Wajood - 24 in Hindi Fiction Stories by prashant sharma ashk books and stories PDF | वजूद - 24

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वजूद - 24

भाग 24

गांव वालों की बातें सुनने के बाद वह काफी उदास हो गया था। एकबार फिर उसे अपने भैया और भाभी याद आ गए थे। वो बैठा सोच ही रहा था कि तभी इंस्पेक्टर अविनाश वहां आ जाता है। वह काफी खुश नजर आ रहा था। वो सीधे शंकर के पास आया और बोला शंकर कैसा है ? ठीक लगा रहा है। ये देख मैं तेरे लिए नए कपड़े लेकर आया हूं। जब हम हॉस्पिटल से घर चलेंगे तो तू यही कपड़े पहनना। वैसे तेरे लिए एक अच्छी खबर भी लाया हूं। मेरा प्रमोशन मेरा मतलब मेरी तरक्की हो गई है, अब मैं और भी बड़ा साहब बन गया हूं। अब तू हमेशा मेरे साथ रहना।

शंकर ने कपड़े हाथ मेंं लिए और फिर उन्हें बेड पर रख दिया। अविनाश ने देखा कि शंकर कुछ उदास है तो उसने उससे उदासी कारण पूछा- क्या हुआ शंकर ? आज चेहरे पर ये उदासी। भैया-भाभी की याद आ रही है क्या ? या यहां किसी ने कुछ कहा है ?

शंकर ने इंस्पेक्टर अविनाश की बात का कोई जवाब नहीं दिया। फिर उसने एक सवाल किया- साहब मैं आप पर बोझ बनता जा रहा हूं। ऐसे कब तक आप मेरा इलाज कराएंगे, फिर अपने घर में रखेंगे। जबकि मैं कुछ नहीं करता हूं। एक महीने से ज्यादार समय हो गया है आपने मेरे इलाज के लिए कितना पैसा खर्च कर दिया है। मैं अब आप पर बोझ नहीं बन सकता है। आप मुझे यहां से जाने दीजिए।

इंस्पेक्टर अविनाश अब यह समझ गया था कि शंकर को किसी ने कुछ कहा है, जिसके कारण वो इस तरह की बात कर रहा है। अविनाश ने उससे कहा-

देख शंकर पहली बात तो यह है कि तू मुझ पर कोई बोझ नहीं है। मैं तेरे भाई की तरह हूं। आज अगर तेरा भाई होता वो तेरा इलाज कराता तो क्या तू उस पर बोझ हो जाता ? नहीं ना। बस ऐसे ही मैं हूं। रही बात इलाज के खर्च की तो यह सरकारी हॉस्पिटल है, यहां इलाज का पैसा नहीं लगता है। फिर रही बात तेरे मेरे घर चलने की तो तू वहां भी मेरे लिए बोझ नहीं होगा। क्योंकि वहां तुझे काम मिलेगा और उस काम के बदले रहना, खाना मिलेगा। तो फिर बोझ कैसा। जब तेरा घर बन जाए तो तू अपने घर में रहना मेरे यहां काम करना और उसका पैसा मुझसे ले लेना, जैसा तू पहले अपने गांव में किया करता था।

इंस्पेक्टर अविनाश बात को सुनकर शंकर बस मुस्कुरा दिया। हां ऐसे ही रहा कर ज्यादा मत सोचा कर। अगर कोई तुझे कहे तो मुझे बताना। मैं उसे बता दूंगा कि तू ठीक होने के बाद मेरे लिए काम करेगा। शंकर ने सिर्फ हां में गर्दन हिला दी।

अच्छा अब मैं चलता हूं। तरक्की हुई तो पुलिस चौकी में कुछ काम है। अब तू जल्दी से ठीक हो जा फिर हम घर चलेंगे। इतना करने के बाद अविनाश वहां से चला जाता है। शंकर उसे जाते हुए देखता है। शंकर अब असमंजस में होता है। एक ओर गांव के लोगों की बातें थी और दूसरी ओर अविनाश का व्यवहार और उसकी बातें थी। वह तय नहीं कर पा रहा था कि उसे अब क्या करना चाहिए। काफी देर तक शंकर ऐसे ही बैठे रहता है और सोचता रहता है। देर रात को वो अपने कमरे में बाहर आता है। इधर-दधर देखता है हॉस्पिटल परिसर में उसे कोई नजर नहीं आता है। वह फिर अपने कमरे में जाता है। अविनाश जो कपड़े उसके लिए लेकर आया था वह उन्हें पहनता है और फिर अपने कमरे से और फिर हॉस्पिटल से बाहर निकल जाता है। इस दौरान किसी ने उसे जाते हुए नहीं देखा था।

अगने दिन सुबह करीब 10 बजे तक उसके कमरे का दरवाजा बंद ही था। 10 बजे जब डॉक्टर आए तो उन्होंने दरवाजे को खोला। शंकर अपने कमरे में नहीं था। उन्होंने सोचा रोज की तरह शंकर हॉस्पिटल परिसर में कहीं घूमने चला गया होगा। एक महीने से ज्यादा समय तक वो हॉस्पिटल में था तो हॉस्पिटल का कई स्टाफ उसे जानने लगा था। वो अक्सर हॉस्पिटल में बने पार्क में बैठ जाया करता था। डॉक्टर ने कुछ ऐसा ही सोचा और दूसरे मरीजों को देखने के लिए आगे बढ़ गए। करीब 12 बजे वो फिर से शंकर के कमरे में आए। शंकर इस बार भी अपने कमरे में नहीं था। अब डॉक्टर को चिंता होने लगी थी कि आखिर शंकर कहां गया। क्योंकि इतनी देर तक वो कभी अपने कमरे से बाहर नहीं रहा था। डॉक्टर ने तुरंत ही वार्ड ब्वॉय को बुलाया और शंकर की तलाश में लगा दिया। वार्ड ब्वॉय ने शंकर को कई जगह तलाश किया परंतु वो कहीं नहीं मिला। हॉस्पिटल के अन्य स्टाफ से भी शंकर को लेकर पूछा गया परंतु आज शंकर को किसी ने नहीं देखा था। अब मतलब साफ था शंकर हॉस्पिटल छोड़कर जा चुका था। अब डॉक्टर ने बिना देर कि सबसे पहले इंस्पेक्टर अविनाश को इसकी सूचना देने का तय किया और फिर इंस्पेक्टर अविनाश को फोन लगा दिया।

हैलो इंस्पेक्टर अविनाश क्या आप अभी हॉस्पिटल आ सकते हैं ?

कुछ विशेष काम है डॉक्टर ? इंस्पेक्टर अविनाश ने पूछा।

जी, विशेष ही मानिए। आप जितनी जल्दी हो सके यहां आ जाइए। डॉक्टर ने फिर कहा।

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