Love and Tragedy - 11 in Hindi Love Stories by Urooj Khan books and stories PDF | लव एंड ट्रेजडी - 11

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लव एंड ट्रेजडी - 11





दिन गुज़रते गए हंसराज जी और रजत ने मलिक ब्रदर्स के दिए गए कॉन्ट्रेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया था सारा पेपर वर्क मुकम्मल हो चुका था। अब बारी थी झुक्की झोपडीयों वालो को लिखित नोटिस या फिर एलान करा कर उनसे जगह खाली करने का कहने की।

और दो दिन बाद ये काम अंजाम दे दिया गया। सुबह सवेरे जब उन लोगो ने वो नोटिस अपनी अपनी झोपडीयों पर लगा देखा तो घबरा गए और जब एक आदमी द्वारा उसे पढ़ कर सुनाया गया कि एक महीने के अंदर अपनी इन झोपडीयों को यहाँ से उठा लो वरना बुलडोज़र इन सब झोपडीयों का और उसमे रखे समान का नामो निशान मिटा देगा।

ये खबर सुन कर तो मानो उन लोगो के पेरो तले ज़मीन निकल गयी किसी के अश्याने को उजाड़ने की बात हो रही हो और वो जश्न मनाये ऐसा हो नही सकता भले ही वो झुग्गी झोपडी थी लेकिन वो गरीब लोग अपनी इज़्ज़त तो छिपाये बैठे थे कुछ ना सही उन्हें सर्दी, धूप और बरसात में ठिखाना तो देती थी, उनके बच्चे वहा सर छिपाते थे। ऐसे ही कोई आकर अचानक से उन्हें हटाने का फरमान निकाल दे तो कोई भी खामोश नही बैठेगा। और वो भी जब, जब मानसून की आमद हो ऐसे में तो परिंदे भी अपना आशायाना ना छोड़े जबकी वो तो इंसान थे अपनी इज़्ज़त छिपाये बैठे थे उन झुग्गी झोपडीयों में।




लोगो ने बहुत रोने पीटने डाले हाथ जोड़े की उनके अश्याने ना छीने जाए। गरीब बेचारे जिन्हे दो वक़्त की रोटी सुकून से मिल जाए उनके लिए वही काफी हे लेकिन अब वो रोटी पानी भूले बैठे थे और हर जगह अर्ज़ी और फरयाद लेकर जा रहे थे ताकि कोई तो उनकी मदद को आगे आये, वो लोग ही आगे आ जाए जो अपने मफ़ात के खातिर चुनावों में वोट लेने के खातिर उन्हें पक्के घर देने का वायदा कर जीतने के बाद भूल गए थे। लेकिन कोई अपने घरो से नही निकला।

कई बार तो हंसराज के कहने पर उन लोगो पर लाठी चार्ज करा दी गयी बेचारे पिट कर घर में बैठ गए। लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और अपने घर बचाने की हर संभव कोशिश की। जो लोग उन्हें घर देने का वायदा करके गए थे कभी उनसे वोट लेने के खातिर उन्ही लोगो ने कहा कि वो लोग गैर कानूनी जगह पर रह रहे थे और अब वो जगह बिक चुकी हे इसलिए अपना समान लेकर कही और चले जाए यूं इस तरह और लोगो को परेशान मत करो।


भ्रष्ट नेता वोट के समय उसी गैर कानूनी जगह आकर वोट ले गए वहा रहने वालो के और जब उनके उस वोट का कर्ज चुकाने की बात आयी तो वो जगह गैर कानूनी हो गयी। वहा खड़े एक आदमी ने दूसरे आदमी से कहा

हाय लगेगी इन सब भ्रष्ट नेताओं को गरीब जनता की ईश्वर सब देख रहा हे एक दिन इनका भी इंसाफ होकर रहेगा उपर वाले की अदालत में पास खड़े दूसरे आदमी ने कहा।

बेचारो के पास कोई दूसरा रास्ता नही बचा था सिवाय वहा से जाने के सबसे बड़ी मुसीबत मानसून थी जो जल्द या बदेर आने वाला था।

बारिश में कहा और कैसे जाएंगे अपने छोटे छोटे और मासूम बच्चों और बीवी को लेकर, कौन हमें साया देगा उस मूसलाधार बारिश में आखिर क्या मिल जाएगा इन लोगो को हमें बेघर करके चंद बिल्डिंगो के अलावा। जब सब लोग मानसून आने की ख़ुशी मना रहे होंगे चाय पकौड़ो का आनंद ले रहे होंगे तब हम लोग सर छिपाने की जगह ढूंढ रहे होंगे, बच्चों को तसल्ली दे रहे होंगे की जब बारिश रुक जाएगी तब हम तुमको खाना खिला देंगे वहा मौजूद लोगो के दिलो दिमाग़ में यही बाते चल रही थी हर दम ।




लेकिन उन्होंने हार नही मानी और अपनी जगह डटे रहे ये बात जब हंसराज को पता चली तो उसने कहा" जो करते हैं करने दो मेरे पास अभी दूसरा ब्रह्ममास्त्र हे ऐसे नही माने तो वो चलाना पड़ेगा करने दो उन्हें जब तक शोर करते हैं

