Shakral ki Kahaani - 7 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | शकराल की कहानी - 7

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

शकराल की कहानी - 7

(7)

"ओह !” राजेश सिर हिला कर बोला, "तो तुम इसे के अक्रवाह ही समझते हो ?"

"जो कुछ मैंने सुना था वह तुम्हें बता दिया । असलियत क्या है वह आस्मान वाला ही जाने । अगर बड़े उपासक से आज्ञा मिल सकी होती तो मैं सारे दरवाजे तोड़ कर रख देता ।"

"बड़े उपासक ने छान बीन का काम सरदार बहादुर को सौंपा था इसलिये तुमको इससे कोई सरोकार नहीं होना चाहिये--" राजेश ने कहा ।

"मैं नहीं समझा- तुम क्या कहना चाहते हो--?"

"तुम बस सरदार बहादुर की तलाश जारी रखो ।"

"तुम ठीक कहते हो।" आदिल ने कहा, "मगर आखिर वही ग्यारह आदमी तो उनके गायब होने का कारण बने हैं-"

"तुमने उनकी तलाश का काम कहां से आरम्भ किया था ?" राजेश ने था।

"रजवान से।" आदिल ने उत्तर दिया ।

“जब कि उनका रजवान तक पहुँचना साबित ही नहीं हो सका- राजेश ने कहा ।

"हां यह भी सच है-फिर ?"

“वास्तव में उस औरत की खोज का काम गुलतरंग ही से आरम्भ करना चाहिये था—उन गुफाओं से जहां से वह गायब हुई थी।" आदिल खामोश रहा— राजेश ने फिर कहा ।

"अगर वह औरत इतनी ही चालाक थी तो फिर उसे यह अवश्य मालूम रहा होगा कि शकराल में कोई औरत किसी मर्द का भी प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती औरत का प्रतिनिधित्व शकराल की परम्परा और संस्कृति के विरुद्ध है-"

"ह― होना तो यही चाहिये — मगर तुम कहना क्या चाहते हो-?'

"यही कि वह औरत खुद यही चाहती थी कि उसके बारे में छान बीन की जाये।" राजेश ने कहा ।

"अच्छा तो फिर?"

"हो सकता है। कि उसे यह भी मालूम रहा हो कि मेले में मौजूद कोई आदमी सरदार लाहुल की बीवी को पहचानता भी है-"

"हां....हां....! कहते रहो-- मैं समझ रहा हूँ।"

"कहना यह है कि सरदार बहादुर ही उसका शिकार था - " राजेश ने कहा।

"मगर यह बात तो सच ही थी कि लाहुल और उसके दस लड़ाके कोठरियों में बन्द हो गये हैं।"

"मैं भी इस बात को सच ही मान रहा हूँ।" राजेश ने कहा।

"मेरे कहने का मतलब तो यह है कि अगर वह लाहुल की बीवी नहीं थी तो फिर लाहुल के मामिले से उसे क्या दिलचस्पी हो सकती थी- वह क्यों गुरुतरंग के मेले में लाहुल को प्रतिनिधि बना कर गई थी—?”

"यही तो समझ में नहीं आ रहा है-" आदिल ने कहा।

"बहरहाल सरदार बहादुर भी अपने छ: लडाकों सहित गायब हो गया और तुमने कोठरियों में बन्द हो जाने वाले एक लड़ाके के बालदार हाथ से सम्बद्ध अफवाह भी सुनी थी— हो सकता है यह अफवाह न हो--सच हो ।"

"तुम कहना क्या चाहते हो?" आदिल ने पूछा।

"फिलहाल बस इतना ही समझ लो कि कोई शकरालियों में आतंक फैलाना चाहता है-"

"मगर क्यों ?"

"यही देखना है-" राजेश ने कहा।

"अब सोने की तैयारी करो । सवेरे हम सीधे गुलतरंग की ओर चलेंगे। मैं उन गुफाओं को देखना चाहता हूँ जहाँ वह औरत सरदार बहादुर की नजरों से ओझल हो गई थी।"

"अच्छी बात है " आदिल ने कहा।

फिर सभी ने अलाव के चारों ओर कम्बल विछाये थे और लेट गये थें । आदिल ने राजेश की ओर करवट बदल कर कहा। “कई रातों के बाद शायद आज मैं पूरी नींद ले सकू ———और तुम सुरमा भाई-- तुम हमसे बिना मिले चुपचाप निकल जाना चाहते थे।”

"मैं बहुत जल्दी में था भाई आदित।" राजेश ने कहा "मगर अब तो इस मामिले को देखना ही पड़ेगा-

"अच्छा-— अब सो जाओ - " आदिल ने कहा और आंखें बन्द कर ली।

दूसरा सवेरा दुखदायी था। तेज और ठन्डी हवायें चल रही थीं। लीं। सुर्योदय के बाद भी उन्होंने यात्रा आरम्भ नहीं की थी। जब धूप में कुछ ऊष्णता आ गई तो घोड़ों की बागें उठा दी गई ।

आस्मान स्वच्छ था— धूप अच्छी लगे रही थी और ठन्डी हवा में अब तलवार की सी काट नहीं रह गई थी ।

पथरीली धरती पर घोड़ों की टापें बजती रहीं । वह बड़ी तेज चाल से उड़े चले जा रहे थे ।

दिन ढलने से पहले ही गुलतरंग पहुँच गये और फिर घोड़े गुफाओं की ओर मोड़ दिये गये। अब घोड़ों की गति साधारण थी—जैसे वह लोग केवल, सैर और शिकार के अभिप्राय न निकल खड़े हुये हों— कोई अभियान सामने न हो । राजेश ने आदिल से कहा।

"क्या तुम अपने ही जैसा लिबास मेरे लिये भी―"

“यहां तो नहीं हो सकता।" आदिल ने बात काट कर कहा, "यह काम तो किसी बस्ती ही में हो सकेगा।"

"क्या यह आवश्यक है?" आदिल ने पूछा।

"हां में तुम्हीं लोगों में मिल जाना चाहता हूँ-नहीं चाहता लोग खास तौर से मेरी ओर आकृष्ट हों- "

"मैं समझ गया-" आदिल ने सिर हिला कर कहा।

“तुम रजबानी सरदार लाहुल, की बीबी से मिले थे –?" राजेश पूछा।

"हां और उसने ठीक वही कहानी सुनाई जो जो अजनबी औरत बड़े उपासक को सुना चुकी थी।" आदिल ने कहा ।

"क्या सरदार बहादुर उस औरत की कौमियत का अनुमान लगा सका था ?"

"उसका ख्याल था कि वह काले वालों और नीली आंखों वाली कोई फिरंगन थी और तुम्हारी भाषा भी इस तरह बोल सकती होगी कि अपने आप को एक शकराली औरत के रूप में पेश कर सके ।"

"सरदार बहादुर के ख्याल के अनुसार लहजे में कच्चा पन था ।"

"यह औरतें सारी दुनिया को हिलाकर रख देगी-" राजेश बड़बड़ाया ।

"उन्हें तो तुम जैसा चाहो बना दो-मगर हमारी औरतों में इसकी योग्यता तो नहीं है।"

"ठीक कहते हो— मगर जितना मैदान उनको प्राप्त है—उसमें वह किसी से पीछे न होंगी ।"

"क्या तुम औरतों के बारे में अपनी राय नहीं बदल सकते?" आदिल ने कहा ।

"में औरतों के बारे में कोई राय ही नहीं रखता और क्यों रखू जब कि औरत मेरे भाग्य में है ही नहीं ।"

“अरे ! तो क्या तुमने अब तक शादी नहीं की?" आदिल ने आश्चर्य से पूछा। "अब तक ऐसी औरत मिली ही नहीं जो सच्चे दिल से अपने पागल का स्वीकरण कर लेती।"

"अगर तुम किसी पागल हो औरत से शादी ही करना चाहते हो तो में तलाश कर दूँगा" आदिल ने गम्भीरता के साथ कहा।

"कोशिश करो" राजेश ने कहा ।

“शकराल के बुद्धिजीवी भी पागल औरतों की तलाश में रहते हैं ।"

"सचमुच वह बुद्धिजीवी मालूम हैं-" राजेश ने कहा फिर ठन्डी सांस लेकर बोला, "मगर हमारे यहां की समस्या उल्टी है ।"

"यह किस प्रकार ?"

"हमारे यहां की पागल औरतें बुद्धिजीवियों की तलाश में रहती है। "

आदिल खिलखिला कर हंस पड़ा। अब वह गुफाओं के निकट पहुँच चुके थे जिनके आस पास ही वह औरत गायब हुई थी ।

"क्या तुम उस गुफा की निशानदेही कर सकोगे जिसके पास पहुँच कर वह औरत नजरों से ओझल हो गई थी?" राजेश ने आंदिल से पूछा।

"यह तो मुश्किल है क्योंकि मैं सरदार बहादुर के साथ नहीं था। " आदिल ने कहा ।

"और सरदार बहादुर ने बताया भी नहीं था?"

"नहीं-- उसने किसी खास गुफा की निशानदेही नहीं की थी—”

"कितनी गुफायें होंगी — ?” राजेश ने पूछा।

"कुल मिला कर सतरह हैं-"

"और कितने क्षेत्रफल में फैली हुई हैं?"

"दो ढाई मील समझ लो-"

"तब तो मुश्किल काम है-खेर आओ--- देखा जाये।' राजेश ने कहा।

********

गुफाओं में उन्हें उस औरत का कोई सुराग नहीं मिल सका था इसलिये अब वह शकराल की मध्यवर्ती आबादी की ओर जा रहे थे जहां सरदार बहादुर का शासन था। "हम रजबान की ओर क्यों न चलें।" आदिल ने कहा ।

"कहीं जाने से पहले मैं अपना लिबास बदलना आवश्यक समझता।" राजेश ने कहा।

"वैसे एक बात बताओ"

"पूछो-" आदिल ने कहा । "तुम्हारे इन आठ आदमियों के अतिरिक्त और कोई तो यह नहीं जानतो ना कि मैं शकराल में मौजूद हूँ?"

"मैं विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता- आदिल ने कहा ।

"क्यों?"

"इसलिये कि उस बस्ती के दोनों आदमी हमारी बस्ती में आये थे । हो सकता है तुम्हारे बारे में उन्होंने दूसरे लोगों को भी बताया हो ।"

"और अब अगर मेरे बारे में कोई पूछे तो कह देना कि गलत खबर थी। वह सूरमा नहीं था। किसी ने वस्ती वालों को धोखा देने की कोशिश की थी जो तुम्हारे पहुँचने पर मार डाला गया।"

"और तुम हमारे साथ रहोगे?" आदिल ने आश्चर्य से पूछा ।

"हां"

"हमारी वस्ती के सारे लोग तुम्हें पहचानते हैं फिर -?"

राजेश ने जेब से रेडीमेड मेकअप निकाला और नाक पर फिट कर लिया। यह सब कुछ इस प्रकार हुआ कि आदिल देख नहीं सका था फिर उसने कहा ।

"मुझे तो तुम भी नहीं पहचान सकते आदिल-दस्ती के लोग तो दूर की चीज है ।".

"कैसी बातें कर रहे हो--" आदिल ने झल्ला कर कहा । साथ ही उसकी नजर भी राजेश की ओर उठ गई थी । उसका मुंह खुला का खुला रह गया ।

"यह..क...क क्या हो गया — " अन्त में वह हकलाया ।

"मेरे साथ यही होता रहता है— राजेश ने हंस कर कहा।

"अब यहीं रुक कर यह बात अपने इन लड़ाकों को अच्छी तरह समझा दो और याद करा दो ।"

"अच्छा-अच्छा—'' आदिल ने हंसते हुये कहा ।

वह सब रुक गये। आदिल के सभी साथी राजेश को विचित्र नजरों से देख रहे थे— फिर जब उन्हें रुकने का कारण बताया गया तो वह दिल खोलकर हंसे थे।

इस प्रकार यह निश्चय किया गया कि सूरमा की असलियत किसी पर प्रकट न की जायेगी और वह दूसरों को राजेश ही की कही हुई बात बतायेंगे—अर्थात एक आदमी ने अपने को सूरमा बता कर बस्ती वालों को धोखा देने की कोशिश की थी- आदिल के पहुँचने पर वह धोखे बाज -मार डाला गया।

आदिल के निवास स्थान पर पहुँच कर राजेश कपड़े भी नहीं बदल पाया था कि बाहर से किसी ने कोठरी का दरवाजा खटखटाया।

"कौन है?" अन्दर से राजेश ने तेज आवाज में पूछा।

"आदिल-" बाहर से आवाज आई। "एक नई खबर है— दरवाजा -खोलो ।”

"अच्छा-अच्छा — ठहरो-" राजेश ने कहा फिर तेजी से कपड़े बदल कर उसने दरवाजा खोल दिया।

सामने आदिल खड़ा था। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं । राजेश भी घबरा गया- वह कुछ पूछना ही चाहता था कि आदिल खुद ही बोल पड़ा।

“पिछली रात हमारी गैर हाजिरी में यहां भी, वही हुआ है--"

"क्या हुआ है?" राजेश ने पूछा।

"सरदार बहादुर का एक लड़ाका वापस आकर कोठरी में बन्द हो गया है। किसी ने भी उसे आते नहीं देखा था। घर वालों को आज सवेरे मालूम हुआ कि वह घर ही में मौजूद है और रजवानी लड़ाकों के समान अपने आपको कोठरी में बन्द कर लिया है। वह किसी को अपनी शक्ल दिखाने के लिये तैयार नहीं है। कहता है कि अगर जबरदस्ती की गई तो वह किसी को मार डालेगा या खुद ही अपनी जान दे देगा !"

"मुझे उसके घर ले चलो " राजेश ने कहा ।

"मैं भी तुमसे यही कहने वाला था - आओ चलें ।” उस लड़ाके का घर अधिक दूर नहीं था । मार्ग में राजेश ने पूछा।

वह अपने दूसरे साथियों के बारे में क्यों कहता है-?"

"बस इतना ही कि- वह सब उसे छोड़ भागे।"

"सरदार बहादुर सहित ?" राजेश ने आश्चर्य के साथ पूछा ।

"हां"

"आश्चर्य है" राजेश ने कहा फिर पूछा। "उनके भागने का कारण?"

"कारण नहीं बनाता।"

राजेश चिंत्ता में पड़ गया । वह अब भी रेडीमेड मेकअप ही में था और उसके शरीर पर प्रतिष्ठित शकरालियों जैसा लिबास भी था। उसने आदिल से पूछा ।

"उस लड़ाके का नाम क्या है?"

“खुशहाल—सरदार बहादुर का सबसे उत्तम लड़ाका ।

"उसकी शादी हो चुकी है !"

"नहीं बूढ़े मां बाप के साथ रहता है—''

वह खुशहाल के घर पहुँचे थे। सदर द्वार के सामने भीड़ एकत्र थी । आदिल को देखकर उन्होंने उसे आगे बढ़ने का मार्ग दे दिया ।

फिर वह दोनों उस कोठरी तक जा पहुँचे जिसमें खुशहाल ने अपने आपको बन्द कर रखा था एक पांट का दरवाजा था जिसमें कोई झरी भी नहीं थी कि झांक कर अन्दर का अवलोकन किया जा सकता।

“ओ खुशहाल !” आदिल ने ऊंची आवाज में कहा। "मैं आदिल हूँ-दरवाजा खोलो।"

"जाओ...भाग जाओ' दरवाजा नहीं खुलेगा-" अन्दर से आवाज आई ।

"न खोलो दरवाजा मगर कम से कम मेरे भाई सरदार बहादुर की खैरियत ही बता दो ।"

“मैं नहीं जानता भाग जाओ। 'मैं कुछ नहीं जानता।”

“क्या तू होश में नहीं है — ?' आदिल ने बड़ी तेज आवाज में कहा। "मैं आदिल हूँ-"

“मैं कुछ नहीं जानता-वदं मुझे छोड़ कर भाग गये थे—”

“क्यों बकवास करता है वे।" आदिल ने कहा "सरदार बहादुर जियालों का जियाला है— मौत के सामने डट जाने वाला है वह तुझे छोड़ कर भागेगा"

"हां—और भगोड़े के भाई अब तू भी यहां से भाग जा-" खुशहाल अन्दर से कएड फाड़ कर चीखा था।

"ओ, सुअर ! क्यों शामत आई है-! "