Aemi - 4 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | एमी - भाग 4

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एमी - भाग 4

भाग -4

"मैंने बहुत कोशिश की माय चाइल्ड, लेकिन मैं विवश हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे वह मुझ में ही समाया हुआ है। इसलिए मैं समझती हूँ कि मैं कुछ भी कर लूँ, उससे अलग नहीं हो सकती।" मदर की इस बात ने मेरे ग़ुस्से को और बढ़ाया। जिससे मैंने उनसे वह प्रश्न पूछ लिया जो निश्चित ही उनके लिए जीवन का सबसे कड़वा प्रश्न था, सबसे कठिन भी, जिसका जवाब सिर्फ़ उन जैसी विकट हिम्मतवाली या एक्सट्रीम बोल्ड लेडी ही दे सकती है। ऐसी लेडी जिसके लिए अपने सुख से बढ़कर और कुछ नहीं है। हस्बैंड भी नहीं, बच्चे भी नहीं। उनकी बातों से मैं ख़ुद को इमोशनली बहुत हर्ट फ़ील कर रही थी, तो मुझे कड़वा प्रश्न पूछने में कोई प्रॉब्लम नहीं हुई थी।

मैंने विदाउट हेज़िटेशन पूछ लिया, मॉम जब उस आदमी से तुम्हारे इतने सालों से रिलेशन हैं तो एक बात मैं प्रभु यीशु के सामने इस यक़ीन के साथ पूछ रही हूँ कि जैसे अभी तक आप इतनी बोल्डनेस के साथ जीसस के सामने सच बोल रही हैं, वैसे ही सच ही बताएँगी। मेरी इस बात पर वह मेरी तरफ़ देखती हुई बेहद शिकायती लहजे में बोलीं, "अब बाक़ी ही क्या बचा है जो छुपाऊँगी। सब पीछे पड़ जाएँ तो कुछ छुपता नहीं है, जो पूछना है पूछो।" उनकी बातों को मैंने कड़वे घूँट की तरह पिया और कहा, बहुत सी भले ही ना हों लेकिन एक बात है जिसे आप चाहेंगी तभी पता चल सकेगा।

इस पर वह प्रश्न भरी आँखों से मुझे देखने लगीं, तो मैंने पूछा मॉम अब डैड तो रहे नहीं, इसलिए सच बताने से कोई प्रॉब्लम भी होने वाली नहीं है। यह बात कितनी सच है कि जस्टिन और मैं उनके नहीं तुम्हारे उस फॉर्मेसिस्ट फ़्रेंड के बच्चे हैं। मेरा यह पूछना था कि वह चीख पड़ीं थीं, "एमी" मैं चुप नहीं हुई, डरी नहीं, तो वह बोलीं, "अब तुम भी इस तरह से क्वेश्चन कर रही हो। पहले तुम्हारे डैड फिर जस्टिन और अब तुम। मैंने सोचा था कि जस्टिन के बाद इस प्रश्न से हमेशा के लिए पीछा छूट जाएगा।" उनकी बात को मैंने ध्यान से सुना, फिर उन्हें पूरी इंपॉर्टेंस देते हुए कहा आपने डैड या उनके बाद जस्टिन को सच बता दिया होता। सही जवाब दे दिया होता तो यह प्रश्न फिर कभी आपके सामने आता ही नहीं। जब-तक उत्तर नहीं बताएँगी तब-तक तो यह प्रश्न बना ही रहेगा। मैं अपनी बात पर अडिग हूँ।

उन पर प्रेशर डालती रही तो उन्होंने आख़िर वह सच बताया जिसे डैड, जस्टिन नहीं जान पाए। जिसके कारण डैड जीवन से हाथ धो बैठे। जिसे सुनकर मुझे पसीना आ गया। मॉम ने खीझते हुए कहा कि, "जस्टिन और तुम डैड के ही बच्चे हो। जो उनका नहीं था उसे उन्होंने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया। मुझे मजबूर कर दिया अबॉर्ट कराने के लिए। टाइम ज़्यादा हो चुका था, इसके बावजूद अगेंस्ट द लॉ जाकर कराया। मेरी लाइफ़ ख़तरे में पड़ी, मगर उन्हें अपनी ज़िद की पड़ी थी। उसे पूरी करके ही माने।" मैंने कहा मॉम जब आपने उनकी पहली ज़िद कि उस आदमी से कोई संबंध नहीं रखने की नहीं मानी, जिसे मान लेने से अब तक जो कुछ हुआ वह होता ही नहीं तो एबॉर्शन की बात इतनी आसानी से कैसे मान ली।

मॉम ने जैसे पहले ही अंदाज़ा लगा लिया था कि मैं यह प्रश्न करूँगी, इसलिए वह जवाब देने के लिए ख़ुद को एकदम तैयार किए हुए थीं, तुरंत ही कहा, "वह बेबी जन्म लेता तो यह कितना बड़ा तमाशा करते दुनिया के सामने, कैसे मुझे बेइज़्ज़त करते इसका अंदाज़ा तुम भी लगा सकती हो। मुझे पूरा यक़ीन था कि वह डीएनए चेक करा कर ही मानते। ऐसे में मेरी, बच्चे की और उस आदमी की जो इंसल्ट होती वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। तुम दोनों भी परेशान होते।"

मुझे बड़ी ग़ुस्सा आया। सोचा अपने स्वार्थ के लिए अबॉर्ट कराया और ज़िम्मेदार फ़ादर को बता रही हैं। हो तो यह भी सकता है कि वह आदमी भी ना चाहता रहा हो कि उसकी संतान ऐसी जगह जन्म ले, जहाँ वह जब चाहे तब जा भी नहीं सके। उसे गोद में भी ना ले सके। संतान उसकी होगी और नाम दूसरे का होगा।

इसलिए मैंने सोचा यह बात भी इसी समय क्लीयर कर लूँ कि वह आदमी क्या चाहता था। उसने अबॉर्शन के लिए हाँ कही थी या भरपूर विरोध किया था। पूछने पर मुझे सीधा जवाब नहीं मिल रहा था। फ़ादर को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा था। बहुत कुरेदने, प्रभु यीशु का वास्ता देने पर सच सामने आया, कि वह आदमी भी नहीं चाहता था कि बच्चा जन्म ले। वह शुरू से ही मना करता रहा। उसका कहना था कि उसके तीन बच्चे पहले ही हो गए हैं, एक और बच्चे को वह अभी इस तरह से दूसरे घर में नहीं चाहेगा। 

सच जानने के बाद फ़ादर के प्रति सम्मान, उनके प्रति मेरा इमोशनल अटैचमेंट बहुत बढ़ गया। मॉम के प्रति इमोशनल अटैचमेंट कम होना शुरू हो गया था। मैंने जब देखा कि मॉम सारी बातें कह देना चाहती हैं। कुछ इस तरह लग रहा था जैसे कि वह चाहती हैं कि इस टॉपिक पर जितनी बातें करनी हैं, जो कुछ मुझे कहना, सुनना है, वह सब मैं इसी समय कर लूँ। इसके बाद फिर कभी इस टॉपिक पर बात नहीं करनी है। 

तो मैंने भी सोचा कि यही अच्छा है, रोज़-रोज़ बहस से क्या फ़ायदा। यह उस आदमी को इतना चाहती हैं तो बेहतर तो यह था कि फ़ादर से अलग हो जातीं। डायवोर्स लेकर उसी के साथ रहतीं। दो नावों पर सवारी करने की कोशिश से आख़िर क्या मिला? मेरे फ़ादर, एक जेंटलमैन की, एक ग्रेट फ़ादर की जान ज़रूर चली गई। जस्टिन जैसे भाई से मैं हाथ धो बैठी। यह सब मैंने मॉम से पूछा तो उनका बड़ा अजीब उत्तर मिला।

"एक्चुअली मेरे लिए यह पॉसिबल नहीं था। क्योंकि वह व्यक्ति इस बात के लिए तैयार नहीं था कि मुझसे वह शादी करे या मेरे साथ अलग रहे। वह अपनी फ़ैमिली को नहीं छोड़ना चाहता था।" मैंने कहा, आश्चर्य है, जो व्यक्ति अपनी फ़ैमिली को फ़र्स्ट प्रिफ़ेरेंस देता है, उसके बाद कुछ सोचता है, ऐसे व्यक्ति के लिए आपने अपनी फ़ैमिली की लाइफ़ को नष्ट कर दिया। अपने हस्बैंड को बेमौत मर जाने दिया। सालों-साल वह व्यक्ति पूरे मन से आपको पाने के लिए परेशान रहा। इतना ज़्यादा कि अपने वजूद को बचाए रखने के लिए उसे ख़ुद को शराब में डुबो देना पड़ता था। और अंततः इन्हीं बातों ने उनकी जान ले ली।

मैंने तब बहुत ही ठंडे स्वर में कहा, मॉम आपको यह नहीं लगता कि उस व्यक्ति ने आपको अपना मन बहलाने का एक टूल बना कर रखा हुआ है। जब-तक घर में है, तब-तक फ़ैमिली है, बीवी है। जब आठ-दस घंटे बाहर है, ऑफ़िस में है, तो इतने समय के लिए भी एंजॉयमेंट का कुछ अरेंजमेंट होना चाहिए। तो उसने इतने समय के लिए आपको अपना एंजॉयमेंट टूल बना लिया। क्या आपको ऐसा नहीं लगता? मॉम ने तपाक से उत्तर दिया, "अपनी बात को अपोज़िट एंगल से देखो, यही बात तो वह भी कह सकता है।" मैंने कहा अपोज़िट एंगल से बात तब कही जा सकती है जब आप भी उसी की तरह अपने हस्बैंड को, फ़ैमिली को छोड़ने के लिए तैयार ना होतीं।

जैसे वह संबंध घर के बाहर तक रखना चाहता है, वैसे ही आप भी करतीं। मगर आप तो... बीच में ही मदर बोलीं, "मैंने पहले ही कहा कि मैं फ़ैमिली को लेकर, तुम्हारे फ़ादर को लेकर भी अवेयर थी। मगर फ़ैमिली को लेकर मैं उतनी कट्टर नहीं हूँ जितना कि वह थे। तुम्हारे फ़ादर का विहेवियर जिस तरह इस मैटर को लेकर हार्डकोर होता जा रहा था उससे मुझे अलग होने के लिए ज़्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती।"

मैंने कुछ देर और बातें करने के बाद पूछा। मॉम मैं नहीं समझ पा रही हूँ कि मुझे पूछना चाहिए कि नहीं, लेकिन पूछ रही हूँ कि आप आख़िर फ़ादर से ऐसा क्या चाहती थीं जो वह आपको नहीं दे पाते थे, और वह सब आपको उस आदमी से मिलता है नहीं, बल्कि इतना और ऐसा मिलता है कि आप इस कंडीशन में भी उसे छोड़ने को छोड़िए, छोड़ने के बारे में सोच भी नहीं पा रही हैं। बल्कि उसे हस्बैंड से भी ऊपर रखा हुआ है। मॉम चुप रहीं। कई बार पूछने पर कहा, "मैं बहुत क्लीयर कुछ नहीं कह सकती, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है कि मैं जिस पीस, सैटिस्फ़ैक्शन को चाहती हूँ, वह उसके पास पहुँचते ही मुझे मिल जाते हैं। तुम्हारे फ़ादर को या तो मैं नहीं समझ पायी कि वो मुझसे क्या चाहते हैं, या फिर शायद वह मुझे समझ नहीं पाए, मुझे नहीं समझा सके कि उन्हें मुझसे क्या कुछ चाहिए, कितना चाहिए। शायद दोनों ही एक दूसरे को नहीं समझा सके, ना समझ सके।"

उनकी यह चतुराई भरी बातें मुझे बहुत बुरी लगीं। मैं ख़ुद को रोक नहीं सकी। मैंने कहा, मॉम मैं भी बड़ी हो गई हूँ। बहुत सी बातें समझती हूँ। यह भी जानती हूँ कि अनुभव भले ही मेरा कम है, लेकिन घर में सालों से चले आ रहे माहौल ने मुझे बहुत मैच्योर बना दिया है। यहाँ कुछ कॉम्पलिकेशन जैसी कोई बात ही नहीं थी, कोई भी हस्बैंड यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी नॉलेज में उसकी मिसेज किसी थर्ड पर्सन के साथ रिलेशनशिप में रहे। इसीलिए आपको मना करते थे। आप मानने को तैयार नहीं थीं। बस इतनी सीधी सिंपल सी बात है। सिंपल सी बात को आप सिंपली स्वीकार कर लेतीं तो मैं पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ कहती हूँ कि बात जैसे भी हो मैनेज हो जाती। फ़ादर इतने लिबरल थे कि वह कोई ऐसा रास्ता ज़रूर निकालते, आपके साथ मिलकर ही निकालते कि ऐसी हालत नहीं होती। जो कुछ हुआ ऐसा नहीं है कि उससे आपको कष्ट नहीं हो रहा है। टेंशन में आप भी हैं।

