They don't come again - Revealing Rajesh Khanna in Hindi Biography by Manish Dixit books and stories PDF | वो फिर नही आते - Revealing Rajesh Khanna

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वो फिर नही आते - Revealing Rajesh Khanna

१९६० दशक के शुरुवाती सालो तक "मुग़ल ए आझ़म", "मदर इंडिया" और "प्यासा" जैसी बेहतरीन फिल्मों ने हिंदी फिल्म जगत में तहलका मचा दिया था।

१९५७ में आई मदर इंडिया हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की पहली ऑस्कर नामांकित फिल्म बनी।

उसी समय रीलीज हुई गुरुदत्त की फिल्म "प्यासा" भी उस साल में बनी एक अद्वितीय फिल्म रही। 1959 मे आई,गुरुदत्त की फिल्म "कागज के फूल" फिल्मी जगत के cinematography क्षेत्र मे एक क्रांतिकारी फिल्म साबित हुई। हालाकि वो फिल्म प्रेक्षको में अपनी जगह बनाने में नाकामियास्ब रही।

नवरंग, दो उस्ताद, छोटी बहन, सुजाता, पैगाम,गूंज उठी शहनाई जैसी कई हिट फिल्मों ने १९५९ साल को अपने नाम किया।

१९६० के दशक से ही धीरे धीरे ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का चलन भी कम होने लगा।



इसके बाद १९६० में आई के.आसिफ द्वारा दिग्दर्शित "मुगले आजम" के सारे गाने बहुरंगी फिल्माए गए। हालाकि वो फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट में प्रदर्शित हुई।दिलीप कुमार की बेहतरीन अदाकारी और नौशाद के आलीशान संगीत ने मुगले आजम ने अपनी अलग मिसाल बनाई।



१९६० तक हिंदी फिल्म जगत प्रगति के चरम पर था।

एक्टर्स, डायलग्स, संगीत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बढ़ते जा रहे थे।

एक तरफ s.d Burman, नौशाद, रवि, रोशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, शंकर जयकिशन, कल्याणजी आनंद जी, मदन मोहन, जैसे दिग्गज संगीतकारो के सुमधुर गाने लोगो के दिलो पे राज कर रहे थे तो दूसरी तरफ कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, साहिर लुधियानवी जैसे मजले हुए गीतकारो के गीत के बोल लोगो के दिलो दिमाक पे छा गए थे।


एक तरफ दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार,शम्मी कपूर, सुनील दत्त, देव आनंद, गुरुदत्त, राज कपूर की फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी लोगो को दीवाना बना रही थी।

तो दूसरी तरफ वहीदा रहमान, मधुबाला, नूतन, वैजयंती माला, मीना कुमारी, गीता बाली, नंदा, और सुरैया की मनमोहक अदाएं लोगो को आकर्षित कर रही थी।






और इधर, एक्टर बनने के सपने को अपने पलको पे सजाए जतिन नई राह ढूंढने निकल पड़ा।



INT DRAMA COMPANY
Bombay


उस जमाने के मशहूर स्क्रिप्ट writer और director "सागर सरहदी" अपने theater play के कुछ dialuagues अपने किरदारों से रिहर्सल करवाने में लगे थे।

जतिन रोज श्याम को IMT drama company में आता और दीवार के एक कोने में खड़े होकर थिएटर प्ले के rhearsals देखते रहता।

कुछ महीने ऐसे ही बीते। जतिन का हर श्याम IMT company में वक्त बिताने का सिलसिला शुरू ही रहा।


एक दिन। जतिन के senoir student vk Sharma की नजर जतिन पर पड़ी।


vk Sharma: अरे काका! तुम?

वहा कोने में खड़े छुप छुपके क्या देख रहे हो?


जतिन हड़बड़ाते हुए सामने आता है.

जतिन: कुछ नही बस ऐसे ही रास्ते से गुजर रहा था, तो सोचा यहां आकर देखू क्या चल रहा है।


vk Sharma: तुम यहां रोज़ आते हो ना?

जतिन थोड़ा घबराकर हामी भरता है।



तभी सागर सरहदी वहा आते है।

vk Sharma: काका, इनसे मिलो। ये है हमारे थिएटर प्ले के writer and director सागर सरहदी सहाब।

जतिन घबराकर बड़े ही उत्सुकता से सागर सरहदी से हात मिलाता है।

सागर सरहदी: vk, shot ready है!! rhearsal कर ले।

vk Sharma: ok. जतिन तू यही रुकना। मैं थोड़ा rhearsal कर के आता हु।


उस समय writer सागर सरहदी की लिखी गई theatre play " मेरे देश के गांव" की rhearsal शुरू थी।


दूर कोने में खड़े रह कर जतिन अपने दोस्त vk Sharma को theatre play के कुछ dialuagues बोलते देख रहा था।

कुछ दिन ऐसे ही बीतेन।

जतिन हर रोज बिना भूले int company में आता और थिएटर प्ले rhearsal देख कर लौट जाता।

उसे ऐसा लग रहा था की मुझे रोज आता देख शायद उसका दोस्त उसे इस thetre प्ले में कुछ रोल दिलवां दे।

लेकिन उसका दोस्त vk Sharma और राइटर सागर सरहदी सहाब rhearsals में इतने busy रहते की वो जतिन की तरफ ध्यान नही दे पाते थे। जतिन हर रोज कुछ उम्मीद के साथ int company में आता था और निराश होकर लौट जाता।

और फिर एक दिन। इत्तेफाक से उस थिएटर प्ले का एक एक्टर बीमार था।

शॉट रेडी था।

सागर सरहदी: क्या हुआ? आया की नही वो?

vk Sharma निराश होकर सागर सरहदी सहाब से कहता है।

sir उसके घर से खबर आई थी की उसकी तबियत खराब है वो एक महीने तक नहीं आ पाएगा।


अब क्या करे।

दो ही दिनों में प्ले का राष्ट्रीय स्तर पर पहला शो होने वाला था।

दोनों चिंतित होजाते है।

उस एक्टर के किरदार के लिए योग्य ऐसा दूसरा एक्टर इतने कम समय में खड़ा करना बोहोत मुश्किल था।

तभी vk Sharma की नजर जतिन पर पड़ी।

vk Sharma: जतिन इधर आओ जल्दी।
क्या तुम ये रोल करोगे??

जतिन ने फौरन हा कह दिया। जतिन की धडकने तेजी से धड़कने लगी।

महीनो इंतजार करने के बाद अब जाकर उसे ये सुनहरा मौका मिला था।

एक्टर बनने के अपने सपने की राह पर चलते हुए जतिन की जिंदगी का ये पहला कदम, पहला मौका था। लेकिन ये इतना भी आसान नहीं था।

दो दिन बाद।

जतिन रूम में बैठ कर अपने किरदार को अपने अंदर ढाल कर बड़े ही जोश से अपने dialauges की reahersal करते हुए आईने के सामने खड़ा था।

तभी वहा उसका दोस्त हरिदत्त आता है। वो इस thetre play में एक मानसिक रोगी का रोल प्ले करने वाला था।

हरीदत्त: काका! होगयी सारी तैयारी??

जतिन: हा हा। बस एक बार इस dialauge को फिर से याद कर लूं बस।

हरिदत्त: टेंशन न ले। तू अच्छा ही करेगा।

चल जल्दी कर १० मिनिट में अपनी एंट्री है।

तभी वाहा उसके कॉलेज का दोस्त प्रशांत भी उसका thetre play देखने वहां आ पहुंचता है।

प्रशांत: कैसे हो काका।
जतिन: ठीक हूं।

प्रशांत: अच्छा सुनो, अपने कॉलेज का वो बदमाश लड़का पाई भी आया है। जरा ध्यान से।

जतिन के कॉलेज में एक लड़का था। जिसका नाम था "पाई"। वो जतिन के थिएटर प्ले का दुश्मन था। प्रशांत जतिन को उसीके बारे में आगाह कर रहा था।

जतिन के कॉलेज के दिनों में कॉलेज में जब भी कोई thetatre प्ले होता था तब तब ये पाई नाम का लड़का अपने कुछ बदमाश साथियों के साथ मिलकर पूरा थिएटर प्ले बिगाड़ देता था।

प्रशांत: All the best काका! चलता हु।

इस thetre play में जतिन का एक दरबान का रोल था। जिसे सिर्फ एक ही dailauge बोलना था " जी हुजूर सहाब घर में है"

जतिन ने इस dailauge के लिए काफी rhearsal कर ली थी। लेकिन फिर भी, जैसे जैसे उसकी एंट्री का वक्त नजदीक आरहा था, उसकी बेचैनी और बढ़ने लगी। वो थोड़ा डरा हुआ था। अपनी तरफ आंखे जमाए हजारों लोगों के सामने डायलॉग बोलने के सिर्फ कल्पना मात्र से ही वो थोड़ा अस्थिर होने लगा और अंदर ही अंदर थोड़ी झिजक महसूस करने लगा।

आखिर शो स्टार्ट हुआ।

और कुछ देर में ही जतिन की बारी आई। जतिन के स्टेज पर आते ही सारे प्रेक्षक उसकी तरफ देखने लगे। वो थोड़ा घबरा गया। सामने बैठी सारी जनता की आंखे अपनी तरफ गढ़े हुए देख उसकी धड़कने इतनी तेज होने लगी की वो अपनी धडकन की आवाज अपने कानो से सून पा रहा था।


thetre का पर्दा गिरा।

thetre play के मुताबिक जतिन दरबान की पोशाख पहने अपने जगह पर सीना तान कर खड़ा था।

thetre का पर्दा उठते ही सीन शुरू होता है

दरबान के सहाब घर पर आते है।

दरबान: सलाम साब। (जतिन अपने साब को सैल्यूट करते हुए एक्टिंग करता है)

साब: मैं थोड़ा फ्रेश होकर आता हु। कोई आए तो उन्हें कहना साब घर पर है।

दरबान: जी साब।

तभी वहा दूसरे एक्टर की एंट्री होती है।

एक्टर: साब घर पर है?

जतिन थोड़ा हड़बड़ा जाता है। हड़बड़ाहट में उसके पैर कांपने लगते है। जबान सिकुड़ने लगती है और इसी घबराहट में वो गलती से डायलॉग को उल्टा बोलता है।

दरबान: जी साब, हुजूर घर पर है।

जतिन को तुरंत समझ में आता है की उसने गलत dialuage बोला है।

वो घबराकर वहा से फौरन दौड़ कर रोते रोते निकल जाता है।

तभी सामने के row में बैठे पाई और उसके कुछ बदमाश साथी जतिन की तरफ अंडे और केले फेकने लगते है।
सब लोग हसकर चिल्लाने लगते है। लोगो के आक्रोश की वजह से आखिर डायरेक्टर को thetre का पर्दा गिराना पड़ता है।


इतनी सारी rehearsals और इतनी मेहनत करने के बाद भी वो सही डायलॉग बोलने से चूक जाता है।

जतिन किसी से बात किए बिना ही मेकअप रूम में जाकर दरवाजा अंदर से बंद करके आइने में देखते हुए अपने आप को कोसने लगता है।

जतिन: ये क्या कर दिया मैंने। मेरे सपनो की तरफ बढ़ने वाला मेरा पहला कदम ही लड़खड़ा गया। मुझे ऐसा लग रहा है के मेरे सपनो को मेरे ही पैरो तले कुचल दिया। मैं इसके लायक ही नहीं हूं।


उस रात जतिन शराब के प्याले में उसके हार के आसू भी घुल चुके थे। लेकिन शराब का नशा उसके हार के आसू का खट्टा स्वाद भी कम नहीं कर पा रहा था।

उस रात जतिन को ये महसूस हुआ की इस दुनिया मे वो सब लोगो से दूर भाग सकता है, लेकिन अपने आप से नही।


दूसरे दिन।


हरिदत्त: अरे यार काका तू इतना टेंशन क्यों लेता है?? चल कही घूम के आते है।

जतिन: नही यार तुम लोग जाओ। मैं यही बैठूंगा।

हरिदत्त: अरे यार भूल जा उस बात को। जाने दे। होजाता है गलती से कभी कभी।

चल अब जरा मुंह हात धोले। अपना मूड ठीक कर और चल हमारे साथ।

तभी ,

काका तुम्हारे लिए फोन है!!!

जतिन को उसके पिताजी चुन्नीलाल खन्ना का फोन आता है।


चुन्नीलाल: कैसे हो बेटा?

जतिन: मैं ठीक हु पिताजी।

चुन्नीलाल: कैसा चल रहा है तेरा कॉलेज?

जतिन(दबी आवाज में): अच्छा चल रहा है पिताजी।

ये बात कहके जतिन मन ही मन में रो पड़ता है।

अब उसे लग रहा था की एक्टर बनने के उसके सपने ने उसके पिताजी की ख्वाहिशों को भी चूर चूर कर दिया।

वो अब अंदर से टूटने लगा। अपने आप को कोसने लगा।

कुछ दिन ऐसे ही बीतें।

जतिन ने thetre play में वापस हिस्सा लेना शुरू किया।

जैसे तैसे काम करते हुए आखिर कुछ जगहों पे thetre play होने लगे।

और इत्तेफाक से "मेरे देश के गांव" thetre play int drama company का सबसे सफल thetre play रहा।

हालाकि उसका श्रेय प्ले में मौजूद हरिदत्त को गया। हरिदत्त को इस प्ले के लिए अवार्ड भी मिला।

लेकिन जतिन अभी भी अपना खोया हुआ आत्मविश्वास हासिल करने में लगा था।

धीरे धीरे जतिन int company के theatre play rehersals में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने लगा।

"मेरे देश के गांव" के बाद सागर सरहदी की लिखी गई thetre play "और शाम् गुजर गई " मे भी जतिन ने सराहनिय काम किया. लेकीन ऊस play से भी जतिन को कुछ खास प्रसिद्धी नही मिली.

लेकीन फिर भी उम्मीद न छोड़ते हुए जतिन ने theatre play में भाग लेना जारी रक्खा।

धीरे धीरे जतिन को INT DRAMA COMPANY के थिएटर की आबोहवा रास आने लगी।

सिगरेट के धुए के छल्लो के बीच थिएटर प्ले में जतिन की हर शाम गुजरने लगी। नई कहानियां, नए किरदारो के बारे में घंटो बात चीत चलने लगी।

इसी बीच जतिन ने intercollage thetre competition में भी भाग लेना शुरू किया। इसी दौरान जतिन ने सागर सरहदी की लिखी गई और vk Sharma दिग्दर्शित थिएटर प्ले "और दिए बुझ गए" में भी एक बड़े भाई के किरदार में काम किया।इस किरदार के लिए जतिन को कॉलेज फेस्टिवल में अपनी जिंदगी का पहला अवार्ड भी मिला।अब जतिन अपने काम को लेकर पहले से काफी खुश था। जतिन अब thetre Play में काम करने के लिए कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहता था। किरदार चाहे छोटा हो या बड़ा, जतिन हर किरदार निभाने के लिए उत्साहित और आग्रही रहता था। और यही उत्साह लेकर वो हमेशा अपने दोस्त vk Sharma के पास जाता।


उन दिनों अलग अलग थिएटर प्ले डायरेक्टर,राइटर और एक्टर्स का ग्रुप हुआ करता था। और जतिन अब डायरेक्टर vk Sharma aur script writer सागर सरहदी के ग्रुप का सदस्य था।


उसी दौरान उस समय के मशहूर लेखक "धरमवीर भारती" बॉम्बे आए थे। धरमवीर भारती उस जमाने की सुप्रसिद्ध काव्य नाटक "अंधा युग" के writer थे। और उसी समय और एक मशहूर थिएटर फिल्म डायरेक्टर "सत्यदेव दुबे" उनकी लिखी गई काव्य नाटक को theatre play में दिग्दर्शित करना चाहते थे।


इधर जतिन हर रोज कोई नए थिएटर प्ले के किरदार के लिए vk Sharma के पीछे लग जाता। लेकिन उस समय उनके पास कोई प्ले नही था।

तभी vk Sharma ने जतिन को सत्यदेव दुबे जी से मिलवाया और उन्होंने जतिन को एक "गूंगे सैनिक" के किरदार में अपने thetre प्ले "अंधा युग" में काम दिलवाया।


धीरे धीरे जतिन का आत्मविश्वास और बढ़ने लगा। उसकी आशाएं, सपनो की और ऊंची उड़ान भरने के लिए उत्सुक थी। शायद इसीलिए उसे अब ये थिएटर प्ले का रंग मंच उसे छोटा लगने लगा। वो अब किसी फिल्म में काम करना चाहता था। यही समय था, जब जतिन अपनी फोटोग्राफ्स लेकर सभी निर्माताओं के ऑफिस के चक्कर काटने लगा। उसे ये पता था कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए वो एक मामूली theatre play actor के अलावा और कुछ नही है। इसीलिए फिल्म इंडस्ट्री की तरफ बढ़ने के लिए अपना पक्का रास्ता बनाने के साथ साथ ही वो थिएटर प्ले के अपने हुनर को और बेहतर बनाने का काम भी कर रहा था।

लेकिन उसे ये नही पता था कि आने वाले कुछ ही दिनों में जाने अनजाने उसके लाईफ का एक नया, और बोहोत ही नाजुक और संजीदा chapter खुलने जा रहा था।

प्यार का chapter।



धीरे धीरे फिल्मों से और थिएटर प्ले से जुड़े छोटे बड़े नामी गिरामी लोगो से पहचान बढ़ने लगी।

और ऐसे ही एक दिन।


हमेशा की तरह जतिन अपने थिएटर प्ले के कुछ दोस्तो के साथ सिगरेट पीते हुए वक्त बिता रहा था। के तभी एक स्पॉट ब्वॉय जतिन को आवाज देता है।

स्पॉट ब्वॉय: sir आपके लिए फोन है।

जतिन: हेलो?

उधर से भारी आवाज में,

b.s.thapa:क्या तुम जतिन खन्ना बोल रहे हो?

जतिन: हा जी बोलिए?

b.s thapa: क्या आज श्याम को तुम gaylord restaurant में मिल सकते हो?


जतिन: जी आप कौन?

मैं Mr thapa बोल रहा हु।


उन दिनों gaylord restaurant हिंदी फिल्म जगत की कई नामी गिरामी हस्तियों का अड्डा बन चुका था।



जतिन के लिए भी वो जगह नई नही थी।

struggler के लिहाज से चर्च गेट से होते हुए gaylord restaurant की तरफ जतिन का आना जाना लगा रहता था।




और ऐसे ही एक दिन।


Mr thapa का इंतजार करते हुए जतिन चर्च गेट के पास gaylaord restaurent में बताए हुए समय तक पहुंच गया।


आज जतिन बोहोत खुश था। क्यों की उसे पता था की आज उसे बोहोत दिनो बाद फिर से theatre play मे काम करने का मौका मिलने वाला था।

थोड़ी ही देर में वहा b.s thapa के साथ थिएटर प्ले की हीरोइन अंजू महेंद्रू साथ में पहुंचती है।


अंजू महेंद्रू का असीम सौंदर्य, प्रभा मंडल, वेश भूषा देख जतिन की आंखे खुली की खुली रह जाती है।

कंधे तक सिमटे हुए घने बाल, आंखों में काजल की तेज चमक, होठों पर सजी हुई शानदार महंगी सिगरेट देख जतिन एक जगह स्तभ हो जाता है।

उसका वो बेहद अकड़ दिखा कर स्टाइल में चलना और किसी से नजरे ना मिलाकर अकड़ के साथ बात करना, इन सब का जतिन पर अलग ही प्रभाव पड़ने लगा। जतिन अंजू महेंद्रू की एक ही झलक देख कर उसकी तरफ आकर्षित होचूका था।

b.s. Thapa: जतिन, इनसे मिलो। ये है हमारी theatre play की एक्ट्रेस मिस अंजू महेंद्रू।


जतिन मुस्कुराकर बड़े ही उत्सुकता पूर्ण अंजू महेंद्रू से हात मिलाता है।



तीनों restaurant में बैठ कर थिएटर प्ले के बारे में बातें करने लगते है।

अंजू बॉम्बे में रहने वाली रईस घराने की लड़की थी। और जतिन पारंपरिक पंजाबी घराने से था।



दोनो के रहन सहन में बोहोत फरक था। करियर के मामले में भी दोनो में बोहोत दूरियां थी।

जतिन अभी फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगलर था और अंजू बड़ी फिल्मों में पहले ब्रेक की तलाश में थी।

अंजू ने १३ साल की उम्र मे ही मॉडलिंग से अपने करियर की शुरुआत की थी।

अंजू की फिल्म industry में पहले से ही काफी पहचान थी।

उसके नानाजी, राय बहादुर चुनीलाल बॉम्बे के फिल्मीस्तान स्टूडियो के सह मालिक थे।

उस जमाने के मशहूर जाने माने संगीतकार मदन मोहन रिश्ते में अंजू के मामा लगते थे।

शायद इसी वजह से अंजू हिंदी फिल्मी जगत के तौर तरीको से काफी परिचित थी।


दूसरी तरफ जतिन के लिए फिल्मी जगत का माहोल बोहोत नया था। वो फिल्मी दुनिया के तौर तरीको से वाकिफ नहीं था। लेकिन फिल्मों में काम करने की उसकी चाहत में कोई कमी नहीं थी।

इसी वजह से अंजू और जतिन के छोटे छोटे संवाद धीरे धीरे बड़ी बात चीत में बदलने लगे।










अंजू के साथ पहली मुलाकात के दूसरे ही दिन
थिएटर प्ले के रिहर्सल्स शुरू होगए।

Rhearsals कभी पाटकर हॉल में होते थे या कभी भूलाभाई मेमोरियल बिल्डिंग में।


और ऐसी ही एक दिन।


पाटकर हॉल बॉम्बे


स्टेज के बीचों बीच बड़े ही स्टाइल में सिगरेट जलाते हुए अंजू सिगरेट के धुएं में मशगूल थी।

तभी वहा जतिन दबे पांव आकर और अपने हात अपने घुटनों पे रख कर बड़े ही तहजीब से अंजू के पास बैठता है।

जतिन: सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है। क्या तुम्हे पता नही?

अंजू: तो? क्या तुम नही पीते?

जतिन थोड़ा मुस्कुराकर: मुझमें और तुम में फरक है। मैं एक लड़का हू। और तुम एक लड़की।

अंजू: अच्छा ! तो क्या लड़किया सिगरेट नहीं पी सकती। ऐसा लिखा है कही?

जतिन: अच्छा जाने दो। मैने सुना है की तुम्हे एक फिल्म की ऑफर आई है।

अंजू: हा।

जतिन: अरे वाह! ये तो बोहोत अच्छी बात है।
तो क्या तुम सच में फिल्मों में काम करोगी।

अंजू: हा बिल्कुल।

मैं एक्ट्रेस बनना चाहती हू। मैं चाहती हू की सब मुझे सलाम करे मेरे आगे पीछे दौड़े मेरी एक्टिंग की प्रशंसा करे।

जतिन: मैं भी यही चाहता हु अंजू। लेकिन ये सब इतना आसान भी नहीं है।

अंजू: इस फिल्मी दुनिया का अलग ही दस्तूर है मेरे दोस्त।


यहाँ काबिलियत ज्यादा है, लेकिन इज्जत कम।

वक्त ज्यादा है, लेकिन मुहुलत कम।

प्रशंसा ज्यादा है, लेकिन शोहोरत कम।

सुविधाएं ज्यादा है, लेकिन दौलत कम।


जतिन: अरे तुम्हारी तो अच्छी पहचान है यहां। तुम्हे किस चीज की कमी हो सकती है।

अंजू: मुझे किसी चीज की कमी नहीं। कमी है तो बस दो चीज की प्यार की और कैरियर की। सब कुछ मिलता है यहां लेकिन सच्चा प्यार और उसी के साथ अच्छा कैरियर बड़ी मुश्किल से मिलता है मेरे दोस्त।
मैं एक्टिंग में कैरियर करना चाहती हू।


अंजू को किस चीज की जरूरत थी वो जतिन समझ चुका था। और उसमे से एक जरूरत जतिन पूरी कर सकता था।और वो थी प्यार की ज़रूरत।

लेकिन कैरियर के मामले में जतिन खुद ही अंजू से ज्यादा पिछड़ा हुआ था। उसे तो अब तक खुद का ही भविष्य पता नही था तो वो अंजू के करियर की तकदीर कैसे लिख सकता था।

लेकिन एक्टिंग करियर के मामले में दोनो का जुनून एक समान था।


कुछ साल ऐसे ही बीतें। और देखते ही देखते पहली नजर में प्यार वाली कहानी दोस्ती के गहरे रिश्तों में बदलने लगी। दोनो में नजदीकिया बढ़ने लगी।


और इन्ही नजदीकियों से सींची हुई मिट्टी में दोनो के बीच प्यार का बीज अंकुरित होने लगा।


इसी समय की बात थी की अंजू को उसकी लाइफ में पहला ब्रेक मिला। उस जमाने के मशहूर गीतकार "कैफ़ी आज़मी" की मदत से बासु भट्टाचार्य दिग्दर्शित फिल्म "उसकी कहानी" में अंजू महेंद्रू को बतौर एक्ट्रेस अपना पहला रोल मिला।

और उसी समय प्यार की कष्टी में सवार जतिन की जिंदगी में और एक नया मोड़ आने वाला था।


इसी समय, बप्पी सोनी दिग्दर्शित "जानवर" फिल्म में फिल्माए गए "मेरी मोहोबत जवा रहेगी" गाने की शूटिंग शुरू थी।

" शम्मी कपूर" उस जमाने के सूनहरे दौर के एक मजबूत उभरते सितारे थे ।

उनकी पत्नी गीता बाली भी १९५० के दशक के अभिनेत्रियों के बड़े नामों में से एक थी।

शम्मी कपूर और गीता बाली की शादी १९५५ में हुई।

साल १९६५ तक शमी कपूर "जंगली" "प्रोफेसर", "China Town", "काश्मीर की कली" जैसी सुपरहिट फिल्मों में अपनी बेहतरीन अदाकारी का जलवा बिखेर चुके थे।

अभिनेत्री राजश्री और शम्मी कपूर के साथ फिल्माए गए इस गाने के दौरान गीता बाली शम्मी से मिलने आती है।


उन दिनों गीता बाली अपनी coproduction "Bali sisters"में बनने वाली पंजाबी फिल्म "रानो" के लिए एक पंजाबी एक्टर की तलाश में थी।


गीता शम्मी से अपने फिल्म के लिए leading actor ढूंढने को कहती है। लेकिन उस जमाने में पंजाबी फिल्म के लिए leading actor मिलना मुश्किल था।

उसी दौरान जतिन अपने पहले फिल्म की तलाश में हर कोशिश अजमा रहा था।

उस जमाने



इत्तेफाक से जिस बिल्डिंग में जतिन अपने थिएटर प्ले की rehearsals करता था, उसी बिल्डिंग के सामने गीता बाली का office था।

तभी एक दिन ,

जतिन अपने दोस्त हरिदत्त के साथ बिल्डिंग की सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए देखता है की गीता बाली के ऑफिस में लोगो की भीड़ लगी है।

तभी सामने से गुजरते हुए उस जमाने के कॉमेडियन एक्टर जॉनी वॉकर उसे मिलते है।

जतिन उन्हें रोकते हुए पूछता है।

जतिन: दादा! क्या हो रहा है सामने की building में? इतनी भीड़ क्यों है?

जॉनी वॉकर: अरे भाई गीता मैडम अपनी नई फिल्म के लिए एक्टर ढूंढ रही है। इसलिए सब इंटरव्यू के लिए ऑफिस में आए है।


हरिदत्त: काका!! यही मौका है। जाओ अपनी किस्मत आजमाओ।

मैडम नीचे आरही है। जाओ जल्दी ऐसा मौका फिर नही मिलेगा!

जतिन भागते भागते सीढ़ियों से नीचे उतरते गीता बाली की तरफ पहुंचता है।



लेकिन गीता बाली के अचानक सामने आते ही जतिन हड़बड़ा जाता हैं।

फिल्म जगत की इतनी बड़ी हस्ती को अचानक अपने सामने देख जतिन का गला सुख गया।

तभी सामने से

गीता: तुम ॲक्टर हों क्या?

जतिन हड़बड़ाहट में कुछ कह नहीं पाता।

गीता: क्या तुम एक्टर बनना चाहते हो?

इस बार जतिन बड़े ही उत्साह से गर्दन हिलाते हुए हां कहता है।

गीता: मैं मेरे आनेवाली एक पंजाबी फिल्म के लिए एक नए चेहरे की तलाश में हूं, आप अपना एक फोटोग्राफ और पूरा पता मेरे office में छोड़ दीजिए। मैं आपको कॉल करूंगी।

ऐसा कहके गीता बाली वहासे निकल जाती है।

जतिन को अब लग रहा था की अब उसकी किस्मत के दरवाजे सही मायने में खुलने वाले है।

उस दिन से जतिन की बेचैनी और बढ़ने लगी। अपनी पहली फिल्म में ब्रेक मिलने के लिए अब वो एक पल भी नही रुक पा रहा था।

जतिन की बेचैनी इस हद तक बढ़ने लगी की वो थिएटर प्ले rhearsals में भी ध्यान नहीं दे पाता था।


rhearsals के समय वो खुद को आईने में देखता और अपने मन में उठते संभ्रम अपने चेहरे पर मेसूस करता।फिल्मों की तरफ की उसकी चाहत, थिएटर प्ले के किरदारों को खोखला कर रही थी।


लेकिन फिल्मों में ब्रेक मिलना कितना मुश्किल है, ये उसे अबतक पता चल चुका था। फिर भी वो आशावादी था।

कुछ दिन ऐसे ही बीतें।

अब तक जतिन खुद को गीता बाली की नई फिल्म का लीड हीरो समझ चुका था। और पूरी उम्मीद के साथ गीता बाली के phone call के इंतजार में वक्त बिताने लगा।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

कुछ महीने ऐसे ही इंतजार में गुजारने के बाद एक दिन सुबह जब जतिन न्यूजपेपर पढ़ता है।

तब जतिन को न्यूजपेपर में एक छोटी हेडलाइन में लिखा दिखता है जिस फिल्म के बारे में गीता बाली ने जतिन को बताया था वो फिल्म announce हो चुकी है। जतिन लीड एक्टर की सूची में अपना नाम ढूंढता है। लेकिन उसे अपने नाम की जगह नए पंजाबी एक्टर धर्मेंद्र का नाम दिखता है।

सन १९६५ तक, "आयी मिलन की बेला","बंदिनी", "काजल" , "फूल और पत्थर" "आए दिन बाहर के" और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता " हकीकत" जैसी बड़ी बड़ी फिल्मों के साथ धर्मेंद्र फिल्मों में कमियाबी की रफ्तार पकड़ चुके थे।

इधर अपनी जगह किसी दूसरे एक्टर का नाम देख जतिन बेहद उदास हो जाता है। उसका दिल टूट जाता है। उसे ऐसा लगने लगता है की फिल्मों में अपना करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया है। लेकिन कहानी यहा तक नही रुकती।

कुछ दिनों बाद जतिन को गीता बाली के ऑफिस से उसी फिल्म की लॉन्च पार्टी के invitation के लिए call आता है।


लॉन्च पार्टी का आयोजन गीता बाली के घर "BLUE HEAVEN" में होता है।

lawn के बीचोबिच धीमी आवाज में सुमधुर संगीत शुरू है। हल्की रोशनी की चकाचौंध , पार्टी में शामिल लोगो को और शानदार बना रही।

फिल्म जगत की बड़ी बड़ी जानी मानी हस्तियां उस पार्टी में उपस्थित है।


तभी गीता बाली की नजर गार्डन के कोने में मायूस बैठे जतिन पर पड़ती है। उस शानदर पार्टी में जतिन खुद को बहुत अलग अकेला महसूस कर रहा था। उसे ऐसा लग रहा था की