Pauranik Kathaye - 29 in Hindi Mythological Stories by Devaki Ďěvjěěţ Singh books and stories PDF | पौराणिक कथाये - 29 - माघ शुक्ल अजा (जया) एकादशी व्रत कथा

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

Categories
Share

पौराणिक कथाये - 29 - माघ शुक्ल अजा (जया) एकादशी व्रत कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि माघ शुक्ल एकादशी को किसकी पूजा करनी चाहिए, तथा इसका क्या महत्व है।

तब भगवान कृष्ण ने बताया कि इस एकादशी को जया एकादशी कहते हैं औश्र ये बहुत ही पुण्यदायी होती है। इसका व्रत करने से व्यक्ति सभी नीच योनि अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जया एकादशी व्रत करने से ना केवल कर्मों का कष्ट दूर होता है, बल्कि दिमाग से नकारात्‍मक ऊर्जा भी बाहर निकलती है मानसिक शांति मिलती है l

जया एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं l इसका व्रत करने से मनुष्यों को मृत्यु के बाद परम् मोक्ष की प्राप्ति होती है l

जया एकादशी की पूजन विधि


जया एकादशी का व्रत और पूजा पाठ करने से पापों से भी मुक्ति मिलती है और हर कार्य में विजय मिलती है l

यह व्रत करने के लिए उपासक को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए l व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए l प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करें l रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम का भजन करें l अगले दिन यानी द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिये l


जया एकादशी की व्रत कथा


पौराणिक मान्यता के अनुसार, इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था l इस सभी में सभी देवगण और संत उपस्थित थे l उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं l इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था l रूप से भी वो बहुत सुंदर था l गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी l पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठें और अपनी लय-ताल से भटक गए l उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्हें श्राप स्वर्ग से वंचित रहने का श्राप दे दिया l इंद्र भगवान नें दोनों को मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगने का श्राप दिया l


श्राप के प्रभाव से पुष्यवती और माल्यवान प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे l पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था l दोनों बहुत दुखी थे l एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था l रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे l इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई l अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई l

वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए l वे पहले से भी सुन्दर हो गए और उन्हें पुन: स्वर्ग लोक में स्थान भी मिल गया। जब देवराज इंद्र ने दोनों को वहां देखा तो चकित हो कर उनसे मुक्ति कैसे मिली यह पूछा।
तब उन्होंने बताया कि ये भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। इन्द्र इससे प्रसन्न हुए और कहा कि वे जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए अब से उनके लिए आदरणीय हैं अत: स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।