वही दूसरी तरफ हंशित और उसके दोस्त अपना समान बांध रहे थे। क्यूंकि उनके जाने के दिन नजदीक आ रहे थे ।

सारी तैयारियां हो गयी थी। लव ने ट्रैन के टिकट बुक करा लिए थे। अब बस सब वहा जाने के दिन गिन रहे थे।

"यार लव तूने वहा किसी ट्रेवल्स वाले से बात तो कर ली हे ना की वो हमें एक गाइड दे देगा जिसे वहा की हर एक जगह अच्छे से पता हो और हाँ हमें वहा एक खुली जीप की भी ज़रूरत होगी और एक ड्राइवर की भी तो तू देख लेना भाई किसी चीज की परेशानी ना हो और जो पैसे खर्च हो मुझे बता देना" हंशित ने कहा

"भाई अभी तक तो कुछ नही हुआ हे ढूंढ रहा हूँ गूगल पर क्यूंकि वहा मेरा कोई जानने वाला भी नही रहता हे होटल की बुकिंग कर दी हे मेने" लव ने कहा

"चलो बच्चों अब खाना खा लो बहुत बाते हो गयी और हाँ बाकी की पैकिंग में करा दूँगी " हंशित की माँ ने कहा

सब लोग खाना खाने चले गए। हंशित कही खो सा गया।

"क्या हुआ हंशित बेटा कहा खो गया अभी से ही क्या तू पहाड़ो की वादियों मे खो गया " हेमलता जी ने कहा

"नही दादी ऐसा कुछ नही हे बस सोच रहा हूँ आप लोगो की बहुत याद आएगी वहा, माँ और भाभी के हाथ के बने खाने याद आएंगे " हंशित ने कहा

"रोज़ वीडियो कॉल पर बात करना और अपनी तस्वीरे भेजते रहना तेरे जाने के बाद ये घर भी सूना हो जाएगा जल्दी कोशिश करना आने की दिल नही लगेगा हमारा तेरे बिना" हेमलता जी ने कहा

" अगर दादी वापस ना आ सका तो हंशित ने एक दम से कहा

"शुभ शुभ बोल पहले ही मेरा दिल घबरा रहा हे और एक तू हे इस तरह की बाते मुँह से निकाल रहा है आयींदा इसमें की बात निकाली तो नाराज़ हो जायेगी" उसकी माँ ने कहा




"ओह माँ तुम तो भावुक हो गयी मैं तो बस मज़ाक कर रहा था," हंशित ने कहा

"मुझे इस तरह के मज़ाक बिलकुल पसंद नही" रुपाली जी ने कहा हंशित को गले से लगाते हुए।

उसके बाद वो सब खाना खाने में लग गए तब ही हंशित की नज़र मेज पर रखे अख़बार पर जाती और वो उसे उठाता ।

"क्या हुआ बेटा अख़बार में क्यू लग गए " हेमलता जी ने पूछा

"कुछ नही दादी आपके बेटे की तस्वीर छपी हे " हंशित ने कहा

" तो इसमें नया किया हे आये दिन छपती हे उसकी तस्वीर अख़बार में इतना बड़ा बिजनेसमैन जो ठहरा हेमलता जी ने कहा


"दादी इस बार तस्वीर उनकी तारीफ करने के लिए नही बल्कि उनके द्वारा गरीब लोगो की झुग्गी झोपडी छीन कर वहा बिल्डिंग बनाने के लिए हो रहे प्रदर्शन के बारे में छपी है ताकि वो गरीब जनता के आशयाने छीन कर उन्हें वहा से बेघर ना करे और नीचे लिखा हे कि जहाँ लोग गर्मी से राहत पाने के लिए मानसून का इंतज़ार कर रहे है वही ये लोग अपनी झुग्गी झोपडीयों को बचाने के लिए तपती धूप में प्रदर्शन कर रहे हे ताकि मानसून आने से पहले इनके आशयाने ना ढा दिए जाए और ये बेचारे बारिश में अपना समान और बीवी बच्चों को लेकर दर दर की ठोकरे ना खाते फिरे" हंशित ने पढ़ कर सुनाया

"ये हंसराज और उसकी कंपनी का मसला हे तू इन सब से दूर रह तू उसके काम में टांग अड़ा कर बाप बेटे की नाराज़गी को और तूल ना दे जैसा चल रहा हे चलने दे तू आराम से अपने ख्वाब पूरे कर जो बनना हे वो बन " हेमलता जी ने कहा

"ठीक हे दादी जैसा आप कह रही हो वैसा कर लेता हूँ लेकिन मेरे आँखे फेर लेने से कुछ नही होगा, आप कहती हो तो कुछ नही करता लेकिन एक ना एक दिन हिसाब होकर रहेगा जब वो उन गरीब लोगो को परेशान कर सकते हे सिर्फ चंद नोटों के खातिर तो एक दिन उन्हें भी सारा हिसाब सूत समेद वापिस देना होगा" हंशित ने कहा और मेज से उठ कर चला गया अपने कमरे में


