Bairy Priya - 5 in Hindi Love Stories by Wishing books and stories PDF | बैरी पिया.... - 5

The Author
Featured Books
  • શ્રાપિત પ્રેમ - 18

    વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે...

  • ખજાનો - 84

    જોનીની હિંમત અને બહાદુરીની દાદ આપતા સૌ કોઈ તેને થંબ બતાવી વે...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 69

    સાંવરીએ મનોમન નક્કી કરી લીધું કે, હું મારા મીતને એકલો નહીં પ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 51

    નિતુ : ૫૧ (ધ ગેમ ઇજ ઓન) નિતુ અને કરુણા બીજા દિવસથી જાણે કશું...

  • હું અને મારા અહસાસ - 108

    બ્રહ્માંડના હૃદયમાંથી નફરતને નાબૂદ કરતા રહો. ચાલો પ્રેમની જ્...

Categories
Share

बैरी पिया.... - 5

संयम शिविका के नजदीक बढ़ने लगा तो शिविका पीछे की ओर जाने लगी । उसका सीना बोहोत तेज़ी से अंदर बाहर जाने लगा । संयम ने उसकी चेस्ट की तरफ देखा । शिविका ने उसकी नज़र देख ली थी । शिविका का दिल जोरों से धड़कने लगा । ।


संयम ने शिविका की पीठ पर हाथ रखकर उसे अपने बेहद करीब खींच लिया ।


शिविका के हाथ उसके सीने पर चले गए । शिविका ने मुट्ठियां बनाई हुई थी । शिविका सहमी हुई सी उसे देखने लगी । संयम ने शिविका के होंठों को देखा । और फिर अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ लिए । शिविका की आंखें हैरानी से बड़ी हो गई ।


संयम ने आंखें बंद कर ली और उसके होठों को smooch और suck करने लगा । संयम के दोनो हाथ शिविका की कमर पर लिपट गए । दोनो की चेस्ट आपस में टच हो रही थी । संयम धीरे धीरे बोहोत पैशनेटली kiss करने लगा था और उसके हाथ शिविका की पीठ पर भी चलने लगे थे । शिविका की पीठ पर उसके बाल बिखरे हुए थे ।




शिविका को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी । पर संयम इन सब से बेपरवाह खोए हुए उसे kiss किए जा रहा था ।


Kiss करते हुए ही संयम ने शिविका के बालों को उसकी पीठ से हटाकर एक तरफ कर दिया और उसकी चोली की डोर खोल दी । शिविका ने एक हाथ से संयम के कंधे को कसकर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपने गले से पास से अपनी चोली को पकड़ लिया ।


10 मिनट बाद शिविका की सांसें उखड़ने लगी थी तो संयम ने अपने होंठ उससे अलग किए । संयम ने उसके चेहरे को देखा तो शिविका के गाल लाल पड़ चुके थे । वो गहरी सांसें ले रही थी । शिविका के बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे और आंखों में एक डर था ।


संयम ने उसके बालों को मुट्ठी में भरते हुए कहा " मेरे बिस्तर पर सोने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी... । " बोलतेे हुए उसने शिविका के बालों पर पकड़ कस ली ।

आह करके शिविका की सिसकी निकली और उसने अपने बालों पर हाथ रख लिया । संयम ने उसके बालों को छोड़ा और उसे बाजू से पकड़कर बेड से नीचे झटक दिया ।


शिविका लड़खड़ा गई और गिरते गिरते बची ।


संयम उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए सख्त आवाज में बोला " माना कि हमारी first wedding night है पर इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम मेरे करीब आने के लिए मेरे बेड पर लेट जाओ.... । अरे माना मर रही होगी तुम लेकिन... मुझे नही बर्दाश्त कि कोई मेरे बेड पर आकर लेटे । So don't cross your bloody limits...... ।


और वैसे भी संयम की एक kiss काफी है तुम्हारी वेडिंग नाइट को स्पेशल बनाने के लिए । आइंदा मेरे बेड पर नज़र मत आना । फिर चाहे तुम सोफे पर सो जाओ या जमीन पर पड़ी रहो "। बोलकर संयम ने कमरे से attached एक दरवाजा खोला और अंदर चला गया ।


शिविका आंखों में आसूं लिए अपनी चोली पकड़े खड़ी रही । शिविका ने आंखें साफ की और डोरी को बांधने लगी लेकिन उससे वो नहीं बंधी ।


आखिर में शिविका ने हारकर डोरी को क्रॉस करके आगे की ओर लाकर गले के पास बांध लिया और बालों को पीठ पर फैला दिया ।


कमरे में एक स्लाइड डोर लगा हुआ था आधा खुला हुआ था । सामने शिविका को बालकनी दिखाई दी । शिविका स्लाइड डोर को थोड़ा और खोलकर बाहर आ गई ।


गहरी सांस लेते हुए उसने खुद को शांत किया । फिर आसमान की ओर देखने लगी । कुछ ही देर में वहीं बैठे उसे नींद आ गई ।


संयम जब कपड़े पहन कर वापिस कमरे में आया तो उसे शिविका कहीं नजर नहीं आई । स्लाइड डोर को खुला देखकर वो बाहर आया तो शिविका वहीं दीवार से टेक लगाए सो चुकी थी । उसके चेहरे पर आंसुओं के सूख जाने से लकीरें बनी हुई थी ।


संयम ने सिगरेट सुलगाते हुए कुछ देर उसके चेहरे को घूरा और कमरे से बाहर निकल गया ।




°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°


अगली सुबह :


शिविका की नींद पक्षियों के चहचहाने की आवाज से खुली । बालकनी की ग्रिलिंग पर नीले रंग की एक चिड़िया चहचहा रही थी । उसके अलावा भी बोहोत से पक्षियों की आवाजें आ रही थी ।


शिविका उस चिड़िया के पास आई तो वो चिड़िया वहां से उड़ गई । शिविका उदासी से उसे उड़ते हुए देखने लगी ।


" क्या अकेले उड़ना मैं भी सीख पाऊंगी... !!! " बोलते हुए शिविका ने अपने पेट पर हाथ रखा । उसे बोहोत भूख लग रही थी । तकरीबन दो दिनों से उसने कुछ नहीं खाया था ।


शिविका ने नीचे झांक कर देखा तो वो बोहोत ज्यादा ऊंचाई पर थी । नीचे देखकर ही उसके दिल की धड़कने बढ़ गई थी । उसने अपने सीने पर हाथ रख लिया ।


शिविका ने सामने देखा तो एक बोहोत बड़ा शहर था । जिसमे कई छोटी और ऊंची ऊंची इमारतें थी लेकिन जिस इमारत में वो अभी थी वह इमारत सबसे ऊंची थी । सामने दिखाई दे रहे शहर से शिविका पूरी तरह से अनजान थी । हालत उसे कहां से कहां ले आए थे ।


शिविका कुछ सोच ही रही थी कि तभी डोर नॉक हुआ । शिविका का ध्यान टूटा तो वो अपने भारी से लहंगे को उठाकर अंदर कमरे में आ गई ।


लहंगा बोहोत भारी था जिससे शिविका की कमर पर रेड मार्क्स पड़ चुके थे । अब तो उसे लहंगे को पहनकर बैठना भी बोहोत भारी लग रहा था तो चलना तो फिर भी मुश्किल का काम है ही ।


शिविका दरवाजे के पास गई तो दरवाजा खुला हुआ था । और दरवाजे पर दो हैंडबैग bag रखे हुए थे ।
शिविका ने बाहर झांका और फिर bags को उठा लिया । जैसे ही उसने bags उठाए दरवाजा एकदम से अपने आप ही बंद हो गया ।


शिविका घबराकर झटके से दो कदम पीछे हट गई । फिर एक बैग में देखा तो उसमे एक बॉक्स रखा हुआ था । दूसरे बैग में देखा तो उसमे ग्रीन कलर का कपड़ा था । शिविका ने बाहर निकाल कर देखा तो वो एक ग्रीन कलर का cropped jump suit था.... जो स्लीवलेस था , वेस्ट पर इलास्टिक थी और स्ट्रेट legs थे ।


शिविका ने दुसरे bag में रखे बॉक्स खोलकर देखा तो उसमे एक लेटर था । शिविका ने लेटर खोला तो उसमे लिखा था कि " दरवाजा 20 मिनट में खुलेेेेगाा ।जल्द्दी्द्दी से लिफ्ट से नीचे आ जाना । " ।




शिविका सोचने लग गई । क्या संयम ने ये कपड़े उसके लिए भिजवाए थे । लेकिन संयम के सिवाय और कौन भिजवा सकता था ।


शिविका ने लेटर कॉफी टेबल पर रखा और ड्रेस उठाए वाशरूम की ओर चल दी ।


करीब 10 मिनट में शिविका नहाकर बाहर आ गई । उसके बाल गीले थे तो उसने उनमें टावेल रैप किया हुआ था । ड्रेस स्माल साइज की थी लेकिन फिर भी शिविका को थोड़ी लूज थी । लेकिन वो उसमे काफी प्यारी लग रही थी । कमरे में कोई ड्रेसिंग टेबल या शीशा नहीं था । तो शिविका अपने आप को नहीं देख सकती थी ।


शिविका बाथरूम से hairdrier साथ लेकर बाहर आई थी । टावेल निकालकर उसने बालों को सुखाया और दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गई ।


Exact 20 मिनट बाद दरवाजा खुल गया ।
शिविका ने स्टेप out किया तो दरवाजा अपने आप बंद हो गया ।



शिविका ने एक झलक मुड़कर देखा और फिर लिफ्ट की ओर चल दी. ।



°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°