Mandir ke Pat - 1 in Hindi Horror Stories by Sonali Rawat books and stories PDF | मंदिर के पट - 1

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मंदिर के पट - 1



रात का अंधेरा धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था । आकाश में घने बादल छाए हुए थे । हवा तेज थी और अपने साथ पतझड़ में गिरे हुए पत्तों को उड़ाती एक विचित्र प्रकार की भयावनी ध्वनि उत्पन्न कर रही थी । सन्नाटा और भी गहरा हो चला था । नीरवता के उस साम्राज्य को कभी-कभी चमगादड़ या उल्लू के चीखते हुए स्वर तोड़ देते । कालिमा की उस फैली हुई चादर के नीचे सृष्टि किसी थके हुए नटखट शिशु की भांति सो रही थी । रजत को अमझरा घाटी आए हुए अभी कुल दो ही दिन हुए थे । वह पुरातत्व विभाग से संबंधित था और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश को मिलाने वाली सीमा रेखा के निकट घने वन में स्थित मंदिरों तथा प्राचीन भग्नावशेषों का अध्ययन करने अकेला ही अमझरा घाटी की सुरम्यता का पान करने आ पहुंचा था ।

आते समय पथ प्रदर्शक के रूप में एक निकट का ग्रामवासी साथ था जो उसका सामान भी उठाए हुए था और मार्गदर्शन भी वही कर रहा था ।

घाटी के सौंदर्य ने रजत को पूर्णतया अभिभूत कर लिया था । लंबे राजमार्ग के दोनों ओर चिरौंजी और आम के वृक्ष थे । कहीं कहीं पलाश के वृक्ष तथा कँटीली झाड़ियां थीं । पेड़ों का सिलसिला सड़क के निकट उतना घना न था किंतु जैसे जैसे उनका सड़क से फ़ासला बढ़ता गया था उनकी सघनता में भी वृद्धि होती गई थी ।

बसंत बीत चुका था और पतझड़ पूरे यौवन पर था । हवा के हर झोंके के साथ पेड़ों से टूट टूट कर गिरने वाले सूखे पत्तों का मरमर संगीत बढ़ जाता था । कभी-कभी वनांचल से कोयल कूक उठती या पपीहा 'पी कहां' की आवाज लगा बैठता ।

वन प्रदेश के उस मोहक सौंदर्य में भी एक रहस्यमयी संगीत की ध्वनि रजत को बराबर सुनाई दे रही थी । उसे यहां का वातावरण चिर परिचित सा प्रतीत हो रहा था । एक ऊंचे टीले पर चढ़ कर उसने दूर तक फैली उस वन- राशि को देखा और मुस्कुरा दिया था । फिर गाइड से पूछा -

"मंदिर किधर है ?"

"उस ओर घने जंगलों के बीच कई छोटे-बड़े टीले हैं । उन्हीं पर मंदिर और खंडहरों का झुंड भी है ।

"खंडहरों का झुंड' सुन कर बरबस ही उसे हँसी आ गई थी । शाम होते-होते वह घने वन में प्रविष्ट होकर उन टीलों पर पहुंच चुका था ।

सामने दूर तक छोटे-बड़े टीले फैले हुए थे । एक ऊंचे टीले पर एक छोटा सा मंदिर दिखाई दे रहा था जिसके कंगूरे का कलश संध्याकालीन रक्तिम किरणों में विचित्र रूप से चमक रहा था । उसी के पास एक और टीला था । मंदिर वाले टीले की अपेक्षा कुछ अधिक ऊंचा ।

उस पर जाने के लिये नीचे से ऊपर तक छोटी-छोटी सीढ़ियों की लंबी कतार थी । स्थान स्थान पर यह सीढ़ियां टूट चुकी थी फिर भी उनका प्रयोग विश्वास के साथ किया जा सकता था । जहां सीढियाँ समाप्त होती थीं वहां कोई बहुत छोटा सा शिवालय था या फिर तुलसी का देवल । नीचे से कुछ स्पष्ट नहीं दिखाई पड़ रहा था ।

टीलों से कुछ हट कर एक खंडहर था जिसे देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि यह इमारत अपने समय में निश्चय ही अत्यंत भव्य रही होगी । इसी खंडहर में रजत ने ठहरने का निश्चय किया था । मंदिर और खंडहरों के अतिरिक्त अन्य कोई स्थान वहां ठहरने योग्य न था ।