lord's leela in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | प्रभु की लीला

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प्रभु की लीला

प्रभु की लीला

एक बार एक बहुत बड़े संत अपने एक शिष्य के साथ दिल्ली से वृंदावन को वापिस जा रहे थे , रास्ते में उनकी कार ख़राब हो गई । वही पास में एक ढाबा था , शिष्य ने संत को वहाँ चल कर थोड़ा आराम करने का आग्रह किया , जबतक कार ठीक न हो जाए या कोई दूसरा इंतज़ाम न हो जाए ।

ढाबे के मालिक ने जब देखा की इतने बड़े संत उसके ढाबे पर आए हैं , उसने जल्दी - जल्दी शुद्ध सात्विक भोजन तैयार करवाया और संत से आग्रह किया की कृपा कर आप भोजन ग्रहण करे ।

संत ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि वो सिर्फ़ भोग लगा हुआ प्रसाद ही पाते हैं ।

ढाबे का मालिक बहुत निराश हुआ और शिष्य भी दुःखी था की संत ने सुबह से कुछ खाया नहीं है ।

ठीक उसी समय एक और कार आ कर वहाँ रुकी जिसमें से एक दम्पति गोपाल जी को ले कर बाहर निकले और ढाबे के मालिक से कहा कि कुछ सात्विक भोजन तैयार करवा दीजिए मेरे गोपाल जी के भोग का समय हो गया है । उन्होंने बताया कि वो लोग वृंदावन से दिल्ली अपने घर वापिस जा रहे थे , रास्ते में एक दुर्घटना की वजह से वे समय से घर नहीं पहुँच सके हैं और अब उनके गोपाल जी के भोग का समय हो गया है ।

प्रभु की इस लीला को देख कर ढाबे के मालिक और शिष्य दोनो बहुत हैरान हुए ।

संत के लिए बनाया हुआ भोजन गोपाल जी को भोग लगाया फिर वो प्रसाद संत के पास ले कर गए , संत ने जब सारी बात सुनी तो वो दौड़ कर गोपाल जी के पास आए और दण्डवत प्रणाम किया । ठाकुर जी की लीला को देख संत के आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ।

संत ने कहा - कन्हैया, आज तूने मेरे लिए इस ढाबे पर जहाँ प्याज़- लहसुन की गंध से मेरे लिए ही बैठना कठिन हो रहा था , वहाँ तूने मेरे लिए आकार भोग लगाया कि मैं भूखा न रह जाऊ , धन्य है तू जो अपने तुच्छ भक्त के लिए भी कुछ भी करने को तैयार है ।

संत ने प्रसाद को माथे से लगाया । उसे आज वो प्रसाद अमृत से भी ज़्यादा मीठा लग रहा था ।

दूसरी तरफ़ ढाबे वाला सोच रहा था - धन्य है तू साँवरे , मैं तो घर पर तुझे सिर्फ़ कभी - कभी कुछ मीठा ले जा कर लगा देता हूँ वो भी बीबी के कहने से और तू मेरी ( संत की प्रसाद पवाने की )इच्छा पूरी करने खुद ही चल कर आ गया । तेरी कृपा और करुणा का कोई पार नहीं है कान्हा ।

सार :—
“नज़र भी हमारी है , नज़रिया भी हमारा है ,
हम देखते वही हैं जो हमारा मन देखना चाहता है ॥”
यह तो वो कान्हा है जो राम रूप में भीलनी के झूठे बेर भी स्वाद ले - ले कर खाता है ॥”

वाह रे प्रभु , तेरी लीला अपरंपार , ऋषि मुनि गए हार , प्रभु तेरी लीला अपरंपार ।