Deenu ki Dairy in Hindi Classic Stories by Yogesh Kanava books and stories PDF | दीनू की डायरी

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दीनू की डायरी

दीनू की डायरी

 

अपनी घुमक्कड़ प्रवृति के अनुसार ही आज एक बार फिर संदेश किसी अनजानी सी डगर पर निकल पड़ा था। अनजान राह अनजान डगर, मिशन कुछ नया जानने ओैर खोजने का! आज वो चलता जा रहा था लेकिन मन को कोई डगर जंची नहीं थी इसलिए वो बिना रूके बढ़ता जा रहा था अपनी गाड़ी में बैठा, गाँव की कच्ची-पक्की सड़कां पर संदेश की संदेश की गाड़ी हिचकोले खाती चलती जा रही थी अचानक ही एक जगह उसे भीड़ नजर आई। उसने सोचा चलो देखा जाय क्या हो हुआ है। वो एकदम अनजाने लोगों के बीच जा पहुँचा लोग उसे उत्सुकता से देख रहे थे। भला इस छोटी सी ढाणी में महंगी कार में कौन साहब आये हैं और वो भी ऐसे मौके पर ! संदेश गाड़ी से उतर कर उन लोगों के करीब चला गया। प्रश्न सूचक निगाहों से उसने सबको देखा लेकिन उन गाँव वालों के कोतुहल और प्रश्न सुचक निगाहों को संदेश भी भांप गया था। उसने स्वयं ही आगे हो कर अपना परिचय देना उचित समझा। परिचय देने के बाद उसने भीड़ का कारण पुछा तो पता चला कि दीनू चल बसा! बेहद निराशा और लाचारी में उसकी मौत हो गयी। रात ठीक था, सबके साथ चौपाल में था, लेकिन सुबह देखा तो............सुबकते से एक व्यक्ति बोला। सबने कहा साहब ये उसका छोटा भाई है अभी कुँआरा है, माँ-बाप तो पहले ही भगवान को प्यारे हो गए थे। एक बड़ा भाई था सो वो भी ...पता नहीं ऊपर वाले की क्या लीला है। मैनें उसकी मौत का कारण जानना चाहा तो कोई कुछ भी बताने को तैयार ही नहीं था। बस भगवान ही जाने क्यों हुआ ऐसा, एक ही रट लगाये थे। और यही पंक्ति संदेश के जहन में बैठ गई। भगवान ही जाने क्यों हुआ ऐसा आखिर ऐसा क्या हुआ है जो ये सब बताना ही नहीं चाहते हैं। उसकी उत्सुकता बढ़ती गई। उसने भी मानो ठान लिया था कि अन्दर की बात को जानकर ही रहेगा। वो गाड़ी वहीं खड़ी कर उस भीड़ में शामिल हो गया। धीरे-धीरे कुछ खुसर-फुसर से मालुम चला कि उसने आत्महत्या की थी पुलिस के डर और पोस्टमार्टम के डर के मारे वो कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे। संदेश ने उन्हें भरोसा दिलाया कि पुलिस नहीं आयेगी तो वे थोड़ा सा विश्वास कर पाये लेकिन फिर भी सही कारण किसी ने भी नही बताया। वैसे लग रहा था कि शायद उनके पास सही जानकारी थी भी नही जिसे वे मुझे बता पाते। वक़्त की नज़ाकत समझते हुए संदेश ने वहां से निकलना ही उचित समझा।


संदेश वापस आ तो गया लेकिन मन में अभी दीनू किसान की मौत की गुत्थी अटकी हुई थी। आखिर कौन से कारण थे जिसके चलते एक मेहनतकश किसान को गुमनाम मौत का सहारा लेना पड़ा। कोई तो कारण अवश्य ही रहा होगा। इसी उधेड़बुन के चलते संदेश चार-पांच दिन के बाद उसी ढ़ाणी में वापस चला गया। माहौल सामान्य लग रहा था। सभी अपने-अपने काम में व्यस्त। गाड़ी देखकर कुछ बच्चे पीछे दौड़े, कहने लगे वही शहरी बाबू फिर आया है। एक-एक कर ढ़ाणी के लोग जमा होने लगे। वो जानना चाह रहे थे कि आखिर वो आज वापस क्यों आया है। संदेश धीरे से गाड़ी से बाहर आया और उसने दीनू का घर पुछा। लोगों ने इशारे से एक झौपड़ीनुमा घर की तरफ इशारा किया। वो धीरे-धीरे सीधे कदमों से दीनू के घर की ओर चल दिया। पीछे-पीछे ढ़ाणी के सभी लोग भी चल रहे थे। दीनु के घर का हाल देखकर संदेश का कुतुहल और बढ़ गया। जवानी में ही बुढ़ी सी दिख रही दीनू की बेवा छाती से चिपका एक नंगधडं़ग बच्चा पास ही मौहले की औरतें उसे ढ़ाढ़स बंधाती हुई सी। तभी एक जवान लड़की जिसकी आंखे सूज रही थी वो सामने आई और जोर से चिल्लाई क्या चाहिए बाबू; मेरा भाई तो चला गया अब हम सबको भी वही पहुँचा दो उसके पास कम से कम यहाँ भूख से नहीं मरेंगे। उस लड़की कि हालत देख वो एकदम शान्त खड़ा रहा। मैं दीनू के बारे मे जानने आया हूँ ताकि तुम लोगों की कुछ मदद हो सके। वो और भी तेज आवाज में चिल्लाई........... क्या मदद करोगे हमारी एक-दो टाईम की रोटी दे दोगे या सौ-दो सौ रूपया थमा दोगे। मेरा भाई वापस लाकर दे सकते हो........बोलो बाबू बोलो। वो संदेश का कमीज पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाए जा रहा थी। कुछ लोगों ने उस लड़की को अलग कर शान्त करवाया। दीनू का भाई आकर बोला साहब इसकी बातों का बुरा मत मानना भाई की मौत के कारण पगला गयी है। वो हमारा बड़ा भाई ही नहीं था, वो तो हमारे माँ-बाप सब कुछ था। हम दोनों भाई-बहनों के लिए क्या-क्या जतन नहीं करता था वो..........। वो फिर से सुबकने लग गया। इस बार संदेश ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा...देखो मैं तुम्हारे भाई को वापस नहीं ला सकता हूँ लेकिन उसकी मौत का सही कारण जानकर तुम लोगों की मदद ज़रूर करना चाहता हूँ दीनू का भाई बिना कुछ बोले भीतर गया और एक मटमैली-सी डायरी लाकर मेरे हाथ मे थमा वही निढ़ाल सा बैठ गया।


