Sathiya - 53 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 53

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साथिया - 53











सांझ को देखते ही उसके सब्र का बांध टूट गया और वह एकदम से उसके गले लग कर रोने लगी।

"क्या हुआ दीदी आप इतना दुखी क्यों हो रही हो? रो क्यों रही हो?" सांझ ने उसे संभाल कर वापस बेड पर बिठाया और उससे पूछा।

"क्या करूं रोऊँ नहीं तो..?? देख रही हो तुम कितनी जोर जबरदस्ती हो रही है मेरे साथ। में पढ़ी-लिखी एमबीबीएस डॉक्टर और मेरे बिना पूछे मेरे बिना बताए रिश्ता तय कर दिया उस अनपढ़ गंवार निशांत से। सबसे बड़ी बात सिर्फ पढ़ाई लिखाई की बात नहीं है हम दोनों जानते हैं बचपन से ही वह कैसा है? दिमाग उसके घुटनों में है कोई बात नहीं सुनता न हीं समझता है। सनकी है एकदम।" नेहा बोली।

सांझ खामोशी से उसे देखती रही।

"और उसका करेक्टर भी तो ठीक नहीं है...! सब जानते हैं कि गांव के बाहर जो उनके खेत पर ट्यूबवेल बना है वहां क्या चलता है? न हीं उसके मां-बाप को कोई फर्क पड़ता है और ना ही मेरे मां-बाप को कोई फर्क पड़ रहा है ऐसे लड़के के साथ मेरी शादी करने में?" नेहा ने दुखी होकर कहा।

"क्या आपसे पूछा नहीं? आपको बताया नहीं? " सांझ ने कहा।

" नही...!! मुझे तो धोखे से बुलाया यहां पर। मैं वैसे भी आने वाली थी पर इन लोगों ने नहीं बताया कि यहां ऐसा कुछ है। अगर पता होता तो मैं आती ही नहीं। वहीं से जर्मनी चली जाती और अपनी पीजी करके वहीं पर बस जाती। पर मुझे नहीं पता था कि ये सब होगा। मैंने तो सोचा कि जाने से पहले एक बार मिलती जाती हूं पर मैं नहीं जानती थी कि यहाँ आकर इतनी बुरी तरीके से फंस जाऊंगी।" नेहा ने दुखी होकर बोली।



"आपको चाचा जी से बात करनी चाहिए थी..!! आपको इतना प्यार करते हैं आपकी बात जरूर सुनेंगे। इस तरीके से दुखी रहने से क्या होगा ?" सांझ ने कहा।


"और तुम्हें क्या लगता है मैंने बात नहीं की...? मैं बात की सांझ। उन्हें समझाने की उन्हें मनाने की हर तरीके की कोशिश की है। पर मेरी हर दलील को सिर्फ यह कहकर खारिज कर दिया गया कि यहां का यही नियम है । यहां ऐसा ही होता है और हम लोगों की बिल्कुल भी नहीं सुनी जाएगी जो बड़ों ने फैसला कर दिया वही होगा।" नेहा ने दुखी होकर कहा।


"पर दीदी अब हम क्या कर सकते हैं? आपको
कुछ समझ आ रहा हो तो सोचो ? आप बोलो तो मैं जाकर चाचा जी के आगे हाथ जोड़कर उनसे विनती करती हूं ।" सांझ ने कहा

" कोई फायदा नहीं है... जब मेरी नही सुनी तो तेरी क्या खाक सुनेंगे। मैं हाथ जोड़ चुकी...!! रो चुकी गिड़गिड़ा चुकी पर उन्हें न सुनना है ना वह सुनेंगे। खेर जैसी मेरी किस्मत है। पर तुझे अभी भी कह रही हूं यहां से निकल जाना फिर कभी यहां वापस मत आना ।" नेहा बोली


" लेकिन दीदी आप? " सांझ बोली।

"मैं खुद देख लूंगी...!! भले मुझे जान देनी पड़े पर उस निशांत के साथ तो मैं बिल्कुल भी शादी नहीं करूंगी और तू भी सुन ले मैंने क्या कहा..!! जैसे ही मौका मिले यहां से चली जाना और फिर कभी वापस मत आना। सुन रही है ना तु कभी वापस मत आना। " नेहा ने कहा।


