ये कहानी है सन् 2016 की.... इंदौर से वाराणसी की और जाने वाली ट्रेन मे कुछ 4 से 5 लड़के एक साथ सफर कर रहे थे। वो सभी पक्के दोस्त थे और घूमने के लिए वाराणसी जा रहे थे।
रात के करीबन 2 बजे ट्रेन खंडवा स्टेशन पहुंच चुकी थी। स्टेशन मे अनाउंसमेंट सुनकर उन लड़कों मे से एक लड़के की नींद खुल जाती है। वो अपने दोस्तों को उठते हुए पूछता है, “भाई खंडवा स्टेशन आ गया है, कोई चाय पायेगा क्या..?”
“अरे भाई अर्जुन...! इसमें पूछने वाली क्या बात है यार, फटाफट 5 गरमा गरम चाय ले ले।” उन लड़कों मे से एक लड़का अपनी आंखे मसलते हुए उस लड़के अर्जुन से कहता है।
अर्जुन एक चाय वाले को रोकता है और फिर उससे 5 चाय ले लेता है। पांचों दोस्त चाय पीते पीते बातें करने लगते हैं। “अरे भाई ये कैसी बकवास सी चाय है..?” उन लड़कों मे से एक लड़का, जिसका नाम विशाल था, वो चाय की पहली चुस्की लेते ही मुंह बनाते हुए अर्जुन से कहता है।
“अबे भाई अब स्टेशन की चाय तो ऐसी ही लगेगी ना..! अभी इसी से काम चला ले, सुबह जब भुसावल पहुचेंगे तब वहां मस्त इलाईची वाली चाय पी लेना। मैने एक बार वहां की चाय पी थी, कसम से मजा ही आ गया था।” उन्ही लड़कों मे से एक लड़का जिसका नाम तरूण था, विशाल को देखते हुए मजाकिया अंदाज में कहता है।
विशाल सड़ा सा मुंह बनाते हुए जैसे तैसे वो चाय पी लेता है। तभी ट्रेन चलनी शुरू हो जाती है। चाय पीने के बाद वो पांचों दोस्त कुछ देर बात करते हैं, उसके बाद उन लोगों को नींद आ जाती है।
सुबह के 8 बजे के आस पास वो लोग भुसावल पहुंच जाते हैं। भुसावल स्टेशन पहुंचते ही तरूण और अर्जुन ट्रेन से नीचे उतर के सभी लोगों के लिए चाय और वड़ापाव लेकर आ जाते हैं।
सभी लोग चाय पीते पीते वड़ापाव खाने लगते हैं। “अरे भाई तरूण..! यहां की चाय तो मस्त है ही, साथ में वड़ापाव का भी टेस्ट गजब है।” विशाल वड़ापाव खाते हुए तरूण से कहता है।
विशाल की बात सुनने के बाद तरूण मुस्कुराते हुए उससे कहता है, “अरे भाई टेस्ट तो गजब होगा ही, आखिर इसमें कॉकरोच की चटनी जो डली हुई है।”
तरूण की ये बात सुनते ही सभी लोग खाते खाते रूक जाते हैं और गुस्से मे तरूण को घूरने लगते हैं। तभी तरूण उन लोगों का गुस्सा भरा चेहरा देख कर हंस पड़ता है। “अरे भाई मैं तो बस मजाक कर रहा था , इसमें ऐसी कोई चटनी नही है।” तरूण ठहाके लगाकर हंसते हुए अपने दोस्तों से कहता है।
तरूण की बात सुनकर सभी दोस्त अपने अपने हांथ का वड़ापाव एक तरफ रख देते हैं, और फिर तरूण को वहीं सीट पर पटक कर गुदगुदी करने लगते हैं। उन सभी दोस्तों में तरूण सबसे ज्यादा मजाकिया था। वो अपने दोस्तों के साथ मजाक करने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था।
कुछ देर के बाद ट्रेन भुसावल स्टेशन से चल पड़ती है। थोड़ी ही देर के बाद एक छोटे से स्टेशन पर ट्रेन धीमी होने लगती है। तभी कुछ किन्नर ट्रेन मे चढ़ जाते हैं। वो लोग सभी लोगों से पैसे मांगने लगते हैं।
सभी लोगों से पैसे लेते लेते एक किन्नर विशाल और उसके दोस्तों के पास आ जाता है। वो सभी लोग अपनी अपनी जेब से 10 – 10 रूपये निकलकर उस किन्नर को देने लगते हैं। तभी वो किन्नर विशाल को एक थप्पड़ मार देता है। “बड़ा आया 10 रूपये देने वाला...! फटाफट 50 – 50 रूपये निकलो।”
अपने दोस्त को थप्पड़ खाता देख और उस किन्नर के मुंह से 50 रूपये की बात सुनकर उन दोस्तों मे से एक दोस्त जिसका नाम कुंडलिक था, वो अपनी जगह से उठकर किन्नर के सामने खड़ा हो जाता है। अपने दोस्त को पड़े थप्पड़ की वजह से उसको उस किन्नर पर गुस्सा आ रहा था।
“ओए चिकने, ऐसे घूर क्या रहा है , चल जल्दी से 50 रूपये निकाल।” वो किन्नर ताली बजाते हुए कुंडलीक से कहता है। लेकिन कुंडलिक उसकी बात को अनसुना करते हुए गुस्से में उस किन्नर से कहता है, “तू पहले ये बता की तूने मेरे दोस्त पर हांथ कैसे उठाया?”
कुंडलिक की बात सुनकर वो किन्नर उसपर भी हांथ उठाने वाला होता है की तभी कुंडलिक उसका हांथ पकड़ लेता है। वो झटके से उस किन्नर को पीछे ढकेल देता है। वो किन्नर नीचे गिर पड़ता है। तभी लोग देखते हैं की उस किन्नर की विग निकल जाती है। असल मे वो एक नकली किन्नर था। किन्नर बनकर वो लोगों से पैसे लेने मे लगा हुआ था।
जैसे ही उस नकली किन्नर की पोल खुली, उसने अपने साथ वाले को आवाज देना शुरू कर दिया। अचानक से लगभग 10 से 15 नकली किन्नर वहां पर आ जाते हैं।
“ये लो इनकी तो पूरी मंडली आ गई।” कुंडलिक मुस्कुराते हुए उन सबको देखते हुए अपने दोस्तों से कहता है। तभी वो सारे नकली किन्नर उन लोगों को मारने के लिए उनकी तरफ बढ़ने लगते हैं। तभी विशाल उन नकली किन्नरों को देखते हुए अपने दोस्तों से कहता है, “आज अगर इन लोगों को सबक नही सिखाया तो ये लोग ऐसे ही लोगों को बेवकूफ बनाकर लूटते रहेंगे। आज इनको ऐसा सबक सिखाओ की आज के बाद ये ऐसा करने की जुर्रत भी ना करे।"
विशाल की बात सुनते ही उसके दोस्तों के साथ साथ उस बोगी मे बैठे हुए सभी लोग उन नकली किन्नरों की सुताई करना शुरू कर देते हैं। इसके बाद वो लोग पुलिस को इस बात की खबर कर देते हैं। वहीं इस बात की खबर असली किन्नरों को भी लग गई थी। वो लोग पुलिस के साथ अगले स्टेशन मे उस ट्रेन का इंतजार कर रहे थे।
अगला स्टेशन आते ही सभी लोगों ने उन नकली किन्नरों को मारते मारते बोगी से बाहर लाकर रेलवे प्लेटफॉर्म पर खड़ा कर दिया। जैसे ही पुलिस उन लोगों को हथकड़ी पहनाने के लिए आगे बढ़ने लगी, वहां खड़े किन्नर आगे आए और उन नकली किन्नरों का मुंह काला कर दिया। और इतना ही नहीं, उन लोगों ने भी उनकी जूते चप्पलों से सुताई करना शुरू कर दिया।
इसके बाद उन किन्नरों ने विशाल कुंडलिक और उनके सभी दोस्तों को तहे दिल से आशीर्वाद दिया। विशाल और उसके दोस्त भी ये अच्छा काम करके बहुत खुश थे।
नकली किन्नरों को पहचान पाना बहुत मुश्किल है। आप इन्हे देख कर पता ही नही लगा पाओगे की इनमे कौन असली किन्नर है और कौन नकली ? इन लोगों की वजह से ही लोगों का किन्नरों पर भरोसा उठता जा रहा है। ये नकली किन्नर उन लोगों की छवि इतना ज्यादा बिगाड़ देते हैं की लोग उन्हे सम्मान की नजर से देखने की बजाए उन्हें देखते ही इधर उधर भागने लगते हैं । सन् 2021 के आंकड़ों के हिसाब पाया गया की भारत मे 100 प्रतिशत किन्नरों मे से 60 प्रतिशत किन्नर नकली निकले।