वहा ख़ामोशी पसर गयी थी। हंशित के दोस्त भी पीछे पीछे चले गए उसके साथ ।

रुपाली जी ने मेज पर रखा अख़बार उठाया और कहा 'आखिर किसने ये अख़बार यहाँ रखा था इसे ले " जाकर फेक दो"

" बहु अब जो होना था वो हो गया हंशित ने अख़बार देख लिया अब क्या फायदा उसे फेकने ना फेकने का हेमलता जी ने कहा "

धीरे धीरे शाम हो जाती हे रात का खाना खाने के बाद हंसराज जी और रुपाली सोने जाते हे तब ही रुपाली जी हंसराज जी से पूछती हे " आज जो अख़बार में खबर छपी थी आपके बारे में क्या वो सच हे, क्या आप जबरदस्ती उन गरीब लोगो की झुग्गी झोपडीयाँ छीन रहे हे वो भी जब, जब मानसून की तलवार उनके सर पर लटकी हो"

"तुम अपने काम से काम रखो, तुम्हारा काम सिर्फ घर संभालना हे और रसोई संभालना हे, तुम व्यापार के बारे में कुछ नही जानती हो, व्यापार में बहुत सारे कम्पटीटर होते हे जो अपने हाथ से कॉन्ट्रैक्ट जाने पर इस तरह की बेकार और नाकाम कोशिशो को अंजाम देते है।



और वैसे भी वो लोग अवैध कब्जा किए हुए थे वहा एक ना एक दिन तो थे होना ही था तो अब हो गया और हम लोगो ने कोई एक दम से कार्यवाही नही की उनपर हमने पहले उन्हें आगाह किया और समझाया था की यहाँ से चले जाए अपने आप वरना बाद में हमें कोई सख्त कदम उठाना होगा" हंसराज जी ने कहा

"मैं कारोबार के बारे में तो ज्यादा कुछ नही जानती लेकिन इतना कहूँगी की किसी के लिए भी अपना, घर अपनी जगह छोड़ना इतना आसान नही भले ही वो झुग्गी झोपडी ही क्यू ना हो, एक बार और सोच लिए नही तो उन्हें और मोहलत दे दीजिये या फिर उनको कोई और जगह दे दीजिये ताकि वो अपना सर तो छिपा सके नही तो वो बेचारे बारिश में भीगते रहेंगे और उन मजलुमो की हाय आसमान तक पहुंच जाएगी" रुपाली जी ने कहा

" उन्हें घर देने की ज़िम्मेदारी हमारी नही सरकार की हे जिन्हे वोट देकर उन्होंने उन्हें जिताया था, अब उस जगह का सौदा हो चुका हे और एडवांस भी लिया जा चुका हे अगर कुछ दिनों में उन्होंने उस जगह को खाली नही किया तो फिर जो अंजाम होगा उसके ज़िम्मेदार वो खुद होंगे लाइट बंद करो और सो जाओ मुझे बहुत नींद आ रही हे " हंसराज अपनी बात मुकम्मल करके करवट बदल कर आँखे बंद करके सो गया



और वैसे भी वो लोग अवैध कब्जा किए हुए थे वहा एक ना एक दिन तो थे होना ही था तो अब हो गया और हम लोगो ने कोई एक दम से कार्यवाही नही की उनपर हमने पहले उन्हें आगाह किया और समझाया था की यहाँ से चले जाए अपने आप वरना बाद में हमें कोई सख्त कदम उठाना होगा" हंसराज जी ने कहा

"मैं कारोबार के बारे में तो ज्यादा कुछ नही जानती लेकिन इतना कहूँगी की किसी के लिए भी अपना, घर अपनी जगह छोड़ना इतना आसान नही भले ही वो झुग्गी झोपडी ही क्यू ना हो, एक बार और सोच लिए नही तो उन्हें और मोहलत दे दीजिये या फिर उनको कोई और जगह दे दीजिये ताकि वो अपना सर तो छिपा सके नही तो वो बेचारे बारिश में भीगते रहेंगे और उन मजलुमो की हाय आसमान तक पहुंच जाएगी" रुपाली जी ने कहा

" उन्हें घर देने की ज़िम्मेदारी हमारी नही सरकार की हे जिन्हे वोट देकर उन्होंने उन्हें जिताया था, अब उस जगह का सौदा हो चुका हे और एडवांस भी लिया जा चुका हे अगर कुछ दिनों में उन्होंने उस जगह को खाली नही किया तो फिर जो अंजाम होगा उसके ज़िम्मेदार वो खुद होंगे लाइट बंद करो और सो जाओ मुझे बहुत नींद आ रही हे " हंसराज अपनी बात मुकम्मल करके करवट बदल कर आँखे बंद करके सो गया





रुपाली जी ने भी लाइट् बंद की और सर के नीचे दोनों हाथ रख कर करवट बदल कर कुछ सोचने लगी और इसी बीच उनकी आँख लग गयी ।

आगे क्या होगा, क्या हंसराज पर रुपाली जी की बातों का कुछ असर होगा, जानने के लिए पढ़ते रहिये।

धन्यवाद