गुरु गुड़ और चेला शक्कर
मनु के माता - पिता बचपन में ही मर चुके थे। वह एक आश्रम में रहता था। आश्रम के महात्मा एक अच्छे तांत्रिक और बहुत ही सिद्ध पुरुष थे। उनकी प्रसिद्धि बहुत दूर - दूर तक फैली थी। महात्मा को मनु से विशेष लगाव था। वह हमेशा उसे अपने साथ रखते थे। आसपास के लोग उसे गुरु जी का चेला के नाम से जानने लगे। महात्मा जी ने उसे कुछ तंत्र - मंत्र भी बता दिए थे। मनु उनके प्रति पूर्ण निष्ठावान हो गया था।
एक दिन चेले ने जिद करते हुए कहा, "गुरु जी मुझे श्मशान सिद्ध का मंत्र बता दीजिए। गुरुजी ने कहा, "ठीक है समय आने दो वह भी बता दूँगा।" अचानक गाँव में महामारी आ गई। लोग धड़ा - धड़ मरने लगे नदी लाशों से पटने लगी। महात्मा जी ने कहा, "मनु अब तुमको श्मशान सिद्ध का मंत्र सिखाने का समय आ गया है। शाम को ही नदी की ओर चले जाओ और सात लाशें वहाँ एकत्र कर लो और हाँ राह में पीली राई डालना न भूलना। आगे की प्रक्रिया इसके बाद बताऊंगा ।"
चेले ने तुरंत जाकर सात लाशें एकत्र कर ली और गुरु के समीप आकर कहा "महाराज आगे की प्रक्रिया बतलाइए।" आधी रात को गुरु ने चेले को रक्षा कवच देकर कहा अब तुम चुपचाप श्मशान चले जाओ। वहाँ एक - एक के हाथ में क्रम से यह लाल धागा बाँध आओ। खबरदार! डरना नहीं! यदि डर गए तो सिद्धि नहीं प्राप्त होगी।" गुरु ने उसे हिदायत देकर विदा किया।
चेले ने श्मशान में पहुँचकर देखा वहाँ सात लाशों की जगह आठ लाशें पड़ी थीं। एक और कहाँ से आ गई, सोचते हुए उसने एक तरफ से लाशों के हाथ में धागा बाँधना आरंभ किया। अभी वह पहली लाश के हाथ में धागा बाँध ही रहा था कि आठवीं लाश ने अपना हाथ ऊपर कर दिया। चेला जोर - जोर से चीखा, खबरदार हिलना नहीं, बस वही पड़े रहो। लाश शांत हो गई। उसने दूसरी लाश के हाथ में धागा बाँधना शुरू किया। आठवीं लाश ने अपना पैर ऊपर उठाया। चेले ने समझाया, "जल्दबाजी क्यों कर रहे हो? ठहरो अपना नंबर आने दो।"
इस तरह चेला हर लाश में धागा बाँधता गया और आठवीं लाश हर बार अपने हाथ - पैर उठाती रहीं। जब चेला सातवीं लाश में धागा बाँधने लगा तो आठवीं वाली लाश जोर - जोर से हिलने लगी। चेले को क्रोध आ गया और वह चिल्लाते हुए बोला, "मेरी साधना में विघ्न मत डाल वरना अच्छा नहीं होगा।" लेकिन लाश नहीं मानी। चेले के सब्र का बाँध टूट गया और उसने पास ही पड़े एक बांस के लट्ठ को उठाया और लाश के पैरों में दो लट्ठ मारते हुए बोला, "बार - बार कह रहा हूँ रुको, अभी तुम्हें भी धागा बाँध देता हूँ।" तीसरा लट्ठ पड़ने ही वाला था तभी लाश जोर से चिल्लाई, बस, बेटा बस! तू सिद्ध हो गया।"
अंधेरे में भी चेले ने गुरु को पहचान लिया और पैरों में गिर कर क्षमा माँगी। गुरु ने कहा, "बेटा मैंने तेरी परीक्षा ले ली, तू सचमुच सिद्ध हो गया। गुरु ने चेले की पीठ थपथपाई और हँसते हुए कहा, 'गुरु गुड़ ही रह गया और चेला शक्कर हो गया।" तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई कि...
"गुरु गुड़ और चेला शक्कर"