Wo Maya he - 34 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 34

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वो माया है.... - 34



(34)

इंस्पेक्टर हरीश ने फुटेज को उस जगह फ्रीज़ किया जहाँ उस आदमी का चेहरा दिखाई पड़ रहा था। उसने कांस्टेबल शिवचरन से कहा,
"टेबल पर जो स्केच रखा है उसे उठाओ और इस आदमी के चेहरे से मिलाओ।"
कांस्टेबल शिवचरन ने स्केच उठाकर मॉनीटर पर दिख रहे चेहरे से मिलाना शुरू किया। कुछ देर बाद वह बोला,
"सर स्केच तो इसी आदमी का मालूम पड़ रहा है। यह किसका स्केच है ?"
"यही तो पता करना है शिवचरन।"
"सर यह स्केच आपको कहाँ से मिला ?"
"पुष्कर की पत्नी दिशा ने आज मुझसे फोन पर बात की थी। उसने बताया कि कत्ल वाले दिन यह आदमी ढाबे में था और उसे और पुष्कर को घूर रहा था। दिशा के कोई अंकल हैं शांतनु। शुरू से ही मेरे संपर्क में हैं। दिशा के बताए हुलिए के आधार पर उन्होंने यह स्केच बनाकर भेजा है।"
"सर इस हिसाब से तो यह आदमी केस की महत्वपूर्ण कड़ी हो सकता है।"
"फिलहाल तो यही लगता है।"
यह कहकर इंस्पेक्टर हरीश ने फुटेज को आगे देखना शुरू किया। कुछ मिनटों के बाद वह आदमी ढाबे से बाहर निकला और उसी दिशा में बढ़ता दिखा जिस तरफ पुष्कर की लाश मिली थी। उसके बाहर निकलने के कुछ ही क्षणों के बाद पुष्कर अपनी टैक्सी की तरफ बढ़ता दिखा। वह टैक्सी के पास खड़ा इधर उधर देख रहा था। कुछ देर बाद वह उसी दिशा में बढ़ गया जहाँ उसका कत्ल हुआ था।
इंस्पेक्टर हरीश ने फुटेज को फिर रोक दिया। कांस्टेबल शिवचरन ने कहा,
"सर फुटेज का आखिरी हिस्सा तो हम लोगों ने पहले भी देखा था। तब उस आदमी पर ध्यान नहीं दिया था। दोनों एक ही दिशा में गए। पर क्या पुष्कर उस आदमी के बुलाने पर उधर गया था यह नहीं कहा जा सकता है। कैमरे की रेंज वहाँ तक नहीं है। पर‌ हमें लगता है कि पुष्कर उस आदमी के बुलाने पर ही गया होगा।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कुछ सोचकर कहा,
"शिवचरन मेरे दिमाग में एक बात आ रही है। दिशा के अनुसार यह सिर्फ चाय पीने आया था। ऐसा भी हो सकता है कि यह आदमी आसपास के इलाके का हो और अक्सर चाय पीने आता हो। केस से इसका कोई संबंध ना हो।"
"सर....दिशा ने बताया था कि वह उसे और पुष्कर को घूर रहा था। कोई तो बात रही होगी।"
"शिवचरन कुछ लोगों की आदत होती है। कोई जोड़ा बैठा हो तो उसकी तरफ ही देखते हैं। हो सकता है कि वह ऐसे ही उन दोनों की तरफ देख रहा हो।"
इंस्पेक्टर हरीश की बात सुनकर शिवचरन सोच में पड़ गया। उसने कहा,
"सर....आपकी बात भी सही हो सकती है। यह भी हो सकता है कि इसने अपनी गाड़ी ढाबे से थोड़ा दूर खड़ी की हो। उसके बाद अपनी गाड़ी लेकर आगे चला गया हो। सर ढाबा जिस सड़क के किनारे है वह सिंगल लेन है। दोनों तरफ आना जाना है। पर हमें लगता है कि इस आदमी का केस से कोई संबंध है।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"फिलहाल यही मानकर चलते हैं। ऐसा करो कि फुटेज से उस आदमी की तस्वीर निकलवाओ। लकी ढाबे पर चलकर पूछताछ करते हैं। शायद कुछ मिले।"
"ठीक है सर हम टेक्निकल टीम से कहते हैं कि इस फुटेज से उस आदमी की तस्वीर निकालें।"
शिवचरन चला गया। इंस्पेक्टर हरीश केस के बारे में सोचने लगा।

लकी ढाबे पर पहले की तुलना में कम लोग थे। पुष्कर की हत्या वाले केस में ढाबे का नाम अखबार में आने से वहाँ आने वाले लोगों की संख्या में कमी आई थी। ढाबे का मालिक सूरज पाल इस बात से बहुत परेशान था। ऐसे में इंस्पेक्टर हरीश का ढाबे पर आकर पूछताछ करना उसे पसंद नहीं आ रहा था। पर वह कुछ कह नहीं पा रहा था। वह इंस्पेक्टर हरीश और कांस्टेबल शिवचरन को अपने कमरे में ले गया था। इंस्पेक्टर हरीश ने उसे सीसीटीवी फुटेज से निकाली गई तस्वीर दिखाते हुए पूछा,
"इस आदमी को पहचानते हो ?"
