Mere Parivar ke sath meri Jindagi in Hindi Anything by Kailash Rajput books and stories PDF | मेरे परिवार के साथ मेरी जिंदगी

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मेरे परिवार के साथ मेरी जिंदगी

आप सोच रहे होंगे की मैंने इस सीर्सेक का नाम - मेरे परिवार के साथ मेरी जिंदगी क्यों रखा।बात कुछ ऐसी है की मेरी अपने परिवार से कुछ ज्यादा बोल चाल नही थी। मैं अपना हिसाब से चलना चाहता था और मेरे परिवार वाले अपने हिसाब से चालना चाहते थे। आप सब सोच रहे होंगे की में ये सब क्या बोल रहा हूं। आप कहानी को आख़िर तक पढ़ना , आपको सब पता चल जाएगा तो चलिए देर न करते हुए कहानी की शुरुआत करते

नमस्ते दोस्तो, मेरे नाम कैलाश है। मै फरीदाबाद के बल्लभगढ़ जिला के सीकरी गांव का रहना वाला हूं। मेरा जन्म २ दिसम्बर २००१ को हुआ था मेरे परिवार में छ सदस्य हैं। जिसमे मेरे पिताजी , माताजी ,मै ,मेरा बड़ा भाई और मेरी दो बड़ी बहन है। सबसे छोटा में ही हूं। ठीक ठाक ही चल रहा था परिवार में सब खुश थे। अब में साल का हो गया था। पीताजी, भाई और दोनो बहन चारपाई पर बैठे हुए था और माताजी चूल्हे पर रोटी बना रही थी और मैं इधर उधर घूम रहा था। बिना किसी टेंशन के मुझे खुद नहीं पता में क्या कर रहा था क्या नही,और वैसे भी इतनी छोटा उमर में किसे पता होता है की वो क्या कर रहा है क्या नही,लेकिन मुझे तो बहुत मजा आ रहा था।मेरे पिताजी के चार भाई है। जिसमें मेरे पिताजी सबसे छोटे है। पिताजी के तीन भाई तो घर से थोड़ी दूरी पर रहते है और एक भाई का घर पिताजी के घर से जुड़ा हुआ था। घर के बीच मैं दीवार थी लेकिन आने जाने का रास्ता था। पिताजी की ओर पिताजी के भाईयो की अच्छी बनती थी। लेकिन तीन भाई तो घर से दूर रहते थे। लेकिन एक भाई और उनकी पत्नी घर के पास में ही रहते है। पिताजी के भाईयो की पत्नी की आपस में नही बनती थी। रोज उनका आपस में झगड़ रहता था। अब रोज किसी न किसी बात पर झगड़ा रहता था। पिताजी ने सोच की इनका तो रोज का हो गया है। कुछ दिन में थक हार कर झगड़ा करना बंद कर देंगे। लेकिन उनका झगड़ा चरम पहुँच गया था और में भी बीमार रहना लगा मेरा मुंह से अपना आप पानी निकल रहा था। लेकिन किसी न ज्यादा ध्यान नही दिया। लेकिन धीरे-धीरे में ओर ज्यादा बीमार होने लगा। कुछ दिनों बाद में ओर बीमार हो गया। मुझे धीरे-धीरे पागलपन के दौरे पडने लगे। मेरे पिताजी और माताजी बहुत से डॉक्टर के पास जाते है। लेकिन कोई फाइदा नही हुआ। पिता जी पहले ही मम्मी के और उनके भाई की पत्नी के झगड़े से परेशान थे। ऊपर से मे और बीमार रहने लगा उस वजह से पिताजी ओर ज्यादा परेशान रहने लगे। झगड़ा रोज चलता रहा एक दिन मम्मी ने झगड़े से तंग आ कर पिता जी को ये घर छोड़ कर जाने को कहा,लेकिन पिता जी ने तो साफ मना कर दिया की हम की नही जाए गए इस वजह से पिताजी और मम्मी के बीच में भी झगड़े शुरू हो गए। मेरी हालत को देखते हुए पिताजी मम्मी की बात मान गए और घर छोड़ने का फैसला ला लिया।

अरे रुको रुको अभी कहानी खत्म नही हुई है अभी तो कहानी सुरु हुई है। आगे की कहानी भाग 2 में।