Jhopadi - 18 in Hindi Adventure Stories by Shakti books and stories PDF | झोपड़ी - 18 - बेचारा लेखक

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झोपड़ी - 18 - बेचारा लेखक

बेचारा लेखक मैं एक लेखक हूं। मैं अपने को बहुत बुद्धिमान समझता हूं। मैं अपने को साहित्य प्रेमी समझता हूं। मैं अपने को साहित्य का सेवक समझता हूं। मैं समझता हूं कि कभी मुझे साहित्य का नोबेल मिलेगा। भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुझे बधाई देंगे और मुझे हाथ मिलाएंगे।

दुनिया के बड़े-बड़े देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुझे शाबाशी देंगे और मेरा अभिनंदन करेंगे। मेरी सोच समाज की प्रति क्रांतिकारी है। देश के प्रति सुधारवादी है। मानवता के प्रति कल्याणकारी है।


मेरी सोच बहुत महान है। अगर मुझे मौका मिले। तो में देश से बेरोजगारी हटा दूंगा। अगर मुझे मौका मिले तो देश से गरीबी हटा दूंगा। अगर मुझे मौका मिला तो मैं सबका उत्थान कर दूंगा।


मिसेज ने कहा इस महीने सामान लाना है। एक साथ खर्चा दे दो। मैने 2000 रुपये निकाले और उसके सुपुर्द कर दिए। फिर सोने लगा। लेखक दिमाग से तो महान और समृद्ध होता है। लेकिन जेब तो उसकी हल्की ही रहती है। चेतन भगत जैसी भाग्यशाली लेखक कम ही होते हैं।


वैसे मैं सोचता हूं कि दुनिया में करोड़पति लेखक भी हैं। जिन्होंने लेखन के कार्य से करोड़ों और अरबों रूपया कमाया है। काश हमारी किस्मत भी ऐसी हो। मेरा सपना है कि मेरी किताबें बेस्ट सेलर बिकेंगी। फिर मैं अपने सपने पूरे करूंगा और गरीब लोगों की मदद करूंगा। बेरोजगारी को हटाऊंगा और देश को अच्छा और संपन्न बनाने में मदद दूंगा।



मुझे अचानक सोचते सोचते नींद लग गई। अचानक मुझे लगा किसी ने मुझे नींद से जगाया हो। मैंने नींद से जगकर देखा तो पाया कि पड़ोस के चाचा जी मुझे हिला हिला कर जगा रहे हैं। मैंने जगकर चाचा जी को प्रणाम किया। चाचा जी बोले बेटा खड़े हो जाओ। तुम्हारी किस्मत के द्वार खुल गये है। भारत के सबसे बड़ी सेठ ने तुम्हें मिलने के लिए बुलाया है। यह देखो एरोप्लेन के टिकट भी उन्होंने भिजवाये हैं। मैं तुरंत एक्टिव हो गया। बगल की नाई की दुकान पर दाढ़ी और बाल बनवा कर मैंने स्नान किया। इसके बाद मेने अच्छे कपड़े पहने और तुरंत एक टैक्सी बुक करके एयरपोर्ट की तरफ निकल पड़ा। इसके बाद मै हवाई जहाज में बैठ गया। कुछ ही समय बाद मै भारत के सबसे बड़े सेठ के सामने खड़ा था। मैंने उम्दा कपड़े पहन रखे थे और उन कपड़ों पर महंगे सेंट की खुशबू आ रही थी। सेठ ने मुझे सोफे की तरफ बैठने का इशारा किया। कीमती सोफा था। मैं कीमती सोफे पर एक किनारे पर बैठ गया। सेठ ने कुछ मेरे बारे में पूछा और कुछ अपने बारे में जानकारी दी। फिर बोला आपका बड़ा नाम सुना है महाशय आपने मुझे एक किताब लिख कर देनी है। मैंने कहा किताब कैसी? सेठ जी ने कागजों का एक पुलिन्दा मेरी तरफ बढ़ाया और कहा इस पुलिंदे का आप अध्ययन करना और इस पुलिंदे पर आधारित आप एक अच्छी सी किताब लिखना। मैंने सरसरी तौर पर पुलिंदे को देखा और आदि से अंत तक पूरे पुलिन्दे का सरसरी तौर पर अध्ययन किया। इसके बाद मैंने सेठ को अपनी सहमति हां में दे दी। सेठ बड़ा खुश हुआ। उसने तुरंत एक भारी ब्रीफकेस मेरी और बढ़ाया और कहा यह आपको एडवांस है और बाकी काम पूरा होने के बाद। इसके बाद में सेठ से विदा लेकर घर आ गया। घर आकर मैने ब्रीफकेस खोला तो उसमें मैंने देखा कि पूरा ब्रीफकेस ₹500 की गड्डियां से भरा पड़ा है। मैं बड़ा खुश हुआ। इसके बाद मै पुलिंदे का अध्ययन करने में जुट गया और अब मैं पुलिंदे से प्राप्त जानकारी पर एक किताब लिख रहा था। सेठ द्वारा प्राप्त विशाल धनराशि को मैंने बैंक में रखा। कुछ सेविंग में रखा। कुछ एफडी बनाकर रखा। उस धन का मैंने एक विशाल मकान बनवाया। एक महंगी कार ली। एक सुंदर सा प्राइवेट जेट भी लिया। बहुत से नौकर चाकर रखी और इससे पहले मैंने एक सुंदर सा बड़ा सा मकान भी बनवाया। अब सेठ द्वारा दिए गए वचन के अनुसार एक भारी धनराशि मुझे इतनी ही काम पूरा होने के बाद मिलनी थी। मैंने उत्तम दर्जे की फैक्ट्रियां और कुछ व्यवसाय भी स्थापित किये। जिस्मे मेरे उत्तम दर्जे के कर्मचारी कार्य करने लगे। अब मैं एक छोटा मोटा सेठ बन गया था।



अब मेरा अधिकतर समय अपने बिजनेस की देखभाल करने में लगने लगा। लेकिन कुछ समय बाद मुझे अकल आई और मैने पुस्तक लेखन का कार्य फिर से शुरू कर दिया। बिजनेस संभालने के लिए मैन्द् और कर्मचारी रखे जिससे अब मैं कम समय देकर भी पूरे बिजनेस पर निगाह रख सकता था। अब मुझे बिजनेस से भी अच्छी इनकम होने लगी। कुछ समय बाद मैंने पुस्तक पूरी करके सेठ को दे दी। सेठ बड़ा खुश हुआ और उसने अपने वादे के अनुसार पहले से भी बढ़िया रकम मुझे भेंट की। इस रकम का भी मैंने सदुपयोग किया। अब मै बहुत बड़ा सेठ बन चुका था। चाचा मुझे हिलाये जा रहे थे और मुझे आनंद आ रहा था। अचानक मेरी नींद खुल गई। अरे इस बार सचमुच की नींद खुली थी। अरे यह सपना था क्या? मैंने अपना सर पीट लिया। आपका क्या कहना है? मैं सपने में ही सेठ बना। सपने में ही बिज़नेस खड़ा किया। सपने में ही मकान बनाया और अचानक सपना टूट गया। मैं झूझलाता हुआ खड़ा हुआ और अपने नित्य कर्म करने लगा। मैंने अपने छोटे से घर की डेंटिंग पेंटिंग करना शुरू कर दिया। क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं थे। इसलिए मैं अपने हाथ से ही अपने घर की डेंटिंग पेंटिंग कर रहा था। कुछ ही दिनों में मैंने अपना छोटा सा घर डेंट पेंट करके चमका दिया। थोड़ी सी रकम बाजार से सामान लेने में खर्च हुई। कुछ दिन पहले मेरे खेतो की चकबंदी हुई थी। इसलिए मैं अपने चक की बाड़ाबंदी करने लगा और चक को उपजाऊ बनाने का भी प्रयत्न करने लगा। हालांकि मेरा गुजारा थोड़ा बहुत चल ही रहा था लेकिन लेखक के रूप में मुझे सफलता नहीं मिल रही थी। अब मैंने अपने घर से थोड़ी दूर एक सुंदर सी झोपड़ी बनाई। यह झोपड़ी जंगल की सीमा पर थी और मैं यहां बैठकर पुस्तकों की रचना करने लगा। मेरी कुटिया से कुछ दूर आदिवासियों की एक बस्ती थी। यह लोग बड़े गरीब थे और फटे पुराने कपड़े पहनते थे और टूटी झोपाड़ियों में रहते थे। मैं लेखन कार्य करता और खाली समय में इस बस्ती में घूमता। मै बस्ती वालों की विभिन्न किस्म से मदद करने लगा। मैंने उन्हें आधुनिक संस्कृति सिखाई। प्राचीन धर्मशास्त्र का अध्ययन करवाया। उनकी बस्ती में उनके सहयोग से अच्छे मंदिर का निर्माण करवाया। साथ ही साथ मैंने उनके गांव में छोटे-मोटे कई कुटीर उद्योग स्थापित करवाये। इससे गांव वाले धीरे-धीरे संपन्न हो गये और साथ ही साथ आध्यात्मिक भी हो गये। यह मेरी एक बड़ी जीत थी। मैं आदिवसियो के बच्चों को मुफ्त में ट्यूशन भी पढ़ाने लगा। जिससे उनका मानसिक स्तर आगे बढ़ने लगा और धीरे-धीरे वे विभिन्न सरकारी नौकरियों में प्रवेश करने लगे। अब मैं गांव वासियों के सहयोग से गांव में पानी की अच्छी व्यवस्था की। क्योंकि मुझे लगा गांव के लोगों को पानी लेने के लिए गांव से काफी दूर जाना पड़ता है। इसलिए हमने स्थानीय बस आदि की सहायता से दूर के स्रोतों का पानी गांव तक पहुंचाने का इंतजाम किया। इससे गांव वासियों का काफी समय बचने लगा। साथ ही हमने सौर ऊर्जा पर आधारित उपकरणों का भी गांव में प्रचार प्रसार किया। जिससे गांव वासी अंधेरे में भी अपना छोटा-मोटा कार्य आराम से कर सके। गांव की झोपड़ियो के मॉडल को भी बदल गया और नयी झोपड़ियों को लाइन में और सुंदर ढंग से स्थापित किया गया। अब गांव बड़ा सुंदर दिखाई देने लगा। आदिवासियों का यह गांव धीरे-धीरे बड़ा सभ्य और मॉडर्न होता जा रहा था। इससे मुझे बड़ी खुशी मिल रही थी। मैंने आदिवासियों की कई समस्याओं पर काम किया और उन्हें उत्तम जीवन जीने का मार्ग दिखाया।


मैंने आदिवासी इलाके में कई चारे के पौधों को लगवाया और फलो के पेड़ो को भी लगवाया। लेकिन विकास के साथ उनकी प्रकृति भक्ति को और भी मजबूत किया। अब यह विकसित आदिवासी बड़े प्रेम से प्रकृति की छाया में रहने लगे। यह आदिवासी बड़े विकसित मानव तो थे ही, साथ ही इनके द्वारा कोई भी प्रदूषण नहीं फैला था। बल्कि यह प्रकृति से अपना संबंध और भी मजबूत करते हुए प्रकृति की रक्षा में जीजान से जुटे हुए थे। एक लेखक अपनी भलाई बाद में चाहता है। वह पहले समाज की भलाई चाहता है। वह अपनी बुद्धि के द्वारा समाज को बदलना चाहता है। वह समाज को ज्ञान देता है। समाज को मनोरंजन देता है। समाज को सभ्य बनाने की कोशिश करता है। समाज को विकसित बनाने की कोशिश करता है। समाज खुशहाल हो पृथ्वी हरी भरी हो यही उसका अंतिम लक्ष्य होता है। लेकिन बिना अपना हित किये केवल दूसरे का हित करते रहना भी एक गलती है। क्योंकि जो व्यक्ति अपना हित नहीं कर सकता। वह दूसरी का हित क्या कर सकता है। इसलिए थोड़ा बहुत अपना हित भी करना चाहिए और स्वयं को किसी चीज की कमी ना हो ऐसा कर्म करते रहना चाहिए।


शास्त्रों का भी आदेश है कि अपने परिवार का और अपना हित न करने वाला व्यक्ति की पापी होता है। खुद को समाज का एक हिस्सा मानकर अपना हित जरूर करना चाहिए और निश्चल भाव से करना चाहिए और बिना किसी गलत तरीके का आस्रय लिये करना चाहिए और साथ ही साथ पूरे समाज का हित सोचना चाहिए। अब मैंने इस गांव में एक कोश की स्थापना की और एक व्यक्ति को इसका कोषाध्यक्ष भी बनाया। सभी गांव वाले अपने 1 दिन की तनख्वाह हर महीने इसमें जमा करते थे। धीरे-धीरे ये कोश बहुत विशाल हो गया। इस कोश की सहायता से अब बड़े-बड़े काम होने लगे।




एक दिन मै अपनी सुंदर सी कुटिया में बैठकर साहित्य की सेवा कर रहा था। मैं अपनी नई रचना बेचारा लेखक का एक नया भाग लिख रहा था कि अचानक कुटिया के बाहर भयंकर आवाज होने लगी। अचानक तेज आवाज के साथ एक गोला आसमान से जमीन की तरफ आया और भयंकर धमाका हुआ।

मैं लपक कर बाहर आया तो देखा की चारों ओर धूल का गुबार है। कुछ देर बाद सामने देखा। एकदम चमकीला बड़ा सा गोला आधा जमीन में धंसा हुआ है। आवाज को सुनकर गांव के सभी लोग उसे गोले की तरफ बढ़ने लगे। मैं भी आगे बड़ा। तुरंत मेरे दिमाग में आया उड़न तस्तरी। गोले का दरवाजा खुला और अंतरिक्ष यात्री की ड्रेस में एक अंतरिक्ष यात्री बाहर की तरफ आने लगा। बाहर आकर कुछ कुछ कदम चलकर वह गिर पड़ा। सभी गांव वाले वहां पहुंचे। मैने अंतरिक्ष यात्रियों पर कई पुस्तकें पढ़ रखी थी। मैंने गांव वालों को उस अंतरिक्ष यात्री को उठाकर अपनी कुटिया में लाने के लिए कहा। अंतरिक्ष यात्री को मेरी कुटिया में लाया गया। मैंने अंतरिक्ष यात्री पर कुछ ठंडे पानी की बूंदे डाली तो वह कुनमुनाते हुए कुछ देर बाद होश में आ गया। अब अंतरिक्ष यात्री होश में आ गया था। उसने अपने अंतरिक्ष यात्री वाली ड्रेस उतार दी। अरे यह तो एक सुंदर सी लड़की थी। उसकी उम्र मुश्किल से 30-35 वर्ष रही होगी। मैने अंतरिक्ष यात्री की सेवा के लिए उस कुटिया में एक दो आदिवासी लड़कियो को रख दिया। आदिवासियों ने उस लड़की की अच्छी तरह हिफाजत और सेवा की। मैंने बगल में एक नई कुटिया बना ली। नई कुटिया में मैं खुद रहने लगा। पुरानी पहले वाली कुटिया मैंने उस अंतरिक्ष यात्री को सौंप दी। काफी दिनों तक लड़की कमजोरी की अवस्था में रही। धीरे-धीरे उसका शरीर अच्छा होने लगा और दिमाग भी अच्छी तरह काम करने लगा। कुछ समय बाद वह लड़की पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गई। अब उसने अपनी अंतरिक्ष यात्री की ड्रेस की मरम्मत की और उस ड्रेस को पहनकर अपनी उड़न तस्तरी तक गई। हम लोग भी उसके साथ गए।


हम लोगों की मदद से उसने अपनी उड़न तस्तरी की मरम्मत की। इसके बाद उसने उड़नतश्तरी हम लोगों को उड़ा कर दिखाई। अब उसने हमें अपने बारे में बताया और कहा कि बहुत समय पहले हम मंगल ग्रह पर रहते थे। मंगल ग्रह में आपस में गृह युद्ध हो गया और उसमे सारा मंगल ग्रह नष्ट हो गया। नष्ट होने से पहले कुछ बुद्धिजीवी लोग अपने-अपने विमानो में बैठकर मंगल ग्रह से निकल गए। वे अंतरिक्ष में अन्य ग्रहों की खोज में थे। जहां उन्हें मंगल ग्रह जैसा वातावरण मिलता और वह बस सकते। उसमें से कुछ लोग पृथ्वी की ओर आए और यहां बस के गए और कुछ लोग पृथ्वी से करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर हमारे वर्तमान ग्रह तक आ पहुंचे और वह वही बस गए। पृथ्वी में धीरे-धीरे सभ्यता का उत्कर्ष हुआ और हमारे ग्रह में भी लोग सभ्य होने लगे। पृथ्वी और हमारे ग्रह के लोग मंगल ग्रह के मूल निवासी थे। लेकिन अब अलग-अलग ग्रहों पर बस गए थे।


अचानक कई वर्ष पहले हमारे ग्रह पर भयानक भूकंप आया। उस भूकंप के कारण वहां की जलवायु में थोड़ा चेंज आ गया और ऐसे कीटाणु का जन्म हुआ जिससे पूरा ग्रह थर्रा उठा। उस कीटाणु के कारण हमारे ग्रह के पुरुष एक-एक करके मरने लगे। आज की तारीख में वहां कोई पुरुष नहीं है। सभी महिलाएं हैं। आज वहां महिलाओं का राज्य है। लेकिन बिना पुरुष के वहां संतान का उत्पादन नहीं हो सकता। इसलिए धीरे-धीरे वहां की जनसंख्या कम होती जा रही है। इसलिए यह सब सोचकर हमारे एक टीम पृथ्वी की ओर आई। ताकि पृथ्वी के पुरुषों के द्वारा हमारे ग्रह पर फिर से संतान का उत्पादन किया जाए।


लेकिन पृथ्वी की ओर आते हुए हमारा यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और हमारी टीम के सारे मेंबर मारे गये। केवल मै ही जीवित बची। यह कहकर उसने उड़नतस्तरी के कोने में लाइन पर रखे गये कुछ मृत लोगों की ओर इशारा किया। यह सब उसकी टीम के मेंबर्स थे। हमने उन सभी लोगों का अंतिम संस्कार किया।