Shuny se Shuny tak - 80 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 80

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शून्य से शून्य तक - भाग 80

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  बड़ा कठिन दिन था| पूरा वातावरण बोझिल, तैरता हुआ सन्नाटा और बेबसी का माहौल !घर में अनिकेत की मम्मी, महाराज की पत्नी, छोटे रघु की माँ के साथ वहाँ के स्टाफ़ की पत्नियाँ भी पहुँच गईं थीं| सब थे लेकिन जैसे उदासी की चुप्पी ने पूरे घर को काले आवरण में समेट लिया था| 

  अनिकेत की मम्मी ने घर के स्टाफ़ के साथ मिलकर जो उनकी समझ में आया, वह सब किया| आशिमा, रेशमा को संभाला| कई बार आशी के कमरे को भी खटखटाया लेकिन व्यर्थ ही रहा| आशी के कमरे में से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी| उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें?फिर भी उस समय बड़ी थीं वे, उन्हें ही जैसे तैसे परिस्थितियों को संभालना था| 

 आशिमा अपनी सास को अपने कमरे में ले गई, साथ ही रेशमा को भी| वह उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी और वहीं सबने स्नान आदि किया| 

  लगभग दो घंटे में महाराज ने सब जगह धुलाई करवाई, तब तक सेठ दीनानाथ को अंतिम द्वार तक पहुंचाने वाले लोगों की गाडियाँ भी आने लगीं थीं | महाराज ने लॉन में कुर्सियाँ लगवा दीं थीं| रघु हाजिर था , सबके मुँह-हाथ धुलवाने के बाद महाराज और रघु चाय लेकर गए| 

  अनिकेत की मम्मी आशिमा, रेशमा के साथ लॉन में आ गईं थीं| उन्होंने सबसे चाय लेने का आग्रह किया| कुछ लोगों ने उनके सम्मान के कारण चाय ले ली थी लेकिन कुछ हाथ जोड़कर उठ खड़े हुए| 

  मनु की स्थिति बहुत अजीब थी| उसने अपना फ़ोन बंद कर दिया था| अब घर आकर जब नहाने गया तब ख्याल आया कि अनन्या हॉस्पिटल में है| उसने झट से फ़ोन खोला और देखा कि अनन्या की मम्मी और डॉक्टर के कुल मिलाकर सत्रह कॉल्स थे| लगभग पाँच /छह घंटे से मनु उन लोगों के संपर्क में नहीं था| 

 उसे महाराज और स्टाफ़ ने बताया था कि लगभग सभी के पास बहुरानी की मम्मी के फ़ोन आए थे लेकिन महाराज के मना करने से किसी ने उनके कॉल्स नहीं उठाए थे| आखिर क्या बताते उन्हें?सबकी स्थिति बड़ी अजीब मुश्किल थी| 

“आँटी ! क्या करूँ?”मनु बहुत रूआँसा था| वह आशी के पास जाने का , उससे मिलने का साहस भी नहीं कर पा रहा था| 

“तुमको हॉस्पिटल जाना चाहिए बेटा—उन लोगों को कुछ बताया नहीं है तो चिंता होगी न!”अनिकेत की मम्मी ने मनु को समझाया| 

“अनिकेत ! तुम और बाबा घर जाकर फ़्रेश हो जाओ| बाद में सबके कपड़े लेकर आ जाना| अभी हम लोग यहीं रहेंगे| फिर देखते हैं क्या होता है?”

  अनिकेत की मम्मी ने अनिकेत और अपने पति को भी ज़बरदस्ती चाय पिलवा दी थी| कब तक कोई बिना कुछ खाए-पीए रह सकता है?जीवन का यही रवैया है। आना और जाना, इससे आगे कुछ नहीं| फिर भी हम जीवन को नरक बनाने में क्यों तुले रहते हैं?उन्होंने एक लंबी साँस खींची, उनका दिमाग आशी में पड़ा था| बेशक वह दरवाज़ा नहीं खोल रही थी परंतु कितनी अकेली होगी| कुछ तो सोचना होगा, उसके लिए !

“माधो, बेटा तुम और मनु दोनों चाय के साथ कुछ ले लो, जरूरी है---”उन्होंने लगभग रोते हुए कहा| 

“आँटी ! आशी---”

“मनु, मैं हूँ यहाँ पर, थोड़ी देर में देखती हूँ उसको| अभी तुम हॉस्पिटल जाओ---और देखो, ध्यान रखना अभी अनन्या को कुछ नहीं बोलना है| ”उन्होंने कहा तब मनु को एक बार फिर ख्याल आया कि ये बड़े ज़िंदगी में न हों तब ज़िंदगी कैसे जी पाएं हम लोग ?अपने माता-पिता के बाद दीना अंकल की देखरेख में सारे काम होते रहे थे| अब---?? 

“मैं आपके साथ चल रहा हूँ---ड्राइवर को बुला दिया है| ”माधो ऐसे ही मनु के सामने खड़ा था जैसे अपने मालिक के सामने हरदम बना रहता था| 

इस समय वह काफ़ी शांत लग रहा था जैसे उसके ऊपर और भी बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई हो| 

  हॉस्पिटल में पहुँचकर अनन्या की मम्मी की बेचैनी से मनु और परेशान हो गया| मनु को देखकर उनकी जान में जान आ गई थी| 

“मनु बेटा, ठीक है न सब , कोई खबर नहीं, कहाँ हैं सब? उन्होंने चिंता से कई प्रश्न उंडेल दिए| 

“सब ठीक है मम्मी ---”अपने को संभालते हुए मनु ने कहा| 

“अनन्या---?”मनु ने तुरंत बात बदल दी| 

“वह ऑपरेशन थियेटर से बाहर आई है, कमरा ऐलौट हो गया है उसे , देख भी सकते हो---”

“ठीक है न दोनों---?”उसे यह भी ध्यान नहीं रहा था कि पूछ तो ले कि अनन्या ने बेटी को जन्म दिया है या बेटे को?

  वह अनन्या की मम्मी के साथ कमरे में पहुँच गया था जहाँ उसने अनन्या के पास के छोटे झूले में लेटे हुए एक नाज़ुक से प्यारे बच्चे को देखा लेकिन फिर भी नहीं पूछा कि बेटा है या बेटी?इस बात से अनन्या की मम्मी को कुछ अजीब भी लग रहा था| 

“आप बिटिया के पापा बन गए हो मनु---”मनु के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आई| बेटी के झूले की ओर झाँककर वह अनन्या के पास आ गया और कोमलता से उसका हाथ सहलाने लगा| भारी मन में वह सोच रहा था कि वह कैसे परिस्थिति को संभालेगा?

  अनन्या की आँखों में प्रश्न भरे थे लेकिन उसने कुछ नहीं पूछा या कहा| और सब तो उसको मालूम नहीं था लेकिन आशी को संभालना एक टेढ़ी खीर से कम न था, वह यह बात तो जानती ही थी| 

“आशिमा दीदी, दूसरी अनन्या आ गई है---”माधो कमरे से बाहर जाकर आशिमा के फ़ोन पर सूचना दे रहा था|