Sathiya - 123 in Hindi Love Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 123

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

साथिया - 123













मनु ने सांझ को ले जाकर अक्षत के कमरे में  बेड  पर बिठाया  और उसका  घूंघट नीचे कर दिया तो सांझ ने  मनु की तरफ देखा। 

"आंटी ने कहा है कि इसी तरीके से  बैठना  और जब अक्षत आएगा तब वही घूंघट  खोलेगा।" मनु बोली। 

" मां ने ऐसा कहा..??" सांझ बोली। 


मनु मुस्करा  दी।

" अरे मैने कहा  है..!! इतना घबरा क्यों रही हो?"  मनु ने सांझ के चेहरे पर आते भाव देखकर  कहा  तो  सांझ ने  नजर झुका ली। 

मनु ने  उसका हाथ अपनी  हथेलियां में  थाम लिया  और हल्के से  थपका। 

" तुम और अक्षत तो  सालों  से एक दूसरे को जानते हो। एक दूसरे से प्यार करते हो। एक दूसरे  पर विश्वास करते हो। फिर यह घबराहट तो ठीक नहीं है। विश्वास रखो अपने जज साहब  पर वह गलती से भी  तुम्हे हर्ट नहीं कर सकते।" मनु ने कहा तो सांझ ने  पलके उठाकर उसे  देखा। 


"समझ रही हूं मैं तुम्हारी हालत और परिस्थिति भी..!! बहुत लंबा समय  अलग रहे हो तुम लोग
पर एक बात हमेशा अपने मन में रखना साँझ  भाभी..!! आप  फिजिकलि  भले दूर थी पर अक्षत के दिल से कभी दूर नहीं हुई। एक-एक दिन एक-एक पल उसने आपको याद किया है।  तुम्हे  महसूस किया है और तुम्हारा इंतजार किया है। इसलिए अपने मन में बिल्कुल भी कोई भी बात मत  रखो। आज से तुम  लोगों की जिंदगी की नई शुरुआत है। खुश  रहो और एक दूसरे को प्यार  दो ताकि तकलीफों के निशां और बुरी यादें सब मिट सकें। Bइसके अलावा और कुछ भी  सोचने की जरूरत नहीं है।" मनु ने  सांझ को समझाया और फिर चली गई। 

सांझ  के दिन में अभी भी अजीब सी बेचैनी थी। 

तभी अक्षत  के आने की आहट  हुई  और सांझ के   दिल की धड़कनें  और भी तेज हुई और हाथ ठंडे होने लगे। 

अक्षत ने  दरवाजा लॉक किया और बेड पर सिकुडी  बैठी  सांझ को देखा। 

उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई और वह आकर  सांझ  के पास बैठ गया। 

उसने  हौले से  सांझ का हाथ अपनी हथेलियां में थामा और उसे समझते  देर नहीं लगी कि सांझ  बेहद घबरा रही है। 

अक्षत ने  उसके हाथ को मजबूती से पकड़ा और फिर उसके चेहरे से घूंघट हटाया। 

सांझ की   पलकें  झुकी हुई थी। 

" क्या हुआ सांझ  इतना नर्वस क्यों हो रही हो.???" अक्षत ने कहा।

सांझ  ने कोई जवाब नहीं दिया। 

"मेरी तरफ देखोगी भी नहीं?" अक्षत  ने कहा तो सांझ  ने  पलकें उठाकर उसकी तरफ देखा। 

" ये खूबसूरत निगाहें अब हर रोज मेरी आँखों मे झांकेगी इसी पल का कबसे इंतजार था।"
अक्षत ने उसकी गोद में सर रख  लिया और  बिस्तर पर लेट गया। 

" तो फाइनली आज  हम हमेशा के लिए एक हो गए।  अब  हमारे बीच कोई कभी नहीं आएगा।" अक्षत ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा। 


साँझ ने  कोई जवाब नहीं दिया। 

"क्या हुआ?"  अक्षत ने फिर से पूछा। 

" कुछ नहीं  जज साहब..!!" सांझ धीमे से  बोली पर उसकी आवाज में हल्का सा कंपन था।।


अक्षत उठ कर बैठा और उसके चेहरे को अपनी हथेलियां के बीच थाम लिया। 

"मुझे नहीं बताओगे कि किस  बात से परेशान हो?" अक्षत बोला  तो साँझ ने  उसकी आंखों में देखा। 

"पता नहीं  जज साहब..!!  मैं  बहुत खुश हूं आज। आप मेरे साथ हो यही सपना मैंने जाने कितनी बार देखा है। पर पता नहीं क्यों थोड़ा सा बेचैनी हो रही है मुझे।" सांझ   ने कहा।


अक्षत उसके पीछे आकर बैठा और उसे पीठ की तरफ से  अपने सीने से टीका लिया और उसकी  वैली  पर अपने दोनों हाथ रख लिए। 


" अब कैसा महसूस  हो  रहा है?" अक्षत ने  धीमे  से उसके कंधे पर चेहरा  टिकाते हुए  कहा। 

सांझ ने कोई जवाब नहीं दिया। 

"अब तो बेचैनी नहीं हो रही ना?? मेरा साथ और एहसास सुकून देता है न  तुम्हें??" अक्षत ने कहा तो  सांझ  ने  पलट कर उसकी तरह देखा और फिर  गर्दन  हिला  दी। 

" जी जज साहब..!! आपका साथ हमेशा सुकून देता है।" 

"सारी बेचैनी सारे  डर को एक तरफ रख दो। अब तुम मेरे पास हो, मेरे करीब मेरी बाहों में और यहां पर तुम्हें हवा भी मेरी इजाजत के बिना नहीं छू सकती।" अक्षत ने उसके कान  के पास अपने होंठ ले जाकर  धीमे  से कहा तो सांझ  ने अपनी आंखें बंद ली। 

"हर पुरानी बात को भुला दो आज के दिन और याद रखो तो सिर्फ एक बात की तुम अपने  जज साहब के पास हो। मेरी  मिसेज चतुर्वेदी मेरी बाहों में है और इस समय मैंने सब कुछ भुला दिया है। सिर्फ एक ही बात याद है मुझे कि तुम मेरी हो सिर्फ मेरी। और मैं हमेशा से सिर्फ तुम्हारा था और तुम्हारा ही रहूँगा।" अक्षत ने वापस से उसकी तरफ देखकर कहा और उसके दुपट्टे को कंधे से उतर कर एक साइड रख दिया। 



सांझ की आंखें  अभी भी बन्द थी और वो अक्षत के सीने से टिकी हुई थी।


" बहुत लम्बा इंतजार किया है मैंने  सांझ तुम्हे पाने तुम्हे अपना बनाने के लिए..!! मेरे  खामोश  आंसुओं के गवाह  है ये पिलो जिन  पर सिर  रख तुम्हारे लिए तड़पा हूँ मैं..!!" अक्षत ने भारी आवाज से कहा तो सांझ ने आँखे खोल उसे देखा। 


" अनिगिनित रातों को बिना नींद के बिताया है ये सोचकर कि तुम कैसे जा सकती हो मुझ से दूर??" 

"मै खुद से नही गई थी जज साहब..!! आप जानते है मैं कभी आपसे दूर अपनी मर्जी से नही जा सकती।" 

" जानता हूँ..!  तभी तो विश्वास था कि तुम जरूर मिलोगी और मैं बस ढूंढता रहा।" 

" थैंक्स जज साहब मुझे इतना प्यार करने और मेरे प्यार पर विश्वास रखने के लिए।" साँझ ने उसकी आँखों  में देखा। 

" सिर्फ प्यार नहीं तुम इबादत हो सांझ, दीवानगी हो मेरी और तुम्हे बेहद चाहता हूँ। आई लव यू..!! " अक्षत ने उसके  उसके  हाथों की  उंगलियों में अपनी उंगलियों को उलझाया और  अपने होंठो से लगा  लिया।

सांझ की पलकें झुक गई।

" दिल है कि आज मानो काबू  में रहना ही नही चाहता..!!" अक्षत ने अपने होठों से उसकी गर्दन को स्पर्श किया तो  सांझ   की आँखे  और भी सख्ती से बंद हो गई। 

"मेरा प्यार हर दर्द मिटा देगा  सांझ  हर तकलीफ खत्म कर देगा। आई लव यू सांझ।" अक्षत बोला और उसकी बैक नॉट  जैसे ही खोलनी चाही सांझ ने  एकदम से आंखें खोली और अपनी हथेली वहां पर रख दी। 

अक्षत  ने उसकी आंखों में देखा तो सांझ ने  गर्दन ना में हिला दी। 

" क्या हुआ? " अक्षत ने  धीमे  से कहा। 

" जज प्लीज अभी नही..!!" सांझ की आंखों में डर और परेशानी  अक्षत को साफ समझ आ रही थी। 

"क्या हुआ अक्षत ने उसकी आंखों में  झांककर   कहा। 

" जज साहब..!!" सांझ अभी बोल ही रही थी कि अक्षत ने उसके  सुर्ख लबों  को अपने होठों से  कैद  कर  लिया और उसे प्यार से कुछ देर चूमने  के बाद उसका सर अपने सीने से टीका लिया। 


" क्यों परेशान है मेरी मिसेज चतुर्वेदी..??" 

" कुछ दिन जज साहब..! कुछ निशान बाकी है। वो ठीक हो जाये..!" साँझ ने नजर झुका के कहा तो अक्षत मुस्करा उठा। 


" पहले भी कहा है, मेरा प्यार सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं है  साँझ। अपने दिल की गहराइयों से प्यार किया है तुम्हे। तुम्हारी आत्मा को तुम्हारे वजूद को चाहा है। इसलिए यह छोटे-मोटे निशान से मेरे प्यार पर कोई फर्क नहीं आएगा।" 

"पर  जज साहब..!!"  सांझ ने  फिर से कहना  चाहा। 

"तुम्हें  छूने, तुम्हें प्यार करने और तुम्हें हर तरीके से देखने का मुझे हक है सांझ मुझे  और विश्वास दिलाता हूं मेरा प्यार तुम्हारे जख्मों पर दर्द नहीं बल्कि मरहम का काम करेगा।" अक्षत ने उसकी आंखों में देखते हुए  कहा। और उसी के साथ लाइट्स ऑफ करके हल्की रोशनी का  नाइट बल्ब  चालू कर दिया और सांझ  की आंखों में देखा। 

" हर निशान तश्वीर मे देख चुका हूँ और डॉक्टर ने ये भी बताया कि अभी भी वहाँ लोशन और जैल रोज लगना जरूरी है ताकि जल्दी ठीक हो।" 

" मैं...!! मैं लगा  लुंगी। मैं रोज लगाती हूँ"सांझ ने सुर्ख होते चेहरे के साथ कहा। 

" हाँ अब तक..!! लेकिन अब मैं हूँ। और मेरा  तुम पर और  तुम्हारा मुझ पर पूरा अधिकार है सांझ।" वह धीमे से उसके कपड़े  साइड  करते हुए बोला। 


शरीर पर जख्मों के कुछ हल्के कुछ गहरे निशान देख आँखे नम हो गई।


" कहा था न जज साहब..! अभी मत..!!" सांझ की आवाज भर्रा उठी और चेहरे  पर दर्द और शर्मिंदगी के भाव आ गए।


" शी...ई ई..!!" अक्षत ने उसके होंठो  पर उंगली रखी और  उसके माथे पर होंठ रख हौले से किस किया।

साइड टेबल  पर रखा जैल उठाया और उसके निशानों पर हल्के हाथ से रब करने लगा। 

" सब सही हो जायेगा। और इन सबके  लिए न दुखी होना है न शर्मिंदा..!! यह एक्सीडेंट यह दुर्घटना मेरे साथ  हुई  होती और मेरे शरीर  पर  निशान आए होते तो क्या तुम मुझे नहीं  देखती..??" अक्षत ने कहा तो  सांझ   ने भरी  आंखों से उसे देखा। 

"नहीं जज साहब..!! आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं..??" सांझ धीमे से  बोली। 

" फिर मेरे प्यार पर  शक  क्यों?? और ये दर्द और हैजिटेशन क्यों..??" अक्षत ने  कंधे पर चमकते स्कार पर होंठ रख के कहा। 


" नहीं मैं शक नहीं कर रही..!! बस मुझे लगा कि आज की रात आपको अच्छा नहीं लगेगा...!"


" अभी वैसे भी जो तुम सोच रही मेरा वो इरादा नही..!! पहले  कुछ काम करने है जरूरी।  एक बार तुम्हारे गुनाहगरों को उनका अंजाम दे दूँ फिर  तुम्हे अपना बना  लूंगा और तब तक तुम भी सहज हो जाओगी..!! पर तब तक अगर मुझे खुद से दूर करोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। और अगर तुम मुझे अपना समझ कर खुद पर  अधिकार   दोगी तो मुझे सुकून मिलेगा।" अक्षत ने उस  पर  झुककर कहा।

" सांझ की नजरे झुक गई।

" और  तुम्हारा सब  कुछ मेरा अपना है साँझ  और अपनी किसी भी चीज से किसी को  बुरा कैसे लग सकता है..??" अक्षत ने उसके पास लेट उसे  सीने से लगाते हुए  कहा  तो सांझ  ने  आंखें बंद कर ली और अक्षत का हाथ अपनी खुली पीठ के ऊपर रख दिया। 

अक्षत के चेहरे की मुस्कुराहट बड़ी हो गई और उसने धीमे से उसके कपड़े सही किये और नॉट वापस बांध उसे बाहों में समेट  लिया। 

" थैंक्स जज साहब. ! एंड आई लव यू..!!" सांझ ने उसकी पीठ पर हथेलियां कसते हुए कहा। 

" गुड नाइट मिसेज चतुर्वेदी..!" 

" गुड नाईट जज साहब..!" 


क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव