Sathiya - 55 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 55

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

साथिया - 55










अवतार जल्दी से वह फोन और कागज़ उठाया और पढ़ने लगे।


"पापा मम्मी जानती हूं मैं जो करने जा रही हूं उससे आपको तकलीफ होगी, पर क्या करूं यह सब करने के लिए मजबूर तो आप लोगों ने ही किया है मुझे...। परंपरा और प्रथाओं के नाम की बेड़ियाँ मेरे पैरों में डालकर मेरी शादी उसे अनपढ़ गँवार कम दिमाग के निशांत के साथ करने का निर्णय आप लोगों ने ले लिया। मेरी सहमति मेरी इच्छा और मेरी खुशी की कोई कीमत ही नहीं आप लोगों की जिंदगी में।

आप लोगों ने मुझे जन्म दिया पढ़ाया लिखा है काबिल बनाया और अब मुझे मेरी जिंदगी का निर्णय लेने का पूरा-पूरा अधिकार है और पापा एक पढ़ी-लिखी समझदार और वालीग लड़की होने के नाते इस निर्णय में मेरी साझेदारी भी महत्वपूर्ण है। जो रिश्ता अगर मेरी सहमति से होता तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती पर आपने तो मुझसे पूछना बताना भी जरूरी नहीं समझा सहमति तो बहुत दूर की बात है। बस अपना निर्णय मेरे ऊपर थोप दिया जो मुझे स्वीकार नहीं है। मैं नहीं मानती इस तरह की किसी भी मान्यता को इस तरीके की किसी भी प्रथा को जो की लड़की से उसकी स्वतंत्रता उसके अधिकार छीने।


आपको शायद इस समय मै गलत लग रही होउगी आपको लग रहा होगा कि मैंने आपकी बात नहीं मानी पर पापा एक बार ठंडे दिमाग से सोचिएगा। क्या आपने सही निर्णय लिया है? एक तरफ आपने मुझे पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया मुझे मुंबई भेजा।

सालों तक हॉस्टल में रहने की आजादी दी।पढ़ी लिखी इंडिपेंडेंट डॉक्टर हूं मैं, और जब शादी की बात आई तो एक बार भी मुझसे पूछना भी जरूरी नहीं समझा...। यहां तक कि जब मैंने मना किया कि मुझे निशांत से शादी नहीं करनी तो मेरी आवाज को दबा दिया गया और मुझे जबरदस्ती शादी के लिए मजबूर कर दिया गया।
पर मैं इस जबरदस्ती के रिश्ते को नहीं मानती इसलिए जा रही हूं... । हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा पर मुझे आप लोगों से सिर्फ एक ही शिकायत है कि गांव और उसकी प्रथाओं के नाम पर आप अपने बच्चों के साथ किस तरीके से नाइंसाफी कर सकते हैं..?? अब मै कभी दोबारा उस गांव में नहीं आऊंगी... । मै अपने साथी डॉक्टर को प्यार करती हूं। उसे बुला लिया है और अब उसके साथ ये गांव क्या ये देश ही छोड़ दूंगी और शायद कभी आप लोगों को अपना चेहरा भी नहीं दिखाऊंगी क्योंकि मैं जा रही हूं सिर्फ इस गांव से नहीं इस देश से। मैं विदेश जा रही हूं और जब तक आप लोगों को खबर मिलेगी मैं बहुत दूर जा चुकी होउंगी।


आपकी इकलौती संतान हूं और इस तरीके का कदम मुझे उठाना पड़ रहा है इस बात के लिए मुझे बेहद तकलीफ है और बेहद शर्मिंदगी भी।पर जब इंसान चारों तरफ से मजबूर हो जाता है तो उसे इसी तरीके का विद्रोह करना पड़ता है मुझे ना ही गांव की मान्यताएं मान्य है ना ही प्रथाओं के नाम पर इस तरीके की बलि चढ़ना। और ना ही मुझे स्वीकार है निशांत के साथ जिंदगी भर रहना और उसकी पत्नी बनकर उसकी हाँ में हाँ मिलाना..।। .मेरी अपनी स्वतंत्र पहचान है, खुद की सोच है अपनी एक आइडेंटिटी है और मैं अपनी पहचान और अपनी स्वतंत्रता के साथ किसी भी तरीके का समझौता नहीं कर सकती..


नेहा...!!


अवतार ने लेटर पढ़ा तो उनकी आंखों से अंगारे निकलने लगे और शरीर कांप गया तो वहीं भावना की आंखें भी भर आई क्योंकि वह जानती थी कि जो नेहा ने किया है उसका परिणाम बहुत भयानक होने वाला है।

अगर नेहा की नजर से देखें तो उसने सही किया है पर अगर इस गांव और पंचायत की नजर से देखें तो इससे बड़ा और कोई अपराध हो ही नहीं सकता की बारात दरवाजे पर खड़ी हो और लड़की घर से भाग जाए।


" ये फोन तुम्हारा है न? " अवतार ने फोन साँझ के सामने किया।

साँझ ने डरकर गर्दन हिलाई।


एक जोरदार तमाचा अवतार सिँह ने साँझ को मारा।।

" सोरी चाचा जी मुझे पता नहीं था की दीदी...। " साँझ ने भरी आँखों से कहा।


अवतार सोच ही रहे थे कि गजेंद्र और निशांत के परिवार से किस तरीके से बात करें और उन्हें कैसे समझाएं पर उससे पहले ही किसी ने यह खबर जाकर उन लोगों तक भी पहुंचा दी।

वैसे भी पूरा घर मेहमानों और गांव की महिलाओं से भरा हुआ था तो जब उन लोगों ने नेहा के कमरे में यह सब देखा और सुना तो सबको समझते देर नहीं लगी कि नेहा घर में नहीं है। हालांकि अभी तक भावना और अवतार ने किसी को नहीं बताया था पर नेहा की कमरे में गैर मौजूदगी और भावना का घबराना और डरना और साथ ही साथ अवतार का गुस्सा और हाथ में उस कागज को पकड़ना काफी कुछ बिना कहे ही कह गया था।

साँझ के भी हाथ पांव ठंडा पड़ रहे थे क्योंकि वह जानती थी कि इसका परिणाम बहुत भयानक होने वाला है।
भले वह और नेहा शहर में रहे थे पर गांव की मान्यताओं से अनजान नहीं थे। उन्हें पता था कि यहां पर हर बात का नियम है हर एक चीज प्रथा के हिसाब से चलती है। यहां की पंचायत के नियम कानून के हिसाब से चलती है और जो इस कानून का उल्लंघन करता है या जो इन प्रथाओं और मान्यताओं को तोड़ता है उसके लिए सजा निर्धारित है। अब पंचायत गजेंद्र और निशांत अवतार और उसके परिवार के लिए क्या सजा निर्धारित करेंगे यह सोचकर ही सांझ के हाथों ठंडा पड़ रहे थे।


एक पल को तो उसे लगा कि वह भी चली जाए यहाँ से क्योंकि ना जाने अब क्या होने वाला है पर रात के इस समय ना ही वो जा सकती है और न जाने की हालत में थी और ना ही वह जाना चाहती थी , अपने चाचा और चाची को छोड़कर। भले उन लोगों ने कभी उसे अपनी बच्ची मानकर स्नेह नहीं दिया पर साँझ उन्हें अपना मानती थी और उन्हें इस तरीके से बीच में मझधार में छोड़कर भागना उसे कहीं से भी सही नहीं लग रहा था।

उसे नेहा का भी इस तरीके से जाना सही नहीं लगा था उसका मानना था कि नेहा को बात करनी चाहिए थी विद्रोह करना चाहिए था पर इस तरीके से अपनी मां और बाप को ऐसी स्थिति में छोड़कर नहीं जाना चाहिए था।

पर अगर नेहा की तरफ से सोचो तो नेहा के लिए निशांत और अवतार ने कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा था।।जहां निशांत ने उससे बात करना भी जरूरी नहीं समझा और अपने निर्णय अभी से उसे पर थोपने लगा था तो वहीं अवतार ने भी उसकी एक नहीं सुनी थी और अपनी जिद और अपनी मनमर्जी उस पर चला दी थी।

हां वह पिता थे उन्हें उसके बारे में निर्णय लेने का हक था पर साथ ही साथ यह बात भी सच है कि नेहा की सहमति भी जरूरी थी..।। .उसकी खुशी और उसकी इच्छा भी जरूरी थी...। जब माता-पिता निर्णय लेते हैं तो जाहिर सी बात है बच्चों के भले के लिए लेते हैं। पर हर समय निर्णय सही हो जरूरी नहीं... । इसीलिए जब जीवन भर का सवाल हो तो माता-पिता के निर्णय के साथ-साथ बच्चों की सहमति और खुशी भी मायने रखती है ठीक उसी तरीके से जब बच्चे कोई निर्णय लेते हैं तो मां-बाप का आशीर्वाद और उनकी सहमति भी जरूरी होती है।


और यहां न हीं तो अवतार ने नेहा की सहमति और उसकी खुशी का ख्याल रखा तो न हीं नेहा ने अपने पिता की इज्जत मान सम्मान और और ना ही उसे उनके आशीर्वाद की जरूरत महसूस हुई।

एक तरफ जहां एक अवतार ने एक गलती की वही एक आखरी गलती आज नेहा ने भी कर दी थी...।।

भले उससे उसका जीवन संवरने वाला था पर उसने यह नहीं सोचा कि वह अपना जीवन संवारने के नाम पर न जाने कितने जीवन बर्बाद करने जा रही है...। गांव की हर प्रथा और हर नियम को जानते हुए भी इतना बड़ा निर्णय करने से पहले नेहा ने एक बार नहीं सोचा कि उसके जाने के बाद उसके परिवार का क्या होगा उन्हें किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा और सजा के तौर पर क्या-क्या सहन करना पड़ेगा... । उसे सिर्फ अपना भविष्य नजर आ रहा था और उसने अपना सुनहरा भविष्य चुना...। अवतार सिंह को सिर्फ अपना अपना गुरुर और मान्यताये समझ आ रहा था और अपना भाग्यविधाता होने का गुरूर अपनी पंचायत और अपने गांव के नियम उन सब में उन्होंने यह नहीं सोचा कि उनकी बेटी जो की पढ़ी-लिखी डॉक्टर है वह विद्रोह भी कर सकती है और इसका नतीजा बहुत ही भयानक हो सकता है


खैर जो भी हो अब तीर कमान से निकल चुका था तो अब उसे बदला नहीं जा सकता था।


अवतार अभी सोच हि रहे थे कि की नेहा को कैसे वापस लाये तभी गुस्से से दनदनाते हुए गजेंद्र ठाकुर और निशांत कमरे में आ गए और उनके पीछे-पीछे सुरेंद्र भी थे पर उनके चेहरे पर तो टेंशन थी।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव