Bhay ka Kahar - 7 in Hindi Horror Stories by Abhishek Chaturvedi books and stories PDF | भय का कहर.. - भाग 7

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भय का कहर.. - भाग 7

भय का गह्वर (अंतहीन दहशत)

स्वामी अधिराज और उसके अनुयायियों की रहस्यमय गुमशुदगी के बाद, गांव के लोग अब हवेली का नाम तक लेने से कतराने लगे थे। उन्होंने मान लिया था कि हवेली का अभिशाप इतना गहरा और शक्तिशाली है कि उसे खत्म करना असंभव है। गांव के बुजुर्गों ने फैसला किया कि हवेली के आसपास के क्षेत्र को पूरी तरह से सील कर दिया जाए और वहां किसी को भी जाने की इजाजत न दी जाए।

कुछ ही समय में, हवेली के चारों ओर ऊंची दीवारें खड़ी कर दी गईं, और इसके दरवाजों पर बड़े-बड़े ताले लगा दिए गए। गांव के लोग अब एक अनकही समझ के साथ जीने लगे थे कि हवेली का वह काला साया अब हमेशा के लिए बंद हो चुका है। 

लेकिन एक रात, गांव के लोगों की इस शांतिपूर्ण समझ पर एक भयानक हमला हुआ। उसी रात गांव में एक भयावह घटना घटी, जिसने सभी को सदमे में डाल दिया। उस रात, गांव के चार प्रमुख परिवारों के सदस्य अचानक गायब हो गए। उनके घरों के दरवाजे खुले हुए मिले, और घर के अंदर का सामान बिखरा हुआ था, मानो किसी ने जबरन अंदर घुसने की कोशिश की हो। 

इन गायब हुए लोगों की तलाश पूरे गांव में की गई, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं मिला। ऐसा लग रहा था कि वे लोग हवा में गायब हो गए हों। गांववालों के मन में हवेली की खौफनाक यादें फिर से जाग उठीं। वे समझ गए थे कि हवेली का अभिशाप अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि अब और भी भयावह रूप में लौट आया है। 

इसी बीच, गांव के कुछ युवाओं ने साहस जुटाया और उन्होंने तय किया कि वे इस रहस्य का सामना करेंगे और अपने परिवारों को बचाएंगे। इन युवाओं में सबसे साहसी था अर्जुन का पोता, जो अब जवान हो चुका था और अपने दादा के साथ हुए भयानक हादसे की सच्चाई जानने के लिए बेचैन था। 

युवाओं ने पूरी तैयारी के साथ हवेली के पास जाने का फैसला किया। उन्होंने गांव के बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया और हवेली के गेट की तरफ बढ़ने लगे। हवेली के चारों ओर लगी दीवारें अब जर्जर हो चुकी थीं, लेकिन गेट अब भी मजबूती से बंद था। 

उन्होंने ताले को तोड़ने के लिए अपने साथ लाए औजारों का इस्तेमाल किया। काफी मशक्कत के बाद, गेट का ताला टूट गया और युवाओं ने हवेली के अंदर प्रवेश किया। हवेली के अंदर का माहौल वही पुराना और डरावना था, लेकिन अब हवेली के दीवारों पर अजीबोगरीब छायाएं उभरने लगी थीं, जो पहले नहीं दिखी थीं।

जैसे ही वे हवेली के अंदर गए, उनके चारों ओर की हवा ठंडी और भारी होने लगी। अचानक, हवेली की दीवारों से धीमी-धीमी फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं। यह आवाजें उन आत्माओं की थीं, जो वहां बंधी हुई थीं और अपने आक्रोश को व्यक्त कर रही थीं। 

अर्जुन का पोता और उसके साथी धीरे-धीरे हवेली के सबसे गहरे हिस्से की ओर बढ़ने लगे। उन्हें वह सुरंग मिल गई, जिसे स्वामी अधिराज ने पहले खोजा था। सुरंग का दरवाजा फिर से खुला हुआ था, और उसके अंदर से ठंडी हवा के झोंके बाहर आ रहे थे।

वे सभी साहस जुटाकर सुरंग के अंदर चले गए। सुरंग के अंत में, उन्हें वही ताबूत मिला, जो पहले खुला था। लेकिन इस बार, ताबूत के चारों ओर लाल रंग की रोशनी बिखरी हुई थी, और ताबूत के अंदर से एक और भी भयानक साया निकल रहा था। यह साया पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा शक्तिशाली और डरावना था। 

साया ने जोर से चिल्लाते हुए कहा, "तुम लोग फिर से मेरे आराम में खलल डालने आए हो? अब तुम्हारा अंत निश्चित है!"

अर्जुन का पोता और उसके साथी डर से कांप उठे। उन्होंने वहां से भागने की कोशिश की, लेकिन ताबूत के आसपास की जमीन अचानक उनके पैरों के नीचे से खिसकने लगी। उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे पूरा कक्ष हिल रहा हो। 

साया ने अपनी काली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए हवेली के दरवाजों को सील कर दिया। अब कोई भी वहां से बाहर नहीं जा सकता था। कक्ष की दीवारों से खून बहने लगा, और हवेली के चारों ओर की हवा अचानक ठंडी और भारी हो गई। अर्जुन का पोता समझ गया कि वे अब हवेली के अंदर फंस चुके हैं और उनका अंत निकट है।

लेकिन उसने हार मानने से इनकार कर दिया। उसने अपने साथियों को एकत्र किया और मिलकर साया का मुकाबला करने की योजना बनाई। उन्होंने अपने पास लाए औजारों और मंत्रों का इस्तेमाल करते हुए साया को कमजोर करने की कोशिश की। 

साया और भी ज्यादा क्रोधित हो गया और उसने हवेली की दीवारों को तोड़ना शुरू कर दिया। दीवारों के टूटते ही, हवेली के अंदर की अन्य आत्माएं भी बाहर निकल आईं और उन्होंने अर्जुन के पोते और उसके साथियों को घेर लिया।

अर्जुन का पोता अब भी लड़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन आत्माओं की संख्या इतनी ज्यादा थी कि वे धीरे-धीरे उसकी जीवन शक्ति को निगलने लगीं। उसके साथी एक-एक करके गिरने लगे, और हवेली के अंदर एक बार फिर से भयानक चीखें गूंजने लगीं।

अर्जुन का पोता अपने अंतिम क्षणों में समझ गया कि हवेली का अभिशाप इतना शक्तिशाली है कि उसे खत्म करना असंभव है। वह धीरे-धीरे अंधेरे में समा गया, और उसके साथियों का भी वही हश्र हुआ।

सुबह होने पर, गांववाले फिर से हवेली के पास पहुंचे। लेकिन वहां सन्नाटा और वीरानी के अलावा कुछ नहीं था। अर्जुन का पोता और उसके साथियों का कोई निशान नहीं मिला, और हवेली फिर से अपने पुराने भयानक रूप में लौट आई थी।

गांव के लोग अब समझ गए थे कि हवेली का रहस्य कभी उजागर नहीं किया जा सकता। उन्होंने तय किया कि वे हवेली को हमेशा के लिए छोड़ देंगे और उसका जिक्र भी नहीं करेंगे। 

अन्धकार का किला अब एक ऐसा स्थान बन चुका था, जहां कोई नहीं जाना चाहता था। हवेली के अंदर की आत्माएं अब भी वहां मौजूद थीं, अपनी अनंत दहशत को फैलाने के लिए तैयार। और गांववालों ने एक सख्त नियम बना लिया था—हवेली के पास कोई नहीं जाएगा, क्योंकि वहां जाने का मतलब था मौत को निमंत्रण देना।

लेकिन गांव के लोगों को इस बात का एहसास नहीं था कि हवेली का यह अंधकार केवल वहीं तक सीमित नहीं था। यह धीरे-धीरे फैल रहा था, और एक दिन पूरा गांव इसकी चपेट में आ सकता था। 

हवेली का रहस्य, उसका भय, और उसका अंधकार अब कभी खत्म नहीं होगा। वह हर उस व्यक्ति के भीतर अपनी जगह बना लेगा, जो उसके बारे में सुनेगा या उसके पास जाएगा। **भय का गह्वर** अब हर दिल में एक गहरी छाप छोड़ चुका था, जो कभी मिटाई नहीं जा सकती।


भय का गह्वर (अंतिम प्रलय)

गांव के लोग अब हवेली के नाम से भी कांप उठते थे। हवेली का अभिशाप इतना विकराल हो चुका था कि उसने हर दिल में डर और असहायता की छाया डाल दी थी। अर्जुन के पोते और उसके साथियों की गुमशुदगी के बाद गांववालों ने हवेली के पास जाने की हिम्मत पूरी तरह से छोड़ दी थी। लेकिन एक व्यक्ति ऐसा था, जिसने हार मानने से इनकार कर दिया था—महंत नारायण के शिष्य, आदित्य।

आदित्य को महंत नारायण ने बचपन से तंत्र-विद्या और मंत्रों की शिक्षा दी थी। जब उसने हवेली के भयानक अभिशाप और अपने गांव के लोगों की दशा के बारे में सुना, तो उसने अपने गुरु की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। आदित्य ने अपनी सारी साधनाएं और तंत्र-विद्या का ज्ञान जुटाया और हवेली के अभिशाप को खत्म करने की ठानी।

पूर्णिमा की रात, जब चंद्रमा अपने पूरे प्रकाश में था, आदित्य ने अपनी यात्रा शुरू की। उसने गांव के बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया और अकेले ही हवेली की ओर बढ़ चला। उसके पास सिर्फ एक त्रिशूल, कुछ तांत्रिक औजार, और उसके गुरु के दिए हुए शक्तिशाली मंत्र थे।

हवेली के गेट पर पहुंचकर, आदित्य ने मंत्रों का जाप शुरू किया। हवेली की पुरानी दीवारें हिलने लगीं, और उसके अंदर की आत्माओं ने गुस्से में आकर आदित्य को रोकने की कोशिश की। लेकिन आदित्य का संकल्प दृढ़ था। उसने त्रिशूल को उठाकर गेट के ताले पर वार किया, और गेट अपने आप खुल गया।

आदित्य ने बिना किसी डर के हवेली के अंदर प्रवेश किया। हवेली के अंदर की हवा पहले से भी ज्यादा भारी और घुटनभरी हो चुकी थी। दीवारों से निकलने वाली छायाएं अब और भी भयानक रूप ले चुकी थीं। हवेली के अंदर की आत्माओं ने आदित्य को घेर लिया, लेकिन उसने अपने मंत्रों और तंत्र-विद्या का इस्तेमाल करते हुए उन्हें अपने पास आने से रोक दिया।

जैसे ही आदित्य सुरंग के अंदर पहुंचा, उसने देखा कि ताबूत के चारों ओर लाल रंग की रोशनी और भी तेज़ हो गई थी। ताबूत के अंदर से एक भयानक अंधकार निकल रहा था, जो हवेली के चारों ओर फैला हुआ था। आदित्य ने समझ लिया कि यह अंतिम मुकाबला होगा, जिसमें या तो वह हवेली के अभिशाप को समाप्त कर देगा, या खुद उसकी भेंट चढ़ जाएगा।

आदित्य ने अपने गुरु के दिए हुए मंत्रों का उच्चारण करते हुए त्रिशूल को ताबूत के ऊपर रखा। ताबूत के अंदर से एक जोरदार आवाज गूंजी, और काला साया बाहर निकलने लगा। साया अब पहले से भी ज्यादा शक्तिशाली और भयानक था। उसने आदित्य को धमकी दी कि अगर उसने उसे रोका, तो वह पूरे गांव को तबाह कर देगा।

लेकिन आदित्य ने बिना किसी डर के अपने मंत्रों का जाप जारी रखा। ताबूत के अंदर की आत्माएं अब और भी अधिक क्रोधित हो गईं और उन्होंने आदित्य को रोकने के लिए अपनी सारी शक्तियों का उपयोग करना शुरू कर दिया। हवेली की दीवारें टूटने लगीं, और चारों ओर खून की नदियां बहने लगीं। 

आदित्य ने अपनी पूरी शक्ति को इकट्ठा किया और ताबूत पर अंतिम प्रहार किया। त्रिशूल ने ताबूत को चीरते हुए उसके अंदर की आत्माओं को जकड़ लिया। जोरदार विस्फोट हुआ, और एक भयंकर ऊर्जा का प्रवाह हवेली के चारों ओर फैल गया। 

इस विस्फोट से हवेली की सभी आत्माएं चीख उठीं और एक-एक करके ध्वस्त होने लगीं। हवेली का काला साया अब कमजोर पड़ने लगा था। अंततः, आदित्य ने अंतिम मंत्र का उच्चारण किया और ताबूत को पूरी तरह से सील कर दिया। ताबूत के अंदर की सारी आत्माएं अब शांत हो गईं, और हवेली में एक गहरा सन्नाटा पसर गया। 

आदित्य ने थकान से लड़खड़ाते हुए ताबूत को देखा। हवेली अब पूरी तरह से शांत थी। वह समझ गया था कि उसने हवेली के अभिशाप को समाप्त कर दिया है। लेकिन इस अंतिम लड़ाई में, उसकी सारी ऊर्जा समाप्त हो चुकी थी। उसने ताबूत के पास बैठकर अपनी आंखें बंद कीं और अपने गुरु के स्मरण में लीन हो गया। 

सुबह हुई, तो गांव के लोग आदित्य को खोजने हवेली के पास पहुंचे। उन्हें वहां हवेली के मलबे के बीच आदित्य का शांत और स्थिर शरीर मिला। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी, मानो वह अपने गुरु के साथ मिल चुका हो। गांववालों ने आदित्य के बलिदान को नमन किया और उसकी याद में एक मंदिर का निर्माण किया। 

हवेली के खंडहर अब केवल एक बीते समय की गवाही दे रहे थे। आदित्य ने अपने बलिदान से हवेली के अभिशाप को समाप्त कर दिया था, और गांव पर छाए अंधकार के बादल हमेशा के लिए छंट गए थे। 

गांव के लोग अब हवेली की तरफ जाने से नहीं डरते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि आदित्य की आत्मा अब वहां हर उस आत्मा की रक्षा करती है, जिसने कभी उस अभिशाप का सामना किया था। 

भय का गह्वर आख़िरकार समाप्त हो चुका था, और एक नई सुबह ने गांव को फिर से जीवन की रोशनी से भर दिया था। आदित्य का बलिदान हमेशा के लिए याद रखा गया, और गांव में अब सिर्फ शांति और समृद्धि का वास था।

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क्या आगे और.......