Yaado ki Asarfiya - 15 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 15. 9th के आखरी दिन

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यादों की अशर्फियाँ - 15. 9th के आखरी दिन

15. 9th के आखरी दिन


9th हमारे लिए सिर्फ एक कक्षा नहीं थी पर जीवन का एक खुसबूरत ख्वाब की तरह था जो हकीकत, अनुभव और ढेर सारी यादों से भरा हुआ था यह यादें जिंदगी की कई यादों में खो जाएं ऐसी नहीं बल्कि इन्हीं से जिंदगी बनती है। जैसे स्टार्टिंग में किसी को नहीं लगा था की यह सफर इतना खूबसूरत होगा। ऐसा ही लगा की जैसे अभी ही हम पहली बार क्लास में बैठे थे उन टूटे हुए बोर्ड वाले क्लास में जहां अभी भी वह टाइम टेबल जो हमारी लड़ाई का जीत का प्रतीक बन कर लटक रहा है। निशांत सर का पीरियड में अंबानी परिवार के शादी की बात या फिर हो मेना टीचर की मस्ती। हम सबसे ज्यादा मिस करेंगे उन पलों को जो हमने धुलु के साथ बिताए थे। उसकी याद के साथ ही हम हमारे सीनियर्स जो अभी 10th में थे उन्हें भी नहीं भूल पाएंगे। अंजनी, ध्रुवी , क्रिशा भी इन सभी की शैतानियां कैसे भूल सकते थे? यूं ही शुरू हुआ सफर फिर एक बार खत्म होने वाला था लेकिन जब जब इसे पढ़ा जाएगा यह फिर से शुरू होगा और ऐसे ही यह सफर चलता ही रहेगा जैसे हमारी एक्जाम चलती रहती है एक गई तो दूसरी कतार में खड़ी ही रहती है। अभी ही देख लो 9th की एक्जाम खत्म होते ही बोर्ड के 10th की एक्जाम का प्रेशर अभी से सिर पर मंडरा रहा है।

हम सब आखरी बार मिल रहे थे। अब 2 महीने के बाद मिलेंगे पर यह सभी लोग नहीं मिलेंगे और इसी का तो अफसोस था। टीचर्स में निशांत सर चले जायेंगे यह अब तय था बाकी टीचर्स में तो भूरी मेडम, मैथ्स के जय सर और नसरीन टीचर और दीपिका मेम तो निकल ही गए थे। स्टूडेंट्स में से भी अंजनी और क्रिशा नहीं रहेगी शायद।

हम सब लास्ट पेपर खत्म कर निकल रहे थे तभी हमारे क्लास में से मस्ती से चिल्लाने की आवाज़ हमारे कान पड़ी। हम सब रुक गए और देखा तो सभी बॉयज कुर्सी पर चढ़कर कुछ मज़े से फाड़ रहे थे। उस चीज़ के टुकड़े टुकड़े करने में उनको जैसे सर्वाधिक सुख मिल रहा था और वह चीज थी मेने बनाया हुआ टाईम टेबल। उन टाईम टेबल से जैसे उन लोगो की दुश्मनी थी और हम सब उसे देखकर हस रहे थे और झारा थोड़ी गुस्से में भी थी फिर हमने उनको अपना मज़ा करने दिया। जिन टाईम टेबल को मेने इतने प्यार से बनाया था, जिनकी तारीफ से मेरी सारी मेहनत कामियाब हो गई थी उन्हें टूटते देख मुझे ज़रा सा भी दुःख नहीं हुआ।

क्यों नहीं हुआ? शायद इस लिए की अब टाईम टेबल के ख्याल को बुनने वाले या टाईम टेबल का कोई मोल नहीं था।


ऐसा कभी हुआ है की किसी भी व्यक्ति ने और खास कर किसी बच्चे ने प्यार से ईश्वर को पुकार की हो और वह न सुने अगर वह छल कपट वाले असुर तक तो वरदान देते तो क्यों हमारे साथ ऐसा हुआ? क्या ऐसा होना चाहिए? यह तो भगवान ही जाने। क्या कभी 10% पर भी कोई यकीन करेगा? पॉजिटिव थिंकिंग कभी होती है या नहीं? क्या यह सफर यहीं खत्म हो जाएगा?