Sunee Haveli - Part - 10 in Hindi Crime Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सूनी हवेली - भाग - 10

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 149

    ભાગવત રહસ્ય-૧૪૯   કર્મની નિંદા ભાગવતમાં નથી. પણ સકામ કર્મની...

  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

Categories
Share

सूनी हवेली - भाग - 10

यशोधरा के पिताजी की तबीयत तो ठीक ही नहीं हो रही थी। इस परिस्थिति में उसने सोचा कि वह कुछ दिनों के लिए बच्चों के पास जाकर रह ले।

यह सोच कर यशोधरा ने अपनी माँ से कहा, "माँ मैं कुछ दिनों के लिए हवेली वापस जाना चाहती हूँ। यहाँ काफ़ी समय हो गया है, मुझे बच्चों की बहुत याद आ रही है।"

माँ ने कहा, "ठीक है बेटा तुम अपने ड्राइवर के साथ कार में चली जाओ।"

"माँ आप मुझे फ़ोन करते रहना मुझे पापा की चिंता लगी रहेगी। मैं 10-15 दिन रहकर वापस भी आ जाऊँगी।"

दरअसल उसे अपने पति की भी बहुत याद आ रही थी। उसने सोचा कि आज ही फ़ोन करके दिग्विजय को बता देती हूँ, फिर उसने सोचा कि नहीं-नहीं, उसे सरप्राइज दूँगी।

यशोधरा खुशी-खुशी अपने मायके से ससुराल आने के लिए निकली लेकिन रास्ते में कार खराब हो जाने के कारण उसे सुधारने में बहुत समय लग गया और रात हो गई। इसलिए यशोधरा आधी रात को हवेली पहुँची।

चौकीदार भोला ने हवेली का द्वार खोलते हुए कहा, "अरे मालकिन आप…? इतनी रात को…?"

यशोधरा ने कहा, "हाँ भोला काका, रास्ते में कार खराब हो गई थी, इसलिए देर हो गई।"

भोला घबरा गया क्योंकि इतने दिनों में भले ही और कोई ना समझ पाया हो लेकिन बूढ़े हो चुके भोला काका हवेली में चल रहे पाप की पूरी कहानी जानते थे। वह थोड़ा घबराये परंतु फिर सोचा अच्छा है मालकिन को पता तो चलना ही चाहिए। तभी उस कलमुँही को यहाँ से मुँह काला करके निकाला जाएगा।

जैसे ही यशोधरा हवेली में दाखिल हुई तो उसने देखा कि अनन्या के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था और वहाँ हल्की रौशनी की लाइट भी जल रही थी। उसने सोचा वह बहुत थक गई है अनन्या से कहकर एक प्याली चाय बनवा लेती हूँ। इसी सोच में डूबी यशोधरा उसके कमरे में गई। दरवाज़ा तो बस यूं ही उड़का हुआ था। अंदर जाकर उसने देखा कि बिस्तर पर कोई नहीं था। वह हैरान हो गई और सोचने लगी कि अनन्या कहाँ गई होगी। उसके कमरे के बाथरूम का दरवाज़ा भी बाहर से बंद था।

तब यशोधरा ने बाहर आकर भोला को आवाज़ लगाई, "भोला काका!"

उन्होंने उत्तर दिया, "जी मालकिन, आया।"

"भोला काका, यह अनन्या कहाँ गई है?"

भोला काका उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए और नीचे सिर झुका कर खड़े हो गए।

"क्या हुआ काका? आप चुप क्यों हैं? सब ठीक तो है ना?"

"नहीं मालकिन, कुछ भी ठीक नहीं है। उस डायन ने आपको धोखा दिया है।"

"क्या…? यह आप क्या कह रहे हैं काका?"

"अंदर जाकर देख लीजिए मालकिन, आपको स्वयं ही सब समझ में आ जाएगा, पर अपनी आंखें बंद रखना क्योंकि आपसे देखा ना जाएगा।"

“क्या बक रहे हो काका,” कहते हुए यशोधरा अंदर आ गई।

वह जैसे ही अपने कमरे के पास गई। वहाँ पहुँचते ही उसे अनन्या की चूड़ियों की खनखनाहट की आवाज़ आने लगी। अंदर से गर्म सांसों की आवाज़ भी साफ-साफ सुनाई दे रही थी। यशोधरा ने अपनी कमर से चाबी का गुच्छा निकाला और कमरे का दरवाज़ा खोला तो अंदर जो दृश्य चल रहा था उसे देखकर उसने अपनी आंखें बंद कर ली।

उस समय तो वह दोनों उस चरमोत्कर्ष पर थे जहाँ से पूर्ण सुख प्राप्ति के पहले वह वापस लौट ही नहीं-सकते थे।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः