Sathiya - 11 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 11

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

साथिया - 11

" घर चलो चाय पी कर निकल जाना। मम्मी पापा से भी मिल लेना।" शालू बोली।

" फिर कभी आ जाऊंगा। आज देर हो गई है और अब तक तो उस भूतनी ने अच्छा खासा रायता फैला दिया होगा। अब मुझे जाकर सब के सवालों के जवाब देने होगें।" ईशान ने कहा तो शालु ने आंखे छोटी करके देखा ।

"मतलब तुमने सुना था ने कि रास्ते में क्या कह रही थी? इसी बात का अच्छा खासा बखेड़ा खड़ा खड़ा किया होगा उसने। वैसे भी जब तक वह मेरी टांग खिंचाई नहीं कर दे उसका खाना ही नहीं पचता है। जरूर मम्मी सवालों का पिटारा लेकर बैठी होगी कि कौन है वह लड़की जिसको मैंने अपनी वाइफ पर बैठाया?" ईशान बोले जा रहा था और शालू बस सुन रही थी।

" घर मे कदम रखते ही सवाल शुरू... कौन लड़की है? कब से जानता हूं? क्या रिश्ता है क्या चल रहा है? वगैरह वगैरह।" ईशान बोला तो शालू खिलखिला उठी।


एक पल को एक पल को ईशान उसकी उस निश्चल हंसी में खो गया फिर तुरंत ही उसने अपना सिर झटका।


"मतलब तुम्हारी बहन कम दोस्त.बहुत ही खतरनाक है! ऐसे कौन करता है? " शालू बोली।


'कोई नहीं करता पर वह करती है और कुछ भी बोल दो ना तो हमेशा सगे सौतेले अपने पराये का रोना लेकर बैठ जाती है तो कुछ कह भी नहीं सकते और सच बताऊँ ना मैं उसे कुछ कहना भी नहीं चाहता। हमारे परिवार में एक बेटी की कमी थी तो किस्मत ने हमें वह बेटी दे दी...! मुझे और अक्षत को बहन दे दी और उसकी जिंदगी में एक परिवार की कमी थी जो उसे हमारे परिवार ने मिलकर पूरा कर दिया, अब न कुछ कहने की जरूरत है ना कुछ सुनने की जरूरत है। बस एक दूसरे के साथ जिंदगी आराम से निकल रही है और इतनी खिंचाई करने का और मुझे तंग करने का हक मैंने उसे कुछ दे रखा है। बहन जो माना है।" ईशान ने कहा तो शालू के चेहरे पर एक क्यूट सी मुस्कुराहट आ गई।


"बहुत अच्छी है तुम्हारी फैमिली कभी मिलूंगी मैं उनसे भी..!" शालू बोली।

'हां बिल्कुल जिस दिन तुम्हारा मन करे बता देना तुम्हें लेकर चलूंगा और तुमको बहुत अच्छा लगेगा मेरे मम्मी पापा अक्षत और खासकर मनु से मिलकर।" ईशान बोला।

"हां बिल्कुल जल्दी ही आऊंगी...!" शालू बोली।

"ठीक है अब मैं निकलता हूं कल तुमको पिक कर लुंगा।" ईशान बोला और निकल गया।

ईशान निकला और शालू अपने घर के अंदर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि तभी एक बड़ी गाड़ी वहां आई और उसे देखते ही गेटकीपर ने दरवाजा खोला।

शालू के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

गाड़ी अंदर पोर्च में चली गई और और जैसे ही ड्राइवर ने गाड़ी रोकी उसमें से शालू के पापा मिस्टर अबीर राठौर बाहर निकले। लंबे चौड़े कद काठी के रंग साफ और दमदार पर्सनालिटी के मालिक अबीर राठौर शहर का जाना माना नाम है। बिजनेस की दुनिया में उन्हें हर कोई जानता है फिर चाहे अरविंद चतुर्वेदी हो या दिवाकर वर्मा।



"पापा ...!" शालू ने अबीर को देखा तो जल्दी से जाकर उनको साईड हग किया।

" और आ गई कॉलेज से और आज स्कूटी कहां है? अबीर ने शालू को देख कर कहा।

"स्कूटी खराब हो गई थी पापा तो उसे वही मैकेनिक के पास छोड़ दिया...!" शालू बोली।

"कितनी बार कहा है तुमसे कि गाड़ी और ड्राइवर लेकर जाया करो ..! यह बचकानी हरकते अब ठीक नहीं लगती बेटा। किसी किसी बात की कोई कमी नहीं है फिर तुम क्यों बेवजह स्कूटी से घूमती हो?" अबीर बोले ।

"मुझे अच्छा लगता है पापा..! जब तक मैं खुद कुछ करने लायक ना हो जाऊँ तब तक मैं नहीं चाहती कि आपके कमाए पैसों पर ऐश करूँ। मेरा आपने वैसे ही अलग स्टैंडर्ड का मेंटेन कर रखा है। अब कॉलेज में मैं एक नॉर्मल लड़की बनकर जाना चाहती हूं ना कि बिजनेसमैन अबीर राठौर की इकलौती बेटी बनकर। अब का रोज कार से जाऊंगी तो सबकी नजर मुझ पर होगी और मैं नहीं चाहती कि कोई भी मुझे स्पेशल अटेंशन इसलिए दे क्योंकि मैं आपकी बेटी हूं।" शालू बोली।


'तुम और तुम्हारी यह अजीब अजीब बातें।" अबीर बोले और शालू के साथ अंदर आ गए।



दोनों जाकर हॉल में बैठ गए तभी मालिनी भी अंदर से आ गई।

'अरे वाह आज तो दोनों लोग साथ में आए और शालू बेटा तुम्हें इतनी देर कैसे हो गई? रोज तो तुम जल्दी आ जाती हो ।" मालिनी ने कहा।

"मम्मी स्कूटी खराब हो गई थी तो उसे मैकेनिक के पास डाला इसलिए आने में देर हो गई..! " शालू ने बताया।


"अब तो फिर तुम कैसे आई?" मालिनी ने पूछा।


शालू जवाब दे ही रही थी उससे पहले ही अबीर बोल पड़े



" अरविंद चतुर्वेदी के बेटे ईशान चतुर्वेदी के साथ..!" अबीर ने जैसे ही कहा मालिनी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई तो वही शालू ने आंखें बड़ी करके कबीर की तरफ देखा।


"आप पहचानते हो ईशान को पापा?" शालू बोली।


"मैं एक बार किसी को देख लूँ तो फिर भूलता नहीं हुँ। एक दो बार एक बिजनेस पार्टी में चतुर्वेदी जी अपने बेटे को लेकर आए थे। वैसे उनके दो बेटे हैं पर बड़ा बेटा हमेशा इन बिजनेस पार्टी से दूर रहता है पर उनका छोटा बेटा ईशान चतुर्वेदी उनके साथ देखा गया है।" अबीर ने कहा।


"हां पापा आपने बिल्कुल सही पहचाना...! वो ईशान चतुर्वेदी ही है अरविंद चतुर्वेदी के छोटे बेटे और उनका बड़ा भाई अक्षत अभी लॉ कर रहा है और ईशान बता रहा था कि उसका बिजनेस में कोई इंटरेस्ट नहीं है। वह जज की तैयारी कर रहा है। इशान को बिजनेस ही जॉइन करना है इसलिए वह मैनेजमेंट की स्टडी कर रहा है और पापा के साथ कभी कभार ऑफिस भी देखता है।" शालू ने कहा।


"वह एक मुलाकात में काफी कुछ जान लिया है तुमने? "अबीर ने गहरी आंखों से शालू को देखते हुए कहा तो शालू ने नजरें झुका ली।

"पापा उसी ने मुझे ड्रॉप किया ना तो रास्ते भर बातें करते हुए आए ला। उसने अपने परिवार के बारे में घर के बारे में सब कुछ बताया मुझे इसीलिए बताएं वरना इससे पहले कभी मुलाकात नहीं हुई है। वैसे आपको कैसे पता कि ये पहली मुलाकात है?" शालू बोली।


" बाप हुँ तुम्हारा। साथ हूँ या न हूँ पर हर पल नजर तुम पर रहती है और तुम्हें सफाई देने की जरूरत नहीं है हम जानते हैं बेटा तुम्हें और इशान को भी । लड़का वाकई अच्छा है बातचीत की जा सकती है कोई बुराई नहीं है। अच्छा परिवार है और संस्कार भी अच्छे हैं वरना आज के समय में कोई इस तरीके से किसी की मदद नहीं करता। " अबीर बोले तो शालू के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई।


"और मालिनी माही से बात हुई थी आज?" अबीर ने पूछा।


'हां बात हुई थी मेरी कह रही है कि ग्रेजुएशन के बाद वो यही आकर ही रहेगी हम लोगों के साथ और पोस्ट ग्रेजुएशन शायद यही से करेगी मालिनी बोली।

"अगर ऐसा है तब तो अच्छा है कुछ दिनों हमें हमारी बच्ची के साथ रहने का मौका मिल जायेगा।" अबीर बोले।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव