Yaado ki Asarfiya - 4 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 4. गुरुपूर्णिमा

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

यादों की अशर्फियाँ - 4. गुरुपूर्णिमा

4. गुरुपूर्णिमा


आकाश में अंधकार छाया हुआ था। सब और छाता और रेनकोट दिखाई दे रहे थे। खड्डे गंदे पानी से भर गए थे और इसी गंदे पानी की वजह से हमारा यूनिफॉर्म, जूते खराब हो जाते थे फिर भी स्कूल जाने का एक उत्साह था। स्कूल पहुंचते ही प्रार्थना के लिए हमारा ठिकाना होता है क्लासरूम क्योंकि जो बॉयज पहले कंपाउंड में खुले आसमान के नीचे बैठते थे उसे बारिश से बचने के लिए लॉबी में बिठाते थे और लॉबी में बैठने वाली हम गर्ल्स क्लासरूम में बैठते थे जहां प्रार्थना काम मस्ती ज्यादा होती थी।


बारिश के छोटे छोटे बूंद खिड़की से अंदर आकर मेरी प्यारी किताब को गीला कर दिया फिर भी मेरा ध्यान निशांत सर की उस ज्ञान की बातो में था। बारिश की आवाज़ के साथ पढ़ना कितना रोमांचकारी था! तभी जैसे टीवी के सबसे प्यारे शो के बीच में Ad आ जाती है वैसे ही हमारे निशांत सर के पीरियड में मेना टीचर आ जाते थे अपने काम से। वह पहले पीरियड में स्टूडेंट्स की अटेंडेंस लेने आते थे उसे सिर्फ बोर्ड पर लिखी हुई संख्या जो हम मॉनिटर लिखते थे उसे अपनी नोटबुक में लिखने का काम था फिर भी डिस्टर्ब किए बिना न रहते थे। पर आज उनके पास डिस्टर्ब करने की वजह भी थी। और उसने आते ही अपने कड़क आवाज़ में साधारण सी बात कही क्योंकि उनकी आवाज़ ही कड़क है चाहे कुछ भी बोले।

“आप सब जानते ही हो की कल गुरुपूर्णिमा का कार्यक्रम है और हर बार की तरह इस साल भी वक्तृत्व और गीत गाने का आयोजन किया है। जो कोई भी उसमे हिस्सा लेना चाहे वह अभी मुझे अपना नाम लिखा दे। ”

हमारे क्लास में से कोई भाषण देने में कुशल नहीं था। में तो लिखने काबिल हूं बोलने में नहीं पर हमारे क्लास में एक व्यक्ति है जिसको बिना पूछे ही आंख बंद कर उनका नाम लिख लिया जाता था फिर भी अगर स्पर्धा हो तो पहला ईनाम उसी को मिलता। वह रीति। गाना गाने में नंबर 1। फिर क्या मेना टीचर चले गए और हम सब फिर से सर की बातो में को गए।

गुरुपूर्णिमा का कार्यक्रम त्योहार की तरह मनाया जाता था। मुझे यकीन है की दूसरी स्कूल में गुरुपूर्णिमा का नाम तक नहीं लेते होंगे। टीचर्स डे के अलावा दूसरी स्कूल में शिक्षक को कहा सम्मान दिया जाता है? पर हमारी स्कूल में ऐसा न था। गुरुपूर्णिमा का त्योहार हर साल अच्छे से मनाया जाता था पर इस बार तो कुछ अलग ही होने वाला था। अच्छे से बेहतर की ओर।


* * *


आज गुरुपूर्णिमा का दिन था। सभी टीचर्स सिवाय मेना टीचर अच्छे से तैयार हो कर आए थे। आए भी क्यों न? आखिर उन्ही का तो दिन था पर फिर भी लगता था की कुछ खास जरूर है आज के दिन जो पहले कभी नहीं हुआ। पता नही क्या?


यह कार्यक्रम रिसेस के बाद दो घंटे होता था। हम सब तो बिंदास थे लेकिन जिनको गीत गाना था, स्पीच देनी थी वह चिंतातुर और नर्वस थे। और सबसे ज़्यादा परेशान तो हमारे सीनियर अमी दीदी थे। मुझे लगा की आज वह सबसे अच्छा भाषण देंगे वैसे ही वह काफी होशियार है। अमी दीदी मल्टी टैलेंटेड थे। वह हर कोई काम में उत्तम थे चाहे पढ़ाई हो, नृत्य हो, स्पीच हो, लेखन हो या गीत गाना हो। मेरी तो प्रेरणा थे। उनकी सहेली प्रीति भी काफी मदद कर रही थी। हम सब अनजान थे की क्या होने वाला है।


प्रीति ने हम से कहा की

“ जब अमी गुड मॉर्निग बोले तो सब बोलना हां। ”

हम सब ने सोचा की स्पीच में तो हर कोई गुड मार्निंग बोलता है तो सब थोड़ी ना ऑडियंस को कहने आते है। वैसे भी अमी दीदी के अलावा भी सब अपना भाषण देने वाले है। वह तो कोई नहीं आया।


जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो हम सब ने देखा और हमारी आंखे खुली की खुली ही रह गई। जहां दीपिका मेम को खड़ा होना चाहिए था वहां अमी दीदी खड़ी थी और मेम तो पीछे बैठे थे। और अमी दीदी ने अपनी स्पीच शुरू की,

“ गुड मॉर्निग”


पर हमारी तरह सब चौक गए तो कोई बोल नही पाया। अब समझ में आया की क्यों प्रीति ने हमे कहा था। अमी दीदी एंकरिंग कर रहे थे। यह सच में गुरुपूर्णिमा का तोफा था दीपिका मेम को जो हर कार्यक्रम को लीड करने के चक्कर में कार्यक्रम को मनाना ही भूल जाते थे। इस साल पहली बार किसी स्टूडेंट ने अपनी मर्जी से खुद टीचर का काम कम किया था।

गुरुपूर्णिमा और टीचर्स डे का मिलन हो गया। में तो देख कर नि:शब्द रह गई की जिस प्रकार अमी दीदी ने एंकरिंग किया है मानो दीपिका मेम ही कर रहे है या कहे की कोई टीचर ने भी पहली बार ऐसा अच्छा नहीं किया होगा।

फिर क्या शुरू हुआ कार्यक्रम जेसे हर साल शुरू होता है इस दोहे से


“गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।”

फिर शुरू होता सभी का भाषण और गीत का दौर।


अन्त में धीरेन सर ने अमी दीदी की तारीफ भी की।

दीपिका मेम तो जैसे खुशी से झूम उठे। केसा लगेगा एक शिक्षक को जिसका स्टूडेंट इतना कुशल हो जाए की वह शिक्षक को टक्कर दे। यह तो गर्व की बात है।


मेरी सच्ची गुरुपूर्णिमा तो तभी होगी जिस दिन मेरे टीचर को लगेगा की उसकी स्टूडेंट उनके पैर छू कर उनके आगे चली गई और वहा भी वही पैर के निशान होंगे जिस पैर को उसने छुआ था।


* * *


उस दिन कनक टीचर ने कहा था की

“ मेरी एक विद्यार्थी ने मुझे भगवतगीता भेट स्वरूप दी, इस गुरुपूर्णिमा के अवसर पर”


यह सुनकर मेने भी अपने आप से प्रोमिस किया की अगले साल में भी अपने सबसे प्यारे टीचर दीपिका मेम को इसी दिन एक शानदार गिफ्ट दूंगी। ”


अब देखते है की मेरा प्रोमिस पूरा होता है की.....