Sathiya - 22 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 22

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साथिया - 22

ईशान की बाइक सड़क पर चल रही थी और पीछे बैठी शालू कभी सड़क तो कभी ईशान को देख रही थी।

आज ईशान की बाइक कुछ ज्यादा ही धीमी चल रही थी और इस बात को शालू भी महसूस कर रही थी।

"ईशान..!" शालू ने धीरे से कहा।

"हां बोलो क्या हुआ? " ईशान बोला।

"मौसम खराब हो रहा है देखो कितने बादल घिर आए हैं..!"

'तो ?" ईशान बोला।

"तो अपनी बाइक की स्पीड थोड़ा तेज करो ना...! इतना धीमा चलोगे तो हम भीग जाएंगे।" शालू बोली।

" भीगनें को ही तो दिल कर रहा है मेरा..!" ईशान ने कहा।

"मतलब?" शालू बोली।

"कुछ नहीं बस चल ही रहें है और थोड़ा सा भीगने में तो अच्छा ही लगता है ना? और यह मौसम की पहली बरसात है इस में भीगने का तो अलग ही मजा है।" ईशान बोला पर उसने बाइक की स्पीड नहीं बढ़ाई।

उसके बाद शालू ने भी कुछ नहीं कहा। अभी वह एक दो किलोमीटर ही आगे बढे होंगे कि बारिश शुरू हो गई।

"बारिश शुरु हो गई...! इसलिए मैंने कहा था ना कि बाइक थोड़ी तेज चलाओ। अब हम भीग जाएंगे।" शालू बोली तो ईशान ने बाइक रोक दी और उतर कर नीचे खड़ा हो गया।

शालू ने उसे देखा तो वह भी बाइक से उतर कर खड़ी हुई।

"क्या हुआ बाइक बंद हो गई क्या? " शालू ने परेशान होकर कहा तभी ईशान ने उसके आगे अपनी हथेली कर दी।

शालू ने नासमझी से ईशान की तरफ देखा।

"अब यहां ना ऑडियंस है न म्युजिक..! इस बारिश के संगीत के साथ मेरे साथ डांस करोगी? " ईशान बोला।

"यहां इस समय?" शालू ने उस खाली सड़क को देखकर कहा?

"क्यों सिर्फ दूसरों के लिए ही हम डांस कर सकते हैं? क्या हमारे खुद के सुकून के लिए नहीं? और मैंने कहा था ना कि हमारा डांस इसलिए खूबसूरत हुआ क्योंकि हमने उसे फील किया था नाकि इसलिए कि हमने प्रैक्टिस की थी।" ईशान बोला तो शालू ने झिझकते हुए उसके हाथ के ऊपर हाथ रख दिया।

अगले ही पल ईशान ने उसे गोल घुमाया और उसकी पीठ को अपने सीने से लगा उसकी कमर पर हाथ रख दिये।

एक तेज सिहरन शालू को हुई और फिर वो होती बरसात को इंजॉय करते हुए डांस करने लगी।

बारिश का पानी उनके शरीर पर और सड़क पर गिर रहा था और दोनों मस्त होकर जबरदस्त तरीके पर डांस कर रहे थे।

कुछ समय बाद शालू थक गई और एकदम से उसने अपना सिर ईशान के सीने पर टिका लिया।

"बस ईशान और नही..! मैं बहुत थक गई हूं।" शालू ने कहा।

ईशान ने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच लिया और उसकी आंखों में देखा।


"तुमने पूछा था ना कि मैं तुम्हें अपनी बाइक पर क्यों बिठाता हूं? मतलब तुम्हे मेरी बाइक पर बैठने की परमिशन क्यों है?" ईशान ने कहा तो शालू ने गिरते पानी से बंद होती हुई आंखों को जबरदस्ती खोलकर उसकी आंखों में देखा।

"मेरी बाइक पर मेरी मां के बाद आज तक कोई लड़की नही बैठी..! मनु भी नही। सिर्फ तुम हो जो मेरी बाइक पर बैठी हो..! जानती हो क्यों ?" ईशान ने कहा तो शालू ने कुछ समझते तो कुछ नासमझी से उसकी आँखों मे देखा।

"क्यों?" शालू ने धीरे से कहा।

"क्योंकि तुम खास हो बेहद खास...! हर इंसान की जिंदगी में कोई एक ऐसा इंसान होता है जो बहुत खास होता है। जिस पर अपना दिल ही नहीं अपनी जान भी लुटाने का दिल करता है। जिसके चेहरे की मुस्कुराहट के लिए हर तकलीफ सहन करने से भी परहेज नहीं होता।" ईशान ने कहा,

"शालू अब उसकी बात समझने लगी थी और उसकी नजरें झुकने लगी।

"प्लीज शालू लुक एट मि..!" ईशान ने कहा तो शालू ने वापस से उसकी तरफ देखा।

"तुमसे इस दिल के एहसास न जाने कब और कैसे जुड़ गए! अक्षत जब इस तरह की बातें करता था तो मैं विश्वास नहीं करता था कि ऐसा भी कोई रिश्ता होता है जहां किसी की एक मुस्कुराहट पर जान देने का दिल करें। जहां दिल कुछ भी ना चाहे बस आपके मन में एक बात हो कि सामने वाला हमेशा खुश रहें और आपकी आंखों के सामने रहे...! जहां सामने वाले के दिल की धड़कन आप अपने सीने में महसूस करो।" ईशान बोला।

शालू का दिल खुशी से मयूर बन नाच उठा पर वो अब भी खामोश रही।


"और वही एहसास का रिश्ता मेरा तुम्हारे साथ जुड़ गया है..! तुम्हें देखता हूं तो दिल को सुकून मिलता है और जिस दिन भी तुम कॉलेज नहीं आती मन मेरा बेचैन रहता है। तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट देखता हूं तो खुद ब खुद मेरा चेहरा खिल जाता है और तुम्हारी उदासी देख न जाने क्यों मेरे दिल को तकलीफ होती है।
जानता हूं हर किसी के लिए कोई एक इंसान बेहद खास होता है और वह खास इंसान मेरे लिए तुम हो। क्योंकि तुम्हें प्यार करता हूं मैं शालू..!" ईशान ने कहा तो शालू की आँखे चमक उठी।

"यस आई लव यू...! पता नहीं चला कब कैसे क्यों पर तुम्हारे साथ जुड़ता चला गया और एक सामान्य सी मुलाकात कब गहरे प्यार के एहसास में बदल गई मुझे खुद भी पता नहीं चला।" ईशान ने कहा तो शालू के चेहरे पर गुलाबी आभा बिखर गई।

"जानता हूं शायद मैं थोड़ी जल्दबाजी कर रहा हूं। अभी हमारे कॉलेज चल रहे हैं पर मैं अक्षत के जितना संयम वाला नहीं हूं कि इंतजार करता रहूँ सही समय का। सही समय के इंतजार में कई बार चीजें गलत भी हो जाती हैं और मैं तुम्हारे साथ ना ही कोई रिस्क ले सकता हूं और ना ही कोई टेंशन। इसलिए अपने दिल की बात कहने में बिल्कुल भी देर नहीं की। मैं तुम्हें चाहने लगा हूं शालू ...! बेइंतहा मोहब्बत करने लगा हूं तुमसे।" ईशान की आवाज भारी हो गई।

शालू ने कोई जवाब नहीं दिया बस वह गुलाबी होते चेहरे के साथ ईशान को देख रही थी।

"तुम्हारे तुम्हारे ऊपर कोई जबरदस्ती नहीं है शालू बस मुझे न जाने क्यों ऐसा लगा कि जो मैं सोचता हूं वही तुम भी सोचती हो.! तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए फीलिंग है और हमारा रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ चुका है। बाकी अगर तुम्हारे दिल में ऐसा नहीं है तो तुम बेझिझक और बेफिक्र होकर अपने दिल की बात कह सकती हो।" ईशान ने कहा।

शालू ने अभी भी कोई जवाब नहीं दिया तो ईशान के चेहरे पर मायूसी आ गई।

"आएम सॉरी अगर मैंने तुम्हें हर्ट किया हो..? पर मुझे लगा कि मुझे अपनी फीलिंग तुम्हारे साथ शेयर कर देना चाहिए। दिल ही दिल में तुम्हें प्यार करता रहूं और तुम्हारे सामने कन्फेस ना करूं ऐसा मैं नहीं हूं। तुम जानती हो मुझे जो मेरे दिल में होता है वही मेरी जुबान पर होता है, और इसलिए मैंने अपने दिल की बात तुम्हें कह दी। पर आखिरी फैसला तुम्हारा है और मैं तुम्हारे हर फैसले की पूरी रेस्पेक्ट करूंगा। " ईशान ने कहा तो शालू ने पलकें झपकाई और फिर एकदम से उसके गले लग गई


ईशान ने आश्चर्य और खुशी के साथ शालू को देखा।

"आई लव यू ...आई लव यू...!आई लव यू टू...! और मैं भला नाराज क्यों होंगी? यह सब सुनने के लिए तो मैं कब से बेचैन थी। हां यह सच है मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं। और तुम्हारी आंखों से मुझे समझ में आता था कि तुम्हारे दिल में भी फीलिंग है। और मैं बस यही सोचती थी कि ना जाने तुम कब कहोगे?" शालू बोली तो ईशान की आँखे चमक उठी।

"और फाइनली आज तुमने अपने दिल की बात मुझसे कह दी। एम सो हैप्पी..! थैंक यू सो मच।" शालू ने कहा तो ईशान ने भी अपनी बाहों का घेरा उसके इर्द-गिर्द कस दिया।


"इसका मतलब कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो और मैं बेवजह ही डर रहा था कि कहीं तुम मना ना कर दो..!" ईशान बोला।

"हां बुद्धू मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं और बेहद प्यार करती हूं...और मैं भी बस तुम्हारी तरफ से बोलने का इंतजार कर रही थी, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मैं तुमसे कहूं और तुम मना कर दो। बस इसीलिए पहले तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती थी बाकी मेरी तरफ से मना होने का तो सवाल ही नहीं होता। मेरे तो पापा को भी तुम पसंद हो।" शालू जल्दी जल्दी से बोल गई और अगले ही पल उसने अपनी जुबान को अपने दांतों तले दबा दिया।

और उसकी इस बात को सुनकर ईशान के चेहरे की मुस्कुराहट और भी बड़ी हो गई।


"तुम्हारे पापा को मैं पसंद हूं पर मेरे मम्मी पापा कभी तुम्हें नापसंद कर ही नहीं सकते। तो फिर हमारी आगे की टेंशन भी खत्म..! बस अब पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर देना है और हां थोड़ा-थोड़ा एक दूसरे पर भी। भी कॉलेज खत्म होते ही हम अपने पेरेंट्स से बात करेंगे।" ईशान ने कहा तो शालू ने गर्दन हिला दी और उससे अलग हो गई।

ईशान ने वापस से उसे अपने गले से लगा लिया।

"आज का दिन और यह बरसात मैं कभी नहीं भूलूंगा। आज मेरे दिल की मुराद पूरी हो गई और तुम्हारी हां सुनकर जो सुकून मिला है उसे मैं बता नहीं सकता।" ईशान ने कहा।।

" और मैं भी बहुत खुश हूं ईशान!" शालू बोली और उससे अलग हो गई।

ईशान ने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच लिया और हौले से उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए।

'थैंक यू सो मच।" ईशान बोला तो शालू ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा,

"बहुत देर हो गई है हो गई है और बारिश भी भी तेज होने लगी है अब चले!" शालू ने कहा।

"हां चलो अब रुकने का कोई मतलब ही नहीं है..! आखिर हम दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर ही लिया तो अब बारिश में मैं भीग कर बीमार थोड़े ना होना है।" ईशान बोला और उसने बाइक स्टार्ट कर दी।

शालू तुरंत उसके पीछे बैठ गई और उसने अपने दोनों हाथों को ईशान के सीने पर लपेट लिया।

ईशान ने उसकी हथेली को पकड़ा और अपने होठों से लगा लिया और उसी के साथ बाइक आगे बढ़ा दी।

*********

उधर नियति अपने कॉलेज से निकलकर बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रही थी कि तभी सार्थक आकर उसके सामने खड़ा हो गया।

एक पल को नियति सकपका गई पर अगले ही पल उसने खुद को संभाल लिया।

"हेलो.!" सार्थक ने कहा।

"जी...! जी कहिए..!" नियति ने हकलाते हुए कहा।

"आप भी उसी कॉलेज में पढ़ती हो जिसमें मैं पढ़ता हूं?" सार्थक ने पूछा।

" मैं ...मैंने ध्यान नहीं दिया शायद...!" नियति ने बात को टालते हुए कहा हालांकि वह बहुत अच्छे से सार्थक को पहचान गई थी।

"कब से आपको ढूंढ रहा हूं..! उस फुटबॉल मैच के बाद तो आप कभी दिखाई ही नहीं दी और आपकी फ्रेंड उससे मैंने पूछा तो उसने भी इस तरीके से जवाब दिया जैसे आपको जानती ही नहीं हो।" सार्थक बोला।

"पर आप मुझे क्यों ढूंढ हो रहे थे? " नियति ने एकदम से सवाल किया।

"बस यूं ही आपसे बात करने के लिए। आपसे दोस्ती करने के लिए। मुझसे दोस्ती करोगी?" सार्थक ने अपना हाथ आगे बढ़ाया कि तभी बस स्टॉप पर आकर बस रुकी और नियति ने उसका जवाब नहीं दिया और एक नजर उसे से देख कर बस पर चढ़ गई।।

बस आगे बढ़ गई और सार्थक खाली-खाली आंखों से जाती हुई बस को देखता रह गया।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव