Freedom fighter and pioneer of Hindi literature Pandit Ramnaresh Tripathi in Hindi Biography by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एव हिंदी साहित्य के पुरोद्धा पण्डित रामनरेश त्रिपाठी

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एव हिंदी साहित्य के पुरोद्धा पण्डित रामनरेश त्रिपाठी

 भाषा के पूर्व छायावाद युग  उपन्यासकार ,कहानीकार, कविता ,जीवनी, संस्मरण साहित्य कि लगभग सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाने वाले विद्वान सन्त विचारक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पण्डित रामनरेश त्रिपाठी जी द्वारा लगभग सौ पुस्तके लिखी गई है ।समाज राष्ट्र हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय योगदान देने वाले पण्डित राम नरेश त्रिपाठी जी का जीवन संघर्षों एव उतार चढ़ाव से भरा हुआ था बचपन से लेकर मृत्यु तक पिता से वैचारिक मतभेद से राजपुताना परिवार के मध्य प्रवास तक पण्डित जी का जीवन वर्तमान पीढ़ी विशेषकर हिंदी साहित्यप्रेमी एव साहित्यकारों को साहस शक्ति ऊर्जा प्रदान करते हुए जीवन उद्देश्यों के प्रति विश्वास एव दृढ़ता प्रदान करता है उनके विषय मे कुछ भी लिखना अपना सौभाग्य अभिमान मानते हुए एव उनके जीवन यात्रा उपलब्धियों को नमन करते हुए अपनी भवनाओ को व्यक्त करने का साहस के लिए पण्डित रामनरेश त्रिपाठी कि आत्मिक शक्ति एव ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ जिससे की अनुकरणीय अविस्मरणीय जीवन एव उसकी उपलब्धियों कृतियों को नमन कर सकने में सफल सक्षम हो संकु।।जन्म एव जीवन--राम नरेश त्रिपाठी जी का जन्म चार मार्च 1889 उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर(कुशभवनपुर) जनपद के कोइरीपुर ग्राम में हुआ था पिता रामदत्त त्रिपाठी धर्मभीरु सदाचारी एव  धर्मपरायण व्यक्ति थे सेना में सूबेदार पद तक अपनी सेवाएं दे चुके पण्डित रामदत्त त्रिपाठी का रक्त पण्डित रामनरेश त्रिपाठी की रगों में धर्मनिष्ठ कर्तव्यनिष्ठ एव राष्ट्रभक्ति कि भावना के रूप में प्रवाहित हो रहा था जिसके कारण दृढ़ता निर्भीकता आत्मविश्वास आदि गुण उन्हें विरासत में मीले हुए थे।शिक्षा--पण्डित रामनरेश त्रिपाठी कि प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक पाठशाला में शुरू हुई प्राथमिक एव जूनियर हाई स्कूल कि परीक्षा पास करने के उपरांत हाईस्कूल कि शिक्षा के लिए जौनपुर चले गए किंतु पिता से वैचारिक मतभेद होने के कारण उनकी हाई स्कूल कि शिक्षा पूरी नही हुई और पण्डित रामनरेश त्रिपाठी कलकता चले गए पण्डित जी मे कविता से प्रेम प्राथमिक शिक्षा के दैरान ही शुरू हो गया था अठ्ठारह वर्ष की आयु में कलकत्ता में संक्रामक रोग होने के कारण कलकत्ता छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा एक शुभचिंतक कि सलाह पर पण्डित जी राजस्थान के सीकर जनपद के ठिकाना स्थिति गांव फतेपुर सेठ राम वल्लभ नेवरिया के पास चले गए सौभाग्य से मरणासन्न स्थिति में घर परिवार से सुदूर अपरिचित स्थान राजपुताना के अपरिचित परिवार के पास  चले गए  जहां शीघ्र इलाज एव स्वास्थप्रद जलवायु पाकर शीघ्र ही स्वस्थ हो गए।पण्डित रामनरेश त्रिपाठी ने  रामवल्लभ जी एव उनके परिवार के प्राण रक्षा के उपकार को उनके पुत्रो कि शिक्षा दीक्षा कि जिम्मेदारी का गुरुता एव कुशलतापूर्वक निर्वहन करते हुए पूर्ण किया इसी दौरान माँ सरस्वती कि कृपा पण्डित जी पर हुई और उन्होंने (हे प्रभु आंनद दाता ज्ञान हमको दीजिए) जैसी बेजोड़ रचना लिख कर भविष्य को अपने साहित्यिक अनुष्ठान के जीवन का संदेश  दे दिया।कृतियाँ-- पण्डित रामनरेश त्रिपाठी जी की साहित्यिक अनुष्ठान यात्रा का शुभारम्भ फतेहपुर से हुई जहाँ उन्होंने छोटे बड़े बालपयोगी काव्य संग्रह उपन्यास और हिंदी में महाभारत लिखी।पण्डित जी ने संस्कृत साहित्य का गहन अध्यपन किया था उनके ऊपर गोस्वामी जी के राम चरित मानस का गहरा प्रभाव था उनका संकल्प था मानस को घर घर पहुंचाना।बेढब बनारसी ने उनके संदर्भ में लिखा है-तुम तोप ,मैं लाठीतुम रामचरित मानस निर्मल, मैं रामनरेश त्रिपाठी।।उन्नीस सौ पन्द्रह में त्रिपाठी जी जीवन की संजीत पूंजी ज्ञान अनुभव एव साहित्य कि संस्कृति लेकर प्रयाग  पहुंचे और पुण्य तीर्थक्षेत्र को ही अपनी कर्मस्थली बनाया थोड़ी पूंजी एकत्र करके प्रकाशन का कार्य शुरू किया । त्रिपाठी जी ने मौलिकता को ध्यान में रखते हुए गद्य एव पद्य का कोई कोना अछूता नही छोड़ा और हिंदी साहित्य में मार्गदर्शी के रूप में अवतरित होकर बहुत लोकप्रिय हुए।सन उन्नीस सौ बीस से इक्कीस के दौर में उन्होंने हिंदी के प्रथम एव सर्वोकृष्ट राष्ट्रीय खण्ड काव्य पथिक कि रचना की साथ ही साथ मिलन एव स्वप्न भी प्रसिद्ध मौलिक खण्ड काव्यों में सम्मिलित है स्वपनो के चित्र उनके  द्वारा प्रथम कहानी संग्रह लिखा गया। संग्रह  एव ग्रंथो में विशाल एव अनुपम अविस्मरणीय कविता कौमुदी का बड़े कठिन परिश्रम के साथ सम्पादन एव प्रकाशन किया।(क)प्रबंध काव्य-- 1-मिलन (सन 1918) 13 दिनों में रचित2- पथिक (1920) मात्र इक्कीस दिनों में रचित3-मानसी (1927)4-स्वप्न (1929) मात्र 15 दिनों में रचित जिसके लिए उन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला।(ख)मुक्तक--5-मारवाड़ी मनोरंजन6-आर्य संगीत शतक7-कविता विनोद8-क्या  होम रूल लोगे9-मानसी(ग)कहानी--10-तरकस11-आंखों देखी कहानियां12-स्वपनो के चित्र13-नख शिख14-उन बच्चों का क्या हुआ15-इक्कीस अन्य कहानियांउपन्यास---16- वीरांगना17-वीररबाला18-मारवाड़ी और पिशाचनी19-सुभद्रा और लक्ष्मी(घ)नाटक--19-जयंत20-प्रेमलोक21-वफ़ाती चाचा22-अजनबी23-पैसा परमेश्वर24-बा और बापू25-कन्या का तपोवन (च)व्यंग---26-दिमागी ऐयासी27-स्वपनों के चित्र(छ)अनुवाद---28-इतना तो जानो (अटलु तो जाग्जो-गुजराती से)29-कौन जगाता है ( गुजराती नाटक)(ज)सम्पादित पुस्तके-29-रामचरित मानस 30-कविता कौमदी ( छः खंडों में)आदि प्रमुख महत्वपूर्ण कृतियाँ है।हे प्रभो आंनद दाता ज्ञान हमको दीजिए लीजिए हमको शरण मे हम सदाचारी बने।।भारत के हिंदीभाषी क्षेत्र के अभी विद्यालयों में बच्चों विद्यार्थियों को प्रार्थना कराई जाती थी।।सम्मान--- पण्डित रामनरेश त्रिपाठी जी को उनकी राष्ट्र सेवा या हिंदी साहित्य की असाधारण अनुकरणीय योगदान एव सेवा के लिए उनके जीवन काल मे या बाद में सरकार शासन प्रशासन द्वारा कभी कोई पुरस्कार या सम्मान नही प्रदान किया गया है।सिवा इसके की उनकी स्मृति में पण्डित राम नरेश स्मृति सभागार सुल्तानपुर में है जिसे देखकर वर्तमान  तथा हिंदी प्रेमी एव राष्ट्रभक्त पण्डित राम नरेश त्रिपाठी जी के द्वारा जीवन भर किए गए राष्ट्र सेवा एव हिंदी साहित्य के लिए अविस्मरणीय योगदान पर पड़ी मोटी धूल कि परत से पण्डित राम नरेश जी कि आभा प्रतिबिंबित हो जाती है जो हिंदी साहित्य के वर्तमान पीढ़ी को सोचने को विवश करता है।।निर्वाण--पण्डित राम नरेश त्रिपाठी जी ने सोलह जनवरी सन उन्नीस सौ बासठ को बहत्तर वर्ष कि आयु में अपनी कर्म भूमि प्रयाग राज में अंतिम सांस लिया।वास्तव में पण्डित राम नरेश त्रिपाठी जी का जीवन एक ऐसा जीवनदर्शन है जिसमें संघर्ष उतार चढ़ाव तप का उत्कर्ष है निष्ठा समर्पण राष्ट्र सेवा हिंदी साहित्य कि निःस्वार्थ सेवा एव राष्ट्र निर्माण के लिए सारगर्भित संदेश देता अपने अतीत से प्रत्येक भरतीय को राष्ट्रीयता के प्रति जबाबदेह बनाने का संदेश देते हुए दायित्वबोध एव कर्तव्यबोध के जागरूक करता हिंदी साहित्य कि विनम्र शौम्य पुकार है जिसे विस्मृत करना सर्वथा असम्भव है विशेषकर युवा पीढ़ी एव विद्यार्थियों के लिए।।

  नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।