Shuny se Shuny tak - 81 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 81

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शून्य से शून्य तक - भाग 81

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“आशिमा दीदी, आपने सुना? ”इधर से कोई उत्तर न पाकर माधो ने फिर से पूछा| वह सबके मन की पीड़ा जानता तो था ही लेकिन क्या करता? इतना जानता, समझता था कि परिस्थिति तो संभालनी ही है| 

“हाँ माधो सुन लिया---”आशिमा ने रेशमा, अनिकेत और उसकी मम्मी को बता दिया था| समझ नहीं पा रही थी आशी से कैसे यह सूचना साझा कर सकेगी? वह कई बार उसके कमरे की ओर गई लेकिन उसका साहस ही नहीं हुआ कि कमरा नॉक करे| परिस्थिति तो अजीब थी ही, वैसे भी आशी इस घटना को कैसे लेती, कौन क्या कह सकता था? 

वह चुप बनी रही, घर में जितने भी लोग थे उन्हें पता चल गया था, माधो ने महाराज को फ़ोन कर दिया था और महाराज ने सबको बता दिया था| किन्तु सबके मन में जैसे कुहरा सा पसरा हुआ था| इस नवजात का कैसे स्वागत किया जाएगा? कोई नहीं जानता था| 

मनु की मानसिक स्थिति तो और भी अजीब थी, उसे अंदर ही अंदर जैसे कोई डर खा रहा था| आशी के अचानक इस प्रकार के व्यवहार से वह बेहद अचकचा गया था, दीना अंकल की अनुपस्थिति वैसे तो सबके लिए ही उदासी व अकेलेपन का सबब थी किन्तु उसके लिए विशेष रूप से असहज कर देने वाली थी| इस पशोपेश में वह अपने नवजात शिशु को अपनी गोदी में लेकर दुलार भी नहीं कर पाया था| दीना अंकल के आश्वासन से वह अनन्या को घर ले आया था लेकिन अभी समाज की मुहर लगनी शेष थी| जिस प्रकार आशी ने उससे व्यवहार किया था यदि वह उसे तलाक नहीं देगी तो सब कुछ चौपट होने की सीमा पर खड़े होने की स्थिति आने वाली थी| जिस अनन्या ने ऐसे कमज़ोर समय पर उसका साथ दिया था, उसकी मम्मी ने भरोसा किया था| वह सब कुछ तहस-नहस होने की कगार पर था| 

“क्या बात है मनु, इतने चुप क्यों हो? ”अनन्या ने उससे कुछ भी नहीं पूछा था लेकिन उसकी मम्मी को बहुत अजीब लग रहा था| जिस क्षण की प्रतीक्षा कब से थी, उस क्षण का स्वागत कोई नहीं करने आया था| पहले भी आशी के पहुँचने की आहट तक से ही सब चौकन्ने हो जाते थे लेकिन अब तो वह ऐसे समय में पहुँची थी जब सारी ही परिस्थियाँ विपरीत थीं| 

कुछ खेल विधाता दिखाता है तो कुछ खेल मनुष्य अपने आप खेल जाता है, बेशक यह सब भी प्रारब्ध में उसी शक्ति ने लिखा होता है जिसने मनुष्य को जन्म दिया है| जिस समय वह अपने लिए युद्ध कर रहा होता है, नहीं जानता कि उसका परिणाम भविष्य में क्या होने वाला है? 

मनु के लिए अब अस्पताल में रहना ज़रूरी था। उसने अभी तक अनन्या व उसकी मम्मी से घर की परिस्थिति के बारे में कुछ भी साझा नहीं किया था| वह बताना चाहता था लेकिन उसका साहस ही नहीं हो रहा था| क्या, कैसे, किन शब्दों में बताए? अनन्या और उसकी मम्मी वैसे तो परिस्थिति को समझ ही रहे थे लेकिन इतना सब कुछ घटित हो गया था, सब कल्पनातीत था| 

“आप घर चली जाइए, मैं हूँ यहाँ----”शायद उसके मन में यह था कि घर पर जाकर उन्हें अपने आप ही पता चल जाएगा वास्तविकता का, वैसे शॉकिंग होगा, इसमें कोई शक नहीं था लेकिन शायद वह अभी अनन्या को भी नहीं बताना चाहता था| वह तो अभी केवल आशी की अचानक उपस्थिति से ही घबराई हुई थी, जब दीना अंकल की अनुपस्थिति का पता चलेगा तब? प्रश्न बड़ा कठिन था और उत्तर नदारद----

“डॉक्टर साहब कह रहे थे कि शाम तक छुट्टी दे देंगे, शायद अगले सप्ताह स्टिचेज़ के लिए आना होगा| सब साथ ही चलेंगे| ”फिर न जाने क्या सोचकर बोलीं;

“पता नहीं भाईसाहब की कैसी तबियत होगी, उनका फ़ोन भी नहीं आया| आशिमा, रेशमा ने भी अपनी भतीजी के बारे में कोई बात नहीं की| भाईसाहब को आशी से बात भी करनी होगी, जाने कैसे होगा इस समस्या का हल? ” उनका चिंतित होना स्वाभाविक था| 

मनु कुछ नहीं बोला, उसे हर कदम बहुत फूँक-फूँककर रखना था| अभी उसके पास माधो के अलावा कोई नहीं था जिससे मन की बात कह सके| उसने माधो से ही सलाह ली और डॉक्टर से बात करने के लिए चला गया| उनसे पूरी स्थिति वह पहले ही बता चुका था लेकिन जब घर जाने की बात आई तब वह और असहज हो उठा| 

“मनु! अनन्या बहुत स्ट्रॉंग लड़की है और कभी न कभी तो उसे पता चलना ही है दीना जी के बारे में। उसे शॉक लगेगा लेकिन वह संभाल लेगी खुद को| अगर उनके लिए करने वाली पूजा-अनुष्ठान में शामिल न हो पाई तो हो सकता है वह ज़िंदगी भर और भी अधिक असहज बनी रहे| 

यह बात ठीक थी, मनु को समझ में आई, अनन्या और दीना अंकल इतने कम समय में एक-दूसरे की परेशानियों को इतना समझने लगे थे, इतने करीब हो गए थे जैसे रक्त के संबंध के पिता-पुत्री हों| एक तो अनन्या को उनकी अनुपस्थिति अखरने वाली है, दूसरे यदि वह सामने न रहकर बाद में सब कुछ जानेगी तब और अधिक परेशान होगी| वह कुछ कह नहीं पा रही थी लेकिन आशी की उपस्थिति से घबराई हुई थी| कई बार वह डैडी और आशिमा, रेशमा के बारे में भी पूछ चुकी थी| 

डॉक्टर साहब के साथ बात करके तय यह हुआ कि शाम को न जाकर अगले दिन सुबह अस्पताल से छुट्टी ली जाए, वह बेहतर रहेगा| मनु ने आशिमा को सूचना दे दी थी जिससे अनन्या व उसकी मम्मी को घर का वातावरण एकदम चौंका न दे| रात में मनु ने अपनी बिटिया को गोद में लेकर अपने सीने से लगाया और सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया, जो होगा देखा जाएगा|