Sathiya - 24 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 24

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साथिया - 24

अक्षत और नील के एग्जाम्स दिवाली के बाद होने थे और वह और वह दोनों अपने एग्जाम की तैयारियों में लगे हुए थे।

रिया के भी एग्जाम्स उन्हीं के साथ होने थे इसलिए वह भी अपनी तैयारी में लगी हुई थी। पर अब वह मनु की तरफ से निश्चित थी। वह जानती थी कि मनु अब कभी नील की तरफ कदम नहीं बढायेगी, फिर भी वह अपनी तरफ से कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी क्योंकि उसे विदेश जाकर आगे की स्टडी करनी थी तो उससे पहले उसने अपने मम्मी पापा से बात करना जरूरी समझा।

"पापा मुझे आपसे जरूरी बात करनी है!" डिनर के समय रिया ने अपने पापा मिस्टर मल्होत्रा से कहा।


" हाँ रिया बेटा बोलो!" मिस्टर मल्होत्रा बोले।

" पापा मैं और नील एक दूसरे को पसंद करते है।" रिया ने कहा।

"ये तो बहुत अच्छी बात है बेटा। हमें हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है...!" मिस्टर मल्होत्रा बोले।

" पापा हमारा रिश्ता..!" रिया ने बोलना चाहा।

"पर अभी यह बहुत जल्दी होगा बेटा।अभी नील भी स्टडी होनी है और तुम्हें भी तो विदेश जाना है..!" मिस्टर मल्होत्रा ने समझाया।

" तो मैं कौन सा आप से अभी रिश्ता करने के लिए कह रही हूं। मैंने आपको बताया ताकि आप किसी और के बारे में ना सोचो और ना ही मेरा रिश्ता कहीं और करो। मैं वापस आऊंगी उसके बाद आपको नील के पापा से बात करनी होगी और हमारा रिश्ता करना होगा..!" रिया ने कहा।

"ठीक है बेटा उसमें अभी काफी समय है हम तब का तब सोचेंगे..! "मिस्टर मल्होत्रा ने रिया को टाल दिया क्योंकि वह भी बहुत अच्छे से जानते थे रिया का नेचर कितना अलग है और वो कितना चंचल है। आज अगर वह नील के लिए कह रही है तो जरूरी नहीं दो तीन साल बाद भी वह नील के बारे में ही बात करे।

***
साँझ अपने हॉस्टल के रूम में थी और उसने अपना फोन उठा कर एक नंबर डायल कर दिया।

" हेलो!" सामने से आवाज आई।

"हाँ नेहा दीदी आप दिल्ली कब पहुंचने वाली हो?" साँझ ने पूछा।

" बस आज शाम को पहुंच जाऊंगी और कल सुबह हम लोग निकलेंगे गांव के लिए और हां तेरे हॉस्टल में मुझे रुकने की परमिशन तो मिलेगी ना नहीं तो मैं कोई बाहर होटल में रूम बुक कर दूं?" नेहा ने पूछा।

" नहीं दीदी ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं है। आप रुक सकती हो मैंने वार्डन से बात कर ली है सिर्फ एक रात की ही तो बात है। " साँझ ने कहा।

"ठीक है चलो मैं रखती हूं।"नेहा ने कहा और कॉल कट कर दिया।


"किस से बात कर रही थी तुम्हारी सिस्टर?"तभी नेहा के सामने वाली बर्थ पर बैठा लड़का बोला।

" हां आनंद मेरी सिस्टर। एक्चुअली में मेरी कजिन है बचपन से हमारे साथ ही रहती है उसके पेरेंट्स नहीं है और मुझे बहुत प्यार करती है!" नेहा बोली।

"अच्छा है भाई बहिन होने चाहिए!" आनंद ने कहा।

" थैंक यु सो मच आनंद कि तुम भी मेरे साथ दिल्ली तक इसी ट्रेन से आ गए। अकेले में बड़ा ही बोर हो जाती बहुत लम्बा सफऱ है तो परेशान भी हो जाती हूं। अब हम दोनों साथ में आए तो कम से कम सफर अच्छे से कट गया।" नेहा ने कहा।

"तो कोई बात नहीं। मुझे भी दिल्ली ही आना था मेरी फैमिली भी दिल्ली में है तो सोचा तुम्हारे साथ ही चलता हूं अब हम दोनों एक ही क्लास में है, दोस्त हैं तो इतना तो दूसरे के लिए कर ही सकते हैं ना?" आनंद ने कहा।

" हां वह तो है!" नेहा बोली।


"वैसे तुम्हारे घर में कौन-कौन है?"आनंद ने पूछा।

" बस मम्मी पापा मैं और मेरी बहन साँझ।" मैं एमबीबीएस करने के लिए मुंबई निकल गई और साँझ नर्सिंग कर रही है दिल्ली से। बाकी मम्मी पापा लोग गांव में ही रहते हैं। बड़ा अच्छा खासा रुतबा है वहां पर हमारा आखिर ठाकुर परिवार जो है और फिर गांव की मान्यताएं..!" नेहा ने कहा।

" हां काफी सुना है मैंने तुम्हारे गांव और उस तरफ के एरिया के बारे में। वहां पर बहुत सख्त नियम है। अगर किसी लड़की ने अपनी मर्जी से किसी के साथ शादी कर ली तो यह लोग उन लोगों की जान ले लेते हैं और खबर बाहर तक नहीं जाती..!" आनंद बोला।

"हर समय नहीं। अगर परिवार एक ही बराबर जाती के है तो दिक्कत नहीं होती है पर अगर ऊंच-नीच की दीवार बीच में आ जाती है तो वाकई में ऐसा होता है। हालांकि अभी कुछ सालों से ऐसी कोई घटना सुनने में नहीं आई पर हां यह बात कोई नई नहीं है वहां के लिए। वहां इज्जत और शान हर चीज से बढ़कर है, अपने बच्चों की खुशी और उनकी जिंदगी से भी बढ़कर..!" नेहा ने कहा।

"घुटन नहीं होती ऐसी जगह?" आनंद बोला।

" बहुत घुटन होती है आनंद। मेरा भी दम घुटता है इसीलिए तो मैं बाहर निकली। पापा को मनाया और बहुत मेहनत करके मेडिकल एंट्रेंस क्लियर किया ताकि बाहर निकल सकूँ। मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होता है। बहुत खराब लगता है पर क्या कर सकते हैं। उन परिवारों में एक मेरा परिवार भी आता है..!"नेहा बोली।



"इसका मतलब तुम्हें भी अपने परिवार के हिसाब से ही शादी करनी होगी? मतलब तुम मुंबई में रहती हो और गलती से अगर तुमने खुद किसी को चुन लिया तो तुम्हारे साथ...?" कहते कहते आनंद रुक गया।

"नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा।
मेरे पापा मुझे बहुत प्यार करते हैं। हाँ मैं मानती हूं थोड़े पुराने खयालात के हैं पर फिर भी उन्होंने मुझे अगर एमबीबीएस करने के लिए बाहर भेजा है तो आगे भी वह मेरी बातों को सुनेंगे और समझेंगे और मुझे इतना विश्वास है कि मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं होगा। और फिर वैसे तो मैं मेरे पेरेंट्स के अकॉर्डिंग चलूंगी पर अगर कभी ऐसा होगा तो मैं अपने मम्मी पापा को मना लूंगी। मैं उनकी इकलौती बेटी हूं उनकी जान बसती है मुझमे। मेरे साथ वह कभी भी कोई भी सख़्ती नहीं करते हैं..!" नेहा ने कहा।

