let the birds fly in Hindi Anything by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | उड़ चले पंछी

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उड़ चले पंछी

1.
तेरी राह तकते तकते उम्र गुजारदी मैनें अपनी,
फिर भी एक उम्मीद लगाये बैठी हुँ
कि कदी तु आवेगा,
मेरा माथा चुम मुझे गले लगावेगा,
बस वो पल ही आखिरी होगा मेरी जिदंगी का,
जब तु मेरे नाल होवेगा।

2.
बेवजह किसी से मुलाकात नहीं होती
हर अजनबी से यूँ बात नहीं होती
कुछ रिश्ते बन जाते है कब खास
जिनके जुड़ने कि कभी आस नही होती

3.
आँखो मे नमी लेकर होठों से मुस्कुराती हुँ मैं,
दिल मे दर्द लेकर फिर भी गुनगुनाती हूँ मैं,
कोई क्या जानेगा मेरे अंदर छिपे दर्द को,
बाहर से तो सब को खुश नजर आती हूँ मैं।

4.
हर शाख हर पत्त्ते पर हवा ने लिखा ये पैगाम हैै
ए आने वाले मुसाफिर तुझे मेरा सलाम है
जिस शहर जिस गली, गाँव से गुजरी हैै वो
हर किसी को छु कर कहती है वो
जो आने वाला है, क्या तेरा कोई अपना है,
तु जो गर हाँ करे तो फिर संग तेरे मुझे भी चलना है।

5.
किसी को जिदंगी मे इतनी भी इजाजत ना दो,
कि वो आये भी अपनी मर्जी से और जाये भी अपनी मर्जी से,
ये जिदंगी है मेरी,
साहिब कोई तेरा घर ये नही है,
यहाँ मेरी चलती हैै,
तु आ तो सकता हैै,
तेरी मर्जी से,
लेकिन जायेगा मेरी मर्जी से

6.
कोई तुझे अपना बना ले, कुछ ऐसा कर।
अपनो के लिये तो सब करते है, कुछ गैैरो के लिये भी कर।
जो सुकुन मिलता है, किसी के लिये कुछ करने पर।
वो कहाँ नसीब होता हैै, किसी पे बेवजह मरने पर।

7.
नींद नही हैं आँखो मे अब, राते करवटो मे गुजरती है।
तेरी बेवफाई कि इंतहा तो देख, झुठे को भी नही आता तु खबावो मे अब।

8.
कोई तो हद होगी ना, जिसे ना तू पार करे और ना मैं भी।
कोई तो चाहत होगी ना, जिसे चाहे तू भी और मैं भी।
कोई तो दर्द होगा ना, जिसे सहता हो तू भी और मैं भी।
कोई तो खवाहिश होगी ना, जिसे पूरा करना हसरत हो तेरी भी और मेरी भी।
जब मंजिले एक हैं दोनों कि, तो कयुँ ना साथ चले तु भी और मैं भी।

9.
उसकी खुशी मे अपनी खुशी को तलाशती हूँ,
उसके गम मे आँसु भी बहाती हूँ,
और ना जाने कया चाहता हैं मुझसे,
जो कहता हैं वही कर जाती हूँ।

10.
याद बहुत आता हैं वो मंजर जब तू साथ था मेरे,
हाथो मे हाथ लिये,
वो तेरे काँधे पर सर झुका कर,
मेरा तुझसे घणटो बाते करना,
तु भी तो तब खोया रहता था ना मेरी आँखो मे,
वो पल भी कया पल थे,
जब तु मै साथ थे,
अब तो बस एहसास ही रह गया आँहो मे।

11.
मैं चाहे कितनी भी कोशिश कर लूँ उसे ये जताने कि तू कया है मेरे लिये,
लेकिन वो है कि मुझ पर यकिन ही नही करता,
मैं चाहे कितने भी आँसू बहा लूँ उसकी याद मे,
लेकिन वो है कि देखता हि नही।
कया करूँ मै तुझे यकिन दिलाने के लिये,
कि मुझ मे बसता है तू,बस जान हि निकलने कि देरी हैै,
लेकिन तुझ से दूर होने के खयाल से कमबखत वो भी नही निकलती

12.
ता उमर निकाल दी जिसके घर को सँवारने और बसाने मे,
उसे तो इस बात से कोई मतलब ही नही था,
जब कभी जिकर आता था इस बात का,
वो कहता ये तो तुमहारा फरज था

13.
तेरी दुनिया को अपनी दुनिया माने बैठी हूँ।
ये बात अलग हैं,
तुझे फरक नही पड़ता मेरे जजबातो से,
लेकिन फिर भी तेरे लिये अपने आप को मनाये बैठी हूँ।

14.
जिदगीं मे कई बार ऐसा होता है,
कि हमे जिनका साथ पसंद होता है,
जिनके साथ हम जिदंगी के सफर मे साथ चलना चाहते है,
उनहे तो हमारे साथ कि जरूरत ही नही होती