मैं इतना ही चाहती हूँ कि जो बिगड़ गया है, फ़ैमिली जो बिखर गई है, यदि आप बातों को ऐसे ही कॉम्प्लिकेटेड बनाए रहेंगी तो जो अब तक बचा रह गया है उसके भी बिखरने में समय नहीं लगेगा। हम दोनों भी हमेशा के लिए अलग हो सकते हैं। इसलिए आपसे रिक्वेस्ट है कि बातों को सिंपली एकदम क्लियरली बोलिए, अब मैं अच्छी तरह समझ चुकी हूँ कि आप उस आदमी से रिलेशनशिप के बिना नहीं रह सकतीं। सॉरी मैं यह भी कह देना चाहती हूँ कि उसके साथ आपका जो भी रिलेशन है, वह ओवरऑल फिज़िकल ही है। आप दोनों के बीच इमोशनल अटैचमेंट कोई बहुत स्ट्रॉन्ग पोज़ीशन में नहीं है। बल्कि सच यह है कि कोई इमोशनल अटैचमेंट है ही नहीं। ऐसे में मैं यही कहूँगी कि आप ख़ुश रहें, टेंशन फ़्री रहें, ऐसा ही काम करें। आप चाहें तो उसे साथ लाकर यहीं रहें। मैं रेंट पर कहीं और रह लूँगी।

फ़ादर की फ़ैमिली पेंशन आपने मेरे नाम कर ही दी है। मुझे कोई दिक्क़त नहीं होगी, वैसे भी मैं जल्दी ही सेस्फ़ डिपेंड हो जाऊँगी। आपके ऊपर कोई बर्डन नहीं रहेगा। मैं साथ इसलिए नहीं रह सकती क्योंकि मैं उस व्यक्ति को सहन नहीं कर पाऊँगी जो मेरी फ़ैमिली की बर्बादी का कारण बना, जिसके कारण मेरे डैड की दर्दनाक मौत हुई। लेकिन क्योंकि आप मेरी मदर हैं, आपकी ख़ुशी में मेरी ख़ुशी है। मेरे कारण आप ख़ुश ना रह सकें यह भी ग़लत है। यह मैं नहीं चाहूँगी। इसलिए मैं आपसे ख़ुशी-ख़ुशी कह रही हूँ कि आप उस व्यक्ति के साथ रहें। मॉम यह कहते हुए मैं यह भी सोच रही हूँ कि हर मदर को भी औरों की तरह ख़ुश रहने का अधिकार है। जैसे भी वह ख़ुश रहें।

हमारी बहस निर्णायक दौर में पहुँच चुकी थी। मैं सब कुछ उसी समय फ़ाइनल कर देना चाहती थी। कल पर कुछ भी नहीं छोड़ना चाहती थी। और मदर उस व्यक्ति को। तो फ़ाइनली डिसाइड हुआ कि वह उसके साथ अब तक जैसे रह रही हैं वैसे ही रहेंगी। मुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं।

इस डिसीज़न तक पहुँचने में जितनी और जिस तरह की बातें हम माँ-बेटी के बीच हुईं, वह कई बार बहुत बोल्ड, बहुत ग़ुस्से से भरी, तो कभी भावुकता से भरी रहीं। कई बार दोनों की आँखों से ख़ूब आँसू भी टपके। मगर अच्छा यह रहा कि हम एक डिसीज़न तक पहुँच गए। और साथ ही मैं एक नए निष्कर्ष पर भी पहुँची, कि सीमोन बोउवार की सेकेंड सेक्स किताब में लिखी यह बात पूरी तरह सच नहीं है कि "यह कहना अतिशयोक्ति ना होगी कि पुरुष नारी का आविष्कार कर लेता, यदि परमात्मा ने नारी की सृष्टि ना की होती।"

मैंने मन ही मन कहा कि इस इक्कीसवीं सेंचुरी का पूरा सच यह है कि, "नारी ने अपने लिए पुरुष का आविष्कार कर लिया होता यदि परमात्मा ने पुरुष की सृष्टि ना की होती।" उस वक़्त मुझे अपने कुछ फ़्रेंड्स की और उनके रिलेटिव्स की बातें, उनके किए गए काम याद आ रहे थे। जो कि मेरी मॉम से कम नहीं थे, बल्कि दो तो ऐसे विचारों की हैं, ऐसी लाइफ़स्टाइल को जीती हैं कि उसे देखते हुए यह मानने में मुझे कोई शक नहीं कि मेरी मॉम उनसे बहुत पीछे हैं।