संदेश ने वो डायरी उलट-पुलट कर देखी और कहा ठीक है मैं इसे देखता हूँ। चलने से पहले संदेश ने दीनू के भाई के हाथ मे पाँच हजार रूपये थमाते हुए कहा ये रखलो तुम्हारे काम आएंगे। आगे बिना कुछ भी सुने वो तेज कदमों से गाड़ी की ओर गया और बड़ी तेज रफ्तार से गाड़ी चलाकर ले गया। घर पहुंचकर संदेश ने डायरी निकाली और पढ़ने लगा- लिखा था.........

5-फरवरी : इस बार मैंने गुडिया की शादी की लिए कुछ इन्तज़ाम करने की सोची है फसल ठीक-ठाक है पर बार-बार मन में आ रहा है कि ग्रामसेवक जी की बात क्यों नहीं मानी है। लहसुन का भाव 150 रूपये प्रति किलो जा पहुँचा है यदि लहसुन बो देता तो ही सारा कर्जा चुकता हो जाता लेकिन मैं ही अभागा बात नहीं समझा। साहुकार को अभी भी ढ़ाई लाख चुकाने हैं। बीज, भाड़ा, बुवाई कुल मिलाकर इस बार भी मैंने 50 हजार और उधार ले लिये हैं अब तो पूरी की पूरी जमीन ही गिरवी रखी है। बस भगवान भरोसे ही हूँ।

10-फरवरी : आज कुदरत का कहर टूट पड़ा आधा-आधा पाव के ओले गिरे। हजारों जानवर मारे गए, फसल पुरी चोपट हो गयी अब क्या होगा ?

25-मई : आज साहुकार आया था उगाई करने जो कुछ भी फसल के उजड़ने के बाद बचा था वो समेट कर ले गया। हिसाब भी जोड़ कर गया था ब्याज जोड़कर कुल दो लाख साठ हजार अभी और देने हैं।

17-अगस्त : इस बार बरसात अच्छी हो रही लगता है। भगवान इस बार मेहरबान है। मक्का की अच्छी फसल है। थोड़े से रकबे में कपास भी बोई थी वो भी ठीक है।

20-नवम्बर : फसल की कटाई हो चुकी हैं आज फिर साहुकार आया और सब कुछ समेटकर ले गया। खाने के लिए भी कुछ नहीं छोड़ा। अब ये साल कैसे निकलेगा भगवान जाने। साहुकार की नीयत मे खोट है वो बार बार गुड़िया की तरफ देखता हैं। मेरा खून खौल जाता है। मैं जानता हूँ वो किन नज़रों से देखता है कर्ज के बोझ तले मैं दबा कुछ कह भी नही पाता हूँ। क्या करूं लगता है कि आत्महत्या कर लूं।
22-नवम्बर : इस बार ग्रामसेवक जी से फिर पुछा तो इस बार लहसुन की फसल के बारें में उन्होंने कोई खास जानकारी नहीं दी। मैंने मन ही मन ठान लिया था कि पूरे रकबे मे लहसुन ही बोना हैं।

11-फरवरी : मैं बर्बाद हो गया अब कुछ नहीं हो सकता है लहसुन थोक मण्ड़ी में डेड़ रूपया किलो बिक रहा है। लिवाली नही है। मैं आज मण्ड़ी मे पूछ कर आया था। साहुकार भी लहसुन को हाथ लगाने को तैयार नहीं हैं। अब क्या करूं इस बार तो बीज का भी पैसा वापस नहीं हो रहा है। अब कोई रास्ता नहीं बचा हैं जमीन साहुकार की हो गई है। मैं अब गुड़िया के पीले हाथ कैसे करूंगा वो जवान हो गई है क्या होगा इसका। साहुकार की गंदी नज़र, मेरा कर्जा और लाचारी बस कोई रास्ता नहीं है आज सब कुछ खत्म। बस और कुछ नहीं। बहिन की इज़्ज़त बचाने के लिए आज मैंने अपनी माँ ......धरती माँ को बेच दिया साहुकार के हाथों। बस अब कुछ नहीं बचा मेरे पास सिवा अपने प्राणों के।

यह आखिरी लाईन संदेश के जहन में तीर सी चुभ गई। उसे समझ आ गया था कि दीनू क्यों मरा। क्यों उसने आत्महत्या की। वो सोच रहा था कि आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए उस साहुकार पर मुकद्दमा करना चाहिए। बस इन्ही ख़यालों के साथ वो दीनू की डायरी बार बार देखता रह गया , गोया कि वो दीनू को ढूंढ़ रहा हो।


योगेश कानवा