तब वो हंसी दिल के किचन से खत्म हो जाती है...
9.
तुम्हारी पसंद
धूपबत्ती भी तुम्हारी पसंद की जलाती उस घर में,
गर तुम मिले होते 25 से पहले,
या होते मेरे पहले पहले,
किसी के शौक को,
कैसे बनाते हैं अपनी पसंद,
हर वक्त जताती तुम्हें उस घर में,
आरज़ू दबाए यहां ना जाने,
फिर रहे थे कबसे,
आरज़ू कैसे करी जाती हैं मदमस्त,
हर वक्त बताती तुम्हें उस घर में,
छुपाने में तुम भी माहिर हो,
छुपाने में, मैं भी कुछ कम नहीं,
हर राज़ कर देती दफा,
तुमसे कुछ ना छुपाती उस घर में,
समय की अपनी तहरीज़ है,
कि जद्दोजेहद में अब मैं रहती हूं,
चेहरे और आंखों को कैसे पढ़ेंगे,
अब हम दोनों,
कि मैं रहती हूं इस घर में,
तुम रहते हो उस घर में...
10.
एहसास कभी खत्म नहीं होते...
इंसान रहे या ना रहे...
एहसास रहते हैं...
11.
संभाल कर रखना अपना वो एक चांद
जिसको देख कर शीतलता का एहसास कर सको,
वो एक चांद और कोई नहीं,
हो तुम स्वयं
कभी पूनम रात्रि की तरह चमकोगे,
तो कभी हो जाओगे अमावस के,
जीवन को जीने का तरीका,
रखना कुछ ऐसा,
की सख्त पत्थर पर भी निशान कर सको...
12.
किसी को ना चाह के, अब आबाद हैं हम,
फितरत ये बड़ी मुश्किल से पाई है,
वो जो इश्क का दरिया था और
डूब के जाना था,
उस दरिया में डूब के भी हमने,
किस्मत आज़माई है...
13.
कभी तो आयेगा दिन वो
जब तुम भी तड़पोगे हमारे लिए,
"आज तो गुमान तुम्हें बहुत है..."
14.
सुन लो...
पेशानी थोड़ी सी है,
गले लगा लो और,
सुन लो,
"बाद उसके"
ना चाहो तो,
चुप रह जाऊंगी,
चाहो तो, मुझे,
चुन लो...
15.
कुछ कम रहे
तराज़ू में तोल के देखा,
मेरे एहसास हमेशा कुछ कम रहे,
बरसात तो होती रही,
मगर हम भीगते कुछ कम रहे,
जिसको रखना था,
हीरे की तरह सदा के लिए,
ना रख पाने की,
मजबूरियों में बस हम रहे...
16.
सुना है अब तेरे शहर में,
वो शाम नहीं होती,
अब, जो हमारी मुलाकात नहीं होती,
शाम तो आज भी होती है,
मगर शामों में अब वो बात नहीं होती...