Shakral ki Kahaani - 15 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | शकराल की कहानी - 15

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शकराल की कहानी - 15

(15)

"मेरे जानवर बनने की कहानी बहुत लम्बी है-" राजेश ने ठंन्डी सांस लेकर कहा ।

"तो क्या हुआ-सुनाओ - "

"सुनानी ही पड़ेगी मगर अभी नहीं-."

"फिर कब-?"

"पेट पूजा करने के बाद — इत्मीनान से " इतने में चट्टान निकट आ गया था इसलिये उसने जिद नहीं की- खामोश ही रही ।

खुशहाल आग जलाने की कोशिश कर रहा था—दोनों मादाओं को देखते ही झटके के साथ उठा और दूसरी ओर की ढलान में उतर गया। "ठहरो"

"सुनो कहां भागे जा रहे हो।” राजेश शकराली भाषा में चीखा ।

“तुम भी इधर हो आओ—उन कुतियों को वहीं छोड़ो-" खुशहाल की आवाज आई ।

"क्यों बुला रहे हो?"

"तुमसे अलग बात करूंगा।" आवाज आई ।

"यहां आकर भी बात कर सकते हो वह शकराली भाषा नहीं जानती।

"हो सकता हो जानती हों और झूठ बोल रही हों-?"

"तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा- आ जायो--"

"नहीं- तुम्ही आओ में अभी उन कुतियों के पास नहीं आना चाहता।"

"कुतिया नहीं है--वंदरियां है-" राजेश ने कहा ।

"जो भी हो—तुम आओ-वर्ना में किसी ओर निकल भागूंगा ।"

विवश होकर राजेश को ढलान में उतरना पड़ा। वह शकरालियों के स्वभाव और प्रकृति को भली भांति जानता था— अगर वह किसी बात पर जिद पकड़ लेते थे तो फिर संसार की कोई शक्ति उन्हें डिगा नहीं सकती थी। वह अपनी बात पर अड़े रहते थे ।

थोड़ी दूर चलने के बाद उसको खुशहाल मिला था । "इतनी दूर थकने से तुम्हें क्या लाभ मिला?" राजेश ने आंखें निकाल कर पूछा ।

"तुमको तकलीफ पहुंची इसके लिये माफी चाहता हूँ सूरमा भाई- मगर बात ही ऐसी थी कि मैं उन दोनों के सामने नहीं कह सकता था-!"

"अच्छा-अच्छा-अब तो कहो- " राजेश नर्म पड़ता हुआ बोला।

"पहले यह बताओ कि तुम कुछ महसूस कर रहे हो?" खुशहाल ने पूछा ।

“क्या महसूस कर रहा हूँ—?” राजेश ने आश्वर्य के साथ पूछा । "अजीब सी महक फूट रही है।"

'कहाँ?" राजेन ने नथने सिकोड़ते हुये कहा “मुझे तो कहीं भी महक नहीं महसूस हो रही है ।"

"यह महक उन मादाओं से पुट रही है-"

"अच्छा" राजेश ने कहा।

"तो फिर ?"

"उस महक से मैं पागल हुआ जा रहा हूँ--" खुशहाल ने कहा ।

'क्या मतलब?” राजेश ने पूछा । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि  कहना क्या चाह रहा है-उसका ध्येय क्या है"

"मेरा मतलब यह है कि हमें उनसे दूर ही रहना चाहिये "

खुशहाल ने हाल ने कहा ।

"उसे महक के कारण?"

"हां-

"तुम खाली बकवास कर रहे हो" राजेश ने भन्ना कर कहा, "मुझे तो उनमें जरा सी भी महक महसूस नहीं हो रही है।"

"ओह सुरमा-हवा का रुख इधर ही है-"

"तो फिर?"

"हवा की वजह से वह महक यहां तक पहुँच रही है।"

"तो महक तुम्हें पागल कर देती है?" राजेश ने पूछा।

"हर महक नही—बस खाली यह महक - तुम समझते क्यों नहीं?"

"ओह!" राजेश ने कहा फिर खिलखिला हंस पड़ा। कुछ क्षणों तक हंसता रहा फिर बोला, "इतनी देर बाद महक का मतलब मेरी समझ में आया है।"

“शुक्र है आस्मान वाले का कि मतलब तो तुम्हारी समझ में आया।" खुशहाल ने हंसते हुये कहा और राजेश ने पूछा ।

"लेकिन इसमें पागल होने की क्या जरूरत है-"

"फिर वही झगड़े वाली बात--" खुशहाल ने कहा "अरे क्या मैं जान बूझ कर पागल होता हूँ-वह महक मुझे पागल बनाने लगती है।"

"मैं भी यही कह रहा था कि इसमें पागल होने की क्या आवश्यकता है— जो दिल चाहे करो—हम आदमी तो रहे नहीं कि हमें बदनामी का डर होगा।"

"तुम यह क्यों भूल जाते हो भाई सूरमा कि मैं शकराली हूँ-" खुशहाल ने कहा।

“अगर तुम यह भी जानते हो कि हम शकराली दुसरी जातों में अपनी नस्ल की बुनियाद नहीं रखते।" राजेश ने अट्टहास लगाया फिर बोला ।

"तुम्हारी ना समझी पर मुझे अफसोस हो रहा है खुशहाल।"

"क्या मतलब?"

"क्या तुम इस शक्ल में शकराल की बस्ती में जाना पसन्द करोगे ?" राजेश ने पूछा ।

"अगर यही पसन्द होता तो मैं कोठरी में क्यों बन्द पड़ा रहता ।"

"ठीक है--" राजेश ने सिर हिला कर कहा फिर पूछा "मान लो किसी तरह तुम इसी शक्ल में शकराल की किसी आबादी या अपनी ही बस्ती में वापस पहुँच गये तो क्या कोई शंकराली अपनी बेटी या बहन की शादी तुमसे करना पसन्द करेगा?”

खुशहाल कुछ नहीं बोला ।

"जवाब दो-खामोश क्यों हो गये?" राजेश ने तेज आवाज में पूछा।

"न...न...नहीं!"

'तो फिर चलो-और जो दिल में आये वह करना — मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं--'

खुशहाल कुछ देर तक सोचता रहा फिर अपने आप मुस्कुरा पड़ा ।

शायद उसे राजेश की बात सच लगी थी- फिर उसने पूछा ।

"तुमने उन दोनों में से किसी को पसन्द किया है।"

"खुजली को-" राजेश उछल कर बोला फिर नीचे गिर कर लोटें लगाने लगा। किसी कुत्ते के पिल्ले के समान दियांव-दियांव भी करता जा रहा था। पूरे शरीर में बहुत तेज खुजली उठी थी ।

खुशहाल नर्वस सो हंसी के साथ पीछे हट गया था।

राजेश लोटें लगाता रहा-अचानक खुशहाल ने कहा। "सुनो भाई सूरमा —तुम भी दोनों में से किसी को पसन्द कर लो "

"फायदा क्या होगा?"

“वह तुम्हारी जुऐ निकाल दिया करेगी।" खुशहाल ने हंस कर कहा।

राजेश उठ गया फिर बोला ।

"बहुत देर हो गई—अब चलो—उनसे भाग कर हम जायेंगे कह्रां। भेजने वालों ने उन दोनों को हम ही दोनों के लिये यहां भेजा है।"

"क्या कह रहे हो किसने भेजा है-?"

"आस्मान वाले ने या फिर हमारी किस्मतों ने फिलहाल इतना ही काफी है।"

"मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है।"

"कुछ समझने की जरुरत ही नहीं—तुम कैसे जानवर हो-बस अब चलो ।"

"चलो-चल रहा हूँ मगर मुझे इल्जाम न देना—'

"जानवरों को नहीं मालूम कि इल्जाम का मतलब क्या होता है-' बहरहाल राजेश उसे समझा बुझा कर ऊपर ले गया । यह दोनों आग जला कर उसी ओर देख रही थीं जिधर से वह दोनों आ रहे थे।  जब वह चट्टान के निकट पहुँचे तो सुनहरी मादा ने कहा ।

"कहां है गोश्त किस प्रकार उबालोगे?"

“अभी बताता हूँ-” राजेश ने इंग्लिश में कहा फिर खुशहाल से शकराली में बोला। "घोड़ों से थैले उतार लाओ--"

खुशहाल सामोशी से उधर ही बढ़ गया जिधर उनके घोड़े बंधे थे।

"तब तक तुम यही बता दो कि तुम किस प्रकार जानवर देने थे?” सुनहरी मादा ने कहा।

"मेरे जानवर बनने की कहानी बड़ी विचित्र है- " राजेश ने कहा।

"इसीलिये तो सुनने का शौक बढ़ता जा रहा है-"

"अच्छा तो सुनो-" राजेश ने कहा।

"यहां इस घाटी के एक भाग में शिकार खेल रहा था। संयोग वश एक हिरन दिखाई पड़ गया । बहुत सुन्दर था । मैं उसे पालने के लिये जिन्दा पकड़ना चाहता था- मैंने उसके पीछे घोड़ा डाल दिया। कभी तो वह हिरन सामने आता और कभी झाड़ियों में से होकर भागता । बहरहाल में उसका पीछा करता रहा। एक बार वह सामने दौड़ता ही दौड़ता एक और मुड़ गया मैंने भी उधर ही घोड़ा मोड़ दिया मगर वह नहीं दिखाई दिया। लगभग पन्द्रह मिनिट तक में घोड़ा इधर उधर दौड़ाता रहा मगर हिरन का पता नहीं चल सका। घोड़ा बुरी तरह थक कर हांफने लगा था । उसका पूरा शरीर पसीने से भीग रहा था। मुझे घोड़े की दशा पर दया आ गई। मैंने एक बड़े वृक्ष के नीचे लाकर उसे रोका और नीचे उतर पड़ा। खुद भी बहुत थक गया था और पसीने में सराबोर था। मैंने घोड़े को बांधा और उसको पीठ पर से जीन उतार कर बिछाई। साथ इतना घना था की नीचे धूप नहीं आ रही थी। मैं उसी जीने पर लेट गया। ठण्डी ठण्डी हवायें लगीं तो आंखें बन्द होने लगीं मगर मैं नींद पर अधिकार पाने की चेष्टा करता रहा। डर था कि अगर सो गया तो हो सकता है किसी खतरे में पड़ जाऊं या कोई मेरा घोड़ा ही ले उड़े- अचानक राजेश खामोश हो गया। लम्बी लम्बी दो तीन सांसे खींची फिर कहने लगा।

"लेटे हुये अभी शायद आधा घन्टा भी न गुजरा था कि अचानक नाक के नथुनों में मोठी मोठी सुगन्ध घुसने लगी और मैं चौक कर उठ बैठा। चारों ओर देखने लगा कि आखिर यह सुगंध किधर से आ रही है-- मगर वह तो चारों ओर से आ रही थी। मूर्खता यह हुई थी कि मैं वहां - से न तो उठा था न नाक बन्द की थी, बल्कि इस बात की तस्दीक के लिये कि वह किसी प्रकार की सुगंध ही थी दो चार लम्बी लम्बी सांसें नाक के बल खीचीं थी। फिर एक बार बड़े जोर से सिर चकराया था। मैं फिर लेट गया और आंखें बन्द कर लीं। फिर जब बेहोश होने लगा तब इस बात का ख्याल आया कि यह सनथेतिक गैस ही की गंध हो सकती है-मगर अब क्या हो सकता था। तीर कमान से निकल चुका था। गैस पूरी तरह अपना प्रभाव डाल चुकी थी फिर में पूरी तरह बेहोश हो गया था कुछ याद नहीं रह गया था—" राजेश मौन होकर गहरी गहरी सांसें लेने लगा और वह दोनों उसके बोलने की प्रतीक्षा करती रहीं ।

" फिर जब दुबारा होश में आया तो महसूस हुआ कि बहुत तेज ज्वर चढ़ा हुआ है-" राजेश बताने लगा था, "सन्ध्या तक उसी तेज ज्वर भें तपता रहा। उठा नहीं जा रहा था । दाहिनी भुजा में असहनीय पीड़ा थी फिर अचानक शरीर में ऐंठन आरम्भ हुई और मेरे शरीर के बाल आश्चर्य जनक तौर से बढ़ने लगे फिर देखते ही देखते मेरा सारा शरीर लम्बे लम्बे बालों से ढक गया केवल यह आँखें बची रह गई थी- मेरे अपने अनुमान के अनुसार मुझे बेहोश करके मेरी भुजा में कोई बीज इन्जेक्ट की गई थी।

"तो क्या तुम यह कहना चाहते हो कि यह उसी इन्जेक्शन का प्रभाव है-" सफेद मादा ने कहा। "और क्या कहूँ—'' राजेश ने कहा फिर बोला "इस सिलसिले की एक बात तो बताना ही भूल गया ।"

"वह क्या?"

"जब मुझे होश आया था तो मेरे शरीर पर मेरे कपड़े नहीं थे। मैं नंगा पड़ा हुआ था—फिर बाद में मैंने इधर उधर कपड़ों को तलाश भी किया था मगर वह नहीं मिले थे?"

"और तुम्हारे दूसरे सामान?" सफेद मादा ने पूछा ।

"सब मौजूद थे—मेरा घोड़ा भी वहीं बंधा हुआ मिला था जहां मैंने उसे बांध रखा था-" सफेद मादा फिर कुछ कहने ही जा रही थी कि खुशहाल थैले लिये वापस आ गया। सुनहरी मादा उसे बड़े ध्यान से देख रही थी । झपट कर उठी और उसके हाथ से थैले लेने लगी । खुशहाल ने थैले जमीन पर डाले और उछल कर पीछे हट गया। 'सुनहरी मादा हंस पड़ी फिर इंग्लिश में राजेश से पूछा ।

"क्या मुझको यह कटखन्नी समझता है?"

"ऐसा तो नहीं है" राजेश भी हंस पड़ा।

"फिर मुझे देख कर भड़कता क्यों है—?"

"इसलिये कि यह शरीफ जानवर है—'"

"जो भी हो— मुझे बहुत पसन्द है" सुनही मादा ने कहा ।

"क्यों - इसमें ऐसी कौन सी खास बात है-"

"यह में नहीं जानती मगर इसे देख कर मेरे मन में एक विचित्र स भावना उत्पन्न होती है।"

“उत्पन्न होने दो-मेरे बाप का क्या जाता है--" राजेश ने मुंह बिगाड़ कर कहा।

"मैंने इस प्रकार की भावना..."

"अच्छा बस " राजेश ने कहा  "अब खामोशी से बैठ जाओ ये दूसरी बार भड़का तो हाथ नहीं आयेगा।"

"मगर इसे हो क्या गया है?, मेरे ही समान वह भी रोमन कैथोलिक हैं- " राजेश ने कहा। "इसलिये बिना फादर के काम नहीं बन सकता-"

"फादर क्या?"

"मेरा मतलब है कि बिना पादरी के-"

"ओह !" सुनहरी मादा हंस पड़ी फिर बोली, "मसरवरे जानवर हो । जिस पादरी के भी पास जायेंगे वह या तो डन्डा मार कर भगा देगा या चिड़िया घर के मैनेजर को फोन कर देगा ।"

"इसलिये चुपचाप उबला हुआ गोश्त खाओ और उसका शुक्रिया अदा करो जिसने हमें आदमी बना कर पैदा किया था।"

"क्या यह कोई नई तरह की बीमारी है?" सुनहरी मादा ने कहा।

"तुम्हारे बारे में तो मैं कुछ नहीं कह सकता कि तुम कैसे जानवर बनी थी मगर अपने सिलसिले में यह बात दावे के साथ कह सकता हूँ कि उसी इत्जेक्शन से जानवर बना था और इन्जेक्शन आदमी ही दिया करता है में शत प्रतिशत इसे किसी आदमी ही की हरकत समझ रहा हूँ।

"मगर कोई आदमी ऐसा क्यों करेगा?"

"सीधी सी बात है-" राजेश ने कहा "जो आदमी अपने मन की तस्कीन के लिये एटम बम बना सकता है वह तफरीह के लिये आदमी को जानवर भी बना सकता है-

"तुम्हारी बात' मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है--"

"यह कहो कि तुम मेरी बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रही।

"अगर यह कोई बीमारी होती तो तुम जहां जानवर बनी थीं वहीं रहती--इस जंगल में नहीं आतीं—क्या उसी बीमारी ने तुम्हे वहाँ से उठाकर इस जंगल में ला फेंका था ?

'कुछ समझ में नहीं आता।" सुनहरी मादा ने कहा ।

"तो बस हमारे ही समान तुम भी उबला हुआ गोश्त खाओ और सब कुछ भूल जाओ –" राजेश ने कहा।

"जब तक मेरे पास कारतूस और तीर कमान हैं तब तक तुम्हें गोश्त खिलाता रहूँगा ।"

अब पूरी तरह अंधेरा छा गया था - मगर सूखी लकड़ियों में भड़कने बाली आग से इतनी रोशनी फैल रही थी कि वह एक दूसरे को भली प्रकार देख सकते थे ।