राम का दिन बेचैनी घबराहट और दहशत में बीतता था क्योंकि उसने 16 वर्ष की आयु से 29 वर्ष की आयु तक सिर्फ पाप ही पाप के कर्म किए थे एक भी पुण्य कर्म नहीं किया था।
आयु बढ़ाने के साथ-साथ जब उसे एहसास होता है कि उसकी यह सोच गलत थी कि इस दुनिया ने उसे अनाथ बेसहारा समझ कर उसका दिल खोल कर शोषण किया है और दुनिया में जितने भी दुख कष्ट होते हैं उसे दिए हैं, इसलिए वह अब तक दुनिया से बदला लेने के लिए जी रहा था और वह यह भूल गया था कि अगर दुनिया में सच्चे अच्छे लोग नहीं होते तो वह अनाथ कमजोर बेसहारा 29 वर्ष तक जीवित ही नहीं रहता कब का परलोक सिधार गया होता, लेकिन अब तक वह इतना बड़ा वैहशी दरिंदा बन चुका था कि अब वह सच्चाई ईमानदारी पुण्य कर्म करके पवित्र जीवन जीना भी चाहता तो यह दुनिया उसे जीने नहीं देती क्योंकि 29 वर्ष की आयु तक राम ने बुरे कर्मों से हजारों अपने दुश्मन बना लिए थे, वह रात दिन उसकी हत्या करने के लिए उसे खोजते रहते ऊपर से यूपी हरियाणा पंजाब पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी।
राम दिन में घबराहट बेचैनी डर दहशत में जीता था लेकिन सूर्यास्त होते ही उसका सारा डर घबराहट बेचैनी गायब हो जाती थी, रात होने के बाद राम को धरती का ही नहीं स्वर्ग का भी सुख मिल जाता था, क्योंकि राम जिस जंगल में छिपकर अपना जीवन जी रहा था, वहां रात को अद्भुत सुंदरी की आत्मा घूमती थी।
उस सुंदरी ने राम को बताया था कि वह परी है और जब तक पूरी रात वह उसके साथ रहेगी उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है, उसे जो भी भोजन वस्त्र धरती स्वर्ग का सुख चाहिए वह उसे देगी, इसलिए राम पता लगाने की बिल्कुल भी यह कोशिश नहीं करता है कि वह परी है या भयानक डरावनी चुड़ैल पिशाचिनी।
बस वह तो पूरे दिन उस अद्भुत सुंदरी के ख्यालों में खोया रहता था और सूर्यास्त होने के बाद इंतजार करता था कि वह सुंदरी उसे कब मिलेगी।
दो वर्ष में पहली बार जब वह परी सूर्यास्त होने के बाद राम से मिलने नहीं आती है तो वह बेचैन होकर परी परी चिल्ला कर जंगल में उस परी जैसी खूबसूरत युवती को ढूंढना शुरू कर देता है, कई किलोमीटर ढूंढने के बाद वह अद्भुत सुंदरी उसे नदी के किनारे एक बहुत बड़े पहाड़ी पत्थर पर बैठी हुई दिखाई देती है।
राम उसे देखकर उसके पैर पड़कर जमीन पर उस परी जैसी युवती के सामने लेट जाता है और रो-रो कर एक ही बात दोहराता है "मुझे अकेला छोड़कर कभी कहीं मत जाना वरना मैं तुम्हारी जुदाई में अपनी जान दे दूंगा।" बार-बार उसके यह बात दोहराने के बाद वह अद्भुत सुंदरी अपने असली डरावने भयानक रूप में आकर उससे कहती है "जब तूने इस धरती पर जन्म लिया था मैं जब से तेरे साथ हूं और इंतजार कर रही हूं कि कब तेरा इस धरती पर समय पूरा हो और मैं तुझे अपने साथ लेकर जाऊं।"
उसकी यह बात सुनकर राम आचार्य चकित होकर उससे पूछता है "आप कौन हो।" "जिससे डर कर तू इस जंगल में छुपा हुआ है मैं वही तेरी मौत हूं।" उसकी यह बात सुनकर राम उस अद्भुत सुंदरी के पैर छोड़कर दूर खड़ा हो जाता है और वह अद्भुत सुंदरी देखते ही देखते अपने भयानक पिशाचिनी के रूप में आ जाती है और वह राम से कहती है "मैं आज तुझे अपने साथ लेकर जाऊंगी।"
मौत से पहले राम को अपने बुरे कर्मों पर बहुत अफसोस होता है कि अगर मैं अच्छे कर्म करता तो इंसानों की बस्ती में शांति सुकून इज्जत से अपना जीवन जीता इस चुड़ैल के प्रेम जाल में फंसकर अपनी जान तो नहीं गंवाता।
और कुछ ही पलों में वह पिशाचिनी राम का सीना फाड़ कर उसके सारे शरीर का लहू पी जाती है और राम के आधे शरीर को मछलियों के खाने के लिए नदी में फेंक देती है और आधे शरीर को गिद्ध चील कौवे के खाने के लिए वही जमीन पर छोड़ देती है।