरू-शुरू में तो फिर भी काफ़ी बातें हो जातीं, सुहास ने भी आशी से बहुत कुछ साझा किया था और आशी ने भी लेकिन वह सब नहीं जिसने उसके जीवन को पीप बनाकर बहा दिया था| जैसे किसी जख्म में से अधिक पक जाने पर दुर्गंध आने लगती है, ऐसा ही अब वह महसूस करती थी| वह जैसे शून्य के मुहाने पर चलती हुई एक ऐसी पगडंडी पर चल रही थी जिसका कोई लक्ष्य नहीं था, जीवन उद्देश्य-विहीन था, जिसके आस-पास कोई मीठी बयार नहीं चलती थी| उसके आस-पास चलने वाली बयार में कोई ताज़गी नहीं थी| आपाधापी का स्थान छोड़कर वह आबू के इस शांत, सुरम्य वातावरण में थी जहाँ कोई हलचल नहीं थी| मौन की साधना थी और था वातावरण में पसरा हुआ अलौकिक प्रेम जो सबके लिए होता है, किसी एक के लिए नहीं| प्रकृति सबकी मित्र है, सबमें स्नेह बरसाती है, सबको दुलारती है| उसे भी पुकारा था उस वातावरण ने किन्तु वह अभी तक गर्म लूओं के थपेड़ों से घिरी हुई थी|
ये पर्वत शृंखलाएं उसे पुकारती लगती हैं, दुलारती लगती हैं लेकिन उसका मन भीतर से क्यों कुंद हुआ रहता है? बहुत हो गया, उसने अपने कर्मों की पूरी सज़ा भोग ली है लेकिन भला वह कैसे कह सकती है कि उसकी सज़ा पूरी हो गई है| यह उसका एकाकीपन उसी सज़ा का निरूपण ही तो है| वह भागती ही तो रही है| किसी भी मुश्किल से भाग जाना आसान लग सकता है लेकिन यह समस्याओं का समाधान तो नहीं हो सकता| क्या वह सदा पलायन करती रही है? यह उसके भीतर का प्रश्न था, अब याद आती है पिता की बात;
“बेटा! ज़िंदगी में जो भी सामने आए उसी में जीना सीखो, उससे मुँह छिपाने से या उससे भागने से तुम्हारा मन शांत नहीं होगा| जो भी हो चुका होता है, कभी वापिस आता है क्या? ”कितनी बार दीना जी के इस संवाद से वह उखड़ी है, यह तो वही जानती है अथवा दीना जी जिन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी थी अपनी बेटी को जीवन की वास्तविकता समझाने में! अब तो वह अकेली है, इस संवेदना को महसूस करने और झेलने के लिए भी !
उसने अपनी पूरी उम्र में क्या हल निकाला था? यह तो वह ही समझ सकती है और कोई न उसकी बात समझ सकता न ही उसे समझा सकता है| जिन्होंने भी उसे समझाने की कोशिश की, उन्हें उससे दुत्कार ही मिली और उसे क्या मिल सका?
अचानक आजकल कभी भी उसके सामने सैम्यूल मार्टिन का चेहरा उभरने लगता था| आज भी जब वह बॉलकनी में खड़ी होकर पर्वतों की शृंखलाओं को बादलों से छूते हुए देख रही थी अचानक उस सामने वाले ऊँचे पर्वत के पीछे से बादलों के एक टुकड़े के साथ जैसे धूँए में घिरा हुआ मार्टिन का चेहरा उसे दिखाई दिया| धूँए से घिरा उसका गोरा चेहरा आशी के भीतर जैसे तीर की नोंक सी चुभने लगा|
मार्टिन का चेहरा उसे कभी भी दिखाई देने लगता था, उसे झुरझुरी आ जाती थी | आज भी ऐसा ही हुआ और उसके साथ उसकी कलम ने भी जैसे एक झुरझुरी ली| वह फ्रांस में आशी के साथ प्रॉजेक्ट पर काम कर रहा था| भारतीय परिवेश व भारतीय लोगों से प्रभावित मार्टिन शुरु से ही आशी की ओर आकर्षित था| उन दोनों का अधिकांश समय साथ ही गुज़रता, उस प्रॉजेक्ट को वहाँ की सरकार ने स्वीकार किया था जिस पर मार्टिन और आशी काम कर रहे थे| अपने कार्य के प्रति दोनों की प्रतिबद्धता बहुत दृढ़ थी|
आशी तो थी ही बड़ी स्मार्ट और स्ट्रॉंग व्यक्तित्व की लड़की| अपने काम में कभी भी उसने कोताही नहीं बरती थी | मार्टिन ने इस प्रॉजेक्ट से पहले भी कई भारतीय लोगों के साथ काम किया था लेकिन आशी के साथ ं जाने क्यों वह अपने को बहुत प्रफुल्लित महसूस करता| उसकी आशी से खासी दोस्ती हो गई थी और वह काम के खत्म होने पर कई बार आशी के साथ घूमता-फिरता| बोल्ड आशी आसानी से किसी की ओर आकर्षित होने वाली नहीं थी| उसकी तो दोस्ती भी किसी के साथ होना ज़रा टेढ़ी खीर ही थी| इस समय वह विदेश में थी और उसे काम के अलावा भी अपने साथ थोड़ी-बहुत बात करने के लिए कोई चाहिए था, इसके लिए मार्टिन ठीक ही था|
मार्टिन अच्छा आदमी था, मूल फ्रांसीसी! फ्रेंच बोलता था लेकिन अँग्रेज़ी व हिन्दी भी अच्छी बोल लेता था| एक बड़ी व्यापारिक कंपनी में अच्छी पोज़ीशन पर व्हाइट कॉलर जॉब करता था| इसीलिए वह अन्य देशों में उसका जाना-आना लगा रहता| भारत में भी वह कई बार ट्रिप लगा चुका था|