सूरज ने तस्वीर पर नज़र डाली। कुछ रुखाई से बोला,
"सर यह ढाबा है। यहाँ तो ना जाने कितने लोग आते हैं दिनभर में। हम सबको कैसे पहचान लेंगे।"
उसके रुखाई से दिए गए इस जवाब पर इंस्पेक्टर हरीश ने उसे घूरकर देखा। उसने सख्त आवाज़ में कहा,
"मालूम है कि यह ढाबा है। तुम्हारे इस ढाबे में आए एक ग्राहक की लाश ढाबे से कुछ ही दूर मिली है। पुलिस पूछताछ करेगी। उसका सहयोग करो।"
इंस्पेक्टर हरीश के सख्त स्वर से सूरज कुछ नरम पड़ा। उसने कहा,
"सर हम सहयोग करने को तैयार हैं। पर इस हत्या ने तो हमारे कारोबार को नुक्सान पहुँचाया है। अखबार में ढाबे का नाम आने के बाद कम लोग यहाँ रुकते हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उसने कहा,
"माना बहुत से लोग आते हैं यहाँ। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि यह आदमी यहाँ अक्सर आता हो।"
"सर हम तो इस आदमी को नहीं जानते हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कुछ सोचकर कहा,
"उस दिन चेतन नाम के लड़के से बात हुई थी। उसे बुलाओ। हो सकता है कि उसने कुछ देखा हो।"
चेतन का नाम सुनकर सूरज के चेहरे पर परेशानी दिखाई पड़ी। वह उठा और चेतन को बुलाने चला गया। शिवचरन कमरे के दरवाज़े तक गया। उसने देखा कि सूरज ने चेतन को लेकर आने से पहले उसे कुछ समझाया। चेतन को लेकर वह कमरे में आया। उसने कहा,
"इंस्पेक्टर साहब कुछ पूछना चाहते हैं। बता दो।"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसे तस्वीर दिखाकर पूछा कि क्या उसने इस आदमी को कत्ल वाले दिन दिशा और पुष्कर के आसपास देखा था। तस्वीर पर नज़र डालने के बाद चेतन ने सूरज की तरफ देखा। शिवचरन ने कहा,
"सर जो पूछ रहे हैं उसका जवाब दो।"
चेतन ने धीरे से कहा,
"नहीं देखा था......"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसके चेहरे पर अपनी नज़रें टिकाते हुए कहा,
"ठीक से देखो। दिशा का कहना है कि यह आदमी उसकी टेबल के पास खड़ा था। उसे और पुष्कर को लगातार देख रहा था।"
चेतन ने एकबार फिर सूरज की तरफ देखा। उसके बाद बोला,
"हम हम उन दोनों का ऑर्डर देने के बाद अपने काम में लग गए थे। हमने ध्यान नहीं दिया।"
"ठीक है.... याद करो उस दिन ना सही कभी और देखा हो। यह आदमी अक्सर आता हो यहाँ।"
चेतन ने कहा,
"हम इस आदमी को नहीं जानते हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश को लग रहा था कि जैसे वह कुछ कहना चाहता है लेकिन किसी दबाव में कह नहीं रहा है। उसने कहा,
"ठीक है जाओ.....अपना काम करो।"
चेतन फौरन जाने के लिए मुड़ा। शिवचरन ने कहा,
"रुको...."
चेतन रुक गया। उसने शिवचरन की तरफ देखा। शिवचरन ने पूछा,
"तुम इसी ढाबे में रहते हो।"
जवाब सूरज ने दिया,
"अनाथ है यह। हमने अपने साथ रख लिया है। ढाबे में ही रहता है।"
शिवचरन ने चेतन की तरफ देखा। वह सर झुकाए खड़ा था। उसके चेहरे से स्पष्ट था कि वह अंदर ही अंदर किसी बात को लेकर परेशान है। सूरज ने कहा,
"यहाँ का काम हो गया है। अब जाकर अपना काम करो।"
चेतन चला गया। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"जब तक केस सॉल्व नहीं होता है पुलिस इसी तरह आकर पूछताछ करेगी। तुम्हारे ढाबे का नाम अखबार में आया है यह हमारी गलती नहीं है।"
शिवचरन के साथ इंस्पेक्टर हरीश ढाबे से निकल गया। अपनी जीप की तरफ बढ़ते हुए इंस्पेक्टर हरीश रुक गया। वह कुछ सोचने लगा। शिवचरन ने कहा,
"सर क्या सोचने लगे ?"
शिवचरन चलकर उस जगह गया जहाँ पुष्कर की टैक्सी खड़ी थी। उसने कहा,
"पुष्कर की टैक्सी यहाँ खड़ी थी। तब शायद वह ड्राइवर की राह देख रहा था। ड्राइवर ने बताया था कि कुछ समय के लिए वह टैक्सी लॉक करके गया था।"
"हाँ सर......"
"शिवचरन सिंगल लेन होने के कारण सड़क पार करके दूसरी तरफ जाना आसान नहीं है। पुष्कर अगर सड़क पार कर उस तरफ गया तो दो ही कारण हो सकते हैं। उसकी अपनी ज़रूरत हो या कोई उसे बुलाए।"
"हाँ सर एकदम सही है...."
"उसे सड़क पार करके उस तरफ जाने की क्या ज़रूरत पड़ी होगी। उधर तो लंबा मैदान है। जहाँ झाड़ झंखाड़ और पेड़ हैं।"
"सर वह हल्का होने गया होगा।"
इंस्पेक्टर हरीश ने शिवचरन की तरफ देखा। उसने कहा,
"तुम्हारा मतलब पेशाब करने.... तो फिर वह ढाबे का टॉयलेट इस्तेमाल कर सकता था। सड़क पार करके उस तरफ जाने की क्या ज़रूरत थी।"
शिवचरन ने कुछ सोचकर कहा,
"तो सर फुटेज में जो आदमी दिख रहा है उसने कोई इशारा करके बुलाया होगा।"
"तो अब सोचो कि उसके बुलाने पर पुष्कर उधर क्यों चला गया ?"
"सर वह आदमी पुष्कर और दिशा को घूर रहा था। इस बात से पुष्कर गुस्से में होगा। उससे झगड़ने गया होगा।"
"नहीं शिवचरन....उस आदमी को पुष्कर जानता रहा होगा। इसलिए वह आदमी ढाबे में उसे घूरकर देख रहा था। जिस बात को दिशा ने नोटिस किया। वह आदमी हत्या के इरादे से उसे बुला रहा था। पुष्कर इस बात से अनजान था इसलिए चला गया। अब इस आदमी को खोजना बहुत ज़रूरी है।"
शिवचरन को उसकी बात सही लगी।‌ उसने कहा,
"सर हमें लगता है कि चेतन कुछ जानता है। वह बताना चाहता है पर किसी दबाव में बता नहीं रहा है। हमने देखा था जब सूरज उसे बुलाने गया था तब कुछ हिदायतें दे रहा था। उसके दबाव में ही वह कुछ नहीं बोल रहा है।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"मैंने पहले भी यह महसूस किया था। इसलिए पिछली बार जब उससे पूछताछ की थी‌ उसे अपना नंबर दिया था। मुझे यकीन है कि वह खुद फोन करके बताएगा।"
इंस्पेक्टर हरीश अपनी जीप की तरफ बढ़ गया। शिवचरन भी उसके पीछे चल दिया।