Main to odh chunriya - 53 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | मैं तो ओढ चुनरिया - 53

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मैं तो ओढ चुनरिया - 53

 

 

53


शादी से पाँच दिन पहले सात सुहागिने बुलाई गई । माँ ने उन सबकी कलाई में कलावा बांधा । सबको किनारी गोटा जङे गुलाबी दुपट्टे ओढाए गए । अंत में पता चला , ये सब कुल मिला कर ग्यारह हो गई हैं । कोई न जी, हर समय ये सात न मिली तो इन ग्यारह में से मिला कर कोई सात तो मिल ही जाएंगी । उस दिन सबने सुहाग के गीत गाते हुए गेँहू धोए और धूप में सूखने डाले । सात मुट्ठी उङद की दाल भिगोई और सब पतासे लेकर बिदा हुई । अगले दिन फिर शाम में सब एकत्र हुई । सात चूल्हे बनाए गए । वह भिगो कर रखी हुई दाल पीसी गई और उसकी बङियां बना कर छत पर सूखने डाली गई । बन्नी के गीत गाए गए । अगले दिन हल्दी पीसी गई । मुझे हल्दी तेल चढाया गया । हर रोज रात में ढोलक बजती । गीत गाए जाते । लङकियां नाचती गाती । बहुएं भी नाचती । जी भर कर ठहाके लगते । बहुएं निश्तिंत होकर लोकगीतों के माध्यम से मन की बातें कह जाती । कोई इन बातों का बुरा न मानता । न सास न ननद । तीन दिन पहले रिश्तेदार बाहर से आने शुरु हुए । दो दिन पहले तक सब आ गये । खूब धमाल मचने लगा ।
शादी से एक दिन पहले दोपहर में मामा मामी ने सायंत की पूजा करवाई और चूङा पहनाया । इस दिन का खाना मामा की तरफ से होता है तो तीनों मामियों ने मिल कर खाना बनाया । सबने चटकारे लेकर खाना खाया । हमारी गली की सभी मेरी हमउम्र लङकियां शादी करके अपनी ससुराल जा बसी थी तो उनके आने का कोई सवाल ही नहीं होता था । उनके घर से उनके माता पिता ही इस शादी में सम्मिलित हुए ।
शादी के दिन सुबह से ही गली में सजावट शुरु हो गई । दोनों गलियों के मोङ में विशाल द्वार बनाए गये । गली में दोनों तरफ टैंट लगे । बिजली के सुंदर बोर्ड लगाए गए । एक बोर्ड में वैलकम लिखा था । एक में सीता जी राम के गले में वरमाला पहना रही थी । एक ओर तरफ बिजली का चक्कर अपनी गति से घूम रहा था । उसमें लगे रंग बिरंगे बल्ब झिलमिला रहे थे । कनात के साथ साथ और छत पर बिजली की झालरें लगी । हर तरफ झिलमिलाहट हो रही थी । ओमी मामा ने अपना वचन बाखूबी निभाया । वाकई सजावट देखने लायक बनी थी । तोरण सजे । कुर्सियां लगाई गई । औरतें यहाँ वहाँ बैठी गीत गा रही थी । मिठाइयां खाई जा रही थी । मौहल्ले के लोग सफेद कमीज पाजामा पहने लोइयां ओढे यहाँ से वहाँ चक्कर लगा रहे थे । हलवाई रात के नाश्ते और भोजन की तैयारी में लगे थे ।
शाम सात बजे बारात दरवाजे पर आ पहुँची । बारात और बारातियों का स्वागत मौहल्ले की आदमियों ने हार पहना कर किया । बारात के हाथ धुलाने के लिए सारी गली के और रिस्तेदारी के लङके हाथ बांधे खङे थे ।
दूल्हे महाश्य को द्वारचार के लिए घर के दरवाजे पर लाया गया । साथ में उनके तीनों छोटे भाई और तीन चार दोस्त थे । अब समस्या यह कि मैं अपने घर में , क्या सारी रिश्तेदारी के बच्चों में सबसे बङी थी । किसी बहन भाई की शादी हुई नहीं थी । बङे मामा का सबसे बङा बेटा मात्र चौदह साल का था तो भाभी कहाँ से आती आरती के लिए । मेरे एक दूर के रिश्ते की मामा की बेटी जो उम्र में मुझसे एक साल छोटी थी , उसकी शादी यहीं सहारनपुर में एक सप्ताह पहले ही हुई थी तो उसी को वर की आरती के लिए तैयार किया गया । तो ये शकुंतला जी लाल सुर्ख साङी पहने , दोनों हाथों में लाल लाल चूङा सजाए , अनाङी हाथों से उल्टा सीधा मेकअप किए , आरती की थाली सजाकर परछन के लिए दरवाजे पर गई । अब दूल्हे मियां ने जैसे ही दरवाजे की ओर आते उसे देखा , घबरा कर पीछे दौङ गए । सब साथ के लोग पूछते ही रह गये – क्या हुआ भई । पर इनकी तो ऊपर की सांस ऊपर नीचे की नीचे । आखिर मझले देवर बोले – भाई इन्होंने तो लङकी बदल दी । जिसे ब्याहने आए थे वह तो यह नहीं है । असली इन्होंने कहाँ छिपा दी । वाकई यह तो चिंता की बात थी । सारी बारात में हलचल मच गई । लोग खुसुरपुसुर करने लगे । इधर दरवाजे पर लङकियां अलग परेशान हो रही थी । ये दूल्हा दरवाजे पर आकर कहाँ गायब हो गया । आखिर उन्होंने छोटे मामा को बुलाया और बताया कि दूल्हा दरवाजे पर आया था पर अचानक पता नहीं क्या हुआ , वापस चला गया । आप बुला दो , हमें आरती करनी है ।
मामा उनके पास गये तो उनकी समस्या पता चली । सुन कर मामा और उनके दोस्त खूब हंसे । आखिर बारातियों को सारी स्थिति साफ की गई । तो बाराती झेंप गये । भई ये सब पहले बताना था न । हम सब तो डर गये थे ।दुल्हन लिए बिना गर लौटना पङता तो कितनी किरकिरी होती । आखिर इनके जीजा ने इनका हाथ पकङा और दरवाजे पर ला खङा किया । सबकी सांस में सांस वापस आई । शकुंतला ने आरती की । तिलक लगाया और पूरा लड्डू मुँह में ठूंस दिया । आरती करवा कर ये मुङने लगे तो वह चिल्लाई – जीजाजी मेरा नेग तो देते जाओ ।
अब इन लोगों ने एक दूसरे का मुँह देखा – नेग , नेग कैसा ।

अजी छोटी साली ने आरती उतारी है । नेग देना तो बनता है न ।
हमनें कब कहा था आरती करने को । तुमने खुद बुला कर आरती की ।
यह तो रीत है ।
अपनी आरती वापस ले जाओ ।
ऐसे कैसे ले ले । पैसे दो ।
अब उधर से पाँच पाँच पैसे के सिक्के एक एक करके थाली में धरे जाने लगे ।
अब ये क्या है जीजा जी ।
क्यों अभी थोङी देर पहले तो तुमने कहा – पैसे दो । हमारे पास तो दो पैसे , एक पैसा भी है । हम तो तुम्हें पाँच पाँच पैसे दे रहे हैं । गिन लो पूरे पचास पैसे हो गये होंगे । लेमनचूस लेकर खाना ।
खैर ग्यारह रुपए पर बात खत्म हुई । लङकियां किलखिलाती हुई भीतर लौटी ।
बहना तेरा दूल्हा तो शरीफ है पर साथ वाले लङके बङे दुष्ट हैं ।
उन्होने मेरे लिपस्टिक लगाई । ओढनी सही की । लहंगा संभाला और मुझे दरवाजे की ओर ले चली । इसके बाद जयमाला हुई । पीछे से इनके दोस्त चिल्लाते रहे - भाई गरदन अकङा लो । आसानी से जयमाला मत पहनना । फांसी का फंदा है । एक बार पहन लिया तो सारी जिंदगी गले से नहीं निकलेगा । अरे थोङा रोब दिखाओ पर यह दूल्हा तो पूरा ही नीचे झुक गया और पाँच मिनट तक वैसे ही झुका रहा । जयमाला आराम से हो गई ।


बाकी फिर ...