"जी दीदी! " सांझ बोली। पर दोनों ही बहनों के दिल में घबराहट थी और एक उदासी।। और सांझ को अब बेचैनी होने लगी थी। अब उसे भी ऐसा लग रहा था कि उसने शायद गांव आकर गलती कर दी। ना जाने क्यों उसका दिल बहुत ही ज्यादा बेचैन हो गया था जब से उसने नेहा की बात सुनी और अवतार का निर्णय नेहा के लिए जाना।

जब नेहा के लिए वह इतने कठोर हो सकते हैं तो सांझ के साथ न जाने क्या करेंगे? नेहा तो उनकी खुद की बेटी है खुद का खून जिसे वह भी चाहते हैं। जब उसके दुख दर्द और उसकी इच्छा का कोई सम्मान सम्मान नहीं है तो उसे तो वैसे ही सब अवांछित समझते हैं। किसी को उससे प्रेम नहीं है और ना ही किसी को उसकी भावनाओं का माल है।"



"सही कह रही है नेहा दीदी...!; मैं भी अब जल्दी से जल्दी यहां से चली जाऊंगी पर पता नहीं नेहा दीदी के साथ क्या होगा? क्या करने का सोच रही है वह? भगवान सब सही रहे। अब इतनी टेंशन वाले माहौल में मैं जज साहब से भी बात नहीं कर सकती कहीं चाचा जी को या चाची जी को शक हो गया तो मेरे साथ भी गलत हो सकता है। अब मुझे बस यह दो-तीन दिन निकालने हैं और देखते हैं दो-तीन दिन में क्या होता है? उसके बाद फिर मैं यहां से चली जाऊंगी और कभी वापस नहीं आऊंगी।" सांझ ने मन ही मन कहा और फिर भावना के साथ काम देखने लगी क्योंकि घर में शादी का काम फैला हुआ था तो भावना ने उसे अपने पास बुला लिया थ।


शादी को अब सिर्फ एक दिन बाकी था क्योंकि एक दिन और निकल गया था ।

सांझ पूरी तरीके से भावना के साथ काम में बिजी थी तो वही नेहा उदास और बैचैन अपने कमरे में बैठी रहती थी।

बीच-बीच में हल्दी मेहंदी की रस्में होती जिसमें वह आ जाती थी और वापस से अपने कमरे में चली जाती थी उसका दिमाग बिल्कुल काम नहीं कर रहा था पर इतना तो उसने सोच लिया था कि वह शादी नहीं करेगी।

"सिर्फ एक दिन बचा है मेरे पास। आज शाम होने वाली है और कल शाम को बारात आनी है। क्या करूं मैं? चौबीस घंटे में कुछ तो करना होगा, वरना बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो जाएगी।"नेहा ने मन ही मन सोच रही थी और इधर से उधर घूम रही थी कि तभी उसकी नजर वहां पर सांझ के बैग के पास रखे फोन पर गई और नेहा ने एक नज़र इधर-उधर देखा और फिर झट से फोन उठा लिया।

उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और तुरंत फोन लगा दिया।



"हेलो...!" सामने से आनंद की आवाज आई।

"हेलो आनंद सुनो मैं नेहा बोल रही हूं।" नेहा ने बिल्कुल धीमी आवाज में कहा।

" हाँ नेहा बोलो...!" तुम्हारा फोन बंद जा रहा है। उस दिन बात अधूरी रह गई थी तब से दिल बेचैन है।।समझ नहीं आ रहा था कि कैसे तुमसे बात करूँ...? क्या हुआ तुम ठीक हो?" आनंद में सवालों की झड़ी लगा दी।

"नहीं आनंद मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूं, प्लीज मेरी मदद करो वरना मैं जान दे दूंगी। मर जाऊंगी मैं पर इन लोगों की जिद और इनकी मनमर्जी नहीं बर्दाश्त करूंगी।" नेहा ने रोते हुए कहा ।

"हुआ क्या है बताओ मुझे...! प्लीज बताओ।" आनंद ने कहा तो नेहा ने उसे सारी बात बता दी।

"यह तो बहुत गलत हुआ मुझे इसी बात का डर था..! अब क्या करेंगे हम? " आनंद बोला।


" प्लीज हेल्प मि आनंद।" नेहा बोली


" आई लव यू नेहा और तुम जो कहो वह मैं करने को तैयार हूं।।आता हूं तुम्हारे पापा से मिलने। तुम्हारा साथ हर परिस्थिति में दूंगा।" आनंद बोला।

" नही तुम पापा से नही मिलोगे वरना वो हम दोनों को खत्म कर देंगे। तुम बस मुझे यहां से ले जाओ आनंद। कैसे भी करके यहां से ले जाओ वरना तुम्हें मेरी मैं जिंदा नहीं मिलूँगी। तुम्हें मेरी लाश भी नहीं मिलेगी। लाश को भी यह लोग यही जला देंगे। मैंने कभी ऐसी जिंदगी एक्सपेक्ट नहीं की थी और मैंने कभी नहीं सोचा था। अब जिन लोगों को मेरी परवाह नहीं है मेरी खुशियों की परवाह नहीं है मेरी जिंदगी की परवाह नहीं है तो मैं भी अब किसी की परवाह नहीं करूंगी। " नेहा सख्ती से बोली।

"ठीक है तुम घबराओ मत। बिल्कुल भी चिंता मत करो मैं आऊंगा तुम्हें लेने और तुम्हें लेकर चला जाऊंगा। बस जब भी टाइम मिले तो मुझे बात करना और बस इस फोन को अपने पास रखना। भले कॉल मत करना पर इससे मुझे तुम्हारी लोकेशन मिलती जाएगी और मैं वहां पहुंच जाऊंगा। और जब भी मौका मिले मुझे बता देना आगे मैं तुम्हे लेकर आ जाऊंगा।" आनंद में नेहा को समझाया तो नेहा को तसल्ली हुई।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो नेहा ने जल्दी से कॉल हिस्ट्री से नंबर डिलीट कर दिया और फोन वापस वही रख दिया और दरवाजा खोला तो बाहर सांझ खड़ी थी।



"क्या हुआ दीदी आपने दरवाजा क्यों बंद कर रखा था?" सांझ ने चारों तरफ देखकर कह

" अब क्या करूं रो तो सकती हूँ न जी भर के। बाकी तो मेरी कोई सुनेगा नहीं । और अभी अगर रोते हुए कोई देख लेता तो पूरे गांव में शगुन अपशगुन की बातें फैल जाती और फिर सबको लगता कि मेरी शादी जबरदस्ती हो रही है और इस बात का इल्जाम भी पापा और मम्मी मुझ पर डालते। और बे वजह की फिर से बातें करते। इसलिए दिल भर आया तो दरवाजा बंद कर लिया था ताकि जी भर के रो सुकू। " नेहा ने कहा तो सांझ को भी बहुत तकलीफ हुई।

"मुझे बहुत बड़ी बुरा लग रहा है नेहा दीदी आपके लिए मुझे खुद में विश्वास नहीं हो रहा कि ऐसा हो सकता है। पर आप भगवान पर विश्वास रखिये। सब सही हो जाएगा। हो सकता है शादी के बाद निशु सुधर जाए और फिर आप पढ़ी-लिखी हो समझदार हो आपकी संगत में रहकर उसका व्यवहार बदल जाएगा। " सांझ ने नेहा को समझाना चाहा क्योंकि वह जानती थी की अवतार का फैसला किसी भी कीमत पर नहीं बदलेगा और अगर नेहा इसी तरीके से दुखी परेशान रही तो उसकी आगे की जिंदगी और भी ज्यादा परेशानी में घिर सकती है क्योंकि अभी तक तो यह बात सिर्फ भर के अंदर है कि यह शादी नेहा की मर्जी के बिना हो रही है। अगर निशांत और उसके परिवार को पता चल गया तो प्रॉब्लम हो जायेगी।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव