...who am I.? in Hindi Anything by Rahul books and stories PDF | ...मैं कौन.?

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...मैं कौन.?

......हम बहुत से बार सुनते आए है और जानते भी है की,वक्त के साथ
सब कुछ ठीक हो जाता है।लेकिन कुछ हद तक ही सही है।वक्त के साथ कभी कभी कुछ चीजें बिगड़ने लगती है।जिन्हे फिर से सही करना लगभग असंभव हो जाता है।
लगभग देखा जाए तो इंसान के व्यक्तित्व के दो प्रमुख प्रकार है।इनमे पहला है अंतर्मुखी और दूसरा है बहिर्मुखी।
बहिर्मुखी व्यक्तित्व के धनी लोग जीवन में काफी हद तक खुशमिजाज से होते है। हर बात को प्रसन्नता के साथ करते है।मित्र परिवार इनका काफी बड़ा होता है।ये कही भी जायेगे वही मित्र बनायेंगे।
विपरीत इसके अंतर्मुखी व्यक्तित्व होता है।
जिनके दोस्त बहुत कम होते है।सारे जज्बात अपने अंदर ही रखे होते है। औरों की तकलीफ देखकर जिन्हे स्वयं तकलीफ होती है।और जो होते है उनसे इनका रिश्ता काफी गहरा होता है।दूसरो को कभी इन्हे दुखाना आया नही।
मेरा कोई दोस्त नहीं है।न स्कूल में । न अब के जीवन में।कभी मन को बेहतशा निराशा घेर लेती है।किसी भी जगह मन नही टिकता।फिर सोच लेते है की,अध्यात्म की ओर चले ।परंतु,मन में संसार की अभिलाषा किए हुए अध्यात्म की प्रगति ओर मार्गस्थ नही हुआ जा सकता।जिसे उधार का वैराग्य कहा जायेगा।मनुष्य जीवन की मूल प्रेरणा सुख की खोज है।कोई उसे संसार में तलाशता है तो कोई मौन के जरिए खुद के अंदर।मन के अंदर हो रहे इन भावनाओ के सैलाब को सुनने वाला भी चाहिए होता है।

उम्र के इस पडाव पर आकर लग रहा है की, काश...कुछ चालाकियां हमने भी सीखी होती।लेकिन ,हमे नही आया ।मन में कुंठित होकर हमने सब सह लिया।मगर अब जब इसी सरल स्वभाव के कारण आलोचना सहनी पड़े तो क्या ही अर्थ रह जाता है। इस जीवन में सीधा रहना किसी को पसंद नही आता।आपके ऊपर एक हारे हुए की मोहर लगाई जाती है।
किसी का व्यक्तित्व उसके आसपास घट रही घटनाओं ,उम्र ,तथा उसके साथ रहनेवाली लोगो का ही प्रतिबिंब होता है।जैसे जैसे सामाजिक स्तर में वृद्धि होती जायेगी वैसे ही किसी के जीवन में ही सुधार आने लगेगा।जैसे की,एक पढ़े लिखे और नौकरी करने वाले परिवार में था एक कृषक के परिवार कभी भी एक समान व्यवहार नहीं रह सकता। क्योंकि,दोनो ही जगह जरूरते अलग है ।और दोनो को पूरा करने का जरिया भी।जबसे संभला हूं,अच्छी तरह से वाकिफ हुआ हूं बहुत मुश्किल होता है ,सभी के जरूरतों को पूरा करना।अपनी हसरतो की आहुति देनी पड़ती है।
जीवन में एह बात है की,जिसे अंतिम सत्य के तौर पर भी देखा जाए तो भी गलत नही होगी । किसी चीज को पाने की तरसा हुआ व्यक्तिही उसकी सही कद्र करता है।क्योंकि उसने उसकी पाने की चाह में किया हुआ इंतजार किसी की प्रार्थना से भी कम नहीं रहा होता।फिर चाहे वो कोई वस्तु हो या फिर इंसानी रिश्ते।
जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे हम शायद मौन होने लगते है।मन में इतने सारे विचार रहे होते है की,उन्हें एक ही वक्त में शब्दों में समेटना मुश्किल हो जाता है।कभी कभी जीवन में हमारे ऊपर हमारे कर्तव्य से अधिक हमारी भावनाएं हावी हो जाती है।
आजकल के जीवन काल किसी को भी सही इंसान की जरूरत या उसका महत्व नहीं रहा ।
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