Gagan - 7 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 7

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 7

और फिर कोई अवसर नही आया।
रिश्ता होने और शादी होने के बीच 18 महीने का अंतराल था।इन 18 महीनों में बहुत उतार चढ़ाव आये।जिनका उल्लेख कोई विशेष महत्त्व नही रखता।
समय धीरे धीरे सरक रहा था।मेरा परिवार बिखरा हुआ था।परिवार से मतलब माँ, भाई बहन इसकी वजह थी।पितां का न होना।असमय और कम उम्र में पितां का साया सिर से उठ जाए तो जीवन आसान नही होता।ऐसे समय मे बाहर वाले मदद करते है।पर अपने नही।लेकिन मेरे साथ ऐसा तो नही हुआ।
अब शादी आजकल की तरह तब नही होती थी।काफी पहले ही शादी की तैयारी शुरू हो जाती थी।मा मेरी शादी को लेकर काफी उत्सुक थी।हर मा होती है।
गांव का संयुक्त मकान जिसमे हम और गणेश ताऊजी का परिवार रहता था।सबसे बड़े ताऊजी ने बांदीकुई में ही मकान बनवा लिया था और वह वही रहते थे।दूसरे नम्बर के ताऊजी कुंवारे थे और खेत सम्हालते थे।उन्होंने खेत पर ही कमरा बनवा रखा था।वे वही रहते थे।
मेरा मानना था कि पत्नी एक सेटल परिवार से आ रही है और हमारे यहाँ सब कुछ
मन ही मन मे हीन भावना भी कभी मन मे आती थी।और शादी से कई दिन पहले रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था।इसके अलावा मेरे साथ आबूरोड में काम कर चुके मेरे दोस्त भी अपने परिवार के साथ आये थे।आगरा से मकान मालिक का परिवार और दूसरे मेरे साथ रह रहे रमेश का परिवार भी आया था।
शादी सर पहले ही रौनक हो गयी थी।आजकल तो सब कुछ मैरिज होम में एक दिन में निपट जाता है।नाते रिश्तेदार और मित्र सब सीधे विवाह स्थल पर आते है और वही से विदा हो जाते है।लेकिन मेरी शादी में तो लग्न वाले दिन से ही लोग आ गए थे।इतने लोगो का खाना घर की औरते ही बना रही थी।
ताऊजी भी गजब थे।घोड़ी ऐसी कर आये की मैने उस पर बैठने से मना कर दिया था।फिर 23 जून को मैं और जगदीश भाई स्टेशन के पास एक साधु रहता था।उसके पास घोड़ी थी।उसे करके आये थे।
24 जून को सुबह से ही चहल पहल थी।बारात जाने की तैयारी हो रही थी।बसवा से दिन के समय कोई सीधी ट्रेन नही थी जो खान भांकरी स्टेशन पर रुकती हो।बारात को ट्रेन से जाना था।11 बजे रेवाड़ी से आने वाला अद्दा बांदीकुई तक ही जाता था।बांदीकुई से 7 आप ट्रेन पकड़नी थी जो आगरा से आती थी।यह ट्रेन खान भांकरी स्टेशन पर रुकती थी।इसी ट्रेन से मैं जगदीश भाई के साथ लड़की देखने के लिए गया था।
लेट लतीफी पहले भी थी और अब भी।ट्रेन पहले भी समय पर नही चलती थी और आज भी नही।हमे जिस ट्रेन स जाना था,लेट आयी थी।जून के महीने में ट्रेन का खुले में इंतजार करना आसान नही होता लेकिन पहले करते थे और किया भी।
और बरात बांदीकुई पहुंच गई।आगरा से आने वाली ट्रेन आयी नही थी।एक बजे आती थी और दो बजकर तीस मिनट पर चलती थी।
ट्रेन आयी।आगरा से मेरे इंचार्ज ओम दत्त मेहता और मेरे दी अन्य साथी जे सी शर्मा और बी के सैनी आये थे।ट्रेन आने पर बराती ट्रेन में बैठ गए थे।और निश्चित समय पर ट्रेन चल दी थी।