Nakal ya Akal - 33 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | नक़ल या अक्ल - 33

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नक़ल या अक्ल - 33

33

डर

 

सोमेश  घर पहुँचा तो उसने देखा कि बुआ जी चारपाई पर आँख बंदकर लेटी हुई  हैI सोमेश ने उन्हें  हल्के  हाथ से हिलाते हुए कहा,

 

“बुआ जी !! चाचा जी शादी में बुला रहें हैं I बुआ जी तो अपनी सुधबुध में ही नहीं है, उन्हें तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा है इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा तो वह ज़ोर से बोला, “बुआ जी! चाचा जी शादी में  बुला  रहें हैI” अब बुआ जी ने आँख खोली और उसे देखते हुए बोली, “मैं पैदल नहीं जा सकतीI” “कोई नहीं बुआ जी, मैं रिक्शा लेकर आया हूँI” वह अपने बालों में फेरते हुए बोली, “ठीक है, चलो! रिक्शे में,” I अब वह बड़बड़ाती हुए जा रही है, “पता नहीं, मैंने ऐसा क्या खा लिया था, जिसके वजह से मेरी यह हालत हुई हैI"

 

किशोर को  जल्दी-जल्दी  फेरे लेते हुए देखकर, नंदन ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “भाई तो कुछ ज़्यादा  ही उतावले  दिख रहें हैI” यह सुनकर  नन्हें  भी हँसने  लगा तो वहाँ  बैठा लड़कियों का समूह भी उसका मज़ाक उड़ाने लगा तो वहीं  बृजमोहन की बात का ज़वाब लक्ष्मण प्रसाद ने देते हुए कहा, “जी देखो!! आ  सकी तो आ जाएगीI” अब पार्वती  ने धीरे से पति के कान  में  कहा, “हो सकता है, इनकी बहन की आख़िरी इच्छा हो कि वह यह शादी देखे, तभी उन्हें बुला रहें हैंI” वह भी अपनी पत्नी की बात  से  सहमत है I

 

 

अब पंडित जी की बात  सुनकर कि “फेरे संपन्न  हुए,” सब दूल्हा दुल्हन पर फूल  बरसाने लगेंI किशोर की नज़र दरवाजे पर गई  तो उसने देखा कि  सोमेश  और बुआ जी कोई अता-पता नहीं हैI  तभी पंडित जी ने उसे राधा की माँग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहनाने के लिए कहा तो उसकी आँख  के सामने उसका वो बुरा सपना आ गया, तभी सोमेश को उसने शमियाने के अंदर प्रवेश करते देखा तो उसके पसीने छूटने लगेंI

फिर पंडित जी की आवाज़ गूँजी  कि “वर, वधू की मांग में सिंदूर भरे” और फिर किशोर ने फटाफट राधा की मांग  में  सिंदूर भरा और गले में  मंगलसूत्र  पहना दियाI “अब दोनों वर-वधु बड़ों का आशीर्वाद लें,” यह सुनते ही वे दोनों खड़े हुए और अपने माँ  बाप  का आशीर्वाद लेने के साथ-साथ उन्होंने वहाँ  बैठे गॉंव के बुजुर्गो का भी आशीर्वाद लियाI अब किशोर ने देखा कि सोमेश तो अकेला ही अंदर आ गया और उसे अकेला आया देखकर, लक्ष्मण प्रसाद उसके पास गए और उससे पूछने लगें,

 

क्या हुआ? बहनजी नहीं आई?

 

वो मेरे साथ आने के लिए रिक्शे पर तो चढ़ी थी, मगर फिर उनका पेट गड़बड़ाने लगा तो मुझे उन्हें  वापिस घर छोड़ना पड़ाI लक्ष्मण प्रसाद को उनकी चिंता होने लगीI

 

ठीक है, मैं  उनको देखकर  आता  हूँI

 

चाचा जी! मैंने  उन्हें दवाई दे दी है, वह अब सो रही हैI

 

दवाई  ? कौन सी दवाई ?

 

अरे !! मेरी अम्मा की भी ऐसी हालत  हो गई  थीं, डॉक्टर ने उनको एक दवाई लिखकर  दी थीं, वही घर  में  रखी  थींI

 

यह तो तूने बहुत अच्छा कियाI उन्होंने उसके सिर पर हाथ  फेराI

 

जैसे ही किशोर को यह पता चला कि बुआ जी तबीयत खराब होने की वजह से नहीं आ पाई और न ही आएगी तो उसके चेहरे पर ख़ुशी झलकने लगी, मगर अब भी खतरा टला नहीं है, शादी तो हो गई है पर विदाई  नहीं हुईI उसे याद है एक रिश्तेदार की शादी में वह अपनी अम्मा के साथ गया था, वहाँ पर दहेज़ को लेकर इतना हंगामा हुआ कि लड़के वालो ने डोली ले जाने से मना कर दिया और लड़की अपने मायके में  ही रुक गई और फिर कुछ महीनो बाद, पंचायत के सामने वकील ने उनका तलाक करवायाI अब तो  उस लड़का लड़की  की कहीं और शादी हो चुकी हैI यह सोचकर तो उसकी भूख ही मर  गई, मगर तभी उनके  संगे सम्बन्धी उन्हें  खाना खिलाने ले जाने लगे और बाकी सब ने भी अपनी-अपनी थाली  उठा ली और हँसी मज़ाक के माहौल में खाने का कार्यक्रम शुरू  हो गयाI

 

सोनाली, रिमझिम और बाकी  सहेलियों के साथ खाना खा  रहीं  हैI तभी वहाँ पर राजवीर भी हरिहर और रघु के साथ आ गया और वहीं पास रखी कुर्सी पर बैठते  हुए बोला,

 

सोना  किशोर के जूते चुरा  लिए?

 

उसने  हँसते हुए ज़वाब दिया,  “सुमित्रा ने चुरा लिए हैंI”

 

इकीस हज़ार से कम एक पैसा न माँगनाI

 

“हम तो इकतीस माँगने की सोच  रहें हैं I” वह इतराते हुए बोलीI अब नन्हें भी वहीं आकर बैठ गया तो राजवीर मुँह बनाकर चला गयाI वह उसे देखते हुआ  बोला, “सोना आज तो परी लग रही  होI”

 

तुम भी अच्छे लग रहें होI सोना ने इतराते हुए कहाI

 

तुम हमारे साथ नाचे क्यों नहीं?

 

अभी डॉक्टर ने पैर पर ज़ोर देने के लिए मना किया हैI तभी सोना की सब्ज़ी खत्म हो गई तो वह अपनी थाली से उसे सब्ज़ी देने लगाI रहने दो, मैं ले आऊँगीI

 

अरे नहीं!! तुम हमारी  मेहमान हो, तुम्हारी खातिरदारी करना तो हमारा फ़र्ज़ हैI

 

अच्छा !! फिर और क्या सोच रखा है?

 

सोचा  तो बहुत कुछ है, उसने सोनाली की आँखों में  देखते  हुए कहा  तो रिमझिम   नन्हें की आँखों में  सोना के लिए बेइन्तहा प्यार देखकर सोचने लगी, “सोना  कितनी खुशकिस्मत है कि  उसे नन्हें जैसा लड़का इतना प्यार करता हैI”

 

 

खाने का कार्यक्रम भी पूरा हो गया और तभी सुमित्रा चिल्लाते हुए बोली, “सोना, रिमझिम दीदी खाना खा लिया है तो इधर आ जाओI जीजाजी जूते के पैसे नहीं दे रहेंI सोना अपनी सहेलियों के साथ गई तो नन्हें भी अपने दोस्तों के साथ वहीं पहुँच  गयाI

 

किशोर सुमित्रा को समझाते हुए कह रहा है,  "ग्यारह हज़ार ले लोI "

 

नहीं जीजू! इकीस हज़ार से कम नहीं लेंगेI अब सभी लड़कियाँ उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगी  तो नन्हें और उसके दोस्त ग्यारह करने लगेंI तभी राधा की माँ पार्वती  बोली, “सुमित्रा बिटिया! दामाद जी, जो दे रख लें, आख़िर तेरी बहन को इतना अच्छा घर और वर मिला है, जब इन्होंने कोई दहेज़ की बात नहीं की तो हमें भी ज़िद नहीं करनी चाहिएI पास खड़ी सरला के तो कान खड़े हो गए तो वहीँ किशोर के चेहरे के हावभाव बदल गए, राधा को खोने का डर उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आने लगाI