" चलो अच्छा है और मैं तो यही चाहूंगा कि जिस तरीके से तुम्हारे पेरेंट्स समझते हैं वहां के बाकी लोग भी समझें क्योंकि यह सब चीजें आज के समय में होना ठीक नहीं है...! आनंद बोला।



"वैसे तुम्हारे घर में कौन-कौन है?"नेहा ने पूछा।

" मेरे घर में बस मैं और मेरी मम्मी है। मम्मी भी डॉक्टर है। पापा की बहुत पहले डेथ हो गई थी बस मम्मी का सपना था कि मैं भी डॉक्टर बनु और वैसे भी जब दोनों पेरेंट्स डॉक्टर हो तो बच्चों के ऊपर भी एक प्रेशर आ जाता है डॉक्टर बनने का। तो बस चल दिया मेडिकल की तैयारी करने। एंट्रेंस क्लियर किया और आ गया मुंबई अब एमएस दिल्ली से ही करूंगा।और यहीं पर अपने मम्मी के साथ हॉस्पिटल ज्वाइन कर लूंगा..! वैसे हमारा एक घर जर्मनी में भी है। हो सकता है हम वहाँ शिफ्ट कर जाये।" आनंद बोला।

" वाओ जर्मनी..!" नेहा बोली।

" हाँ वहां पापा के फ्रेंड का हॉस्पिटल है और वो माम्मी को बुला भी चुके है कई बार पर मम्मी मेरी स्टडी के कारण नहीं गई अब तक..! "आनंद बोला।


" बहुत अच्छा लगा तुम्हारी बातें सुनकर। अब मैं भी एमबीबीएस करने के बाद आगे एम.डी या एम एस करूंगी और फिर किसी डॉक्टर से ही शादी करूंगी यह तो मैंने तय कर लिया है।" नेहा बोली।

"अभी तो तुम कह रही थी कि फैसले तुम्हारे पापा लेंगे..!" आनंद ने कहा।

" हां पर पापा को मैं मनाऊंगी ना। अब मैं एमबीबीएस कर रही हूं तो किसी अनपढ़ से तो शादी नहीं करूंगी और पापा का बस चलेगा तो वह तो वहीं गांव के आसपास किसी ठाकुर परिवार के लड़के को चुन लेंगे मेरे लिए पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। मुझे मेरे बराबर योग्य लड़का चाहिए। जिसका मानसिक स्तर ही ठीक ना हो ऐसे से कभी शादी नहीं करूंगी कम दिमाग़ अनपढ़ के साथ मैं रिश्ता कभी नहीं करूंगी फिर जब समय आएगा तब देखा जाएगा। पर मैं पापा को मना लूंगी और मैं जानती हूं कि पापा मेरी बात जरूर मान जाएंगे.!" नेहा बोली।

"और अगर नहीं माने तो?" आनंद बोला।

" अगर नहीं माने तो मैं भी उनकी बेटी नेहा सिंह ठाकुर हूं। मैं घर छोड़कर भाग जाऊंगी पर कभी भी अब जबरदस्ती बर्दाश्त नहीं करूंगी..!" नेहा ने कहा तो आनंद मुस्करा उठ।

" तो काफी डेयरिंग हो तुम? मतलब ऐसे परिवार से आई हो ऐसे माहौल से आई हो फिर भी इतनी हिम्मत। मेरा मतलब कि ऐसी जगह से आई हुई लड़कियां हिम्मत नहीं कर पाती हैं..!" आनंद बोला।

"तुमने अभी मेरी हिम्मत देखी नहीं है न ही मुझे ठीक से जाना है....!" नेहा ने फूल एटीट्यूड से कहा।

"ठीक है अब तो हम दोनों एक ही कॉलेज में एक ही साथ में.। धीरे-धीरे तुम्हे जान जाऊंगा और पहचाना भी जाऊंगा और हाँ जिस दिन लौटने का टिकट करवा रही हो मुझे बता देना साथ में ही चलेंगे तुम्हारे साथ सफर वाकई में अच्छा कटा..!" आनंद बोला तो नेहा मुस्कुरा उठी और फिर दोनों बातों में लग गए ।

कई बार इंसान सोचता कुछ और है और होता कुछ और। नियति जिसकी किस्मत में क्या लिख रही है यह कोई नहीं जानता। कभी किसी की खुशी किसी के लिए गम का सबब बन जाती है और किसी की गलती की सजा कोई और भुगतता है।

अक्षत साँझ नियति सार्थक सौरभ निशांत और आनंद नेहा की जिंदगीयां कैसे एक दूजे की जिंदगी को प्रभावित करेंगी ये इनमे से कोई नहीं जानता था.....!
गजेंद्र सिँह और अवतार सिँह की गांव की सोच और मान्यताये तो वही उनके बच्चों के आगे बढ़ते कदम क्या मोड़ लेंगे इस बात से आज हर कोई अनजान था।
नेहा और आनंद के बीच आज शुरू हुई इस दोस्ती का अंजाम आगे क्या होगा यह कोई नहीं जानता था और इससे किस-किस की जिंदगी प्रभावित होगी इस बात से अनजान वह दोनों एक दूसरे को जानने और समझने की कोशिश मे लग गए थे।


****
अक्षत अपने कमरे में बैठा पढ़ाई कर रहा था।

तीन दिन हो चुके है पर साँझ को नहीं देखा है। कॉलेज भी नहीं गया हूं तैयारी करने की वज़ह से और अब दिवाली आ रही है तो शायद वह चली जाएगी अपने घर। एक बार उसे देख लेता तो दिल को सुकून मिल जाता..!" अक्षत ने मन ही मन कहा और उनका दिल उदास हो गया।

तभी ईशान उसके कमरे में आया।

" क्या हुआ भाई क्या सोच रहे हो? " ईशान ने पूछा।

" कुछ नहीं तुम तो जानते हो इशू साँझ को मैं पसंद करता हूं। दो-तीन दिन हो गए हैं उसे नहीं देखा है और अब शायद वह दिवाली की छुट्टियों में घर चली जाएगी तो जाने कब आएगी। दिल कर रहा है उसे देखने उससे मिलने का पर समझ नहीं आ रहा कि उसे मिलूं भी तो कैसे मिलूं? देखूँ भी तो कैसे देखूँ?" अक्षत ने कहा।

"बस इतनी सी बात। अरे जब मैं हूं तो फिक्र की क्या बात है?" ईशान बोला तो अक्षत ने आंखे छोटी कर उसे देखा।

" मतलब तुम्हें और मम्मी को मैंने बताया था ना उस दिन कि मैं और शालू एक दूसरे को प्यार करते हैं..!" ईशान बोला।

" तो? " अक्षत ने सवाल किया।

" साँझ शालू की बेस्ट फ्रेंड है तो मैं शालू को बोलता हूं वह साँझ को लेकर आ जाएगी कहीं और तुम मेरे साथ चलना.!" ईशान बोला।

" साँझ शक हो जाएगा!" अक्षत बोला।

" क्यों शक होगा...! मैं तो तुम्हारा नाम भी नहीं लूंगा और शालू को भी बोल दूंगा कि साँझ से तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं कहे। मैंने बता दिया है उसे कि तुम साँझ को पसंद करते हो और साथ में वादा भी ले लिया है कि वह साँझ को नहीं बताएगी ज़ब तक तुम न कहो..!" ईशान बोला।

"थैंक यू सो मच ब्रो!" अक्षत ने इंसान को गले लगाते हुए कहा।

" तेरे लिए कुछ भी मेरे भाई। चल अभी रेडी हो जा मैं शालू से बात करता हूं..!"ईशान बोला और फोन लेकर बालकनी में निकल गया।

अक्षत के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई इस बात को सोचकर कि साँझ से मिलेगा भी थोड़ा सा समय उसके साथ बिताने को भी मिलेगा।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव