two friends in Hindi Children Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | दो दोस्त

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दो दोस्त

दो दोस्त

(नीकु और नीशू दोनों दोस्त आपस में वार्तालाप कर रहे हैं)
निकु - ये बताओ नीशू दोस्त! आज कई दिनों के बाद हम दोनों दोस्त विद्यालय जा रहे हैं। क्या तुमने गृहकार्य पूरा किया है?
नीशू - हां नीकु ! मैने गृहकार्य पूरा कर लिया है। तुम अपनी बताओ दोस्त ! क्या तुमने गृहकार्य किया या पिछली बार की तरह इस बार भी कोई बहाना बनाओगे?
निकु - मैं गृहकार्य कर लेता, पर तुम तो जानते ही हो, मुझे कितना काम करना रहता है इसलिए गृहकार्य नहीं कर पाया। अध्यापक जी से कह देगें कि मैं बीमार था और तुम भी जरा सहयोग कर देना। कह देना कि हाँ! यह बीमार था।
नीशू - लेकिन निकु! तुम तो बीमार नहीं थे। तुम रोज हमारे साथ क्रिकेट खेलते थे और हाँ! ये बताओं, कौन सा काम ?
अभी तुमने कहा, मुझे बहुत सा काम रहता है। आखिर मुझे भी तो बताओ तुम्हें कौन सा काम करना होता है?
निकु - बहुत से काम रहते हैं। कभी मां जी कहती हैं ये ले आओ, वह ले आओ! कभी पिता जी कहते हैं साथ चलो।
गर्मी की छुट्टियाँ कब समाप्त हो गई, पता ही नहीं चला‌? सोचा था आज कर लूँगा। गृहकार्य कल कर लूँगा, पर समय ही नहीं मिल पाया।
नीशू - घर के कामों में मैं भी हाथ बँटाता था। पिता जी के साथ कभी कभी खेत पर जाता था और तुम्हारे साथ तो खेलता भी था। मैं प्रतिदिन घर पर समय से पढ़ाई भी करता था और गृहकार्य भी पूरा करता था। मैं तुम्हें भी बार - बार समझाता था, पर तुम बहाने बनाते थे। आज तुम कह रहे हो कि अध्यापक जी से कह देना कि तुम बीमार थे। सॉरी दोस्त! मैं झूँठ नहीं बोल सकता।
निकु - इसमें झूठ बोलने वाली क्या बात है? तुम सिर्फ मुझे बचा लेना, यह कहकर कि निकु बहुत बीमार था और क्या करना है? तुम्हें बस चुप हो जाना। उसके बाद मैं संभाल लूंगा।
नीशू - क्षमा करना दोस्त! पर मैं अध्यापक जी से झूँठ नहीं बोल सकता। झूठ बोलना पाप है। अगर तुम मेरी बात मानो तो अध्यापक जी से सब सच - सच बता देना। सच में बहुत ताकत होती है।
निकु - अच्छा चुप हो जाओ! विद्यालय आ गया है। कोई सुन लेगा तो बहुत मुश्किल हो जायेगी। वैसे भी आज विद्यालय आने में देर हो गई है। लगता है, प्रार्थना सभा हो गई है... कक्षा भी प्रारंभ हो चुकी है... जल्दी से कक्षा में चलो।
(निकु और नीशू अध्यापक जी से पूछकर कक्षा में प्रवेश करते हैं)
अध्यापक जी - सभी बच्चों का कक्षा में स्वागत है। बच्चों! गर्मी की छुट्टियाँ कैसी रही? आप सब तो खूब खेले होंगे। खूब घूमें होंगे और हां! यह बताओ गर्मी की छुट्टियों से पहले जो गृहकार्य दिया गया था, वह आप लोगों ने किया कि नहीं? जल्दी - जल्दी सभी बच्चे गृहकार्य दिखायें।
निकु और नीशू तुम दोनों भी अपनी, अपनी - अपनी कापियाँ दिखाओ?
नीशू - जी अध्यापक जी!
निकु - मुझे क्षमा कर दीजिए! मुझसे गलती हो गई। मैंने गृहकार्य नहीं किया है। पर मैं आपसे और स्वयं से प्रण करता हूँ कि अब मैं मन लगाकर पढ़ाई और समय से गृहकार्य पूरा भी करूँगा।
अध्यापक जी - ठीक है निकु! कोई बात नहीं... तुम अब आगे से ध्यान रखना और समय पर गृहकार्य जरूर करना और मन लगाकर पढ़ाई करना।

संस्कार संदेश :- हमें अपने काम में कभी भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए।